मध्य प्रदेश : क्या एमपीएसडी बन पाएगा एनएसडी?

दूरदराज की मंचीय प्रतिभाओं को निखारने का बड़ा प्लेटफॉर्म बनकर उभरा मध्य प्रदेश नाट्य विद्यालय (एमपीएसडी). नई सोच वाले निदेशक के साथ अब वह एक नई राह पर आगे बढ़ता दिख रहा है

भोपाल में नया बनता एमपीएसडी का परिसर
भोपाल में नया बनता एमपीएसडी का परिसर

"यहां हम स्टुडेंट्स प्रोडक्शन के छोटे शो करेंगे, 60-70 की ऑडियंस के बीच; (फर्स्ट फ्लोर पर) इस हॉल में फर्स्ट ईयर की क्लास चलेगी...यह होगा हमारा साउंड स्टूडियो...यह बड़ा हॉल सेकंड ईयर की क्लास का...लगा हुआ मेकअप रूम; (छत से नीचे दिखाते हुए) वह हमारे ब्लैकबॉक्स ऑडिटोरियम की नींव और खड़ा हो रहा ढांचा." भोपाल के पॉश इलाके बाणगंगा चौराहे से लगे यही कोई डेढ़ एकड़ में फैले अलाउद्दीन खां संगीत और कला अकादमी के परिसर की बूढ़ी इमारत.

उसी पर खड़े होते नए ढांचे के इंटीरियर को, अगले महीने 50 के हो रहे टीकम जोशी किंचित जज्बाती होकर नैरेट कर रहे हैं. उनके पास इसकी वजह है. उनके पिता कभी यहीं मध्य प्रदेश उर्दू एकेडमी के मुलाजिम हुआ करते थे. मां ने भारत भवन रंगमंडल के कलाकारों का खाना बनाया-खिलाया. शहर से निकलकर दिल्ली और थिएटर की दुनिया में बड़ा नाम बनने के बाद उन्हीं की संतान अब फिर भोपाल में प्रदेश के प्रतिष्ठित मध्य प्रदेश नाट्य विद्यालय (एमपीएसडी) के निदेशक के रोल में नई पहल, नए प्रयोग कर रहा है.

भारत भवन में अभी पिछली शाम (24 अगस्त) उसी प्रयोग का एक नमूना सामने था. विद्यालय से ही निकले 15 छात्रों को लेकर शुरू रंग प्रयोगशाला (थिएटर लैब) के तहत तैयार पांच नाटकों के फेस्टिवल की एक प्रस्तुति थी. लगातार हो रही बारिश के बावजूद रंजीत कपूर के लिखे और निर्देशित थ्रिलर रांग टर्न को देखने 250 से ज्यादा दर्शक (कई तो छाता लेकर) पहुंचे थे.

थोड़ा पीछे पलटकर जल्दी से विद्यालय को तथ्यों के ताने-बाने में जरा टटोल लें. जून 2011 में तब के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के न्यौते पर दिग्गज भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने लंबी प्लानिंग के साथ बने थिएटर में साल भर का डिप्लोमा देने वाले इस विद्यालय का फीता काटा था. 11 बैच में अब तक करीब 275 छात्र निकल चुके हैं, जिनमें से एक-तिहाई छात्राएं हैं. दस फीसद छात्र यहां से निकलकर बेहतर तालीम के लिए राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय एनएसडी/दिल्ली गए. तो 50-70 खलीफा मुंबई निकल लिए.

थिएटर लैब के तहत तैयार नाटक रांग टर्न (लेखक-निर्देशक: रंजीत कपूर)

लेकिन कोई तीसेक छात्र राज्य के ही अलग-अलग शहरों-कस्बों में और 20-25 दूसरे राज्यों में थिएटर के जरिए समाज में अपने ढंग से तब्दीली लाने की मुहिम में जुटे हैं. भोपाल, जबलपुर, इंदौर जैसे शहरों से इतर सीधी (11), छतरपुर (5) और झाबुआ (4) जैसे दूरदराज के जिलों से, वह भी वंचित तबकों की बहुत-सी कमाल की प्रतिभाओं का विद्यालय पहुंचना एक निर्णायक सामाजिक घटनाक्रम था.

किराए के एक सभागार में चलने के बावजूद शुरू से ही यहां डायरेक्शन, ऐक्टिंग, डांस, म्यूजिक, कॉस्ट्यूम और स्टेज डिजाइन वगैरह के 30-40 एक्सपर्ट हर साल आने लगे. साल भर का कोर्स होने के बावजूद यहां के छात्रों की गतिविधियों ने कुछ ऐसी धारणा बनाई कि एमपीएसडी की चर्चा एनएसडी के बरअक्स होने लगी. एनएसडी से ही पढ़े और उसकी रेपर्टरी में सालों तक अभिनय में कढ़े टीकम ऐसे माहौल में दो साल पहले निदेशक बनकर आए. पर अपने कुछ सवालों और आइडियाज के साथ.

वे बताते हैं, ''थोड़ा रूपक में कहें तो मैं विचारों के, सृजनात्मकता के खंडर में आया था. उस वक्त निकल रहा बैच मुझे खुश नहीं दिखा. छतरपुर से आए एक बच्चे को साल भर में पढ़ाने आए 40 टीचर्स की सूचनाएं, उनकी कराई चीजें हैं लेकिन एकेडमिकली वे कहीं ले नहीं जातीं. साल भर में वह एक्सपर्ट कैसे हो सकता है? प्रदेश के संस्कृति सचिव से मिलकर मैंने कहा कि एक साल का कोर्स, वह भी उस खंडहर में चलाने तो मैं नहीं आया हूं." आखिरकार कोर्स दो साल का हुआ, विद्यालय की बिल्डिंग बननी शुरू हुई और पास होकर निकले छात्रों को अभिनय और दूसरी गुर तराशने के लिए थिएटर लैब का प्रयोग आया.

अब पीजी डिप्लोमा की दूसरे वर्ष की छात्रा ध्रुवी गांगिल से पूछिए जरा. मध्य प्रदेश के बीहड़ किस्म के भिंड जिले (गोहद तहसील) से उनके रूप में कोई पहला छात्र एमपीएसडी आया है. दिल्ली विवि के आर्यभट्ट कॉलेज से ग्रेजुएशन के बाद उनके पास दूसरे विकल्प भी थे. पर उन्हीं के शब्दों में, "दिल्ली में कई जानकारों ने बताया कि एक नया और विजन वाला रंगकर्मी (टीकम जोशी) एमपीएसडी जा रहा है, उसके पास एक नई सोच है, कोर्स भी दो साल का करवा लिया है, कुछ नया करेगा. इसीलिए यहां आना चुना."

पुनश्च कृष्ण (लेखक: रमा यादव, निर्देशक: टीकम जोशी) के दृश्य

इस चुनाव का नतीजा वे देख रही हैं. वे हंसते हुए बताती हैं, "अभी हाल में टीकम सर ने पूछा, 'तू कौन-सा खेल खेलती है?' मैंने कहा कि घर में सब पढ़ाकू थे, खेलने-कूदने को खराब समझा गया. बोले, 'तेरी बॉडी में वो दिखता है, उसपे ज्यादा ध्यान दे.' अब सोचती हूं स्कॉलर वाला जोन छोड़कर फिजिकल पर जाऊं." विद्यालय फिलहाल रवींद्र भवन के पिछले हिस्से में चल रहा है.

उसी के सामने कुतबी मस्जिद रोड इलाके के एक घर में किराए के घर में फर्स्ट ईयर की श्वेता जैन (उज्जैन), भवनीत (फतेहाबाद), ज्योत्स्ना, शिवांजलि और अनिकेत (सभी जबलपुर) कल म्यूजिक की क्लास में रंग संगीत के दिग्गज संजय उपाध्याय की बताई बातें दोहरा रही हैं: कपड़ों और डिजाइन में जैसे टेक्सचर होता है उसी तरह से हमारी आवाज में टिंबर होता है; एक कैरेक्टर के मूड-मिजाज के हिसाब से म्यूजिक बदलने को ट्रांजिशन और लोकेल के अनुरूप बदलने को शिफ्ट कहते हैं. दक्षिण हरियाणा में फतेहाबाद के एक गांव की भवनीत को कोरोना में थिएटर का चस्का लगा. दिल्ली के खालसा कॉलेज में ग्रेजुएशन के दौरान उन्होंने उसे तराशा और दोस्तों से एमपीएसडी के बारे में अच्छा फीडबैक पाकर यहां आईं.

शुरू के सात साल तक विद्यालय के निदेशक रहे और पटना से पढ़ाने आए उपाध्याय क्लास के बाद रवींद्र भवन की कैंटीन में लंच में खिचड़ी-दही पर चर्चा करते हैं. वे एनएसडी में भी पढ़ाते रहे हैं. दोनों में आखिर फर्क क्या है? "एनएसडी बड़ा मेल्टिंग पॉट है, एक बड़े बाजार जैसा. शुरू में महीनों तक वहां छात्र कल्चरल शॉक में रहते हैं. पर यह इंटीमेट-सी जगह है. भटकाव कम और फोकस ज्यादा हो पाता है."

फिलहाल, विद्यालय का अपना छात्रावास और एलुमनाइ एसोसिएशन की बात विचाराधीन है. पर ट्रेनिंग अहम मसला है. जैसा कि 2016-17 बैच की पूजा केवट कहती हैं, "स्पीच की एक क्लास में हमें गूंज-गरज के साथ बोलना सिखाया गया. फिर गोविंद नामदेव सर ने आकर पढ़ाया कि आवाज तो नाक के ऊपर भौंहों के बीच आज्ञाचक्र से निकलती है, एकदम सॉफ्ट. हम तो कन्फ्यूजई हो गए." 

टीकम इसी ओर इशारा करते हैं. "यही तो कह रहा हूं. सारे टीचर स्टानिस्लावस्की, माइजनर, नाट्यशास्त्र 30-40 साल के अपने अनुभव से पढ़ाते आ रहे हैं. व्याकरणसम्मत थ्यौरी नहीं तैयार की. दो साल के कोर्स में अब प्रैक्टिकल और थ्यौरी में संतुलन बनाने की मेरी कोशिश है." 

पर क्या सचमुच वे एमपीएसडी को एनएसडी के बराबर लाने का सपना देखते हैं? "देखिए, तगड़ी ट्रेनिंग, व्यापक सिलैबस, फिर निकलने पर 26 में से 15 छात्रों को सैलरी के साथ थिएटर लैब में काम करने का मौका. हमारा छात्र फिर एनएसडी जाएगा क्यों?"

पिछले साल प्रदेश के 77,000 सरकारी स्कूलों के लिए एमपीएसडी ने एक फंक्शन के लिए प्रोडक्शन बनाकर दिए जिसे 10,000 स्कूलों में एक ही दिन खेला गया. टीकम ने स्कूली शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव को सुझाया है: "नौवीं या 11वीं में थिएटर को जरूरी विषय बना दिया जाए. बच्चों का संपूर्ण विकास खुद-ब-खुद होने लगेगा." देश-दुनिया घूमकर बटोरे गहरे अनुभव और सूझ की बिना पर राज्य के एक शीर्ष रंगकर्मी ने सौ टके का सुझाव दिया है. तो क्या मध्य प्रदेश पढ़ाई में थिएटर को अनिवार्य करने वाला देश का पहला प्रदेश बनेगा?

पूजा केवट (2016-17 बैच)

जबलपुर की पूजा एमपीएसडी से निकलने के बाद अपने शहर के ही एक स्कूल ग्रुप में थिएटर शिक्षिका हैं. वे 15 स्कूलों के शिक्षकों को भी सिखाती हैं कि बच्चों को कैसे पढ़ाएं. वे कहती हैं: "स्कूलों के बच्चों को थिएटर के बारे में कुछ भी नहीं पता. सब्र के साथ उन्हें बताइए तो उनकी जिंदगी ही बदलने लगती है."

सुभाष अहीरवार (2022-23 बैच)

छतरपुर के एक दलित परिवार के सुभाष डांसर थे. नाटक के एक शो के दौरान कलाकारों के बीच कोई भेदभाव न देख उन्हें अचंभा हुआ. नाचने, गाने, गीत लिखने की अपनी नैसर्गिक प्रतिभा के साथ एमपीएसडी पहुंचे सुभाष ने वहां अभिनय को निखारा. 3-4 महीने पहले मुंबई जा पहुंचे हैं. 

ध्रुवी गांगिल (2023-25 बैच)

ध्रुवी के रूप में मध्य प्रदेश के भिंड जिले से पहली बार कोई छात्र एमपीएसडी आया है. इसके लिए उन्हें परिवार से बगावत करनी पड़ी. दिल्ली विवि के आर्यभट्ट कॉलेज से ग्रेजुएशन के दौरान थिएटर से जुड़ीं और रम गईं. एमपीएसडी के बारे में फीडबैक था कि नया निदेशक आया है, कुछ नया करेगा. वे आ गईं.

कुमार सौरभ (2012-13 बैच)

बिहार के कटिहार से एमपीएसडी आकर ट्रेनिंग लेने वाले सौरभ महारानी और मामला लीगल है समेत 20 से ज्यादा सीरीज/फिल्मों में काम कर चुके हैं. वे बताते हैं, "नाट्य विद्यालय में सीखी बारीकियों की अहमियत 4-5 साल बाद समझ में आई जब अभिनय में उनके इस्तेमाल की जरूरत पड़ी."

इंटरव्यू

"एनएसडी जैसा राष्ट्रीय संस्थान बनेगा एमपीएसडी" - शिवशेखर शुक्ल

पिछले तीनेक साल में यहां 350-400 प्रोजेक्ट्स् हो चुके हैं. फिल्म टूरिज्म को यहां ज्यादा बढ़ावा मिलने में यह फैक्टर भी है कि टीम को बहुत-से मैच्योर कलाकार यहीं मिल जाते हैं.

एमपीएसडी को लेकर मध्य प्रदेश सरकार की सोच

इस विद्यालय के पीछे कॉन्सेप्ट यही था कि एनएसडी के पैटर्न पर राज्य का नाट्य विद्यालय खोलकर एक फॉर्मल एजुकेशन सिस्टम के तहत प्रदेश में इस विधा के टैलेंटेड बच्चों को ट्रेनिंग दें जिससे इनकी प्रतिभा के अनुरूप इन्हें काम का अवसर मिले. पहले साल भर का सर्टिफिकेट कोर्स था.

अब यहां से दो साल का पीजी डिप्लोमा होने लगा है. इसकी एनएसडी के डिप्लोमा जैसी अहमियत होगी. उसी के अनुरूप बिल्डिंग, रंगशाला और सभी जरूरी व्यवस्थाएं जुटाने का प्रयास शुरू हो गया है. एमपीएसडी मध्य प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश के प्रतिभाशाली बच्चों को एनएसडी की तर्ज पर गढ़ने का काम करेगा.

एनएसडी से बराबरी की बात पर

एनएसडी एपेक्स इंस्टीट्यूशन है लेकिन उसकी सीमित कैरीइंग कैपेसिटी है. जो वहां नहीं पहुंच पाए, वे स्टेट स्कूल ऑफ ड्रामा से पढ़ेंगे. डिग्री की वैल्यू उतनी ही है. इन्फ्रास्ट्रक्चर और स्टाफिंग पैटर्न आदि पर काम चल रहा है. हमारा प्रयास इसको एक राष्ट्रीय स्तर के संस्थान के बराबर लाने का है.

पासआउट्स को नौकरी की बात पर

यह संभव ही नहीं कि कोई इंस्टीट्यूशन ऐसा क्रिएट हो जिसके सारे बच्चों को सरकार नौकरी की गारंटी दे दे. लेकिन अपॉर्चुनिटीज क्रिएट करने को हम ऐक्टिव फिल्म टूरिज्म पॉलिसी लेकर आए. 2020 के बाद से यहां फिल्में, डॉक्युमेंट्रीज, वेब सीरीज हर तरह के प्रोजेक्टस आने लगे.

पिछले तीनेक साल में यहां 350-400 प्रोजेक्ट्स् हो चुके हैं. फिल्म टूरिज्म को यहां ज्यादा बढ़ावा मिलने में यह फैक्टर भी है कि टीम को बहुत-से मैच्योर कलाकार यहीं मिल जाते हैं. तय सीमा से ऊपर स्थानीय कलाकारों को प्रमुख भूमिकाएं देने पर फिल्म पॉलिसी में स्पेशल इनसेंटिव्ज का प्रावधान है.

थिएटर को जरूरी विषय बनाने पर

स्कूल या हायर एजुकेशन मेरा विषय नहीं, उसके बारे में नहीं बोल पाऊंगा.

भारत भवन में रेपर्टरी शुरू करने पर

विचार-विमर्श अभी बहुत इनिशल स्टेज में है. हम लोग प्रयासरत हैं. इसके सभी स्टेकहोल्डर्स से चर्चा करके रेपर्टरी फिर से रिवाइव करना चाहते हैं.

एमपीएसडी में बाल रंगमंच पर

चिल्ड्रंस थिएटर विंग की बात अभी तक हमारे ख्याल में नहीं थी. आपने कहा है, अपने संसाधनों के भीतर हम इस पर सोचेंगे.

Read more!