जान की कीमत पर भी 'डंकी' रूट से अमेरिका जाने के लिए तैयार ये भारतीय नौजवान

पश्चिमी देशों में जाने के गैर-कानूनी 'डंकी' रूट की दिल दहला देने वाली कहानियों के बावजूद गुजरात, पंजाब और देश के दूसरे हिस्सों के नौजवानों को बेहतर जिंदगी का सपना लुभाता है. इंडिया टुडे ने गुजरात में कुछ परिवारों से बातचीत करके पता लगाने की कोशिश कि अवैध आव्रजन की पूरी अर्थव्यवस्था है क्या

निकारागुआ जा रही फ्लाइट को मानव तस्करी के संदेह में फ्रांस में रोक लिया गया और यात्रियों को वापस मुंबई भेज दिया गया
निकारागुआ जा रही फ्लाइट को मानव तस्करी के संदेह में फ्रांस में रोक लिया गया और यात्रियों को वापस मुंबई भेज दिया गया

कहानी पुरानी है, बस रह-रहकर कुछ नए अध्याय अक्सर जुड़ जाते हैं. इस साल मई में, जर्मन चार्टर उड़ान से 253 भारतीयों को मानव तस्करी के संदेह में जमैका की राजधानी किंग्सटन से दुबई भेज दिया गया. जमैका में हफ्ते भर के पड़ाव के बाद कुछ यात्री निकारगुआ जाने वाले थे और कुछ कनाडा.

अलबत्ता महज एक दिन ही पड़ाव रहा. गुजरात के अपराध पड़ताल विभाग (सीआईडी) के अधिकारियों को शक है कि राज्य से करीब 75 और कुछ यात्री पंजाब से अवैध आप्रवास के लिए अमेरिका जाने की कोशिश में थे.

वापस लौटा देने पर कैसा लगता है? करीब सात महीने पहले 32 वर्षीय रमन ठाकोर को पिछले दिसंबर में फ्रांस के वैट्री से निर्वासित किया गया था. उत्तर गुजरात के कृषि प्रधान शहर मेहसाणा में लौटकर उनका एक दिन भी ऐसा नहीं गुजरा, जब उन्होंने दोबारा कोशिश न करने की नहीं सोची हो. उनकी पत्नी तीस वर्षीया अल्पिता ठाकोर जारो-कतार रोए जा रही हैं और उनकी तीन वर्षीया बेटी गुब्बारे से खेलते हुए उनके आंसू पोंछने की कोशिश कर रही है.

वे बताती हैं, "यह (अवैध आव्रजन का) उनकी तीसरी नाकाम कोशिश थी. इससे पहले एजेंटों ने उन्हें ठग लिया था, जिसके चलते उन्हें वियतनाम और इंडोनेशिया से वापस लौटना पड़ा था." रमन की फिर जाने की कोशिश की बात सोचकर ही अल्पिता का बुरा हाल है, हालांकि, उनकी ससुराल वाले बेफिक्र हैं. वे कहती हैं, "उन्हें भरोसा है कि वे किसी तरह अमेरिका पहुंच जाएंगे और वहां पहुंचते ही रुपए-पैसे की हमारी सारी परेशानियां खत्म हो जाएंगी. लेकिन मेरा और मेरे बच्चों का क्या होगा?"

ठाकोर उन 303 भारतीय यात्रियों में थे जो निकारागुआ जाने वाले रोमानियाई चार्टर विमान पर सवार थे. उस जहाज को मानव तस्करी के संदेह में फ्रांस के वात्री में चार दिनों के लिए रोक दिया गया था. वैसे, वात्री में हिरासत में लिए गए सभी यात्रियों के पास वैध यात्रा दस्तावेज थे, लेकिन उनमें से कुछ ने मेक्सिको के रास्ते अमेरिका में अवैध रूप से घुसने की बात कबूल की.

सत्ताइस यात्रियों ने फ्रांस में शरण के लिए आवेदन किया, जबकि बाकी 276, जिनमें गुजरात के 96 और पंजाब और हरियाणा के दूसरे लोग शामिल थे, को वापस भेज दिया गया. बाद में उनके मूल स्थान मेहसाणा, गांधीनगर और उत्तर में पाटन तथा मध्य गुजरात में आणंद लौटने पर क्रिमिनल इन्वेस्टिगेशन डिपार्टमेंट (सीआईडी) ने 15 एजेंटों को गिरफ्तार कर लिया.

इस तरह की घटनाएं अक्सर राज्य भर में रिपोर्ट की जाती हैं, जिससे जांचकर्ता वीजा एजेंटों, बिचौलियों और सूत्रधारों (मानव तस्करी के दायरे में 'डंकर') का पीछा करते हैं, जो कई देशों में परिष्कृत कार्टेल के भीतर काम करते हैं. सितंबर 2023 के लिए यूनाइटेड स्टेट्स कस्टम्स ऐंड बॉर्डर प्रोटेक्शन (यूएससीबीपी) के डेटा से पता चलता है कि 2019-20 से भारतीय अवैध प्रवासियों में पांच गुना वृद्धि हुई है - अक्तूबर 2022 और सितंबर 2023 के बीच 96,917 लोगों को पकड़ा गया, जबकि 2019-20 में यह संख्या 19,883 थी.

लेकिन इन आंकड़ों से दुस्साहसी मर्द और औरतों की मुसीबतों का अंदाजा नहीं लगता. सिनेमा भी उस दुख-तकलीफ का मामूली हिस्सा ही दिखला पाया. जैसा पिछले नवंबर में रिलिज हुई शाहरुख खान अभिनीत डंकी (काम के लिए एक से दूसरी जगह जाने वालों के लिए पंजाबी शब्द) इंग्लैंड जाने का इरादा रखने वाले पंजाब के एक गांव के दोस्तों की कहानी है. लेकिन उसमें उस त्रासदी का दिल दहला देने वाला एहसास जरूर है, जो मार्च 2023 में, मेहसाणा के प्रवीण चौधरी के चार सदस्यीय परिवार पर बरपा हुई, जब कनाडा में क्यूबेक-न्यूयॉर्क सीमा से अमेरिका में अवैध रूप से घुसने की कोशिश के दौरान उनकी नाव सेंट लॉरेंस नदी में पलट गई.

इसी तरह, जनवरी 2022 में, मेहसाणा जिले के डिंगुचा गांव के जगदीश पटेल के चार सदस्यीय परिवार की दिल दहला देने वाली कहानी सामने आई, जिसमें एक तीन साल का बच्चा भी शामिल था, कनाडा से अमेरिका में घुसने की कोशिश करते समय बर्फीले तूफान में उनकी मौत ने सबसे कठोर दिलों को भी झकझोर कर रख दिया. इस साल मार्च में, एक अमेरिकी जिला अदालत ने गुजराती मूल के हर्षकुमार पटेल उर्फ 'डर्टी हैरी' सहित दो लोगों को इन मौतों के लिए दोषी ठहराया.

लेकिन ऐसी दुर्घटनाएं, गिरफ्तारियां या अभियोग गुजरात, पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों के लोगों की खतरनाक आकांक्षाओं को रोकने में कोई बाधा नहीं हैं. जांच का नेतृत्व कर रहे सीआईडी के पुलिस अधीक्षक संजय खराट कहते हैं, वैत्री घटना के तीन सप्ताह के भीतर संभावित अवैध अप्रवासियों से भरी सात चार्टर उड़ानें दक्षिण अमेरिकी और अफ्रीकी क्षेत्रों में उतरीं.

रन्नाबेन के दो बेटे और पति अपने जीवन मंए कई बार सीमा नियंत्रणों को चकमा देने के लिए बनाई गई एक चक्करदार यात्रा या 'डंकी' मार्ग पर चल चुके हैं. वे कहती हैं, "हम इसमें शामिल जोखिमों को समझते हैं. जगदीशभाई के परिवार का मामला दुर्भाग्यपूर्ण था, लेकिन ऐसी हर घटना के बावजूद, हजारों लोग सफलतापूर्वक सीमा पार कर गए और अरबपति बन गए."

इस पागल दौड़ को चलाने वाली एक महत्वपूर्ण प्रेरणा परिवार की किस्मत का बदलना है. रन्नाबेन और उनके परिवार से बेहतर कोई इसका उदाहरण नहीं दे सकता. उनके पति पी.वी. पटेल 90 के दशक के मध्य में 35 लाख रुपए में कथित नकली पासपोर्ट के साथ अमेरिका पहुंचे. उन्होंने न्यूजर्सी में 7-इलेवन की दुकान पर एक दशक तक काम किया, उसके बाद विभिन्न टेकअवे फूड जॉइंट्स की रसोई में सात साल और काम किया.

पटेल के अमेरिका चले जाने के पांच साल के भीतर रन्नाबेन और उनके बेटे मेहसाणा के सिटी सेंटर में एक गेटेड कम्युनिटी के भीतर अपने फ्लैट से बाहर निकलकर दो मंजिला मकान में रहने चले गए. पांच साल पहले, जब उनकी वापसी 60 साल की उम्र में होने वाली थी, तो दंपती ने अपने बड़े बेटे रशेश को 60 लाख रुपए खर्च करके कनाडा सीमा के जरिए अमेरिका भेज दिया.

हालांकि, रशेश की किस्मत उसके पिता जैसी नहीं रही; उसने 2022 में निर्वासित होने से पहले 17 महीने जेल में बिताए, जिसमें परिवार ने कानूनी फीस पर 25 लाख रुपए खर्च किए.

2021 में, वे चार महीने से अधिक समय तक चले तीन प्रयासों के बाद अपने छोटे बेटे रौनक को अफ्रीका और मैक्सिको के रास्ते शिकागो भेजने में सफल रहे. अब वह शिकागो में 'बस गया' है. इस बीच, परिवार रशेश को फिर से अमेरिका भेजने की तैयारी कर रहा है. रन्नाबेन हल्के-फुल्के अंदाज में कहती हैं, "वह अगले सप्ताह तुर्की के लिए रवाना होगा." दरअसल, वे बातचीत को मामले के मूल में ले जाती हैं—कैसे वह विदेश में 'बस गए' अपने बेटों के लिए दुलहनों को शॉर्टलिस्ट करने में पूरी तरह मशगूल हैं.

वैट्री से लौटे 21 वर्षीय पुनीत पटेल की मां, साठ के दशक में राधाबेन भी यही कहती हैं. "हम जल्द ही दूसरा एजेंट ढूंढ लेंगे. हम जल्दी में हैं क्योंकि उसकी शादी की उम्र करीब आ रही है." उनके बड़े बेटे ने पांच साल पहले 'बे नंबर' (अवैध मार्ग) का रास्ता अपनाया था और तब से उसने विदेश में कानूनी दर्जा हासिल कर लिया है. राधाबेन ने अपने दूसरे बच्चे के लिए उम्मीद नहीं छोड़ी है. उत्तर गुजरात के दर्जनों गांवों में आधुनिक दो या तीन मंजिला बंगले हैं, जिनकी देखरेख दूर के रिश्तेदार या किराए के सहायक करते हैं.

एरिजोना में अमेरिका-मेक्सिको सीमा पर 8 दिसंबर, 2023 को भारतीय आप्रवासियों को ले जाता एक यूएस बार्डर पैट्रोल एजेंट

यहां पक्की सड़कें और स्कूल तथा अस्पताल जैसी सुविधाएं हैं, हालांकि बड़े पैमाने पर पलायन की वजह से इन संसाधनों का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल नहीं हो पाया है. इन बस्तियों में सिर्फ सर्दियों के चार महीनों के दौरान जब एनआरआई आते हैं तभी चहल-पहल रहती है. गुप्त अंगड़िया और हवाला नेटवर्क के जरिए हर सदस्य द्वारा हर महीने भेजे जाने वाले 1-1.5 लाख रुपए से महंगी बाइक, कार और सोने के गहने खरीदे जाते हैं, साथ ही क्रिकेट में सट्टेबाजी जैसी लत भी लगाई जाती है.

'पुरस्कार' की कीमत

वैट्री से लौटे करीब एक दर्जन यात्रियों से पूछताछ के दौरान, सीआईडी अधिकारी एक चौंकाने वाले खुलासे से हैरान रह गए—कनाडा या मेक्सिको के जरिए अमेरिका में प्रवेश करने के लिए एक महीने की एकतरफा यात्रा के लिए प्रति व्यक्ति 70 लाख रुपए का खर्च आता है. इन जोखिम भरी यात्राओं का खर्च कौन उठाता है?

भारत और अमेरिका में कारोबारी हितों वाले एक अनुभवी अमेरिकी नागरिक बाबूभाई पटेल कहते हैं, ''स्थानीय धनी व्यक्ति तीन साल में उचित ब्याज दर पर अपने निवेश पर रिटर्न पाने की उम्मीद के साथ एक आकांक्षी में निवेश करते हैं. वे न्यूनतम प्रति घंटा श्रम दर से भी कम पर दिन में 10-12 घंटे काम करते हैं. वे न्यूनतम लागत वहन करते हुए, कर्ज चुकाते हैं और पैसे घर भेजते हुए, दुकान के फर्श पर रहते हैं या आवास साझा करते हैं."

यह सुनियोजित सिंडिकेट गुजराती समुदायों के भीतर विश्वास पर काम करते हैं, जिसमें पाटीदारों का वर्चस्व है, लेकिन यह उन तक ही सीमित नहीं है. एजेंटों को सभी भुगतान एक अपारदर्शी हवाला प्रणाली के माध्यम से किए जाते हैं. कई लोग इसे आधुनिक समय की बंधुआ मजदूरी कहते हैं, जब विडंबना यह है कि मजदूर स्वेच्छा से अपने नियोक्ताओं द्वारा तस्करी और शोषण के लिए तैयार हो जाते हैं अमेरिका में बचे हुए लोग और उद्यमी बताते हैं कि इन आप्रवासियों को प्रति घंटे 10-12 डॉलर (830 रुपए से 1,000 रुपए) या उससे भी कम भुगतान किया जाता है, और कोई ओवरटाइम शुल्क नहीं लिया जाता.

वे सप्ताहांत में भी विषम घंटों में काम करते हैं और पकड़े जाने के डर से अपने कार्यस्थल पर ही रहते हैं. नियोक्ता उनके पासपोर्ट रख लेते हैं, जिससे वे खुले में घूमने वाले कैदी बन जाते हैं. इन कठिनाइयों के बावजूद, खरात कहते हैं, ''इन गांवों में अमेरिका में जीवन जीने के लिए एक अजीब सी सनक है, जो दुर्भाग्य से फैलती ही जा रही है."

विभिन्न देशों में तस्करी किए जाने और जंगलों, ड्रग कार्टेल और वन्यजीवों से मुठभेड़ों के साथ-साथ कानून लागू करने वालों से बचने के खतरों के कारण जीवन को खतरे में डालने वाले जोखिम एक तरह के पदक में बदल गए हैं, जिसे ये परिवार अपने बच्चों को वीरता के आधुनिक दृष्टांतों के रूप में सुनाते हैं.

इसलिए कोई ताज्जुब नहीं कि वे इन रोमांचों को रोमांटिक रूप से देखते हुए बड़े होते हैं और अवैध अप्रवासी के रूप में अमेरिका में प्रवेश करके नायक बनने का सपना देखते हैं. इस जुनून के मूल में कई गहरी जड़ें जमाए बैठी सामाजिक बुराइयां हैं, जो गांधीनगर, मेहसाणा और आनंद जिलों के गांवों में पीढ़ियों से व्याप्त हैं.

सबसे चौंकाने वाली बात है बेटियों का गायब होना. बेटे की चाहत का मतलब है कन्या भ्रूणहत्या. गुजरात में जन्म के समय लिंगानुपात देश में तीसरा सबसे कम है, यहां 1,000 लड़कों पर 909 लड़कियां हैं, जो राष्ट्रीय औसत 940 से कम है.

खरात बताते हैं, ''पटेल लड़कों को अपने समुदाय में दुलहन नहीं मिलती. कई आदिवासी लड़कियों से शादी करते हैं, जिसका मतलब है कि परिवार के साथ-साथ लड़की के लिए भी सांस्कृतिक समायोजन मुश्किल है और ऐसे विवाह संघर्ष करते हैं. पटेल लड़कियों की कीमत अधिक है, जो अमेरिका में बसे लड़कों को पसंद करती हैं, ताकि वे ससुराल वालों से स्वतंत्र होकर एक आरामदायक जीवन जी सकें."

किसी भी कीमत पर

सीआईडी-क्राइम, रेलवे के एडीजीपी पंडियन कहते हैं कि अवैध अप्रवास मुख्य रूप से दो तरीकों से होता है. पहला, वीजा एजेंट फर्जी प्रवेश प्रस्तावों के लिए विदेशी शैक्षणिक संस्थानों से सांठगांठ करते हैं और इच्छित गंतव्य के लिए असली वीजा हासिल करते हैं.

दूसरा, वे यात्रियों को वैध वीजा के साथ दुबई ले जाते हैं. आगे की यात्रा के लिए उन्हें सांस्कृतिक मंडली या पर्यटकों के हिस्से के रूप में दिखाया जाता है. दिल्ली, हरियाणा और गुजरात के एजेंट हर पड़ाव पर स्थानीय संपर्कों के माध्यम से इस गठजोड़ को नियंत्रित करते हैं. 

पांडियन कहते हैं, "पहले, वे सीधे मेक्सिको के लिए उड़ान भरते थे और इमिग्रेशन से पहले या हवाई अड्डे से पारगमन के दौरान भाग जाते थे. यह एक गंभीर सुरक्षा खतरा था, जिसे लगता है कि देश ने ठीक कर दिया है. अब, वे कई देशों में रुकते हैं और औसत लागत 50 लाख रुपए से 80 लाख रुपए के बीच होती है. पैकेज के उच्च अंत में भोजन के पैकेट और शरण के लिए वकील की फीस शामिल है. यूएससीबीपी उन्हें मानव तस्करी के पीडि़तों के रूप में मानता है."

सुर्खियों में आने वाली घटना के बाद, एजेंट कुछ समय के लिए धीमे हो जाते हैं, लेकिन वे जल्द ही फिर से शुरू हो जाते हैं. पांडियन बताते हैं, "हम स्थानीय एजेंट नेटवर्क को तोड़ने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, जो पीड़ितों के लिए संपर्क का पहला बिंदु हैं. हमें दूतावासों, ट्रैवल एजेंटों, खुफिया ब्यूरो, अंतरराष्ट्रीय वायु परिवहन संघ जैसे अन्य संबंधित एजेंसियों से भी अधिक डेटा की आवश्यकता है."

मेहसाणा शहर और उसके आसपास के गांवों की सड़कों पर खुलेआम यह ऑपरेशन चलन में हैं. एक 35 वर्षीय एजेंट ने कई तरह के पारगमन के बारे में बताया. वे बताते हैं, "पहले, हम सीधे मैक्सिको जाते थे. लेकिन उनको लालची सरकारी अमले की जेब भरना आर्थिक रूप से असहनीय था. अब, हम उनके आव्रजन अधिकारियों की नजर से बचने के लिए अलग-अलग देशों से मेक्सिको में उड़ान भरते हैं. हालांकि, हम जानते हैं कि यह ट्रैक भी कुछ ही वक्त में टूट जाएगा, लेकिन हम उस पुल को तब तक पार करते रहेंगे जब तक वह टूट न जाए."

हाल में निवेश या कुशल कार्य परमिट के माध्यम से यूएस ग्रीन-कार्ड धारक बनने के लंबे-चौड़े कानूनी तरीके भारत में लोकप्रियता खो रहे हैं. अहमदाबाद स्थित अनुभवी वीजा सलाहकार ललित आडवाणी, जो ईबी5 वीजा में विशेषज्ञ हैं, अवैध आव्रजन में भारी वृद्धि का श्रेय एक बहुत ही महत्वपूर्ण बदलाव को देते हैं जो अब अवैध नहीं है.

वे कहते हैं, "आपको लगभग दस लाख डॉलर खर्च करने और कतार में कुछ साल खड़े रहने के बाद ईबी5 ग्रीन कार्ड मिलता है. आप वास्तव में अमेरिका में सीमा पार कर सकते हैं और एक सामाजिक सुरक्षा कार्ड और सुविधाएं प्राप्त कर सकते हैं जो स्थायी निवासियों को मिलती हैं और उस राशि के एक अंश के लिए वर्क परमिट मिलता है, जो कानूनी वर्क परमिट के लिए वीजा प्रक्रियाओं के आधार को नकार देता है."

भारत और अमेरिका के बीच कई वर्षों की यात्रा से सीखे हुए बाबूभाई का दावा है कि दोनों देशों की सरकारें इस बात से वाकिफ हैं कि इस पर कैसे लगाम लगाई जाए, लेकिन वे इसे जारी रखना चाहती हैं. वे कहते हैं, "आप इस मुद्दे पर अपना वक्त क्यों बर्बाद कर रही हैं? यहां कोई पीड़ित नहीं है." यह महत्वाकांक्षा और मुसीबत का एक जटिल मिश्रण है.

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