एशियाई पैराखेलों में सुमित अंतिल ने सभी चुनौतियों से पार पाकर दिखाया अपना दम

खालिस दमखम के बूते पैरालंपियन और एथलीट सुमित अंतिल ने पिछले महीने हांगझोऊ में हुए एशियाई पैरालंपिक खेलों में स्वर्णपदक जीतने में कामयाबी हासिल की.

सुमित अंतिल ने पिछले महीने हांगझोऊ में हुए एशियाई पैरालंपिक खेलों में स्वर्णपदक जीतने में कामयाबी हासिल की
सुमित अंतिल ने पिछले महीने हांगझोऊ में हुए एशियाई पैरालंपिक खेलों में स्वर्णपदक जीतने में कामयाबी हासिल की

अक्टूबर में हांगझोउ में हुए एशियाई पैराखेलों में सुमित अंतिल अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन से काफी दूर थे. पीठ में डिस्क की समस्या ने उन्हें महीनों से परेशान कर रखा था और उन्हें पता था कि मुकाबले के दौरान उन्हें अपने शरीर को महफूज रखना होगा. वे कहते हैं, ''जिस पैर से ब्लॉक करता हूं, चूंकि वह कृत्रिम पैर है, इसलिए सारा वजन पीठ पर आ जाता है. इससे उस पर बहुत तनाव पड़ता है. यह पुरानी चोट है और हम इस पर काम करते रहे हैं. मुझे पक्का करना पड़ा कि मुकाबले के दौरान चोट बढ़ न जाए.’’

अंतिल को एफ64 वर्ग में सोना जीतने के लिए बस तीन थ्रो की जरूरत थी. अपने 73.29 मीटर के तीसरे थ्रो से इस 25 वर्षीय एथलीट ने अपना ही विश्व रिकॉर्ड (70.83 मी) तोड़ दिया जो उन्होंने जुलाई में पेरिस में हुई वर्ल्ड पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में बनाया था. अंतिल कहते हैं, ''ऐसी कोई गिनती तो मेरे पास नहीं पर मैंने 8वीं या 9वीं बार अपना रिकॉर्ड तोड़ा हो सकता है. मेरा लक्ष्य हालांकि 72-73 मीटर तक पहुंचना था, पर यह और बेहतर हो सकता था.’’

यह इस एथलीट में तेजी से हो रहे सुधार का संकेत है. चार साल पहले अंतिल ने 61.32 मीटर के थ्रो के साथ पहला विश्व रिकॉर्ड तोड़ा था. 2021 के टोक्यो पैरालंपिक में उन्होंने इसे तीन बार तोड़कर आखिरकार 68.55 मीटर के साथ सोना जीता. आज 70 के निशान से पार जाने वाले वे अपने वर्ग के अकेले पैराएथलीट हैं. वे कहते हैं, ''बेशक लक्ष्य तो हमेशा सोना ही होता है. मगर मुझे हमेशा लगता है कि मैं जो कल था उससे बेहतर होना चाहता हूं. यही वह प्रेरणा है जिससे मैं अपनी सीमाओं से आगे धकेलता रहता हूं.’’

जब उन्होंने मुकाबलों में उतरना शुरू किया, विश्व रिकॉर्ड 59 मीटर के आसपास था. लोग कहा करते थे, 'अरे! इतनी छोटी दूरी तक थ्रो करके मेडल जीतने में कामयाब हो जाते हो?’ यह बात उन्हें चुभती थी. उन्होंने पैरा खेलों को अलग ही स्तर पर ले जाने का फैसला किया, ताकि किसी पैरा एथलीट को ऐसी चीजें न सुननी पड़ें. अंतिल मानते हैं कि बीते कुछ सालों में पैरा खेलों में ढेरों चीजें बदल गई हैं.

एक तो उन्होंने दुनिया भर के स्टेडियमों में ज्यादा दर्शक देखे और अपने देश भारत में भी ऐसा ही देखने की उम्मीद करते हैं. वे कहते हैं, ''किसी भी खेल को ऊपर उठने के लिए जादुई क्षण की जरूरत होती है—जैसे, क्रिकेट के लिए विश्व कप जीतना या भाला फेंक के लिए नीरजभाई (नीरज चोपड़ा) का ओलंपिक स्वर्ण.’’ हो सकता है अंतिल आने वाले वक्त में 80 मीटर की दूरी तय करने का सपना पूरा कर पाएं. रिकॉर्ड का पीछा करने की अपनी फितरत और अगले साल विश्व पैरालंपिक चैंपियनशिप और पेरिस पैरा ओलंपिक के साथ वह लम्हा शायद ज्यादा दूर न भी हो.
 
शैल देसाई

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