मूवी बन गई मिशन
मशहूर लोक कवि-गायक और हरियाणा के शेक्सपियर माने जाने वाले पंडित लखमी चंद (1903-1945) की जिंदगी पर हिंदी सिनेमा और रंगमंच के चर्चित अभिनेता यशपाल शर्मा की, ढाई घंटे की यह महत्वाकांक्षी फिल्म खासकर हरियाणा के हर इलाके और समाज तक पहुंच बनाती दिख रही है.

सिनेमा/दादा लखमी
नवंबर के पहले पखवाड़े में उस दिन रोहतक के आरएन सिनेमा के प्रबंधकों की सांसें फूलने लगी थीं. हाल में रिलीज हरियाणवी फिल्म दादा लखमी देखने के लिए, सोशल मीडिया पर एक युवा लोकगायक की अपील पर गांवों-कस्बों से इतनी तादाद में लोग आ पहुंचे कि सीटों पर, परदे के सामने और गैलरी में जमने के बाद उतने ही लोग बाहर जमा. काफी पसोपेश के बाद आखिरकार दूसरे ऑडिटोरियम में अजय देवगन की दृश्यम 2 का शो रद्द कर दर्शकों को उसमें ले जाया गया.
एक-एक सीट पर कहीं-कहीं तो दो-दो लोग बैठने लगे. एक शो में तो कुछ महिला दर्शक फिल्म खत्म होने के बाद भी सीटों पर जमी रहीं. एक मैनेजर अनिल बताते हैं, ''हमने कहा कि माताजी फिल्म खत्म हो ली. तो वे कहने लगीं कि 'हम तौ दूसरा पारट भी देख कै जावांगे.’ दरअसल, फिल्म के आखिर में कहा गया है कि इसका दूसरा पार्ट अभी आना है.
घर के लोगों ने उन्हें इंटरवल के लिहाज से समझा भेजा था कि बीच में रुके तो जाणा मत, बैठे रहणा. बड़ी मुश्किल से उन्हें समझाया जा सका.’’ हरियाणा में ऐसे दर्शकों की एक बड़ी तादाद थी जो दादा लखमी देखने के बहाने जिंदगी में पहली बार सिनेमाघर पहुंचे थे. कुछ जगहों पर गांवों के बुजुर्ग कहते सुने गए कि ''फिल्म तो चोखी सै पर लखमी चंद का सांग ना दिखाया.’’
मशहूर लोक कवि-गायक और हरियाणा के शेक्सपियर माने जाने वाले पंडित लखमी चंद (1903-1945) की जिंदगी पर हिंदी सिनेमा और रंगमंच के चर्चित अभिनेता यशपाल शर्मा की, ढाई घंटे की यह महत्वाकांक्षी फिल्म खासकर हरियाणा के हर इलाके और समाज तक पहुंच बनाती दिख रही है.
उनके शहर हिसार के सनसिटी मॉल सिनेमा के काउंटर पर बैठीं अर्चना मौर्य बेहिचक कहती हैं, ''लोकल ऑडियंस के मिजाज को भायी तभी तो सवा महीने बाद भी 70-80 दर्शक रोज आ रहे हैं, वरना आजकल फिल्में ज्यादा चलती कहां हैं?’’ इधर रेवाड़ी के बीएमजी सिनेमा में महीने भर चली इस फिल्म को युवा दर्शक ज्यादा मिले. यहां के मैनेजर अरुण यादव बताते हैं, ''हमारे यहां 90 फीसद कॉलेज क्राउड था. गांवों में अच्छी पब्लिसिटी की गई होती तो वहां से भी बड़ी ऑडियंस आती.’’ इलाके के कुछ कवि-गायकों ने फिल्म देखने के बाद यादव से मिलकर उनका धन्यवाद संदेश यशपाल शर्मा तक पहुंचाने की गुजारिश की.
दरअसल, शर्मा के लिए दादा लखमी मूवी नहीं एक मिशन बन गई है. इसके बुनियादी आइडिया से लेकर (सह) निर्माता, निर्देशक, अभिनेता, इसकी पब्लिसिटी और ठौर-ठौर जाकर देखने के लिए हांक लगाने का जिम्मा, सब वही संभाले हुए थे. क्षेत्रीय सिनेमा का राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने के अलावा यह फिल्म देश-विदेश के छोटे बड़े करीब 70 फिल्म समारोहों/आयोजनों में शुमार हुई है और शर्मा, जैसे उसे पालकी की तरह लेकर हर प्लेटफॉर्म पर पहुंच रहे हैं.
पंडित लखमी चंद बेशक हरियाणा के लिए एक किंवदंती, हरियाणवी अस्मिता का प्रतीक और दूध-शक्कर की तरह यहां की लोकचेतना में समाए हैं, पर उनके जाने के 75-80 साल बाद उन पर बनी इस फिल्म ने देश-दुनिया के हर हरियाणवी को जैसे छू दिया है. लखमी चंद से गहरा सरोकार रखने वाले, पश्चिमी दिल्ली में कुराड़ी के डॉ. सुनील वत्स इसे हरियाणवी संस्कृति के लिए बड़ी घटना मानते हैं. ''पंडितजी ने वेद-पुराण-गीता सबको आम हरियाणवी शब्दावली में ढाला और गाया. यशपाल ने उनके काम को मौजूं बनाकर नया मील का पत्थर गाड़ा है.’’
शर्मा को तब बड़ी कामयाबी मिली, जब हरियाणा की भाजपा सरकार ने फिल्म को टैक्स फ्री किया. खुद मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने इसे देखा और सभाओं में लोगों से इसे देखने की अपील की. पिछले रविवार को तो गुड़गांव में एक आयोजन में आरएसएस के हरियाणा प्रांत प्रचारक विजय ने भी लोगों से इसे देखने को कहा
हालांकि उसी मंच पर मौजूद शर्मा ने मौके पर मौजूद तीनेक सौ लोगों से ठेठ हरियाणवी लहजे में पूछा, कितणे लोगों ने देखी है फिलम, तो बमुश्किल 7-8 हाथ उठे. ''बस, यही गलती है! कहानी सुनी है ना, मां अपने बच्चे को गुड़ खाना छुड़वाने के लिए बाबा के पास ले गई थी...तो जो लोग बोल रहे हैं, वे फिल्म देख के आएं प्लीज...आप अपना काम करो. हरियाणा का (भला) अपने आप हो जाएगा.’’
छह साल की उनकी मेहनत दादा लखमी ने हरियाणा में उनके कद और उनकी प्रतिष्ठा को जिस तरह से बढ़ाया है, उसने यही तो साबित किया है. 2025 तक आने वाले फिल्म के दूसरे पार्ट के जरिए वे और बहुत कुछ साबित करेंगे. ठ्ठ
नया प्रस्थान
पंद्रह साल पहले अपने शहर हिसार में थिएटर फेस्टिवल शुरू करवाते हुए शर्मा ने कहा था: ''इब तो सुरुआत सै.’’अब दादा लखमी उनकी हरियाणवी प्रतिबद्धता का नया प्रस्थान है. इसके जरिए उन्होंने पूरे हरियाणवी डायस्पोरा को भी छुआ है.