आवाज की दुनिया के मुग्ध करते अफसाने
ऑडियो ड्रामा मनोरंजन की दुनिया में एक खुशगवार विकल्प बनकर उभर रहे हैं, सो अगर आपके पास कुछ बेहतर देखने को न बचा हो तो इन्हें आजमाएं.

अभिनेता, आरजे और ऑडियो लेखक-निर्माता मंत्र मुग्ध ने रमेश सिप्पी की क्लासिक फिल्म शोले (1975) देखने से पहले सुनी थी. उस कैसेट ने उन्हें वह कल्पनालोक रचने में मदद की जिसमें रामगढ़ था और गब्बर सिंह से जय-वीरू के मुकाबले की दास्तान भी. मुग्ध इंदौर में बड़े हुए जहां वे दिन-दिनभर विविध भारती पर हवा महल, अमेरिका से एक दोस्त के भेजे द ट्वाइलाइट जोन के टेप और बीबीसी के रेडियो ड्रामा सुनते.
रेडियो से अपने लगाव के बारे में 39 वर्षीय मुग्ध कहते हैं, ''यह अंधों का टीवी है. यह दिमाग में अपनी ही तस्वीरें रचने में मदद करता है.” रेडियो में दो साल गुजारने के बाद, जिसमें ज्यादातर वक्त वे फीवर एफएम के साथ रहे, मुग्ध ने मौलिक कार्यक्रम बनाने की दुनिया में कदम रखा. ऑडिबल और स्पॉटिफाइ के भारत आने से बहुत पहले वे यूट्यूब और साउंड-क्लाउड पर ऑडियो शो अपलोड कर रहे थे.
एमएनएम टॉकीज के बैनर तले मुग्ध और उनकी सह-संस्थापक शिमोना माथुर कुछ सबसे लोकप्रिय फिक्शनल टाइटल लेकर आए. इनमें जासूसी सीरीज भास्कर बोस, जो स्पॉटिफाइ पर सबसे लंबा चलने वाला हिंदी शो था, ऋचा चड्ढा और अली फैजल के साथ चिली के एक लोकप्रिय पॉडकास्ट का रूपांतरण वायरस 2062 और हाल ही में रिलीज बैटमैन—एक चक्रव्यूह (दोनों स्पॉटिफाइ पर) शामिल हैं. उनके पास 15-20 साथियों की टीम है. फिलहाल उनके आठ ऑडियो प्रोडक्शन पर काम चल रहा है.
मुग्ध ने 2016 में एमएनएम लॉन्च करने के बाद ऑडियो इंडस्ट्री को परवान चढ़ते देखा. अभिनेताओं को साथ लाना अब उतनी बड़ी बात नहीं रही जितनी कभी हुआ करती थी. वे कहते हैं, ''पहले मेरे कई दोस्त मुझसे पूछते थे, ''भाई यह ऑडियो ड्रामा होता क्या है? ओटीटी सीरीज बनाओ.’ अब पूछते हैं, 'हमें कास्ट करो तो कैसा रहेगा?’’‘
आवाज की दुनिया के कायदे
अमिताभ बच्चन (काली आवाजें) से लेकर ऋचा चड्ढा तक कई अदाकारों के साथ काम करने के बाद मुग्ध बताते हैं कि वॉइस ऐक्टिंग या आवाज की अदाकारी उतनी आसान नहीं जितनी लगती है. वे कहते हैं, ''तमाम तजुर्बे के बावजूद जिस पल अदाकार माइक्रोफोन पर आता है, अचानक उसे लगता है कि उसके सारे औजार यानी देह, आंखें, हाव-भाव और तौर-तरीके छिन गए हैं. कई मंझे हुए अदाकार और दिग्गज (स्टुडियो में) आते ही पहले कुछ मिनट तो लड़खड़ाते दिखते हैं. उन्हें शांत करना पड़ता है, यह कहकर कि आंखें बंद कीजिए और कल्पना में खुद को देखिए.’’
अभिनेता विजय वर्मा को बखूबी पता है कि वॉइस ऐक्टिंग किस कदर 'चुनौती भरी’ हो सकती है. यह उन्हें हाल में नील गैमन के लोकप्रिय सैंडमैन कॉमिक्स के ऑडिबल इंडिया के लिए किए गए हिंदी रूपांतरण में नायक ड्रीम उर्फ मॉर्फियस को अपनी आवाज देते वक्त पता चला. वर्मा कहते हैं, ''मैं बहुत घबराया हुआ था. मुझमें आत्मविश्वास भी नहीं था. कमरे में कोई और नहीं है.
आप खुद को नहीं देख रहे हैं, आप दरअसल कुछ भी नहीं देख रहे हैं और आपकी अन्य इंद्रियां मानो हैं ही नहीं. आपके पास बस एक हुनर है, आवाज, और इसके सहारे आपको पूरी तस्वीर उकेरनी है.’’ वर्मा को अपनी लय खोजने में घंटों लगे और तब कहीं जाकर वे वहां पहुंचे ''उस जगह जहां मुझे लगा कि मैं और ज्यादा कर सकता हूं’’
यही वह चुनौती और अपनी कला को परवान चढ़ाने की भरपूर गुंजाइश का एहसास है जिसकी बदौलत वर्मा सरीखे अदाकार साउंड ऐंड विजन इंडिया सरीखे रिकॉर्डिंग स्टुडियो की तलाश में हैं. सैंडमैन कॉमिक्स का हिंदी रूपांतरण इसी स्टुडियो ने किया है.
ब्रिटेन में रेडियो के सबसे जाने-माने और सम्मानित डायरेक्टरों में से एक डर्क मैग्स के साथ बेनेडिक्ट कंबरबैच, जेम्स मैकएवॉय, ब्रायन कॉक्स और जॉन लिथगो काम कर रहे हैं. इनमें से कई बीबीसी के रेडियो ड्रामा में काम कर चुके हैं और ऑडियो को कमतर माध्यम नहीं मानते. मैग्स इशारों में बताते हैं कि सैंडमैन पार्ट 3 के साथ एक अग्रणी भारतीय अदाकार जुड़ने वाले हैं.
मैग्स कहते हैं कि आवाज देने वाले अभिनेताओं को अलग तरह के फायदे मिलते हैं. वे कहते हैं, ''न मेकअप, न वैनिटी वैन में बैठना, आप शुरू से आखिर तक अपनी भूमिका अदा कीजिए और (रिकॉर्डिंग) स्टूडियो का आनंद लीजिए.’’ अभिनेताओं को साउंडप्रूफ स्टुडियो में अकेला छोड़ दिया जाता है. हां, फीचर फिल्म या वेब सीरीज के विपरीत ऑडियो प्रोजेक्ट में वक्त कम लगता है.
ब्रूस वायने और बैटमैन की दो अलग-अलग आवाजें देने वाले अमित साध इसे 'डिज्नीवर्ल्ड में बच्चे’ की तरह का अनुभव बताते हैं. कुछ लोगों को यह इतना अच्छा लगता है कि उनका जी ही नहीं भरता. कुब्रा सेत की तरह, जो मुग्ध के साथ दो प्रोजेक्ट—माइन ऐंड योर्स और आखिरी सवाल—में काम कर चुकी हैं.
हाल ही में सैंडमैन के हिंदी रूपांतरण में भी उन्होंने डेथ की भूमिका अदा की है. वे कहती हैं, ''यह इतना शांत होता है, आप बस अपनी आवाज या कानों में दूसरे व्यक्ति के इशारे सुनते हैं. यहां आप कुछ कहते हैं और सहज बुद्धि से आपको पता चल जाता है कि यह निशाने पर लगा या नहीं.’’ सेत ऑडियो की दुनिया में सहजता से फिट हो जाने का श्रेय ''बोले गए शब्द’’ के प्रति अपने जुनून को देती हैं.
वे यह भी कहती हैं, ''इसमें आप आवाज के उतार-चढ़ाव से कहानी इसलिए कह पाते हैं क्योंकि आप लोगों को अपनी दुनिया में खींच लाते हैं. ऑडियो की खूबसूरती यह है कि इसमें आप न केवल सुनते हैं बल्कि अपनी आंखें मूंदकर पूरी चीज नए सिरे से रचते हैं. आप जो देख रहे हैं, वह आपका और सिर्फ आपका है. आप कुछ और नहीं देख सकते, तिस पर भी आप सब कुछ देख सकते हैं. यह बस इस पर निर्भर करता है कि आपकी कल्पनाशक्ति कितनी अच्छी है या आप इसे कितना अच्छा बनाना चाहते हैं.’’
लॉकडाउन ने बढ़ाए मौके
महामारी के दौरान लोगों ने सिर्फ ओटीटी का ही रुख नहीं किया. ऑडियो कंपनियों ने पाया कि उनकी पेशकश के लिए भी श्रोता थे. ऑडिबल इंडिया के वाइस-प्रेसिडेंट और कंट्री जनरल मैनेजर शैलेश सावलानी कहते हैं, ''महामारी में लोग और ज्यादा की खोजबीन कर पाए, जिससे ऑडियो कंटेंट की खपत में बढ़ोतरी हुई. महामारी के दौरान 'पलायनवादी किस्से-कहानियों’ में भी इजाफा हुआ. ‘‘स्पॉटिफाइ में ओरिजनल पॉडकास्ट और कंटेंट डेवलपमेंट लीड उन्नी नंबूदरीपाद कहते हैं कि ऑडियो कंटेंट 'आरंभिक अवस्था’ से ''वृद्धि की संभावना’’ वाली अवस्था में आ गया.
मौका ताड़कर ऑडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म भी इसमें पैसा लगा रहे हैं. अप्रैल की दो बड़ी रिलीज यही बता रही हैं—ऑडिबल इंडिया के हिंदी में द सैंडमैन—ऐक्ट 1 में वर्मा और सेत के अलावा तब्बू, विजय वर्मा, मनोज बाजपेयी, आदर्श गौरव, तिलोतमा शोम और नीरज कबि थे. वहीं स्पॉटिफाइ ने बैटमैन—एक चक्रव्यूह के प्रचार के लिए मुंबई में एक आयोजन किया.
ज्यादा भाषाओं में शो के साथ कंटेंट खूब तैयार हो रहा है. प्रोड्यूसर, डायरेक्टर, लेखक, साउंड डिजाइनर और ऑडियो इंजीनियरों का एक पूरा लवाजमा ऑडियो कंटेंट की बढ़ती मांग पूरी करने के काम में जुटा है. एमएनएम टॉकीज को इस कारोबार में महारत हासिल है, तो ऑफस्पिन मीडिया और ऑडियोमैटिक भी कहीं से पीछे नहीं दिखते. वीडियो कंटेंट के रचयिता भी अब ऑडियो की दुनिया में आ रहे हैं. बालाजी टेलीफिल्म्स, द वायरल फीवर और डाइस मीडिया क्रमश: दरमियान, परमानेंट रूममेट्स और पिचिंग प्यार लेकर आ रहे हैं, जो सभी ऑडिबल पर हैं.
अच्छी कहानी सुनाना
साउंड ऐक्टिंग या ध्वनि की अदाकारी नई नहीं है. नन्हे-मुन्नों को कहानी सुनाने वाले माता-पिता भी तो यही करते हैं. मैग्स कहते हैं, ''आपकी कल्पना उड़ान भरती है और तस्वीरें उभरने लगती हैं.’’ जब वीडियो ने रेडियो को महत्वहीन बनाया उससे पहले यह सूचना और मनोरंजन का अकेला माध्यम था. हालांकि कभी-कभी बीच की लकीर धुंधली हो जाती है. 1938 में ऑसन वैल्स के वॉर ऑफ वल्डर्स के प्रसारण के साथ यही हुआ, जब कुछ श्रोताओं को वाकई लगा कि मंगल ग्रह के प्राणियों ने पृथ्वी पर हमला बोल दिया है.
अगर ऑडियो किस्से-कहानियों को कामयाब होना है तो असरदार किस्सागोई को भरपूर भूमिका निभानी होगी. एमएनएम टॉकीज में मुग्ध और माथुर ज्यादा तल्लीन करने वाला तजुर्बा देने के लिए '3डी बाइनॉरल (द्विकर्मी) ध्वनि’ का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिसमें आप दरवाजे पर दस्तक या पिन का गिरना तक 'सुन’ सकते हैं.
मुग्ध वह दिन आता देख रहे हैं जब ''ड्रामा और सिनेमा स्कूलों को ऑडियो कथा लेखन की कार्यशालाएं आयोजित करनी होंग.’’ मुग्ध का कहना है कि सिनेमा दृश्य संदर्भों के साथ लिखा जाता है, जबकि ''ऑडियो स्क्रीनप्ले को हमेशा संवाद का संदर्भ बताना होता है कि आप कहां हैं और आप क्या कर रहे हैं. यह बातचीत पर बहुत ज्यादा आधारित होता है, उनसे ऑडियो प्ले शानदार बन जाता है.’’
बैटमैन में मुग्ध और लेखकों की उनकी टीम ने न केवल अंग्रेजी पटकथा का हिंदी अनुवाद किया बल्कि थोड़ी हेर-फेर करके उसे हिंदीभाषी श्रोताओं की संवेदनाओं के अनुसार भी ढाला, चाहे वह रिडलर की पहेलियां बदलना हो या बाइबल और अमेरिकी संस्कृति के संदर्भों को. रूपांतरण यहीं नहीं थमा, हिंदी सामग्री को फिर दूसरी भाषाओं में ले जाना पड़ा.
भास्कर बोस फिलहाल बंगाली में है और तमिल तथा तेलुगु रिलीज का इंतजार है. नंबूदरीपाद याद करते हैं कि जब भास्कर बोस को आने में चार महीने की देरी हुई तो मुग्ध और उन्हें श्रोताओं के संदेशों की बमबारी झेलनी पड़ी जो पूछ रहे थे कि नए एपिसोड कब आएंगे. वे कहते हैं, ''ईकोसिस्टम फल-फूल रहा है. आगे ऐसे हालात बनते रहेंगे जब आपको कुछ देखने को नहीं मिल पाएगा लेकिन फिर भी आपका दिल बहलाने का मन करेगा.’’ तो अपने कान खुले रखिए.