किताबेंः आत्म का सामाजिक विस्तार
कोसी का घटवार जैसी अमर प्रेम कहानी के लिए समादृत शेखर जोशी ने जीवन के आठवें दशक में अपने बचपन के दिनों और जगहों को याद किया है.

पल्लव
कथेतर का आकर्षण हिंदी लेखकों को उन क्षेत्रों में जाने के लिए प्रेरित कर रहा है जिनमें पहले रुचि नहीं ली जाती थी. आत्मकथा ऐसा ही इलाका है. माना जाता था कि आत्मकथा लिखना प्रसिद्ध और बड़े लोगों का काम है, भला साधारण लोगों के जीवन में पाठकों की क्या दिलचस्पी होगी?
यह धारणा कथेतर लेखन के नए दौर में टूट रही है और आत्मकथा सरीखी विधा में निरंतर नई कृतियों का आगमन यथार्थ के अनदेखे-अनजाने इलाकों में पाठकों की गहरी रुचि से ही संभव हो रहा है. इधर आई तीन आत्मकथात्मक कृतियां मेरा ओलियागांव, जकरिया स्ट्रीट से मेफेयर रोड तक और क्या कहूं आज कथेतर लेखन में निजी आख्यान के मार्फत यथार्थ के सर्वथा भिन्न प्रदेशों की अंतर्यात्रा का अवसर देती हैं.
कोसी का घटवार जैसी अमर प्रेम कहानी के लिए समादृत शेखर जोशी ने जीवन के आठवें दशक में अपने बचपन के दिनों और जगहों को याद किया है. मेरा ओलियागांव उनकी आत्मकथा नहीं किंतु यहां उनके बचपन का लंबा समय मौजूद है जिसमें औपनिवेशिक दौर के पहाड़ी समाज के चित्र और उनका अपना जीवन संघर्ष है.
जोशी अट्ठाइस अध्यायों में विभक्त इस कृति में अपने बचपन के दोस्तों, घर-परिवार, रीति-रिवाज, खेती-बाड़ी, पशु-पक्षी और गांव के जीवन की पुनर्रचना करते हैं. अपनी प्रकृति में यह पुस्तक अक्सर संस्मरणों के निकट जान पड़ती है लेकिन लेखक के लिए मुख्य चिंता रूप की नहीं है. किताब के छोटे-छोटे अध्यायों में जोशी के बचपन और गांवों में अभावों के बावजूद जीवन की मस्ती के अनेक प्रसंग मिलते हैं.
खास बात यही है कि व्यतीत के मोहक चित्रों में भी लेखक की दृष्टि द्वंद्वात्मक है. वे पंडितों के भोजन प्रेम का वृत्तांत सुनाते हैं तो वर्तमान दुर्दशा के तार्किक कारणों की खोज भी करते हैं. सामाजिक भेदभावों और जाति-वर्ग जनित अन्यायों की अनदेखी यहां नहीं है.
एक जगह उन्होंने लिखा है, ''हाथ की कारीगरी को अछूत कर्म मानने का नतीजा यह हुआ कि परिवार के सदस्यों की संख्या बढ़ने पर जमीन के बंटवारे और दूसरे के श्रम पर निर्भरता के कारण सवर्ण लोग गरीबी की ओर बढ़ते गए और नौकरी की तलाश में गांवों से विस्थापित होते गए.’’ जिस भरे पूरे गांव-घर के चित्र से पुस्तक शुरू हुई है अंत में वह दृश्य नहीं है लेकिन जो है वह आशा का उजाला फैलाने वाला है.
आठवें-नवें दशक में स्त्री लेखन ने हिंदी में नई स्फुरणा पैदा की थी लेकिन देहवाद उसकी बड़ी सीमा बन गया और आत्मकथाओं की गुणवत्ता बोल्ड प्रसंगों से मापी जाने लगी. ऐसे में एक साधारण अध्यापिका की आत्मकथा सपाट लग सकती है क्योंकि यहां चौंकाने वाला कोई प्रसंग नहीं है. कोलकाता के मारवाड़ी समुदाय की रेणु गौरीसरिया की कृति जकरिया रोड से मेफेयर रोड तक एक साधारण महिला के जीवन संघर्ष का आख्यान है जिसमें गुलामी से निकलकर बन रहे हिंदुस्तान के समाज के प्रामाणिक दृश्य हैं.
मारवाड़ी वैश्य समुदाय की रेणु का जीवन उतार-चढ़ाव से भरा रहा जिसमें वैधव्य, पुनर्विवाह और फिर वैधव्य जैसे मार्मिक प्रसंगों के मध्य अपने व्यक्तित्व की तलाश भरोसा जगाने वाली है. यह उस स्त्री का आत्मलेखा है जो रूढ़िग्रस्त समुदाय और संपन्न परिवारों के मध्य रहकर भी अन्याय की शिकार होती है. इस अन्याय का प्रतिकार वे अपने व्यक्तित्व के निर्माण के साथ करती हैं और इस लंबी यात्रा में आए उतार-चढ़ाव कृति को पठनीय बनाते हैं.
क्या कहूं आज कवि और आलोचक सत्यनारायण व्यास की आत्मकथा है जिसमें एक साधारण व्यक्ति के अद्भुत जीवन संघर्ष का चित्र है. व्यास ने आजीविका के लिए कठोर परिश्रम और अनेक उपक्रम किये. ढह रहे घर और विपन्नता के मध्य जीवन संघर्ष के ये चित्र किसी दलित आत्मकथा के ताप सरीखे हैं. ब्राह्मण परिवार में जन्म लेकर भी भोजन और आजीविका के लिए कठोर संघर्ष भारतीय सामाजिक व्यवस्था में वर्ग बनाम वर्ण की पुरानी बहस की याद ताजा करता है.
व्यास की खूबी है कि अपने जीवन का चित्र तैयार करते हुए वे अन्याय और शोषण के किसी प्रसंग को ओझल नहीं होने देते. उनके पास राजस्थान के आदिवासियों की भयावह निर्धनता के वास्तविक दृश्य हैं तो अनेक साधारण लोगों के बड़े जीवनानुभव भी. पठनीयता में बेजोड़ इस कृति को विधा की उपलब्धि कहना अनुचित न होगा.
इन तीनों कृतियों को आत्म के सामाजिक विस्तार और कला में साधारण की उपस्थिति के दस्तावेज की तरह समझा जा सकता है. जोशी के बचपन की गाथा उनके आगामी जीवन के प्रति उत्सुक बनाती है, वहीं व्यास की आत्मकथा प्रवाही गद्य में जीवन संघर्ष का हार्दिक चित्र है. रेणु गौरीसरिया की कृति फिर याद दिलाती है कि हिंदी प्रकाशन में संपादक संस्था का अभाव साहित्य को क्या क्षति पहुंचा सकता है.
जकरिया रोड से मेफेयर रोड तक
लेखिका: रेणु गौरीसरिया
संभावना प्रकाशन, हापुड़
कीमत: 300 रु.