शख्सियतः डर भला काहे का
जाह्नवी कपूर का फिल्मों का चुनाव भले लीक से हटकर हो लेकिन इसे लेकर वे डरती बिल्कुल नहीं. अपनी नई फिल्म रूही के सिनेमाघरों में पहुंचने के मौके पर वे कामयाबी, नाकामी और इनके बीच राह खोजने पर बात कर रही हैं

हमउम्र दूसरी अभिनेत्रियों से उलट आप अच्छे लिखे किरदार ही चुनती हैं. मेनस्ट्रीम की किसी फिल्म में बस सज-संवरकर खड़ी हो जाने वालों में से नहीं हैं आप...
धड़क के बाद लग गया था कि मेरे बारे में लोगों की राय बंटी हुई है. लोग सवाल कर रहे थे, ''ये अभिनय कर पाएगी? सिनेमा के काबिल भी है या नहीं?’’ मैं खुद के लिए और आसपास के लोगों के सामने साबित करना चाहती थी कि अभिनय कर सकती हूं.
चेहरे-मोहरे और पर्सनालिटी के मुकाबले अपनी भावनात्मक समझ को लेकर मुझमें ज्यादा आत्मविश्वास है. कई लोगों ने आकर कहा, ‘‘क्या कर रही हो? तुम्हें खूबसूरत दिखना और डांस करना है. बॉक्स ऑफिस पर यह काम नहीं आने वाला.’’ पर मैं करना चाहती थी क्योंकि मैंने वहां मौका देख लिया था. बाकी न देख सकीं.
रूही में आप दोहरी भूमिका में हैं—एक तो डरी हुई लड़की और दूसरी जो डराती है...
यह फिल्म असल में एक लड़की की खुद की तलाश के सफर जैसी है. यह हमारे अपने उस पहलू को स्वीकारना करना सिखाती है जो कि अक्सर खुशनुमा नहीं होता और जिसे हम देखना पसंद नहीं करते. रूही हमारे भीतर मौजूद उसी दोहरेपन पर उंगली रखती है. इसकी यही चीज मुझे पसंद आई.
स्त्री एक तरह से महिला सशक्तीकरण को रेखांकित करती थी. क्या रूही भी कुछ उसी दिशा में बढ़ती दिखती है?
बेशक. इसका स्टेटमेंट यही है कि स्त्रियों को किस तरह से एक वस्तु के रूप में देखा जाता है पर यह इस बात को चीख-चीखकर नहीं कहती. हर बार फिल्म देखते हुए आपको नया मायने मिलेगा. यह ऐसी कॉमेडी है जिसमें एक डर भी साथ चलता है.
क्या आप अपने कंधों पर मां की विरासत का बोझ महसूस करती हैं?
इसे मैं आशीर्वाद के रूप में देखती हूं. मुझसे उम्मीदें बहुत ज्यादा हैं. उस विरासत पर जरा नजर तो डालिए. मैं उसके आधे का भी सपना पाल सकी तो शायद कुछ जगह बना पाऊं. खुशफहमी पालकर बैठ जाने की मुझे इजाजत ही नहीं. यह पहलू बतौर आर्टिस्ट मुझे फायदा पहुंचाएगा.