पुस्तक अंशः वह यूं ही तो है जो आजकल कवि बना घूम रहा है
पत्रकार-व्यंग्यकार यशवंत व्यास भाषा और शिल्प में नए प्रयोगों के लिए जाने जाते हैं. फिक्शन सीरीज के आवरण में यह ताजा कृति कवि की मनोहर कहानियां भी प्रायोगिकता के उनके सिलसिले को बड़े ही मॉडर्न और मजेदार अंदाज में आगे बढ़ाती है. उसी के कुछ टुकड़े यहां पेश हैं:

पत्रकार-व्यंग्यकार यशवंत व्यास भाषा और शिल्प में नए प्रयोगों के लिए जाने जाते हैं. फिक्शन सीरीज के आवरण में यह ताजा कृति कवि की मनोहर कहानियां भी प्रायोगिकता के उनके सिलसिले को बड़े ही मॉडर्न और मजेदार अंदाज में आगे बढ़ाती है. उसी के कुछ टुकड़े यहां पेश हैं:
कवि को जलेबी पसंद थी
कवि को विचार भी बहुत पसंद था
उसके पास जो भी विचार आता, वह उसकी जलेबी बना लेता
उसने पाया कि वह उल्टा चले तो जलेबी को विचार बना सकता है
वह धीमी आवाज, लोचदार घुमाव, विलक्षण विनम्रता से शुरू करता और तर्क उसके सेवक हो जाते
तर्कों से वह साबित कर देता कि कंबोडिया नजफगढ़ पंचायत में पड़ता है और डेनमार्क हरिद्वार में है. कभी-कभी इसका उलटा भी
लोक चमत्कृत. कवि अवतारी.
एक दिन कवि को सचमुच का पक्का हलवाई मिल गया. उसने कवि की जलेबी ली और सहज भाव से सीधी कर दी
मूल विचार, खड़ी सींक की तरह सुलझ गया
उसने कवि को नजफगढ़ में नजफगढ़ और डेनमार्क में डेनमार्क के दर्शन करा दिए
कवि ने इसे प्रति-क्रांतिकारी लुंपेन तत्वों की कारवाई माना और प्रस्ताव पास किया—'सारे हलवाई ट्रोल हैं. अब से इन्हें मैं अपने इलाके से ब्लॉक करता हूं.
उसके इलाके में अब विचार से लड्डू बनते हैं
ये जलेबी से ज्यादा कारगर हैं
लड्डू में पता ही नहीं चलता—कि विचार कहां से शुरू, कहां से खतम. ऊपर कहां और नीचे कहां
यहां तक कि वाम और दक्षिण का भी पता नहीं चलता
जहां जलेबी बनती थी, बनती रहें
जहां विचार छनते हैं, छनते रहें
कवि को कोई फर्क नहीं पड़ता
धन्य है कवि, धन्य है उसकी निरपेक्षता!
और क्या, कवि की जान लोगे?
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कवि ने महिलाओं के उत्थान का बीड़ा उठाया
पहले उसने बीड़ा चखा
फिर उसने महिलाएं चखीं
फिर सबसे कहा, चखने पर अपने संस्मरण लिखो
चखना और लिखना—दो खतरनाक क्रियाएं हैं
कवि ने इनकी संज्ञा बनाई और फिर क्रिया विशेषण में बदल दिया
फिर स्त्री-विमर्श पर चुस्कियां लेता-लेता व्याकरण बनाने लगा
एक दिन वह सर्वनाम पर काम करने की कोशिश कर रहा था कि एक सरल हृदय पाठिका ने ताड़ लिया. उसने तत्काल कवि का उपसर्ग निकाला और खींचकर प्रत्यय बना दिया
कवि की व्याकरण फट गई
फटी व्याकरण लिए वह शहर से भाग छूटा
आजकल वह भाषा में संत है. शिल्प में महंत है
अव वह वात्सल्य के धंधे में है
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कवि एक बार आदिवासियों का कल्याण करने गया
उसने देखा, सारे रात में घेरा बनाकर नाचते हैं
पुलिस उनसे मुर्गा ले, शराब ले, अच्छी-अच्छी आदिवासिनें मांगे
कवि मिशन पर. कवि की नजर रात और दिन अपने लक्ष्य पर
देह का मामला, संदेह का मामला
कवि पुलिस पर क्रुद्ध
कवि व्यवस्था पर क्रुद्ध
कवि शोषण के विरुद्ध
उसने आदिवासियों की पोशाक पहनी और रात में घेरा बनाकर नाचने लगा
होली का वक्त. जगह-जगह घेरे. जगह-जगह महुआ
कवि इस घेरे में, उस घेरे में. इस बगल में, उस बगल में
कवि अब आदिवासिनों का नशेलची
कवि मुक्तिदाता, कवि विद्रोही
कवि व्यवस्था विरोध का देवता
कवि को चढ़े मुर्गा, कवि को चढ़े महुआ
कवि की आत्मकथा छप गई. तालियां!
कवि की आत्मकथा सरकारी खरीद में लग गई. तालियां!!
कवि आयोग का अध्यक्ष बन गया. तालियां!!!
आयोग चला स्टडी टूर
आयोग डाक बंगले में
आयोग को मुर्गा, आयोग को महुआ
आयोग की रात, आयोग को नाच
पुलिस मुस्तैद
कवि गायब
सुबह से हाहाकार है
कवि की मुंडी हाथ में लिए, हंसिया चमकाते आदिवासी थाने में खड़े हैं. कहते हैं, रपट लिखो, हमें अंदर करो, ये गर्दन हमने उतारी
रपट लिखने वाले ने सिर उठाया, वह भी कवि निकला
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कवि की प्रयोगधर्मिता विख्यात
वह लड़कियों से पिटने पर व्यभिचार का दर्शनशास्त्र रच दे
पिता पकड़ में आ जाए तो उसे कहानी बनाकर बेच दे
स्कूल के दिनों में एक बार वह शौचालय में अश्लील चित्र बनाता पकड़ लिया गया था. आज श्लील-अश्लील की ऐतिहासिक बहस कला की दुनिया में उसके हवाले से जानी जाती है
इस बार वह असत्य के साथ प्रयोग करने बैठा
असत्य बड़ा घबराया, अब मेरा न जाने क्या होगा?
कहीं मुझे कविता में मिलाकर सत्य ही न बना दे?
मेरी तो पहचान मारी जाएगी
कवि ठहरा कवि
अगर वह मिलावट करके ही चलाए तो कवि क्या हुआ?
उसने शुद्ध असत्य उठाया और शुद्ध कविता रच दी
तब से, सारी कविताएं असत्य के नाम से जानी जाती हैं
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कवि ने दारू माफिया के साथ मिलकर गोल्फ क्लब बनाया
उसने चार नए पार्टनर बनाए—एक सांप्रदायिकता पर भाषण देने वाला, एक देश की रक्षा पर रिसर्च करने वाला, एक विद्वानों को फैलोशिप बांटने वाला और एक यूं ही
यूं ही कभी प्राइमटाइम एंकर बन जाता, कभी किसी का सीईओ बन जाता, कभी संपादक, कभी प्रोफेसर, कभी ठेकेदार, कभी फिल्मकार, कभी प्रवचनकार
यूं ही, यूं ही था. वह यूं ही कुछ भी बन जाता और यूं ही न जाने क्या कर जाता. वह यूं ही हाथी की बात भी पूंछ से शुरू करता और यूं ही सूंड गायब कर देता. किसी को रत्ती शक न होता.
वह यूं ही जो था
एक दिन सारे पार्टनर दारू पर साथ बैठे
यूं ही उनके साथ बैठने की बजाए गोल्फ खेलने चला
दारू माफिया ने कवि से पूछा—तुम्हारे लाए तीन पार्टनर तो समझ में आए. ये चौथा कुछ समझ में नहीं आया
कवि ने कहा, तीनों मिलकर जो करते हैं, वह यह एक यूं ही कर जाता है. असल में ये तीनों यूं ही के लिए तो काम करते हैं
दारू माफिया ने यूं ही को गोली मार दी
लोगों का कहना है कि गोली कवि को मारी गई थी
वह यूं ही है जो आजकल कवि बना घूम रहा है. बाकी तीनों पार्टनरों की आत्माएं रात में उसके साथ गोल्फ खेलती दिखती हैं
दारू माफिया अब तक कन्फ्यूज़ है क्योंकि पिस्तौल तो निकालकर कवि ने दी थी.