शख्सियतः कला में सौंदर्य दोधारी तलवार

तबलावादक पंडिता अनुराधा पाल लॉकडाउन के दौरान किए गए प्रयोग, संगीतकार के सुदर्शन होने और आज के संगीत में तेजी पर.

पंडिता अनुराधा पाल
पंडिता अनुराधा पाल

● लॉकडाउन वाली घडिय़ां कैसे बीतीं?
बाईस मार्च से ही हमने प्रस्तुतियों, बातचीत और बुजुर्ग कलाकारों की जानकारी का ऑनलाइन सिलसिला चलाया जो दो महीने चला. 10,000 व्यूज मिलते थे. चार दिन का एक फंड रेजिंग फेस्टिवल किया, जिसमें मैंने और शुभचिंतकों ने पैसे लगाए.

इसके जरिए लॉकडाउन से प्रभावित 200 कलाकारों और वाद्य निर्माता कारीगरों को 3,000 से 30,000 रु. तक की मदद दी.

कलाकार का खूबसूरत होना प्रदर्शन में सहायक होता है?
बहुत मुश्किल मामला है, दोधारी तलवार जैसा. एक अर्थ में तो सहायक होता है, दर्शक अट्रैक्ट होते हैं, समा बंधता है. पर अगर आप किसी और के साथ हैं जो रचनात्मक तौर पर पारंगत नहीं, तब जरूर सुंदरता उसके लिए बाधा पैदा करती है.

आपकी सुदर्शन उपस्थिति से हो सकता है वह असहज रहे. पर सामान्यत: कला के साथ रूपवान होना असर बढ़ाता ही है.

देश में जितनी महिला वादिकाए हैं, उनका एक जगह समागम होना चाहिए, इस दिशा में कभी नहीं सोचा?
इस संदर्भ में कहूंगी कि अनुराधा पाल: स्त्री शक्ति नाम के मेरे ग्रुप ने बहुत-सी वादिकाओं को मौका दिया. वे आज पूरी तरह से स्वतंत्र प्रदर्शन कर रही हैं.

करीब 24 साल पहले इसमें दक्षिण भारतीय संगीत के साथ तंत्रकारी, गायन और तालवाद्य मिलाकर एक प्रयोग किया, वह आज तक चल रहा है. इसके लिए मुझे यंग म्युजिशियन का राष्ट्रपति अवार्ड भी मिला था.

आजकल के वादक तैयारी के मामले में तूफान हैं लेकिन मिजाजदारी दिखाई नहीं देती.
मैं क्या कहूं? सच तो है इसमें. स्पीड ही सब कुछ नहीं होती. असल संगीत मिजाजदारी और उसमें छिपा ठहराव ही है.

—राजेश गनोदवाले
 

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