टीकम जोशीः सब्र के साथ संवारे किरदार

मुंबई की ओर ताके बगैर एक संजीदा अभिनेता ने हिंदी रंगमंच को दिए तीन दशक, मौलिक अभिनय और प्रतिबद्धता के बूते खड़ा किया अपना दर्शक वर्ग

रंग हजार: टीकम जोशी
रंग हजार: टीकम जोशी

इस साल संगीत नाटक अकादमी अवार्ड के प्रबल संभावितों में एक नाम हिंदी रंगमंच के दिग्गज अभिनेता टीकम जोशी का भी है. 2009 में उन्हें अकादमी का ही युवाओं की श्रेणी का उस्ताद बिस्मिल्ला खां अवार्ड मिला था. 10 साल के भीतर महज 44 की उम्र में अपने क्षेत्र के सर्वाधिक प्रतिष्ठित पुरस्कार पर दावा.

टीकम उन अभिनेताओं में से हैं, जो पिछले 25-30 साल से मंच पर लगातार ठोस और कद्दावर कैरेक्टर खेलते आए हैं. अश्वत्थामा (अंधायुग) हो, अजीज (तुगलक), नगीना (जानेमन), रैक्व (अनामदास का पोथा),  रघुबर प्रसाद (दीवार में एक खिड़की रहती थी) या फिर हाल के नाटक गांधी के जीवन पर बापू (एकल), समलैंगिक रिश्तों पर अ स्ट्रेट प्रोपोजल और एकदम ताजा अग्ग दी इस बात है में मशहूर शायर साहिर.

ऐसे बीसियों किरदार उनकी रूह में उतरकर मंच पर आए और दर्शकों के दिलोदिमाग में बैठे हैं. दर्जन भर नाटकों में तो वे इस वक्त भी अभिनय कर रहे हैं. अपने निभाए सौ से ज्यादा किरदारों के नाम तो वे उंगलियों पर गिना देते हैं.

टीकम की सबसे बड़ी ताकत है, उनके शहर भोपाल और भारत भवन में उन्हें मिला परिवेश. वे याद करते हैं, ''भारत भवन और मैं साथ-साथ बड़े हुए. कवियों की बैठकी, बशीर बद्र, फजल ताबिश को सुनना, उनसे बतियाना. और मेरे रंगगुरुओं का रोज यह पूछना कि आज कौन-सी कविता/कहानी पढ़ी.

उस जेहनी परवरिश ने इतना समृद्ध बना दिया कि एनएसडी से (2001 में) निकलने के बाद भी रंगमंच की इस भरी-पूरी दुनिया को छोड़कर जाने की रत्ती भर भी इच्छा नहीं हुई.'' बतौर अभिनेता टीकम की बड़ी ताकत रहा है: किसी भी किरदार के भीतर-बाहर को पकडऩे का उनका मौलिक अंदाज. उत्तेजना या किसी प्रभाव में आए बगैर, किरदार की चारित्रिक विशेषताओं को पूरी गरिमा के साथ बरतना. इस प्रक्रिया में उन्हें पहचान बनाने में समय लगा लेकिन उनकी प्रतिबद्धता ने हिंदी क्षेत्र में उनका एक दर्शक वर्ग खड़ा कर दिया.

उनके निर्देशक उनकी प्रतिबद्धता के कायल रहे हैं. 2012 में फिरोजशाह कोटला किले में अंधायुग करने वाले भानु भारती कहते हैं, ''टीकम डायरेक्टर को खदेड़कर भी पूछ लेता है कि सर, बताइए इसे कैसे करना है.'' 2002 में एनएसडी रंगमंडल के नाटक जानेमन में उन्हें किन्नर किरदार नगीना में लेने वाले निर्देशक वामन केंद्रे कहते हैं, ''उसका कमिटमेंट कमाल का है. थर्ड बेल तक भी वह कुछ नया सोचता है.'' दोनों ही उन्हें मनोहर सिंह, सुरेखा सीकरी और महेंद्र मेवाती की परंपरा का अभिनेता मानते हैं. पर भोपाल के दिनों के अभिनेता दोस्त मानव कौल ''हर वक्त उसके चेहरे पर पसरी हल्की-सी मुस्कान'' के कायल हैं. दूसरे भी.

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