सिनेमा-बड़े नामों से आगे की राह

यह फिल्म सेनेगल में प्रवासी मजदूरों की जिंदगी और सेक्स की राजनीति पर आधारित है. पुरस्कार मिलते ही सिनेमा की सबसे बड़ी ऑनलाइन वितरण कंपनी नेटफ्लिक्स ने इस फिल्म को भारी दाम देकर खरीद लिया.

फिर एशिया  दक्षिण कोरिया के बोंग जून हो की पैरासाइट ने जीता पाम डि ओर
फिर एशिया दक्षिण कोरिया के बोंग जून हो की पैरासाइट ने जीता पाम डि ओर

कान फिल्मोत्सव के 72वें संस्करण (14-25 मई) में एक बार फिर एशियाई- अफ्रीकी फिल्मों ने विश्व सिनेमा में अपना लोहा मनवाया. पेद्रो अल्मोदोवार, केन लोआच, टेरेंस मलिक, क्वेंतिन तारेंतीनो, मार्को बेलोचियो, जिम जारमुश, जेवियर दोलान और अब्दुल लतीफ केचीचे जैसे दिग्गज यूरो-अमेरिकी फिल्मकारों को पछाड़कर दक्षिण कोरिया के बोंग जून हो की फिल्म पैरासाइट ने दुनिया के इस सबसे ताकतवर फिल्म समारोह में बेस्ट फिल्म पाम डि ओर का खिताब जीता. पिछले साल जापान के कोरे इडा हिरोकाजू को शापलि टर के लिए पाम डि ओर मिला था.

संयोग से दोनों फिल्मकारों की विषयवस्तु एक ही है—एशिया के दो सबसे अमीर देशों में पसरती गरीबी. शापलि टर में जहां परिवार का पेट पालने के लिए छोटे बच्चे डिपार्टमेंटल स्टोर से सामान चुराकर भागते हैं तो पैरासाइट में बड़े बच्चे झूठ बोलकर नकली ट्यूटर बनते हैं. कान समारोह के इतिहास में फ्रेंच-सेनेगल की मैती दिओप पहली अश्वेत महिला फिल्मकार हैं जिन्हें अटलांटिक्स के लिए दूसरा सबसे महत्वपूर्ण ग्रैंड पिक्स अवार्ड मिला.

यह फिल्म सेनेगल में प्रवासी मजदूरों की जिंदगी और सेक्स की राजनीति पर आधारित है. पुरस्कार मिलते ही सिनेमा की सबसे बड़ी ऑनलाइन वितरण कंपनी नेटफ्लिक्स ने इस फिल्म को भारी दाम देकर खरीद लिया. एलिया सुलेमान (फलस्तीन) की इट मस्ट बी हेवन को स्पेशल मेंशन और समीक्षकों के संगठन फ्रिप्रेस्की का भी अवार्ड मिला. इसमें सुलेमान ने अपना ही मुख्य चरित्र खुद ही निभाया है. खुद की पहचान, राष्ट्रीयता और कहीं का होने की खोज में पता चलता है कि जन्म स्थान की यादों के सिवा अपना तो कुछ है ही नहीं.

72वें कान फिल्म समारोह की सबसे बड़ी घटना प्रतियोगिता खंड में क्वेतिन तारंतीनो की फिल्म वंस अपान ए टाइम इन हॉलीवुड का प्रदर्शन था. पल्प फिक्शन (1994) के लिए बेस्ट फिल्म का अवार्ड जीतने के 25 साल बाद वे कान में लौटे थे. इस फिल्म को उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री को अपना 'प्रेम पत्र' बताया.

पच्चीस मई की शाम कान के ग्रैंड थियेटर लूमिएर में जूरी अध्यक्ष अलेजांद्रो गोंजालेज इनारितू ने स्पष्ट कहा कि इस बार निर्णय में बड़े नामों और राजनैतिक आग्रहों के बजाए कला और गुणवत्ता को तरजीह दी गई है. लगभग सभी पुरस्कार नए फिल्मकारों को मिले हैं. वे बोले, ''गुस्से, झूठ और आक्रोश के साथ शासन कर रहे हमारे नेता फरेब और कल्पना का संसार रच रहे हैं और लोगों को विश्वास दिला रहे हैं कि यही सच है. अमेरिका और मैक्सिको के बीच दीवार का निर्माण एक नए विश्व युद्ध को जन्म दे सकता है.''

कान फिल्म समारोह में भारतीय फिल्मों के प्रदर्शन और अभिनेत्रियों के रेड कार्पेट पर चलने की फरेबी खबरों के बीच सच यह था कि इस बार ऑफिशियल सेलेक्शन में एक भी भारतीय फिल्म नहीं थी. किसी भारतीय कलाकार को आधिकारिक रुप से कोई रेड कार्पेट नहीं दी गई. पर फिक्की की ओर से लगाए गए भारतीय पैविलियन में काफी चहल-पहल थी. इससे भारतीय फिल्मकारों को नेटवर्किंग की सुविधा मिल जाती है. —अजित राय

''गुस्से, झूठ और आक्रोश के साथ शासन कर रहे हमारे नेता फरेब और कल्पना का संसार रच रहे हैं और लोगों को भरोसा दिला रहे हैं कि यही सच है.'' अलेजांद्रो गोंजालेज इनारितू, जूरी अध्यक्ष

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