सीता वनवासः सीता के नजरिए को दर्शाता एक नाटक
पिछले हफ्ते पर्वतीय कला मंच के बैनर तले मंचित उनकी नई प्रस्तुति ''सीता वनवास" में ये दोनों पहलू सामने आते हैं

रामजी बाली मस्त मौला मिजाज के रंगकर्मी हैं. राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के पढ़े ही नहीं, बल्कि उसके स्नातकों के संगठन एएनएसडीए के मौजूदा अध्यक्ष भी हैं. आसपास के रंगकर्मियों की भीतरी खदबदाहट को स्वर देने में वे झिझकते नहीं.
फेसबुक पेज पर किसी-किसी फिल्म की शूटिंग में होने की खबर भी वे गाहे-बगाहे देते रहते हैं. लेकिन उनका घर-आंगन थिएटर ही है. 44 वर्षीय निर्देशक, लेखक, अभिनेता बाली का नाटक बेहतर हो, औसत या कच्चा, वे उस पर खुलकर बतियाने के रास्ते खोलकर रखते हैं. नतीजाः हाल के वर्षों में उनका काम तेजी से निखरा है. साथ ही जोखिम लेने का माद्दा भी बढ़ा है.
पिछले हफ्ते पर्वतीय कला मंच के बैनर तले मंचित उनकी नई प्रस्तुति ''सीता वनवास" में ये दोनों पहलू सामने आते हैं. पारसी शैली के सबसे बड़े नाटककार आगा हश्र कश्मीरी ने इसे एक सदी पहले लिखा था, हिंदुस्तानी जबान में. बाली ने उसके संवादों की अदा को कायम रखते हुए उसे संस्कृत नाटक-सा बना दिया.
ऐसे रूपांतर वाले प्रयोगों में जोखिम बहुत रहता है और पकड़ एक बार छूटते ही पूरी प्रस्तुति के बिखर जाने का खतरा रहता है. लेकिन बाली ने पकड़ बनाकर रखी है. उत्तर रामायण के इस कथानक में आगा साहब ने वाल्मीकि रामायण की तरह सीता के नजरिए को अहमियत दी है.
संयोग कहें कि बाली की इस प्रस्तुति में अभिनय के लिहाज से भी सीता के किरदार में नेहा राय भाव और रस के सूत्र को दिल से पकड़ती हैं और दूसरों से काफी आगे निकल जाती हैं. वेशभूषा और जीवंत संगीत भी दर्शक के मनोभाव को संभालते हैं. हालांकि गति में सुस्ती एक स्तर पर खलती है.
बाली चर्चित अभिनेता राजपाल यादव और यशपाल शर्मा को भी निर्देशित कर चुके हैं. शर्मा और सिनेमा/टीवी की अभिनेत्री हिमानी शिवपुरी उनके साथ अब भी क्रमशः ''कोई बात चले" और ''अपने-पराए" नाटक कर रहे हैं. इस हरियाणवी रंगकर्मी की ऊर्जा और आक्रोश अब लय में है.
***