दिल्ली को दहलाने वाले व्हाइट-कॉलर टेरर मॉड्यूल की पूरी कहानी

दिल्ली में कार बम के हमले ने आतंक के तौर-तरीकों में खतरनाक बदलाव की ओर इशारा किया है. कट्टरवाद में ढलकर अब प्रोफेशनल्स भारतीय शहरों को निशाना बनाने लगे हैं

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दिल्ली में लाल किले के पास 10 नवंबर को हुए धमाके के तुरंत बाद के दृश्य का एक स्क्रीन ग्रैब

जम्मू-कश्मीर पुलिस ने 10 नवंबर की शाम 6.10 बजे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक छोटा-सा लेकिन सीधा-साफ संदेश पोस्ट किया, ''तुम भाग सकते हो पर छुप नहीं पाओगे!’’ यह संदेश 32 साल के डॉक्टर उमर उन-नबी के लिए था, जो फरीदाबाद के अल-फलाह हॉस्पिटल में काम करता था. जम्मू-कश्मीर पुलिस एक व्हाइट-कॉलर टेरर मॉड्यूल के सिलसिले में उसे तलाश रही थी. शक था कि वह दिल्ली-एनसीआर और बाकी जगहों पर बड़े हमलों की तैयारी कर रहा है.

पिछले दो हफ्तों में पुलिस ने इस मॉड्यूल के कई अहम लोगों को पकड़ लिया था, जिनमें ज्यादातर डॉक्टर थे. पर उमर हर बार हाथ से फिसल जाता था. पुलिस को उम्मीद थी कि वह उसे उसी सोमवार सुबह पकड़ लेगी पर लगता है उमर को गिरफ्तारी की भनक लग गई थी. वह विस्फोटक से भरी सफेद हुंडई आइ20 से सुबह 7.30 बजे घर से फरार हो गया. जम्मू-कश्मीर पुलिस ने दिल्ली पुलिस से उसके लिए 'बीओएलओ’ (बी ऑन लुक आउट) नोटिस जारी करने को कहा था.

बाद में सार्वजनिक सीसीटीवी फुटेज से पता चला कि उमर 8.13 बजे दिल्ली में दाखिल हुआ और दिनभर शहर में घूमता रहा. दोपहर करीब 2.30 बजे दिल्ली के तुर्कमान गेट के सामने फैज इलाही मस्जिद में नमाज पढ़ने भी रुका. वहां से सुनहरी मस्जिद गया, जो लाल किले के पास है, और 3.19 बजे अपनी कार वहां की पार्किंग में खड़ी कर दी.

करीब तीन घंटे बाद, 6.48 बजे—जेके पुलिस के एक्स पोस्ट के सिर्फ 38 मिनट बाद—उमर पार्किंग से निकला, लाल किले की तरफ बढ़ा, यू-टर्न लेकर किले के मुख्य द्वार के पास गाड़ी लाया. लगता है 6.55 बजे उसने खुद विस्फोटक ट्रिगर कर दिया. धमाके में कार के परखच्चे उड़ गए. आग के गोले ने 12 और लोगों की जान ले ली, 20 घायल हुए, ‌जिनमें ‌कुछ राहगीर और कुछ गाड़ी वाले थे.

इस धमाके ने देश की सुरक्षा एजेंसियों को भी हिला दिया क्योंकि इसने बड़े शहरों में होने वाले हमलों के साथ आतंक की कार्यप्रणाली में एक नए और खतरनाक दौर की ओर इशारा किया है. राजधानी में यह 14 साल बाद पहला बड़ा आतंकी हमला था. इससे पहले 2011 में दिल्ली हाइकोर्ट के बाहर हुए धमाके में 12 लोग मारे गए थे और 91 घायल हुए थे.

इसके बाद के बरसों में जम्मू-कश्मीर के बाहर सिर्फ दो बड़े हमले हुए: फरवरी 2013 में हैदराबाद में हुए डबल ब्लास्ट, जिसमें कम से कम 16 लोग मारे गए और 150 से ज्यादा घायल हुए, और जनवरी 2016 में पठानकोट एयरबेस पर हमला. हालांकि पठानकोट में निशाना सेना थी. यह हमला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दिसंबर 2015 की पाकिस्तान यात्रा के महीने भर बाद ही वहां के आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने किया था. 

भारतीय जांच एजेंसियों ने पहले की तरह इस बार तुरंत खुलकर बयान नहीं दिए. उन्होंने यह पता लगाने पर जोर रखा कि हमले को अंजाम किसने दिया और इसके पीछे असली दिमाग कौन था. शुरुआती जांच से जरूर लगा कि इसमें जैश का हाथ संभव है, वही संगठन जिसके पाकिस्तान स्थित ठिकाने भारत के 'ऑपरेशन सिंदूर’ में मुख्य निशाना थे. यह ऑपरेशन उस हमले के बाद शुरू हुआ था, जब 22 अप्रैल को पहलगाम में हथियारबंद आतंकियों ने 26 आम लोगों की हत्या कर दी थी.

इस ऑपरेशन के तहत भारतीय सुरक्षा बलों ने बहावलपुर में जैश के मुख्यालय मरकज सुब्हानअल्लाह पर बमबारी की, जिसमें संगठन के सरगना मसूद अजहर के परिवार के 10 सदस्य मारे गए. उनमें उसकी बड़ी बहन हव्वा बीबी भी शामिल थी. जैश के चार आतंकी ट्रेनिंग कैंप—मरकज बिलाल, मरकज अब्बास, महमूना जोया और सरगल—पर भी हमला किया गया, जिसमें कई आतंकवादी ढेर हो गए.

साजिश का खुलासा

ऑपरेशन सिंदूर के कुछ महीने बाद ही खुफिया एजेंसियों को कई एन्क्रिप्टेड सोशल मीडिया चैनल मिले, जिनमें टेलीग्राम भी था, जहां जैश के हैंडलर मसूद अजहर के परिवार के मारे जाने का बदला लेने की बातें फैला रहे थे. 18 अक्तूबर को श्रीनगर के नौगाम गांव में लगे धमकी भरे पोस्टरों ने जम्मू-कश्मीर पुलिस को इशारा दे दिया कि कुछ बड़ा होने वाला है.

इसके बाद एसएसपी संदीप चक्रवर्ती की अगुआई वाली जांच टीम ने लगातार मेहनत की. चक्रवर्ती खुद डॉक्टर रह चुके हैं पर नौकरी छोड़ पुलिस में आ गए. उनकी टीम ने आखिरकार डॉक्टरों के एक ऐसे नेटवर्क का पता लगाया, जो पूरे देश में बड़े आतंकी हमले करने की तैयारी में था और लगता था कि वे ऑपरेशन सिंदूर में जैश के हुए नुक्सान का बदला लेना चाहते थे.

पोस्टर लगने के बाद चक्रवर्ती और उनकी टीम ने सीसीटीवी फुटेज की गहराई से जांच की और उन तीन लड़कों की पहचान की जो पोस्टर चिपका रहे थे: आरिफ निसार डार उर्फ साहिल, यासिर-उल-अशरफ और मकसूद अहमद डार. तीनों नौगाम के हैं और 2019 से पहले पत्थरबाजी में शामिल रहते थे, रोज 500-600 रुपए कमाते थे.

उनकी गिरफ्तारी और पूछताछ में पता चला कि उन्हें यह काम एक मौलवी इरफान अहमद वागे से मिला था. इरफान शोपियां का रहने वाला है और श्रीनगर के आउटर नौगाम इलाके की एक मस्जिद में इमाम था. उस पर पहले भी आतंकियों को हथियार पहुंचाने, कश्मीरी युवाओं को पाकिस्तान भेजकर ट्रेनिंग दिलाने और फौज पर पत्थरबाजी के लिए भड़काने के आरोप लग चुके थे.

इरफान के पुराने रिकॉर्ड से साफ हो गया कि वह स्थानीय लड़कों के बीच आतंक की सोच फैलाने में शामिल था. उसके पकड़े जाने पर कबूलनामों की कड़ी शुरू हो गई. सबसे पहले उसने अदील मजीद राठर का नाम लिया, जो काजीगुंड का रहने वाला डॉक्टर है और यूपी के सहारनपुर में फेमस मेडिकल सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल में कार्यरत था.

पोस्टर कैंपेन में इरफान का मददगार वही था. राठर को सहारनपुर से पकड़ने के बाद उसकी पिछली नौकरी वाली जगह जीएमसी अनंतनाग के उसके पर्सनल लॉकर से एक एके-47 मिली. पूछताछ में उसने एक और डॉक्टर मुजम्मिल शकील गनई का नाम लिया, जो पुलवामा के कोइल का रहने वाला है और उमर के साथ अल-फलाह में काम करता था.

एक साझा ऑपरेशन में जम्मू-कश्मीर और फरीदाबाद पुलिस ने रातभर की रेड में गनई को फरीदाबाद से पकड़ लिया. उसकी पूछताछ में पुलिस को एक ठिकाने का पता चला जहां आइईडी बनाने का सामान और उपकरण छिपाए गए थे: 358 किलो विस्फोटक, ज्यादातर अमोनियम नाइट्रेट, डिटोनेटर और दूसरे डिवाइस.

गनई ने अपनी गर्लफ्रेंड डॉ. शाहीन सईद का भी नाम बताया, जो लखनऊ की रहने वाली है और अल-फलाह में असिस्टेंट प्रोफेसर थी और जिसके पास उसने एक एके-47 छिपा रखी थी. हरियाणा पुलिस शाहीन के पीछे लगी. गनई की गिरफ्तारी की खबर सुन वह घबरा गई और अल-फलाह के पीछे एके-47 फेंक आई. उसे पकड़ने के बाद पुलिस ने उसकी बताई जगह से राइफल बरामद कर ली.

गनई ने मौलाना इश्तियाक का भी नाम लिया, जो मेवात के सिंगार-फिरहाना गांव का मौलवी है. वह उसका करीबी वैचारिक साथी था और शक है कि भारत के बड़े शहरों में ब्लास्ट कराने की साजिश में भी अहम भूमिका निभा रहा था. फरीदाबाद में एक घर पर रेड में पुलिस को 88 बोरियों में भरे 2,563 किलो विस्फोटक मिले, जिनमें अमोनियम नाइट्रेट, पोटैशियम, फ्यूल ऑयल, डिटोनेटर, बैटरियां और टाइमर शामिल थे. यह घर इश्तियाक ने गनई को किराए पर दे रखा था, जो अल-फलाह के पीछे ही था. आखिर में गनई ने उमर का भी नाम बताया, जो श्रीनगर में उसका मेडिकल कॉलेज का साथी था और इस साजिश का एक बड़ा किरदार.

उमर की तलाश शुरू होते ही धमाके से कुछ घंटे पहले जम्मू-कश्मीर पुलिस ने ऐलान किया कि उसने एक ''इंटर-स्टेट और ट्रांसनेशनल टेरर मॉड्यूल’’ को तोड़ दिया है. पुलिस का कहना था कि यह मॉड्यूल पाकिस्तान के जैश, हिज्बुल मुजाहिदीन से अलग हुए गुट अंसार गजवातुल हिंद और अल-कायदा से जुड़ा हुआ था. पुलिस को पूरा यकीन था कि उसने उमर को घेर लिया है, तभी एक्स पर तंजभरा संदेश पोस्ट किया गया था: ''तुम भाग सकते हो पर छुप नहीं पाओगे!’’ लेकिन उन्हें अंदाजा न था कि उमर अपनी आइ20 में पहले ही विस्फोटक भर चुका है और भीड़भाड़ वाले लाल किले के इलाके में फिदायीन हमला करने जा रहा है.

पाकिस्तान की एक नई चाल

अब जब मामला राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) के हवाले किया जा चुका है तो बेहद कड़ाई के साथ तमाम खुफिया रिकॉर्ड और सीसीटीवी फुटेज खंगालने का काम शुरू हो गया है ताकि पता लगाया जा सके कि आतंकी डॉक्टरों ने साजिश कैसे रची और हमले में पाकिस्तान की संलिप्तता साबित करने वाले ठोस सबूत कैसे मिलेंगे. आतंकवाद-रोधी विशेषज्ञों का मानना है कि भारतीय धरती पर हमले के लिए घाटी के पेशेवरों, खासकर डॉक्टरों की भर्ती करना पाकिस्तान की नई नापाक साजिश दर्शाता है. यह पहलगाम जैसे भयावह हमले के एकदम उलट है जिसे पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आइएसआइ) के भेजे उच्च प्रशिक्षित पाकिस्तानी आतंकवादियों ने अंजाम दिया था. 

बहुत संभव है, यह रणनीति पहलगाम और ऑपरेशन सिंदूर के बाद अपनाई गई हो ताकि पाकिस्तान दुनिया के सामने साबित कर सके कि उस पर सीमा पार आतंकवाद फैलाने का आरोप निराधार है. हमलों को अंजाम देने के लिए स्थानीय आतंकवादियों, खासकर पढ़े-लिखे पेशेवरों को आगे करके पाकिस्तान कहीं-न-कहीं दिखाना चाहता है कि आम लोग कश्मीर घाटी में भारतीय राज्य के मामलों को संभालने के तरीके से कितने नाखुश हैं.

मनोहर पर्रीकर रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान (एमपी-आइडीएसए) के आतंकवाद-रोधी विशेषज्ञ और सीनियर फेलो कर्नल विवेक चड्ढा (सेवानिवृत्त) कहते हैं, ''डॉक्टर जैसे योग्य पेशेवरों को चुनकर—जिन पर संदेह करना या ऐसी गतिविधियों में जिनकी संलिप्तता की संभावना कम होती है—और पहले की तरह कश्मीर पर हमला करने के बजाए लाल किले जैसे भारतीय शक्ति के प्रतीक पर निशाना साधकर पाकिस्तान ने आतंकवाद का एक अलग ही चेहरा सामने रखा है. इस तरह से उसने मनोवैज्ञानिक लाभ के साथ एक ऐसा नैरेटिव गढ़ने की कोशिश की है जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को ऐसी कोई दंडात्मक कार्रवाई करने से रोकने में मददगार हो करता है, जैसी उसने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान की थी.’’

जम्मू-कश्मीर के पुलिस महानिदेशक रह चुके आर.आर. स्वैन जैसे कई विशेषज्ञ इस बात से सहमत हैं कि नए मॉड्यूल में सबसे बड़ी बात इसमें पेशेवरों का इस्तेमाल किया जाना है. इसने हमलों के स्तर को और भी ज्यादा चुनौतीपूर्ण बना दिया है. उनका कहना है कि अतीत में आत्मघाती बम विस्फोटों को अंजाम देने के लिए शायद ही पहले कभी इस तरह पेशेवरों का इस्तेमाल किया गया हो. स्वैन के शब्दों में, ''संपन्न परिवारों के उच्च शिक्षा प्राप्त और व्यावसायिक पेशेवरों का बम और गोलियों की दुनिया से वास्ता रखना बताता है कि यह बेरोजगारी और गरीबी का मुद्दा नहीं, बल्कि कट्टरपंथी विचारधारा और दुष्प्रचार का मामला है.’’

एक अस्पताल की मोर्चुअरी के सामने रोते-बिलखते विस्फोट के शिकार लोगों के परिजन

गिरफ्त में आए फरीदाबाद मॉड्यूल के सदस्य उमर, गनई और राठर ऐसी कट्टरपंथी विचारधारा की जीवंत मिसाल हैं. उमर ने जीएमसी, श्रीनगर से एमबीबीएस और एमडी की पढ़ाई की और अल-फलाह से पहले नामी श्री महाराजा हरि सिंह (एसएमएचएस) अस्पताल और जीएमसी, अनंतनाग में काम कर चुका है. उमर की भाभी मुजम्मिल का कहना है, ''वह पूरे इलाके के लिए एक मिसाल था. हमने उसे डॉक्टर बनाने के लिए खासी मशक्कत की.’’

गनई ने जम्मू के आचार्य श्री चंदर कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंसेज ऐंड हॉस्पिटल से एमबीबीएस किया और उमर की तरह अल-फलाह के साथ जुड़ने से पहले कश्मीर के अस्पतालों में प्रैक्टिस की. अपने पैतृक गांव कोइल में गनई की पहचान एक मेहनती और प्रतिभाशाली छात्र की रही है. गनई के छोटे भाई आजाद कहते हैं, ''हमारे घर में कभी पुलिस और सेना ने कदम नहीं रखा.

हम कानून का पालन करने वाले भारतीय नागरिक हैं. मुजम्मिल हमेशा पढ़ाई पर ध्यान देता था, और किसी भी चीज पर नहीं.’’ काजीगुंड निवासी राठर की पारिवारिक पृष्ठभूमि साधारण है. उसके पिता एक सेवानिवृत्त तहसीलदार हैं. उसने अनंतनाग के जीएमसी से एमबीबीएस और एमडी की पढ़ाई की, वहीं उमर के संपर्क में आया. राठर ने सहारनपुर अस्पताल से पहले अक्तूबर 2024 तक रेजिडेंट के तौर पर काम किया.

फिर भी, जैसा कि जक्वमू-कश्मीर के एक अन्य पूर्व डीजीपी शेष पॉल वैद कहते हैं, ''उमर डॉक्टर यानी घाटी में सबसे ज्यादा अपेक्षित पेशे से जुड़ने के बाद भी आत्मघाती हमलावर बन गया और इस काम में दूसरे डॉक्टरों ने भी उसकी मदद की. जब आप अपने ही देशवासियों को मारने को तैयार हो रहे हैं तो सोचिए किस कदर कट्टरपंथ फैल रहा है. यह बड़ी चुनौती है. हमारे सुरक्षा प्रतिष्ठानों को इस मोर्चे पर गंभीरता से निबटने की जरूरत है.’’

कट्टरपंथी बनाने का तरीका
पाकिस्तान ने फिदायीन हमले के लिए घाटी के डॉक्टरों के दिमाग में कट्टरपंथ का जहर कैसे भरा? जम्मू-कश्मीर पुलिस ने जांच के दौरान पाया कि कैसे दो टेलीग्राम चैनल कट्टरपंथी विचाराधारा फैलाने के नेटवर्क बन गए—पहला फरजंदान-ए-दारुल उलूम (देवबंद) की तरफ से चलाया जा रहा था और दूसरे का संचालक पाकिस्तान स्थित जैश-ए-मोहम्मद का आतंकी उमर बिन खत्ताब था. उमर और मौलवी इरफान दोनों के दिमाग में यह जहर कथित तौर पर इन समूहों ने ही भरा. शुरुआती बातचीत 'कश्मीर की आजादी’ और कश्मीरियों के दमन पर केंद्रित थी. फिर बातें वैश्विक जिहाद और अन्याय का बदला लेने की अपील पर पहुंच गईं.

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह 10 नवंबर की रात में विस्फोट स्थल का मुआयना करते हुए

भारतीय एजेंसियां उनके पाकिस्तानी आकाओं के बारे में जानकारी जुटा रही हैं, जिनके बारे में बताया जा रहा है कि 2022 में तुॢकये की यात्रा के दौरान उमर और इरफान ने इन हैंडलर से भेंट की थी. इसी यात्रा के दौरान यह मॉड्यूल औपचारिक तौर पर अस्तित्व में आया. वापस आने के बाद समूह ने पूरे भारत में गतिविधियां तेज करने का संकल्प लिया. गनई को अल-फलाह से जुडऩे को कहा गया जहां उमर काम कर रहा था.

राठर ने सहारनपुर में पोस्टिंग मांगी. बाकी को भर्ती और रसद जुटाने के लिए विभिन्न राज्यों में सक्रिय किया गया. अब एजेंसियां मॉड्यूल के प्रमुख सदस्यों के साथ बातचीत करने वाले हर व्यक्ति की कुंडली खंगाल रही हैं. जांचकर्ताओं ने लाल किले के आसपास मोबाइल टावर डंप का विश्लेषण भी शुरू कर दिया है ताकि पता लगाया जा सके कि दोपहर 3:00 बजे से शाम 6:30 बजे के बीच उमर ने कब और किससे बात की थी. उसके विस्फोटक लदी कार पार्किंग स्थल से बाहर लाने के पहले का यह समय काफी अहम माना जा रहा है. डेटा से अंतिम समय के निर्देशों और हैंडलर के संपर्कों का खुलासा होने की उम्मीद है.

सुरक्षा एजेंसियों का कहना है कि ऑपरेशन सिंदूर के बाद हमले करने की साजिश में तेजी आई. भारतीय सशस्त्र बलों की तरफ से निशाना बनाए गए जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा और हिज्बुल मुजाहिदीन जैसे प्रमुख आतंकी संगठनों को अब अफगानिस्तान की सीमा से लगते पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा (केपीके) प्रांत में नए ठिकानों पर भेजा जा रहा है.

जैश-ए-मोहम्मद को तो अपना आतंकी ढांचा फिर खड़ा करने के लिए डिजिटल बैंकिंग लेन-देन प्लेटफॉर्मों के जरिए खुलेआम चंदा मांगते देखा गया है. यह संगठन ऑपरेशन सिंदूर में बुरी तरह तबाह हो गया था. अधिकारियों की राय में डॉक्टरों और शिक्षित पेशेवरों की संलिप्तता नए माध्यमों के जरिए भर्ती और कट्टरपंथ फैलाकर भारत के भीतर नेटवर्क फिर सक्रिय करने की जैश की बदली रणनीति का संकेत है.

महिलाओं को जिहादी बनाना उसकी नई चाल का ही एक और हिस्सा है. खुफिया सूत्रों ने जैश-ए-मोहम्मद प्रमुख मसूद अजहर की 21 मिनट की एक ऑडियो रिकॉर्डिंग का पता लगाया है, जो हाल में बहावलपुर के मरकज उस्मान-ओ-अली की है. इससे मसूद की अपनी बहन सादिया के नेतृत्व में जमात-उल-मोमिनात नाम का एक संगठन खड़ा करने और इसके तहत महिलाओं को आतंकी प्रशिक्षण देने की विस्तृत योजना सामने आई.

फरीदाबाद से गिरफ्तार महिला डॉक्टर शाहीन भी इसका हिस्सा बताई जा रही है. इस समूह में पुलवामा हमले के साजिशकर्ता उमर फारूक की विधवा अफीरा फारूक भी शामिल है. ये महिलाएं कथित तौर पर रोजाना ऑनलाइन प्रशिक्षण सत्र आयोजित करके महिला जिहादियों की भर्ती में जुटी हैं, जिसे जैश-ए-मोहक्वमद की तरफ से ''शोबा-ए-दावत’’ अभियान करार दिया गया है.

भारत को इससे कैसे निबटना चाहिए
भारतीय सुरक्षा विशेषज्ञ ताजा घटनाक्रम को एक बढ़ती चिंता मान रहे हैं. श्रीनगर स्थित चिनार कोर के पूर्व कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल डी.पी. पांडे कहते हैं, ''उन 'सफेदपोश आतंकियों’ से निबटना सबसे बड़ी चुनौती है जो जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद का नेटवर्क स्थापित करते हैं, उसे बरकरार रखते हैं. आतंकवाद की असली जड़ वही हैं.

वे कमजोर युवाओं की पहचान करते हैं, उनके दिमाग में कट्टरपंथ का जहर भरकर कट्टरपंथी बनाते हैं, और विदेशी आकाओं के निर्देशों के तहत पक्का करते हैं कि उन्हें हथियार उपलब्ध हों और वे हमले कर सकें.’’ वे आगे कहते हैं कि सुरक्षा बल आम तौर पर सशस्त्र आतंकवादियों पर शिकंजा कसने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. वे उन पर पर्याप्त ध्यान नहीं दे पा रहे जो पर्दे के पीछे से सक्रिय हैं और हिंसक विचारधारा फैला रहे हैं.

पांडे की राय में अब सुरक्षा एजेंसियों को खुफिया जानकारी बढ़ाने और फरीदाबाद जैसे मॉड्यूल पर नकेल कसने के लिए देशव्यापी अभियान चलाना चाहिए क्योंकि इनके प्रमुख शहरों के आसपास पनपने का अंदेशा है. दिल्ली विस्फोट ने कश्मीरी डॉक्टरों, खासकर दूसरी जगहों पर काम करने वाले डॉक्टरों को कड़ी निगरानी में ला दिया है. कई राज्यों और दिल्ली ने कथित तौर पर ऐसे डॉक्टरों-पेशेवरों की प्रोफाइलिंग शुरू कर दी है.

श्रीनगर और अनंतनाग स्थित जीएमसी प्रबंधन ने डॉक्टरों को तीन दिनों के भीतर अपने लॉकरों की पहचान करने और उन पर लेबल लगाने का आदेश दिया है. जीएमसी के एक डॉक्टर आकिब अली खान कहते हैं, ''कट्टरपंथ, ब्रेनवॉश करने या चरमपंथी बनाने के बारे में अक्सर विभिन्न व्यवसायों के संदर्भ में चर्चा होती है लेकिन इसके ऐसे पेशे के साथ जुडऩे की शायद किसी ने कल्पना भी न की होगी जिसमें लोग जीवन बचाने के लिए वर्षों तक कड़ी ट्रेनिंग लेते हैं.’’

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 12 नवंबर को एलएनजेपी अस्पताल में घायलों का हाल लेते हुए

हालांकि, प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह दोनों ने कहा कि दिल्ली के जघन्य हमले के अपराधियों और मास्टरमाइंडों को सजा दिलाई जाएगी, भारत सरकार ने जल्दबाजी में कोई भी कदम उठाने और तुरंत पाकिस्तान पर उंगली उठाने से परहेज किया है. हालांकि, उसने कहा है कि हर आतंकी हमले को युद्ध की कार्रवाई माना जाएगा लेकिन सरकार ने समझदारी से कोई भी कार्रवाई करने से पहले सभी सबूत परखने का फैसला किया है.

एमपी-आइडीएसए के आतंकवाद-रोधी विशेषज्ञ आदिल रशीद कहते हैं, ''वे दिल्ली विस्फोट की जांच बहुत व्यवस्थित तरीके से कर रहे हैं, जो आश्वस्त करती है. हमें यह तो नहीं पता कि साजिश कितनी गहरी है पर जांचकर्ता पाकिस्तान की संलिप्तता की पूरी तस्वीर सामने लाने और अपने निष्कर्षों को अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ साझा करने की कोशिश कर रहे हैं. लगता है उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर से सबक लिया है, जिसमें भारत अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया के लिए तैयार नहीं दिख रहा था. वैश्विक समुदाय ने पाकिस्तान के दहशतगर्दी के दशकों पुराने रिकॉर्ड के बावजूद इसे दोतरफा मामला माना. अमेरिका की प्रतिक्रिया भी मिली-जुली रही.’’

इसके अलावा, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप बड़े भू-राजनीतिक लाभ के लिए अमेरिका-पाकिस्तान संबंधों को घनिष्ठ बना रहे हैं, ऐसे में सीमा पार ऑपरेशन सिंदूर जैसी दंडात्मक कार्रवाई करने पर भारत अलग-थलग पड़ सकता है. उधर, आसिम मुनीर ने संसद से एक संवैधानिक संशोधन पारित कराकर अपनी स्थिति मजबूत कर ली है, जिससे उन्हें तीनों सशस्त्र बलों पर कमान रखने वाले रक्षा प्रमुख का दर्जा मिल गया है. इससे वे और भी ताकतवर बनकर उभरे हैं.

लगता है अमेरिकी हस्तक्षेप के लिए वे तनाव किसी भी हद तक ले जाने को आतुर हैं. विशेषज्ञों की राय में, यही वजह है कि भारत को अपने पत्ते सावधानी से खेलने चाहिए और पक्का करना चाहिए कि अंतरराष्ट्रीय समर्थन पूरी तरह उसके पक्ष में हो. बकौल रशीद, ''मुनीर साफ तौर पर भारत को उकसाने की कोशिश कर रहे हैं और चाहते हैं कि भारत जवाब में जोरदार हमला करे ताकि वे विश्व समुदाय के सामने फिर सताए जाने का रोना रो सकें. मुझे यकीन है कि भारत उनकी रणनीति को समझता है और किसी जवाबी कार्रवाई से पहले तैयारियां पूरी करने में जुटा है.’’

भारत सरकार के लिए एक और जरूरी कदम यह होना चाहिए कि वह शासनगत खामियों को दूर करे और पाकिस्तान के लिए कश्मीरी पेशेवरों को जिहाद का पाठ पढ़ाना नामुमकिन बना दे. स्वैन के मुताबिक, ''यह हमला इस बात को रेखांकित करता है कि अगर घाटी में आम आदमी के लिए शांति और बेहतर माहौल उपलब्ध हो और उसे बरकरार रखा जाए तो वह अपनी आजीविका कमाने में ज्यादा व्यस्त होगा. उसे आत्म-सम्मान और गरिमापूर्ण जीवन मिले तो वह पाकिस्तान की नापाक चालों का शिकार नहीं बनेगा.’’

जाहिर है, भारत को राज्य में अपनी विकास योजनाओं को तेज करना होगा और साथ ही सीमा पार से चरमपंथी गतिविधियों में धकेलने की कोशिशों पर कड़ी नजर रखनी होगी. इंडिया टुडे को दिए एक साक्षात्कार में मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने बताया कि कैसे हमले के तीन दिन बाद भी केंद्र सरकार ने उन्हें इस मुद्दे पर जानकारी देना या उनके विचार जानना उचित नहीं समझा.

कारण जो हों, भारत के लिए उपयुक्त माहौल बनाना जरूरी है, खासकर घाटी में. राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग अरसे से लंबित है. रशीद जैसे विशेषज्ञ तुरंत ऐसा करने के खिलाफ आगाह करते हैं. कुछ अन्य का मानना है कि सरकार को इसके लिए एक रोडमैप तैयार करना चाहिए. ऐसे कठिन समय में मंशा साफ और एकजुट होकर कार्रवाई सबसे बड़ी जरूरत है.

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