देश में सबसे ज्यादा नौकरियां देने वाले सेक्टर में क्यों आई छंटनी की बाढ़?

सिर्फ 2025 के कैलेंडर वर्ष में ही इंटेल, माइक्रोसॉफ्ट और मेटा जैसी बड़ी कंपनियों ने दुनियाभर में 60,000 से ज्यादा कर्मचारियों को निकाल दिया है. इनमें बड़ी संख्या में भारतीय भी हैं

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सांकेतिक तस्वीर

बंगलूरू की एक शीर्ष आइटी कंपनी में काम करने वाले अंकित दास (बदला हुआ नाम) की नींद उड़ चुकी है. तीसेक साल के अंकित हाल ही अपने परिवार के साथ इस शहर में शिफ्ट हुए थे. वे कंपनी में चार साल छह महीने से उसी प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे.

हर साल परफॉर्मेंस रिव्यू में उन्हें संतोषजनक 'सी’ बैंड मिलता रहा और कंपनी की अनिवार्य ऑफिस अटेंडेंस पॉलिसी के तहत उनका 'वर्क फ्रॉम ऑफिस’ इंडेक्स ''100 फीसद’’ रहा. लेकिन अचानक बिना किसी स्पष्ट वजह के उन्हें ''बेंच’’ पर डाल दिया गया यानी वे अब किसी प्रोजेक्ट में नहीं हैं.

साथ ही उन्हें ''फ्लुइडिटी लिस्ट’’ में भी डाल दिया गया—इस लिस्ट में आने का मतलब है कि आपके ऊपर छंटनी या रीस्ट्रक्चरिंग का खतरा मंडरा रहा है.

अंकित ने 12 अगस्त को फेसबुक पर लिखा, ''शुरुआत में मेरे प्रोजेक्ट मैनेजर ने कहा कि कॉस्ट कटिंग की वजह से मुझे प्रोजेक्ट से रिलीज किया जा रहा है लेकिन उन्होंने मेरे डिलिवरी मैनेजर से कहा कि मेरा परफॉर्मेंस अच्छा नहीं है. बेंच पर आए 12 दिन हो गए हैं, डोमेन (लाइनक्स, वीएमवेयर, एडब्ल्यूएस, एंसिबल, जीआइटी आदि) में कोई कॉल नहीं आ रही.’’ उन्हें डर है कि कंपनी की नई 35 दिन की बेंच पॉलिसी के बाद उन्हें निकाला जा सकता है.

वैश्विक अनिश्चितता लगातार बढ़ रही है. यूक्रेन और इज्राएल में जारी युद्ध, डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ से पैदा हुए व्यापारिक व्यवधान और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ) के चलते तेज बदलाव की वजह से दुनिया भर की टेक कंपनियां दबाव में हैं. सिर्फ 2025 के कैलेंडर वर्ष में ही इंटेल, माइक्रोसॉफ्ट और मेटा जैसी बड़ी कंपनियों ने दुनियाभर में 60,000 से ज्यादा कर्मचारियों को निकाल दिया है और जानकारों का कहना है कि आगे और छंटनी होगी.

इसका असर भारत पर भी पड़ा है. देश की सबसे बड़ी आइटी सर्विसेज कंपनी टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) ने जुलाई में ही 12,000 कर्मचारियों को निकाला, जो उसकी कुल वर्कफोर्स का करीब 2 फीसद है. वर्कफोर्स रिसर्च फर्म एक्सफेनो के अनुसार, पिछले 12 महीने में टॉप सात आइटी कंपनियों से 15 साल से ज्यादा अनुभव वाले 7,700 सीनियर प्रोफेशनल बाहर हो चुके हैं.

भारतीय आइटी सेक्टर में 73 लाख लोग काम करते हैं. इस समय यह ऐसे झटकों का सामना कर रहा है जो उसकी बुनियाद हिला सकते हैं और बड़े स्ट्रक्चरल बदलाव की जरूरत पैदा कर सकते हैं. ब्रोकरेज फर्म कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज के मुताबिक, बड़ी आइटी सर्विसेज फर्मों ने वित्त वर्ष 2025 की चौथी तिमाही में कमाई में तिमाही-दर-तिमाही गिरावट दर्ज की है. कोविड-ग्रस्त जून 2020 तिमाही के बाद ऐसा पहली बार हुआ है.

हर तरफ मार्जिन पर दबाव है क्योंकि तेज प्रतिस्पर्धा कंपनियों को कीमतें घटाने पर मजबूर कर रही है. भू-राजनैतिक और भू-आर्थिक अनिश्चितताओं ने क्लाइंट्स को अपने आइटी बजट रोकने पर मजबूर किया है, जिससे वित्त वर्ष 2026 में भारतीय आइटी कंपनियों के बिजनेस पर और असर पड़ेगा.

विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिकी टैरिफ का सबसे ज्यादा असर रिटेल, कंज्यूमर, लॉजिस्टिक्स, ट्रैवल और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर पर पड़ेगा, जिससे इन क्षेत्रों के प्रोजेक्ट्स में देरी, कैंसिलेशन और खर्चों में कटौती होगी. इसका असर आइटी कंपनियों के बाजार पूंजीकरण में दिखने लगा है. 4 अगस्त, 2025 तक टीसीएस का मार्केट कैप 15.5 लाख करोड़ रुपए से घटकर 11 लाख करोड़ रुपए पर आ गया, यानी 28 फीसद की गिरावट. इसी दौरान इन्फोसिस के मार्केट कैप में करीब 19 फीसद की कमी आई (देखें, आइटी का दायरा ).

भारतीय आइटी सेक्टर ने वाकई लंबा सफर तय किया है. कभी एन.आर. नारायण मूर्ति और उनके इन्फोसिस के साथियों, टीसीएस के फकीर चंद कोहली, विप्रो के अजीम प्रेमजी और एचसीएल के शिव नाडर जैसे दूरदर्शियों ने इसे तीन-चार दशक पहले शून्य से खड़ा किया था. 1990 के दशक में 'बॉडीशॉपिंग’ मॉडल—जहां आइटी कंपनियां अपने कर्मचारियों को ज्यादातर विदेशों में क्लाइंट साइट्स पर भेजती थीं—से शुरुआत करके, इसमें जल्द ही कम खर्च वाले बैक-ऑफिस ऑपरेशंस जुड़े.

आज यह 282.6 अरब डॉलर (24.7 लाख करोड़ रुपए) का विशाल उद्योग बन चुका है जो एंड-टु-एंड बिजनेस सॉल्यूशंस और कंसल्टिंग देता है. आज भारतीय आइटी कंपनियां दुनिया के कई बड़े कॉर्पोरेशनों को क्लाउड कंप्यूटिंग, डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन, एआइ, डेटा एनालिटिक्स और ब्लॉकचेन जैसी सेवाएं देती हैं.

यह सेक्टर भारतीय अर्थव्यवस्था का अहम स्तंभ बन चुका है, जो जीडीपी में 7 फीसद से ज्यादा का योगदान करता है. सिर्फ वित्त वर्ष 2025 में ही आइटी सेवाओं का निर्यात 224 अरब डॉलर (19.7 लाख करोड़ रुपए) तक पहुंच गया, जो भारत के कुल सर्विसेज एक्सपोर्ट 387.5 अरब डॉलर (34 लाख करोड़ रु.) का लगभग 60 फीसद है.

डिजिटलीकरण लंबे समय से आइटी सेक्टर के एजेंडे पर था, लेकिन कोविड-19 महामारी ने इसकी रफ्तार कई गुना बढ़ा दी. उसके बाद आइटी कंपनियों ने 'रिवेंज हायरिंग’ शुरू की, वित्त वर्ष 2022 में 10 लाख नए कर्मचारी जोड़े और सेवाएं मजबूत कीं. लेकिन यह खुशी ज्यादा दिन नहीं टिकी. फरवरी 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की तेज प्रगति ने इस विस्तार पर ब्रेक लगा दिया.

एक्सफेनो के अनुसार, अगले तीन साल वित्त वर्ष 23-25 में सिर्फ 12.6 लाख नए लोगों की भर्ती हुई. मंदी वित्त वर्ष 2026 में भी जारी दिख रही है. स्टाफिंग फर्मों का अनुमान है कि इस साल कुल नई भर्तियां 5.2 लाख रहेंगी, जो चार साल पहले की तुलना में आधा है. वित्त वर्ष 26 की पहली तिमाही में आइटी कंपनियों ने सिर्फ 3,847 नए कर्मचारियों को जोड़ा, जो पिछले साल की समान तिमाही से 72 फीसद कम है. अमेरिका से 70 फीसद काम मिलता है, वहां ग्रोथ रुक रही है. शुरुआती स्तर की भर्तियां कोविड-पूर्व स्तर से 50 फीसद कम हो गई हैं और वेतन भी ठहर-सा गया है.

हालांकि पारंपरिक आइटी सेवाएं भारी दबाव झेल रही हैं, लेकिन स्टार्ट-अप्स, एंड-यूजर आइटी डिपार्टमेंट और ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर (जीसीसी) अब प्राथमिकता सूची में ऊपर आ रहे हैं. जीसीसी—बहुराष्ट्रीय कंपनियों की ओर से स्थापित ऑफशोर स्ट्रैटेजिक यूनिट, जो आइटी, फाइनेंस, एचआर और आरऐंडडी जैसे विशेष कार्य संभालती हैं, आइटी हायरिंग में कुछ गिने-चुने 'ब्राइट स्पॉट’ में एक रही हैं. मोटे तौर पर यह सेक्टर स्ट्रक्चरल रीसेट से गुजर रहा है.

पारंपरिक पिरामिड मॉडल—जो बड़े पैमाने पर हायरिंग और कई प्रबंधन परतों पर आधारित था—में अब दरारें दिखने लगी हैं. अपनी ताजा अर्निंग कॉल में टीसीएस ने माना कि फैसले लेने में देरी और वैकल्पिक प्रोजेक्ट के स्थगन वित्त वर्ष की पहली तिमाही में जारी रहे बल्कि और भी बढ़ गए. हालांकि, छोटा होता वर्कफोर्स कंपनियों को अपने अहम परफॉर्मेंस पैमाने—कमाई प्रति-कर्मचारी अनुपात—को बनाए रखने या सुधारने में मदद कर रहा है.

खिसकती जमीन
भारतीय आइटी परिदृश्य, जिसमें आइटी सर्विसेज, जीसीसी (ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर), टेक स्टार्टअप, आइटी प्रोडक्ट, कंसल्टिंग और अलग-अलग उद्योगों में टेक नौकरियां शामिल हैं, इस समय बड़े बदलाव से गुजर रहा है. इसके केंद्र में है आइटी सर्विसेज क्षेत्र—जो सेक्टर का सबसे बड़ा नियोक्ता है—जहां 26 लाख लोग सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट, सिस्टम इंटीग्रेशन और इन्फ्रास्ट्रक्चर मैनेजमेंट जैसे क्षेत्रों में काम कर रहे हैं.

जीसीसी में 18 लाख लोग हैं, जबकि अमेजन, माइक्रोसॉफ्ट और मेटा जैसी आइटी प्रोडक्ट कंपनियों में 15 लाख लोग कार्यरत हैं. इसके अलावा बीपीएम (बिजनेस प्रोसेस मैनेजमेंट) या आइटी-इनेबल्ड सर्विसेज (आइटीईएस) सेगमेंट है, जो बैक-ऑफिस और कॉल सेंटर चलाता है. नैसकॉम का अनुमान है कि इस सेगमेंट में 14 लाख लोग काम करते हैं, हालांकि एक्सफेनो जैसे रिसर्चर उन्हें 'प्रॉपर टेक जॉब्स’ में शामिल नहीं करते. 

छंटनी का एक साफ कारण है भू-राजनैतिक उथल-पुथल. यूक्रेन और फलस्तीन युद्धों से पैदा हुई अनिश्चितताओं के साथ नवंबर 2024 में डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में दोबारा चुने जाने से वैश्विक बाजार हिल उठे. इससे क्लाइंट अपने खर्च में तेज कटौती शुरू कर चुके हैं.

नाम न बताने की शर्त पर एक शीर्ष कर्मचारी तलाश वाले ने बताया कि ट्रंप के दूसरी बार चुने जाने के कुछ दिनों के भीतर ही भारतीय आइटी कंपनियों ने सीनियर लीडरशिप स्तर पर सभी हायरिंग फ्रीज करने का निर्देश दे दिया. इन्फोसिस के संस्थापक तथा एक्सिलर वेंचर्स के चेयरमैन क्रिस गोपालकृष्णन कहते हैं, ''आइटी सेवा उद्योग को चीन को छोड़कर दुनिया की सभी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं से कमाई मिलती है. वैश्विक अर्थव्यवस्था में हलचल भारतीय आइटी सर्विसेज सेक्टर को प्रभावित करेगी.’’

एक और बड़ा बदलाव लाने वाली वजह है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ) का तेजी से विकास, खासकर लार्ज लैंग्वेज मॉडल (एलएलएम) तकनीकों का इस्तेमाल. विशाल टेक्स्ट और कोड डेटासेट पर प्रशिक्षित ये शक्तिशाली एआइ सिस्टम नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग के कई काम कर सकते हैं, जिससे उत्पादकता में बड़ा उछाल आता है.

इनका विकास इतना तेज है कि हर तीन-चार महीने में नए और बेहतर वर्जन आ रहे हैं. इसी बीच, कंपनियां अपने संगठनात्मक पुनर्गठन को अंतिम रूप देने तक एंट्री-लेवल भर्ती पर रोक लगा रही हैं. एक विशेषज्ञ के मुताबिक, ''पहले आइटी कंपनियों में पिरामिड जैसा ढांचा था; अब नया ढांचा ऊपर से पतला और बीच तथा नीचे से बेलनाकार होगा.’’

बहरहाल, टीसीएस की छंटनी ने हलचल मचा दी. उसने माना कि वह पहले से ही इस बदलाव के मुहाने पर है. कंपनी ने यह मानने से इनकार किया कि एआइ ने नौकरियां ले ली हैं. उन्होंने इसकी वजह बताई: स्किल्स में असमानता और मिड—तथा सीनियर—लेवल कर्मचारियों के लिए पुनर्नियोजन के अवसरों की कमी. टीसीएस के सीईओ के. कीर्तिवासन कहते हैं कि कंपनी पारंपरिक रैखिक और क्रमबद्ध 'वॉटरफॉल’ प्रोजेक्ट मैनेजमेंट पद्धति से हटकर ज्यादा चुस्त, प्रोडक्ट-केंद्रित मॉडल की ओर बढ़ रही है. इससे पारंपरिक प्रोजेक्ट और प्रोग्राम मैनेजरों की जरूरत घट रही है. उन्होंने एक बातचीत में कहा, ''पहले वॉटरफॉल मॉडल में कई लीडरशिप लेयर होती थीं. यह बदल रहा है.’’

आइटी उद्योग के अनुभवी और एआइ मुहैया करने वाले प्लेटफॉर्म एआइऑनओएस के सह-संस्थापक तथा वाइस चेयरमैन सी.पी. गुरनानी कहते हैं, ''कंपनियां वॉल्यूम से वैल्यू की ओर, हेडकाउंट-आधारित अप्रोच से आउटपुट-आधारित अप्रोच की ओर शिफ्ट हो रही हैं. अब आपको केवल रूटीन कोडर के रूप में नहीं, बल्कि बिजनेस को समझकर और उसमें बदलाव लाने में हिस्सा लेना होगा. इसका मतलब यह भी है कि स्किल डेवलपमेंट अब सिर्फ कोडिंग स्किल्स या पायथन और सी++ जैसी भाषाएं सीखने तक सीमित नहीं, बल्कि उसमें चुस्ती, डोमेन की समझ और उद्योग-विशेष उपयोग मामलों का ज्ञान शामिल है.’’

कौन डरता है एआइ से?
हर किसी की नौकरी खतरे में है. फर्क यह है कि आप इसके साथ कैसे एडजस्ट करते हैं,’’ बेंगलूरू में एक जीसीसी में काम करने वाले चालीसेक साल के एक टेक प्रोफेशनल ने तकनीकी बदलाव की रफ्तार को ऐसे बयान किया, जो सिर्फ उनके उद्योग को नहीं, बल्कि लगभग हर बिजनेस को बदल रही है. वे बताते हैं कि जब उन्होंने करियर शुरू किया था तब डेवलपर्स को सॉफ्टवेयर कोड शुरू से खुद लिखना पड़ता था.

इसके लिए वे स्टैक ओवरफ्लो जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करते थे, जहां प्रोग्रामर आपस में सहयोग करते और नॉलेज शेयर करते, जो कोडिंग में मददगार होता था. लेकिन नेचुरल लैंग्वेज इंटरफेस से लैस एलएलएम (लार्ज लैंग्वेज मॉडल्स) ने इस बुनियादी तरीके को बदल दिया. अब डेवलपर्स बस मशीन को बातचीत वाली अंग्रेजी में ''प्रॉक्वप्ट’’ देते हैं और उन्हें कोड मिल जाता है जिसे सीधे कॉपी-पेस्ट किया जा सकता है.

वे बताते हैं, ''इससे जिंदगी आसान हो गई है क्योंकि अब आपको शुरू से कोड नहीं लिखना पड़ता, बल्कि आपके लिए कस्टमाइज्ड बेसिक कोड पहले से तैयार होता है.’’ आज तो आप किसी मौजूदा कोड बेस को भी एआइ एप्लिकेशन से जोड़ सकते हैं और उससे कह सकते हैं कि वह उसमें खामियां ढूंढ़े. यह ऐसा काम है जो पहले डेवलपर का काफी समय खा जाता था. वे कहते हैं, ''लेकिन जहां अच्छा है, वहां बुरा भी है. अब उम्मीदें बढ़ गई हैं. ये एक छोर से सीधे दूसरे छोर पर पहुंच गई हैं.’’

इन नए कोडिंग असिस्टेंट में माइक्रोसॉफ्ट का गिटहब कोपायलट, एनीस्फेयर इंक का कर्सर, एंथ्रोपिक का क्लौड और विंडसर्फ शामिल हैं. विंडसर्फ एक कैलिफोर्निया स्थित स्टार्टअप है जिसके को-फाउंडर भारतीय मूल के अमेरिकी वरुण मोहन हैं. वे इस साल गर्मियों में गूगल में शामिल हो गए, जिसकी खूब चर्चा हुई. यह कदम जुलाई में 2.4 अरब डॉलर के डील का हिस्सा था. ठीक उसी समय ओपनएआइ ने इस एआइ कोडिंग स्टार्टअप को 3 अरब डॉलर में खरीदने की कोशिश की थी.

दरअसल, एआइ टूल्स की मार्केट में लॉन्च होने की रफ्तार इतनी तेज है कि टेक प्लेटफॉर्म हगिंग फेस पर, बकौल पहले वाले टेक प्रोफेशनल के, ''हर हफ्ते एक नया मॉडल आ जाता है.’’ वे कहते हैं, ''सिर्फ एक वीकेंड काफी है किसी नए एआइ मॉडल के लिए, जो पहले से अच्छा परफॉर्म कर रहे मॉडल को पीछे छोड़ दे.’’

एक एआइ और एनालिटिक्स कंपनी फ्रैक्टल के को-फाउंडर श्रीकांत वेलमाकणि कहते हैं, ''एआइ से कोड लिखने के लिए अब आपके पास कई तरह के विकल्प हैं.’’ उनके मुताबिक, एक सॉफ्टवेयर प्रोग्रामर की जिंदगी में तीन तरह की एक्टिविटीज होती हैं—कोड लिखना, क्लाइंट की जरूरतें समझने के लिए दूसरों के साथ कोलैबोरेट करना और बाकी काम जैसे ईमेल लिखना वगैरह. ''अब उम्मीद यह है कि अगर मैं 100 घंटे में सॉफ्टवेयर प्रोग्रामिंग करता हूं, तो वही काम 75 घंटों में कर पाऊं.’’

वेलमाकणि का मानना है कि ''कोई भी नौकरी पूरी तरह खत्म नहीं होगी,’’ बल्कि भविष्य में उनके 30-50 फीसद हिस्से का ऑटोमेशन हो जाएगा. ''इसका मतलब है कि जो काम आप पहले कर रहे थे, वह आधे समय में हो जाएगा. साथ ही, दुनिया को तकनीक की जरूरत और बढ़ती जाएगी. असल में, दुनिया 'टेकिफाइ’ हो रही है.’’

वे आंकड़े पेश करते हैं, जिसके मुताबिक 10 साल पहले कंपनियां अपने बजट का 3 फीसद तकनीक पर खर्च करती थीं, जो आज 4.5 फीसद हो गया है. वे कहते हैं, ''इसलिए, टेक नौकरियां शायद कम न हों लेकिन व्यक्तिगत स्तर पर हर किसी को खुद को ज्यादा काबिल और 'बिलेबल’ बनाना होगा. हमें सोचना होगा कि इतनी तेजी से बदलते उद्योग में प्रासंगिक कैसे बने रहें.’’

'बिलेबल’ फैक्टर
इस बदलाव में एक अहम फैक्टर है 'बिलेबिलिटी’. बिलेबिलिटी का मतलब है कि क्लाइंट किसी प्रोफेशनल के समय की एवज में कितना भुगतान करने को तैयार है. ज्यादातर आइटी सर्विसेज में किसी एग्जीक्यूटिव का प्रति घंटे का बिलिंग रेट, घंटों की संख्या से गुणा करके किसी प्रोजेक्ट की लागत तय होता है.

सीनियर स्टाफ की कॉस्ट बेस ज्यादा होती है लेकिन वे हमेशा उतने ''बिलेबल’’ नहीं होते. वेलमाकणि कहते हैं, ''अगर कोई बिलेबल नहीं है तो इसका मतलब है कि उसे उस प्रोजेक्ट टीम की लिस्ट में शामिल करना मुश्किल होगा, जिसका समय क्लाइंट से चार्ज किया जाएगा. ऐसे लोग कॉस्ट का हिस्सा तो बनते हैं लेकिन रेवेन्यू का नहीं.’’ उनका कहना है कि दो फीसद वर्कफोर्स की छंटनी करके टीसीएस ने बाकी 98 फीसद को यह संदेश दिया है कि खुद को बिलेबल बनाएं.

लेकिन यह सीधी-सी अर्थव्यवस्था की बात उन लोगों के लिए कोई दिलासा कतई नहीं जिन्हें नौकरी से निकाल दिया गया है. नैसेंट इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एमप्लॉईज सीनेट (एनआइटीईएस) के प्रेसिडेंट हरप्रीत सलूजा, जो आइटी कर्मचारियों के अधिकारों और कल्याण से जुड़े मुद्दों को उठाते हैं, आइटी कंपनियों की 'भर्ती और छंटनी के दुष्चक्र’ की ओर इशारा करते हैं. उनका कहना है, ''एंट्री-लेवल सैलरी पिछले एक दशक से करीब 3.5 लाख रुपए सालाना पर अटकी हुई है.

कोई कंपनी 10 लाख रुपए पैकेज पाने वाले कर्मचारी को निकालकर दो फ्रेशर्स रख सकती है और नई भर्ती पर टैक्स में भी छूट पा सकती है.’’ टीसीएस ने कहा कि वह मिड से सीनियर-लेवल मैनेजमेंट की छंटनी कर रही है. लेकिन सलूजा बताते हैं कि कंपनी पहले ही इस वित्त वर्ष में 40,000 फ्रेशर्स भर्ती करने का ऐलान कर चुकी है. ''अगर वे 40,000 लोगों को भर्ती कर सकते हैं तो 12,000 अनुभवी लोगों को क्यों निकाल रहे हैं?” वे यह भी कहते हैं कि लेटरल हायरिंग से जिन उम्मीदवारों को ऑफर मिला था, उन्हें अभी तक जॉइन नहीं कराया गया है. इसे लेकर एनआइटीईएस ने श्रम मंत्रालय से शिकायत की है.

आइटी इंडस्ट्री बॉडी नैसकॉम के पूर्व प्रेसिडेंट आर. चंद्रशेखर कहते हैं, ''एआइ बहुत-से कामों में अहम भूमिका निभाएगा, जिनमें कॉग्निटिव स्किल्स वाले काम भी शामिल हैं, जो पहले कभी नहीं हुआ.’’ उनके मुताबिक, यह बदलाव इंसानों की तरह एडजस्ट और अडॉप्ट करने की दिशा में है. सभी क्लाइंट अभी एआइ से पूरी तरह वाकिफ नहीं, और उनके अपने प्रोसेस में इसका इस्तेमाल धीरे-धीरे ही होगा लेकिन वे अपने आइटी सर्विस वेंडर से जरूर जानना चाहेंगे कि एआइ के इस्तेमाल से किस तरह मुनाफा बढ़ सकता है.

वे कहते हैं, ''एआइ के आने से पहले भी बहुत-सा ऑटोमेशन हो रहा था लेकिन एआइ ने इस प्रक्रिया को तेज कर दिया है और उन कामों तक फैल गया है जिनका पहले ऑटोमेशन नहीं हो रहा था या जिन पर विचार नहीं हो रहा था.’’ साथ ही, बिजनेस की अनिश्चितताओं के बीच कंपनियां आइटी प्रोवाइडर को ज्यादा एआइ इस्तेमाल करने और कम लागत में बेहतर रिजल्ट देने के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं.

वे यह भी कहते हैं, ''कंपनियां पहले जैसी सर्विस कम दाम में चाहती हैं या फिर उसी कीमत पर बड़ी सर्विस बास्केट.’’ सी.पी. गुरनानी का मानना है कि कंपनियां एआइ को लेकर सतर्क रहेंगी. वे कहते हैं, ''घर में इस्तेमाल होने वाली टेक्नोलॉजी काम पर इस्तेमाल होने वाली टेक्नोलॉजी से कहीं आगे है. कॉर्पोरेट (एआइ टूल्स के जरिए) विभिन्न स्रोतों से आने वाले डेटा को लेकर सावधान रहते हैं. वे (उन इन्फॉर्मेशन को) तभी इस्तेमाल करेंगे जब उन्हें को-एलायंसेज, सिक्योरिटी और रेग्युलेटरी पहलुओं पर भरोसा होगा.’’

आइटी कंपनियां दुनिया के सबसे जटिल बिजनेस सिस्टम चलाने वाली टेक्नोलॉजी हैंडल करती हैं, जैसे एयरपोर्ट ऑपरेशन या पासपोर्ट सर्विस. फ्रैक्टल के श्रीकांत वेलमाकणि कहते हैं, ''पहले एसएपी या डेटा वेयरहाउस या माइक्रोसॉफ्ट और सेल्सफोर्स जैसी टेक्नोलॉजी में एक्सपर्ट होना किसी संगठन के सिस्टम और डेटा को इंटीग्रेट कर के काम चलाने के लिए काफी था. अब यह स्टैक नए टूल्स और तकनीकों, खासकर एआइ की ओर शिफ्ट हो गया है.’’

आजकल जिन टूल्स की मांग है, उनमें क्लाउड डेटा प्लेटफॉर्म कंपनी स्नोफ्लेक, एआइ एंटरप्राइज सॉल्यूशन फर्म डेटाब्रिक्स, अमेजन का मशीन लर्निंग प्लेटफॉर्म एडब्ल्यूएस सेजमेकर और हगिंग फेस है, जो मशीन लर्निंग को आसान बनाता है. मिड और सीनियर-लेवल आइटी वर्कर्स को अब माइक्रोसॉफ्ट एसक्यूएल सर्वर या ओरैकल जैसी स्किल्स की बजाए ये नए टूल्स आने चाहिए और एआइ के साथ कोडिंग सीखनी होगी. उतना ही जरूरी है एपीआइ (ऐप्लिकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस) में स्किल, जो अलग-अलग सॉफ्टवेयर एप्लिकेशन्स को आपस में कनेक्ट करते हैं. आइटी प्रोफेशनल को इन नए फाउंडेशन मॉडल्स को अपने प्रोडक्ट में इंटीग्रेट करना होगा, ताकि असर और बढ़ सके.

भारतीय हुनर की बड़ी खाई
अब टीसीएस जैसी कंपनियों को एहसास हो रहा है कि उनके पास ऐसे लोगों की संख्या ज्यादा है जिनकी स्किल धीरे-धीरे बेकार हो रही है और नई टेक्नोलॉजी वाली स्किल रखने वाले लोग कम हैं. यही हुनर की खाई की असली वजह है. हर कोई अपस्किल करने में सक्षम या इच्छुक नहीं होता. यही वजह है कि टीसीएस से निकाले गए कर्मचारियों में ज्यादातर 30-40 साल की उम्र के हैं. इनमें कई वर्षों से 'लीगेसी’ वर्क ही कर रहे थे.

लेकिन आइटी नौकरियों की प्रकृति में बदलाव लाने वाला सिर्फ एआइ ही नहीं है. कैटालिंक्स के पार्टनर और कॉग्निजेंट इंडिया के पूर्व चेयरमैन तथा एमडी रामकुमार राममूर्ति कहते हैं, ''लोग जहां ज्यादा फोकस एआइ से होने वाले बदलाव पर कर रहे हैं, वहीं दो और अहम फैक्टर हैं—पहला, जीसीसी के जरिए इनसोर्सिंग, और दूसरा, बड़ी आइटी कंपनियों के पास पुराने सिस्टम का भारी बोझ, जैसे मेनफ्रेम और क्लाइंट-सर्वर, जिनकी मेंटेनेंस, टेस्टिंग और इन्फ्रास्ट्रक्चर सपोर्ट की जरूरत पड़ती है.’’

आज इन कंपनियों की बड़ी कमाई 'रन-द-बिजनेस’ वर्क से हो रही है, न कि ट्रांसफॉर्मेशनल 'चेंज-द-बिजनेस’ काम से. राममूर्ति के मुताबिक, पहले बदलाव एक समय में एक बड़ी तकनीक के साथ आते थे—जैसे मेनफ्रेम, क्लाइंट-सर्वर, इंटरनेट, मोबाइल आदि—जहां एक बार का बदलाव होता था और लंबे समय तक स्थिरता रहती थी. लेकिन अब एक साथ कई टेक्नोलॉजी हैं: क्लाउड, एनॉलिटिक्स, साइबरसिक्योरिटी, एआइ, आइओटी, ब्लॉकचेन, 3डी प्रिंटिंग और क्वांटम. वे कहते हैं, ''इतनी तेजी से बदलाव आने से चुनौतियां और बढ़ गई हैं.’’

चुनौती का सामना
बदलते हालात में कंपनियां और नौकरी चाहने वाले कैसे आगे बढ़ें? भारतीय आइटी कंपनियां तेजी से नए माहौल के साथ खुद को ढाल रही हैं. मसलन, विप्रो ने कहा कि सभी कर्मचारियों ने 'फाउंडेशनल जेनएआइ ट्रेनिंग’ पूरी कर ली है, और 87,000 से ज्यादा ने अपने-अपने डोमेन के मुताबिक रोल-विशिष्ट प्रोग्राम पूरे किए हैं. कंपनी ने वित्त वर्ष 25 की वार्षिक रिपोर्ट में कहा, ''हम 2.3 लाख से ज्यादा कर्मचारियों में एआइ-फर्स्ट माइंडसेट और जरूरी एआइ स्किल्स तथा टूल्स विकसित करके एक एआइ-रेडी वर्कफोर्स बना रहे हैं.

हमने बिजनेस और टेक्निकल एसोसिएट के लिए 50 से ज्यादा एआइ लर्निंग पाथवे बनाए हैं’’ हमारी डिलिवरी टीमों में 20,000 से ज्यादा एसोसिएट एआइ डेवलपर टूल्स का इस्तेमाल कर रहे हैं ताकि प्रोडक्टिविटी बढ़े.’’

इन्फोसिस ने भी अपने डिजिटल रीस्किलिंग प्रोग्राम में लेटेस्ट जेनएआइ कोर्स जोड़े हैं. कंपनी के मुताबिक, उसके 2.7 लाख (83 फीसद) कर्मचारी अब ''एआइ-अवेयर’’ हैं. वित्त वर्ष 25 की वार्षिक रिपोर्ट में इन्फोसिस ने बताया कि उसने अपने जेनरेटिव और एजेंटिक एआइ-पावर्ड प्लेटफॉर्म 'इन्फोसिस टोपाज’ के जरिए 400 से ज्यादा जेनएआइ प्रोजेक्ट डिलिवर किए हैं, जिसमें बैंकिंग, आइटी ऑपरेशंस, साइबर और एंटरप्राइज के लिए चार स्मॉल लैंग्वेज मॉडल भी बनाए गए.

गोपालकृष्णन कहते हैं, ''भारतीय आइटी इंडस्ट्री 80 के दशक से ही टेक्नोलॉजी बदलावों के साथ खुद को ढालती रही है—मेनफ्रेम से लेकर यूनिक्स, पीसी, इंटरनेट, मोबाइल, सोशल नेटवर्क तक. यह उद्योग शून्य से 300 अरब डॉलर तक पहुंचा है. इसके पास मजबूत बैलेंस शीट, मुनाफे देने वाला बिजनेस, अनुभवी मैनेजमेंट, वफादार ग्राहक हैं, और यह कई मंदियों से निकल चुका है. मुझे यकीन है कि यह इस बार भी टिका रहेगा.’’ जानकारों का मानना है कि कंपनियों को पुराने लीगेसी फ्रेमवर्क को छोड़कर छोटी, रिजल्ट-ओरिएंटेड टीम, एआइ ऑटोमेशन और क्लाउड-नेटिव डिलिवरी अपनानी होगी. उन्हें प्रोडक्ट-लेड, प्लेटफॉर्म-फर्स्ट स्ट्रैटेजी पर शिफ्ट होना पड़ेगा वरना अप्रासंगिक होने का खतरा है.

राममूर्ति का मानना है कि कंपनियों को ग्रोथ के मौकों में हिस्सेदारी लेने के लिए दो चीजें करनी होंगी—तेजी से अनुकूल होना और मुनाफे को दोबारा बिजनेस में निवेश करना. ''अब हमें एक साथ कई रेस दौड़नी हैं, इसलिए पहले से कहीं ज्यादा निवेश की जरूरत है.’’ कंपनियों को साहसिक और अनोखे फैसले करने होंगे, जैसे जरूर पड़ने पर अपने ही पुराने रेवेन्यू मॉडल को बदलना, और निवेश के जरिए आगे बढ़ना.

टीसीएस जैसी कंपनियां पारंपरिक एआइ ऑफरिंग को मजबूत करने के लिए रणनीतिक पार्टनरशिप कर रही हैं, जैसे एआइ फर्म वियनाइ सिस्टम्स के साथ समझौता. राममूर्ति कहते हैं, ''जब मार्केट में स्ट्रक्चरल बदलाव आ रहे हों तो पुराने ऑपरेटिंग मॉडल में अटकना मुमकिन नहीं है. अब हर इंडस्ट्री के बिजनेस, ऑपरेटिंग और फाइनेंशियल मॉडल को फिर से सोचना होगा. यही वजह है कि एआइ सिर्फ एक टूल नहीं, बल्कि एक स्ट्रक्चरल फोर्स है. कंपनियों को सिर्फ रीस्किलिंग-अपस्किलिंग से आगे बढ़कर निवेश करना होगा.’’

गोपालकृष्णन का मानना है कि एंट्री-लेवल कर्मचारियों को एआइ टूल्स पर ट्रेनिंग देनी चाहिए. विश्वविद्यालयों ने इन टूल्स को कोर्स में शामिल करना शुरू किया है लेकिन फैकल्टी को प्रशिक्षित करने और नई टीचिंग पद्धति बनाने में समय लगेगा. उन्हें ऐसे असाइनमेंट देने होंगे जिनमें छात्र एआइ टूल्स का इस्तेमाल करें और उनका मूल्यांकन उसी आधार पर हो. तेज टेक्नोलॉजी बदलाव की वजह से स्किल गैप बना रहेगा.

पहले बताए गए हेडहंटर के मुताबिक, सीखना ''दोहरी जिक्वमेदारी’’ है, ''एक प्रोफेशनल के तौर पर मुझे खुद भी अपग्रेड और अपस्किल करना है, न कि सिर्फ कंपनी की ट्रेनिंग पर निर्भर रहना है.’’ आज 'बैकएंड’ जैसी कोई चीज नहीं है; हर किसी को ऐसे कौशल चाहिए जो उसे समग्र बनाएं. बदलाव रुकने वाला नहीं है लेकिन सीखने के मौके भी उतनी ही तेजी से बढ़ रहे हैं.

गुरनानी कहते हैं, ''मेरा मानना है कि 'लर्निंग टू लर्न’ ही असली फर्क पैदा करेगा. नए तरीकों से सोचना, सीखना, पुराना छोड़ना और ज्ञान को प्रभावी ढंग से लागू करना जरूरी है. टूल्स आपको बताएंगे कि क्या करना है लेकिन बड़ा बिजनेस बनाने के लिए उद्यमशील प्रवृत्ति जरूरी है.’’

भारतीय आइटी सेक्टर अब भी मजबूत है लेकिन उसे बदलाव की रफ्तार के साथ कदम मिलाकर चलना होगा. कंपनियों को तकनीकी उथल-पुथल के बीच खुद को ढालना होगा. इसके अलावा आइटी जॉब चाहने वालों और वर्कर्स को समझना होगा कि उनकी पुरानी 'प्राइस्ड’ जॉब अब पूरी तरह बदल चुकी है या किसी नए रूप में आ चुकी है और उसके लिए उन्हें खुद को बदलना होगा. नहीं तो छंटनी में बाहर होना पड़ेगा.

 - अजय सकुमारन

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