क्यों अदाणी के करियर का सबसे बड़ा दांव है धारावी?
दिग्गज कारोबारी गौतम अदाणी एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी बस्ती को नई शक्ल दे पाएंगे? इससे अदाणी को 84,000 करोड़ रुपए का मुनाफा हो सकता है

धारावी की लातूर गली से गुजरना किसी कमजोर दिल वाले के बस की बात नहीं. बसवराज स्वामी के 70 वर्ग फुट के घर तक पहुंचने के लिए लोहे की बीम पार करनी पड़ती हैं, फुटपाथ के नाम पर नालियों के ऊपर चलकर ऐसी गलियों से गुजरना पड़ता है, जिसमें बमुश्किल एक आदमी ही निकल सकता है. स्वामी (58 वर्ष) यहां अपने परिवार के आठ सदस्यों के साथ रहते हैं, और यह तो कल्पना से ही परे है कि बिना हवा और रोशनी वाले कमरे में इतने लोग रहते कैसे हैं.
रात में वे बेड के नीचे सोते हैं, जबकि बेटी स्वानंदी उसके ऊपर लेटती है. उनकी बुजुर्ग मां जमीन पर चटाई बिछाकर लेट जाती हैं. परिवार के अन्य सदस्य लोहे की सीढ़ियों के सहारे छोटी-छोटी अटारी में जाकर लेट जाते हैं, और मुख्य दरवाजा बंद रहता है. अंधेरा होते ही चूहे ऊधम मचाना शुरू कर देते हैं.
यह सब शहरी गरीबी की एक तस्वीर भर नहीं है, बल्कि हर रोज अपमानित जीवन गुजारने की कहानी बयां करता है. ऐसी कहानी जिसमें 15 परिवार एक ही नल से पानी लेते हैं, और 250 लोगों को एक ही शौचालय से काम चलाना पड़ता है. एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी बस्ती कही जाने वाली धारावी में लगभग 12 लाख लोग रहते हैं, जो मुंबई की अनुमानित आबादी (1.3 करोड़) का दसवां हिस्सा है.
यहां आबादी इतनी घनी है कि एक वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में करीब 4,00,000 लोग रहते हैं, जबकि मुंबई में यह आंकड़ा औसतन 28,000 है (इसके मायने है कि धारावी का एक आदमी 535 फुट जगह में जीता है, जबकि बाकी मुंबई में औसत प्रति व्यक्ति 19319 वर्ग फुट का है, यानी करीब 15 गुना ज्यादा). स्वामी परिवार की तरह धारावी में रहने वाले ज्यादातर लोग प्रवासी हैं और दशकों से बदलाव की आस में जीवन बिता रहे हैं.
शायद बदलाव की वह घड़ी आखिरकार आ गई है. या फिर कहें कि देश के सबसे चर्चित उद्योगपति गौतम अदाणी ने ऐसा वादा किया है. उन्होंने इस घनी, अव्यवस्थित बस्ती को आधुनिक शहरी जीवन वाले मॉडल में बदलने के लिए 2.5 लाख करोड़ रुपए का भारी-भरकम दांव लगाया है. नवभारत मेगा डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड (एनएमडीपीएल) नाम की विशेष प्रयोजन इकाई के जरिए चलने वाली धारावी पुनर्विकास परियोजना (डीआरपी) को दुनिया की सबसे महत्वाकांक्षी शहरी नवीनीकरण कवायदों में से एक बताया जा रहा है.
इसमें अदाणी समूह की 80 फीसद हिस्सेदारी है और 20 फीसद महाराष्ट्र सरकार के हाथ में है. यह महज व्यावसायिक परियोजना भर नहीं, बल्कि इस बात की परीक्षा भी है कि क्या निजी पूंजी से वह सब संभव हो सकता है, जो दशकों से सार्वजनिक नीतियां नहीं कर पाईं? क्या इससे एक ऐसे शहरी क्षेत्र के पुनर्वास और पुनर्निर्माण की कल्पना साकार हो पाएगी जो देश में किसी भी अन्य क्षेत्र की तुलना में प्रतीकात्मक तौर पर ज्यादा मायने रखता है.
खासकर इसलिए क्योंकि पुनर्विकास में दो दशकों से जारी बोली प्रक्रिया शामिल है, जो पुनर्विकास परियोजना के लिहाज से सबसे लंबी अवधि है. मई में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इसके पुनर्विकास के मास्टर प्लान को मंजूरी दी थी. मुख्यमंत्री ने धारावी वासियों को भरोसा दिलाया, ''सभी पात्र झुग्गीवासियों और कारोबार का पुनर्वास धारावी में ही होगा.’’
इसमें बहुत कुछ दांव पर लगा होना लाजिमी है. धारावी की 621 एकड़ जमीन मुंबई के लिए भावनात्मक और राजनैतिक मुद्दा है. हालांकि पुनर्विकास के लिए सिर्फ 269.3 एकड़ यानी 43.4 फीसद जमीन ही मुहैया कराई जाएगी. इसमें 116.6 एकड़ में पुनर्वास और नवीनीकरण के लिए 5.17 करोड़ वर्ग फुट में आवास, वाणिज्यिक और औद्योगिक ठिकाने बनेंगे. अन्य 118.5 एकड़ विकास योग्य भूमि पर खुले बाजार में बिक्री के लिए कुल 6.94 करोड़ वर्ग फुट की अचल संपत्ति उपलब्ध हो सकती है.
किफायती घर, नवीनीकरण, बुनियादी ढांचे और सुविधाओं समेत पुनर्वास की इस प्रक्रिया को सात साल यानी 15 जनवरी, 2032 तक पूरा किया जाना है. बाजार बिक्री के लिए 25 वर्षों की समयसीमा है, जो मांग और आपूर्ति के आधार पर बढ़ सकती है. अदाणी धारावी में रिहाइशी पुनर्वास और इससे इतर प्रस्तावित नवभारत टाउनशिप परियोजना में 95,790 करोड़ रुपए का निवेश करेंगे. मुक्त बिक्री वाले हिस्से समेत परियोजना की कुल लागत 2.5 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा है.
इस परियोजना के तहत करीब 1,25,000 नई रिहाइशी, इंडस्ट्रियल और कमर्शियल इकाइयों का निर्माण होना है, जिनमें 1,05,000 आवास होंगे, उनमें 58,532 का आकार 350 वर्ग फुट का होगा. उन्हें 1 जनवरी, 2000 या उससे पहले धारावी में भूतल पर रहने वाले लोगों के लिए उसी जगह निर्मित किया जाएगा.
धारावी के बाहर 300 वर्ग फुट की अन्य इकाइयां बनेंगी, जिन्हें 1 जनवरी, 2000 से 1 जनवरी, 2011 के बीच भूतल पर बसे लोगों को 2.5 लाख रुपए की रियायती दर पर दिया जाएगा. एक तीसरी श्रेणी भी है, जिसका आकार भी 300 वर्ग फुट होगा और जो ऊपरी मंजिलों पर बसे लोगों या फिर 1 जनवरी, 2011 से 15 नवंबर, 2022 के बीच धारावी में रहने वालों के लिए किराए-खरीद के आधार पर दिया जाएगा.
इस योजना में 20,000 वाणिज्यिक/औद्योगिक इकाइयों का निर्माण करना भी है, जो उन्हें मिलेंगी जिनके पास 15 नवंबर, 2022 या उससे पहले धारावी में मौजूद होने का प्रमाण होगा. 1 जनवरी, 2000 से पहले भूतल पर स्थापित व्यवसायों को 225 वर्ग फुट की इकाइयां नि:शुल्क मिलेंगी. सरकारी दरों पर अतिरिक्त जगह खरीदने का विकल्प भी होगा. बाकी लोगों के लिए किराए-खरीद के आधार पर इकाइयां उपलब्ध होंगी.
शहर के भीतर शहर
धारावी देशभर से पैसा कमाने के लिए मुंबई आने वाले प्रवासियों को हमेशा से आकर्षित करती रही है, जिन्होंने अपनी झोपड़ियां बनाने या छोटे-मोटे व्यवसाय जमाने के लिए दलदली भूमि को अपना ठिकाना बना लिया. इसी तरह मुंबई की सबसे पुरानी झुग्गी बस्ती की नींव पड़ी थी. उन्नीस सौ सत्तर और अस्सी के उथल-पुथल भरे दशक में भी यहां अनौपचारिक व्यवसाय फलते-फूलते रहे, जब इस इलाके में दिवंगत अंडरवर्ल्ड डॉन वरदराजन मुदलियार जैसे अपराधियों का दबदबा था.
लेकिन 1990 के दशक में धारावी अनौपचारिक आर्थिक केंद्र के तौर पर विकसित होने लगा, जिसका अनुमानित वार्षिक कारोबार तकरीबन 1 अरब डॉलर (8,623 करोड़ रुपए) है. यहां करीब 6,27,292 वर्ग मीटर के विशाल क्षेत्रफल में उत्पादन, खुदरा और वाणिज्यिक इकाइयां ही नहीं, एक कमरे वाले कारखाने तक चल रहे हैं, जो कपड़े, विग, गमले, दीये से लेकर चमड़े की चीजों तक सब कुछ बनाते हैं. बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) के नगर उपायुक्त किरण दिघावकर कहते हैं कि धारावी में सब कुछ व्यवसाय ही है. उनके मुताबिक, ''धारावी झुग्गियों का मालाबार हिल है. यहां पर धर्म और जाति केवल एक ही है, पैसा.’’
पुनर्विकास कार्यों के प्रभारी डीआरपी सीईओ एस.वी.आर. श्रीनिवास कहते हैं कि यह बदलाव बेमिसाल है. इस आइएएस अधिकारी के मुताबिक, ''धारावी पारंपरिक मलिन बस्ती पुनर्विकास प्राधिकरण (एसआरए) परियोजनाओं की तुलना में हर लिहाज से अलग है.
हम एक शहर के भीतर ही नया शहर बसा रहे हैं, सिर्फ कुछ इमारतें नहीं...बल्कि यह तो पुनर्विकास परियोजनाओं में सबसे ज्यादा पुनर्विकसित की जाने वाली परियोजना, दुनिया की सबसे बड़ी शहरी नवीनीकरण परियोजना है.’’ पुनर्विकास चरणबद्ध तरीके से तैयार किया गया है, जिसमें निवासियों को अस्थायी घरों में भेजने की ज्यादा जरूरत नहीं पड़ेगी. इसके बजाय उन्हें सीधे स्थायी आवासों में भेजा जा सकेगा.
स्वामी जैसे बाशिंदों के लिए यह प्रस्ताव आकर्षक है, उनके लिए तो नल का पानी और दो शौचालय वाला मुफ्त घर मौजूदा समय में बेड के नीचे सोने के अनुभव से एकदम अलग होगा. अदाणी को भी इसमें बड़ा लाभ मिलने के आसार हैं. धारावी पुनरुद्धार परियोजना से मुंबई के मध्य में प्रमुख रियल एस्टेट के लिए संभावनाओं का द्वार खुल सकता है. 2.5 लाख करोड़ रुपए की परियोजना शहर को एकदम नया आयाम दे सकती है और राष्ट्रीय स्तर पर बुनियादी ढांचा निर्माण को लेकर उसकी छवि और मजबूत कर सकती है.
समूह के अध्यक्ष गौतम अदाणी जोर देते हैं कि यह सिर्फ पैसे कमाने का मामला नहीं है. वे कहते हैं, ''हमारा धारावी सोशल मिशन कौशल, स्वास्थ्य सेवा और रोजगार अवसरों के जरिए युवाओं को आगे बढ़ाने का काम करेगा. 10 लाख से ज्यादा लोग तंग गलियों से निकलकर ऐसी टाउनशिप में पहुंच जाएंगे, जहां खुली हवा में सांस लेने का मौका मिलेगा, दो शौचालय उपलब्ध होंगे. साथ ही स्कूल, अस्पताल, परिवहन और पार्क जैसी सुविधाएं भी होंगी.’’
अलबत्ता, अदाणी के लिए जोखिम भी कम नहीं. इस उद्योगपति ने दुनिया की सबसे जटिल शहरी पुनरुद्धार परियोजनाओं में से एक में अपनी प्रतिष्ठा दांव पर लगा रखी है. धारावी महज एक झुग्गीबस्ती नहीं, बल्कि असंगठित आवासों, छोटे-मोटे उद्योगों, प्रवासी समुदायों और दशकों से जड़ें जमाए सामाजिक ताने-बाने का जीवंत तंत्र है. जरा-सी भी असंवेदनशीलता दिखाने या वादों से पलटने पर प्रतिक्रिया की गूंज धारावी से कहीं आगे तक सुनाई देगी.
एनरॉक प्रॉपर्टी कंसल्टेंट्स प्राइवेट लिमिटेड के रीजनल डायरेक्टर तथा रिसर्च ऐंड एडवाइजरी प्रमुख प्रशांत ठाकुर कहते हैं कि पुनर्वास, कानूनी और सियासी अड़चनों से निबटने, सीवरेज, सड़क और जलापूर्ति जैसे बुनियादी ढांचे को व्यवस्थित ढंग से उन्नत बनाने और आधुनिक शहरी मानदंडों के साथ आजीविका संरक्षण को संतुलित करने में लॉजिस्टिक और सामाजिक स्तर पर काफी काम करने की जरूरत पड़ती है. उन्होंने हल्के-फुल्के अंदाज में उन्हें ''नाजुक चुनौतियां’’ बताते हुए कहा कि समयसीमा जरा-भी पटरी से उतरी तो लागत बढ़ने लगेगी.
अदाणी के अधिकारियों ने खुले बाजार में बिक्री संबंधी परियोजनाओं के विवरण पर चुप्पी साध रखी है. उनका कहना है कि उनकी प्राथमिकता 2032 तक धारावी की झुग्गियों में रहने वालों का पुनर्वास करना है. आवास के लिए चिह्नित अन्य जगहों पर पुनर्वास के लिए 10 करोड़ वर्ग फुट जमीन का उपयोग किया जाएगा. साथ ही, मुफ्त/खुले बाजार में बिक्री के लिए 14 करोड़ वर्ग फुट एफएसआइ (फ्लोर स्पेस इंडेक्स) और टीडीआर (हस्तांतरणीय विकास अधिकार) भी उपलब्ध होंगे.
जानकारों का मानना है कि धारावी में जमीन के दाम अगले दो दशकों में कई गुना बढ़ सकते हैं, जो अभी औसतन करीब 12,000 रुपए प्रति वर्ग फुट हैं और प्राइम प्रॉपर्टी के मामले में 75,000 रुपए प्रति वर्ग फुट तक है. देश के सबसे महंगे व्यावसायिक ठिकानों में से एक बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स (बीकेसी) में जायदाद की कीमतें 60,000 से 86,000 रुपए प्रति वर्ग फुट के बीच हैं.
नाम न छापने की शर्त पर एक रियल एस्टेट जानकार का कहना था कि निर्माण परियोजना का रिटर्न इक्विटी पर औसतन 15-30 फीसद होता है, जो लगने वाले समय, एफएसआइ और स्थान पर निर्भर करता है. उन्होंने कहा कि अगर सामाजिक/राजनीतिक कारणों से पुनर्वास और बिक्री में देरी होती है तो रिटर्न घट सकता है. एक अन्य सलाहकार का अनुमान है कि खुले बाजार में 14 करोड़ वर्ग फुट जमीन बेचने से अदाणी को 5.6 लाख करोड़ रुपए का राजस्व आ सकता है और 15 फीसद के लाभ मार्जिन के हिसाब से यही कोई 84,000 करोड़ रुपए का मुनाफा हो सकता है.
विवाद और सवाल
मगर यह परियोजना विवादों से अछूती नहीं है. सबसे पहला तो यही है कि अदाणी समूह को धारावी का ठेका कैसे मिला? फरवरी 2019 में यूएई स्थित सेकलिंक टेक्नोलॉजीज कॉर्पोरेशन ने 7,200 करोड़ रुपए की बोली लगाकर अदाणी समूह को पीछे कर दिया था, जिसकी बोली 4,539 करोड़ रुपए की थी. फिर महाराष्ट्र सरकार ने झुग्गीवासियों के पुनर्वास के लिए रेलवे की 45 एकड़ जमीन का इस्तेमाल करने का फैसला किया और उसे परियोजना में शामिल कर दिया.
इससे परियोजना का दायरा बदल गया, तो सरकार ने नई बोलियां आमंत्रित कीं. तब तक तीन साल बीत चुके थे. अक्तूबर 2022 में अदाणी प्रॉपर्टीज ने 5,069 करोड़ रुपए की बोली लगाकर ठेका हासिल कर लिया. बंबई हाइकोर्ट ने राज्य सरकार के फैसले के खिलाफ सेकलिंक की याचिका खारिज कर दी. मामला सुप्रीम कोर्ट में है, जिसने रोक नहीं लगाई.
उधर, धारावी के बाहर पुनर्वास के मामले में भी गंभीर सवाल उठ रहे हैं. अदाणी समूह को किफायती किराए के आवास बनाने और खुले बाजार में बिक्री के लिए मुंबई में कई जगह 541.2 एकड़ जमीन दी जा रही है. दक्षिण मध्य मुंबई के सांसद, शिवसेना यूबीटी नेता अनिल देसाई कहते हैं कि राज्य में कभी किसी भी बिल्डर के लिए ''ऐसी दरियादिली’’ नहीं दिखाई गई. ये जमीनें कुर्ला डेयरी (21 एकड़), जमासप साल्ट पैन (58.5 एकड़), देवनार डंपिंग ग्राउंड (124.3 एकड़), अक्सा और मालवणी (124.3 एकड़), आर्थर साल्ट वर्क्स (120.5 एकड़) और जेनकिंस साल्ट वर्क्स (76.9 एकड़) में हैं.
''जमीन हड़पने’’ के आरोप भी उछले हैं. वजह यह है कि किफायती रिहाइश और जमीन के भारी टोटे वाले शहर में एनएमडीपीएल को सर्कल रेट के 25 फीसद पर जमीन दी जा रही है. मसलन, अब बंद हो चुकी कुर्ला डेयरी की 21 एकड़ जमीन के लिए अदाणी को सिर्फ करीब 58 करोड़ रुपए देने होंगे. यह एसपीवी को दिए गए कई तरह के तोहफों के अलावा है. उन तोहफों में डीआरपी और रेलवे भूमि विकास प्राधिकरण (आरएलडीए) के बीच 30 साल के लीज करार के लिए 45 करोड़ रुपए की स्टांप ड्यूटी माफी भी है.
बीएमसी ने देवनार डंपिंग ग्राउंड से 1.85 करोड़ टन कचरे को बॉयोमाइनिंग तकनीक के जरिए साफ करने के खातिर 2,368 करोड़ रुपए की परियोजना भी शुरू की है, ताकि जमीन इस्तेमाल में लाई जा सके. स्थानीय निकाय यहां की कुल 260 एकड़ में से सिर्फ 136 एकड़ जमीन ही अपने पास रखेगा, बाकी धारावी पुनर्विकास परियोजना में चली जाएगी.
हालांकि सूत्रों का जोर है कि जमीन की मिल्कियत डीआरपी (यानी राज्य सरकार) के नाम ही रहेगी, धारावी पुनर्विकास परियोजना के लिए कोई भी आवंटित भूमि सीधे अदाणी के नाम नहीं की जाएगी. इस बीच, महाराष्ट्र सरकार के एक और कदम पर लोगों की भौंहें तन गई हैं कि जो डेवलपर विकास अधिकारों का हस्तांतरण (टीडीआर) करना चाहते हैं, उन्हें धारावी परियोजना से कम से कम 40 फीसद खरीदना होगा.
रेलवे की 45 एकड़ जमीन (वही जिसके जरिए इस परियोजना को अदाणी समूह की झोली में डाला गया) पर निर्माण कार्य शुरू हो चुका है. धारावी में भी ड्रोन के जरिए कई चरणों में सर्वेक्षण, गलियों की रेकी, घरों की अल्फा-न्यूमेरिक नंबरिंग, हाइ-रिजॉल्यूशन लेन लिडार (लेजर आधारित रिमोट सेंसिंग विधि) और दस्तावेजों की घर-घर जाकर समीक्षा चल रही है. इसका डेटा एक एन्क्रिप्टेड डिजिटल प्लेटफॉर्म पर अपलोड किया जा रहा है. एनएमडीपीएल के एक प्रवक्ता कहते हैं, ''यह विरासत संरक्षण परियोजना है.
हम करार के दायित्वों से आगे बढ़ रहे हैं और आवास, इन्फ्रास्ट्रक्चर और सामाजिक असर पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. खुली जगह अनिवार्य आठ फीसद के मुकाबले नई धारावी में दोगुनी—16 फीसद—होगी. यह ऐसा इलाका बनेगा, जहां लोग रहना पसंद करेंगे.’’ कुछ 'भीड़भाड़ भी कम’ होगी. अमल के बाद धारावी की आबादी घटकर 4,85,713 रह जाने की उम्मीद है, जो मौजूदा आबादी के आधे से भी कम है (बाकी आधी नई बस्तियों में भेज दी जाएगी).
रियल स्टेट धंधे के लिए धारावी की मजबूत कनेक्टिविटी सोने का अंडा देने वाली मुर्गी साबित हो सकती है. मुंबई मेट्रो की लाइन 11 को धारावी के मध्य तक पहुंचाया जाएगा, ताकि मल्टी-मॉडल ट्रांजिट हब बनाया जा सके, जो शहर में इकलौता होगा. इससे माहिम, बांद्रा, जीटीबी नगर, किंग्स सर्कल और माटुंगा रोड रेल स्टेशन जुड़े हैं, मुंबई के मुख्य पश्चिमी और पूर्वी एक्सप्रेस राजमार्ग भी करीब हैं, मेट्रो और बगल के बीकेसी व्यापारिक केंद्र के लिए बनाई जा रही हाइ-स्पीड रेल उर्फ बुलेट ट्रेन से जुड़ाव उसे रियल एस्टेट हॉटस्पॉट बना सकते हैं.
एनएमडीपीएल के सूत्रों का कहना है कि नई धारावी को भविष्य के शहर के रूप में देखा जा रहा है. अंतरराष्ट्रीय वास्तुकारों और योजनाकारों को जोड़ा जा रहा है. उसे शानदार बनाने के लिए मीठी नदी के साथ 'मीठी ड्राइव’ (मुंबई के मरीन ड्राइव की तरह), एक विशाल केंद्रीय पार्क और धारावी की लंबाई में 'ग्रीन स्पाइन’ क्षेत्र होगा जो बाढ़ पानी निकासी के काम आएगा.
धारावी प्रोजेक्ट की चुनौतियां
भविष्य के शहर का सपना तो अपनी जगह है, फिलहाल कई धारावीकर या धारावी के लोगों के सामने दूसरी मुश्किल आन पड़ी है. विस्थापित आबादी को पुनर्वास के लिए निर्धारित इलाकों में वहां के लोगों के विरोध का सामना करना पड़ सकता है.
कुर्ला और मालवणी के लोग अपने इलाकों में किराए के लिए आवास के निर्माण का विरोध कर रहे हैं. इसकी कई वजहें हैं, जैसे पहले से वहां बुनियादी सुविधाओं पर भारी बोझ है और फिर पुनर्वास पूरा होने के बाद इलाके की जनसंख्या का समीकरण बदल जा सकता है (स्थानांतरित होने वालों में बड़ी संख्या मुसलमानों की हो सकती है). विरोध कर रहे स्थानीय लोगों ने अक्सा और मालवणी में सर्वेक्षण रुकवा दिया है.
इसके अलावा, पर्यावरणविदों का कहना है कि जमासप, जेनकिंस और आर्थर इलाकों में साल्ट पैन वाली जमीनों में ''सीमेंट का जंगल खड़ा करने’’ से मुंबई की आबोहवा और जीवन की गुणवत्ता पर भारी असर पड़ेगा. वनशक्ति नाम के गैर-सरकारी संगठन के डी. स्टालिन का कहना है कि साल्ट पैन वाले इलाके बारिश के दौरान स्पंज की तरह काम करते हैं और अतिरिक्त पानी सोख लेते हैं. इन इलाकों में निर्माण किया गया, तो बाढ़ का अंदेशा बढ़ जाएगा. हालांकि, श्रीनिवास इन चिंताओं को यह कहकर दूर करते हैं कि एसपीवी और सरकार यह आश्वस्त करेंगे कि सभी पर्यावरण संबंधी और अन्य मंजूरियां मिलने तक निर्माण कार्य शुरू न हो.
जाहिर है, राजनीति भी दखल देगी ही. पूर्व मंत्री तथा शिवसेना यूबीटी नेता आदित्य ठाकरे कहते हैं, ''हम सभी विकास चाहते हैं.’’ उन्होंने हाल ही एक जनसभा में पूछा, ''लेकिन धारावी का विकास होना चाहिए या अदाणी का?’’ उन्होंने आगे कहा, ''अगर धारावी के लोगों को यहां घर नहीं मिल रहे हैं, तो यह पुनर्विकास किसलिए और किसके लिए है?’’
इंडिया टुडे से बातचीत में उन्होंने आरोप लगाया कि बीएमसी को उसकी जमीन के लिए 7,500 करोड़ रुपए का प्रीमियम और टीडीआर प्रोत्साहन देने से इनकार किया जा रहा है. उनका कहना है कि सरकार को धारावी के के लिए ठेकेदार-आधारित मॉडल अपनाना चाहिए था, जैसा उसने बंबई विकास विभाग (बीडीडी) चॉल के साथ किया था. वर्ली और अन्य जगहों पर बीडीडी पुनर्विकास के तहत लोगों को 500 वर्ग फुट के फ्लैट मिल रहे हैं, और शिवसेना यूबीटी ने मांग की है कि धारावीकरों को भी यही मिले.
धारावी में दलितों और मुसलमानों की भारी आबादी है और 1980 के दशक से ही यह कांग्रेस का गढ़ रही है. अपवाद सिर्फ 1995-99 की छोटी-सी अवधि रही है. मुंबई उत्तर मध्य से कांग्रेस की सांसद तथा धारावी की पूर्व विधायक वर्षा गायकवाड़ को डर है कि धारावी कांग्रेस का पारंपरिक गढ़ है, इसलिए आबादी बदलने के लिए शायद मुसलमानों को वहां से बाहर बसाया जाएगा.
वे आरोप लगाती हैं, ''धारावी की पहचान रहे व्यवसाय (जैसे चमड़ा और रीसाइक्लिंग) भी बाहर किए जा सकते हैं.’’ शिंदे शिवसेना के नेता राजेश खानदारे ऐसे आरोपों को सिरे से खारिज करते हैं. वे कहते हैं, ''धारावी के करीब 95 फीसद लोग 50-100 वर्ग फुट के घरों में रहते हैं. वे इस परियोजना के विरोध में नहीं हैं, केवल बड़े गोदाम मालिक ही इसके खिलाफ हैं.’’ अलबत्ता, वे यह मानते हैं कि योजनाओं में पारदर्शिता की कमी से मामला काफी उलझ गया है.
पुनर्विकास का सबसे ज्यादा विरोध सनाउल्लाह क्षेत्र में है, जिसे देश का सबसे बड़ा रीसाइक्लिंग केंद्र कहा जाता है. धारावी व्यवसायी कल्याण संघ के सदस्य एस. सेलवन का कहना है कि इस क्षेत्र में 10,000 गोदाम हैं. उनका कहना है कि यहां की इकाइयों को दूसरी जगह जाने पर मजबूर किया गया तो रीसाइक्लिंग उद्योग की ''चक्रीय अर्थव्यवस्था’’ बैठ जाएगी, जिसमें कूड़ा बीनने वाले, कबाड़ी की दुकानें और अन्य लोग शामिल हैं. सेलवन ने चेतावनी दी, ''हम सरकार को जीएसटी का भुगतान करते हैं.
धारावी के व्यवसायों को विस्थापित किया गया तो राजस्व का भी नुकसान होगा.’’ 200 करोड़ रुपए के चमड़ा उद्योग के लोग भी दबाव महसूस कर रहे हैं. उनका कहना है कि मांस विरोधी माहौल के पहरुए, कृत्रिम चमड़े की बाढ़ और सस्ते चीनी आयात ने पहले ही इस क्षेत्र को पीछे धकेल दिया है, अब धारावी से विस्थापन इन कारोबारियों के लिए मौत के फरमान की तरह है.
श्रीनिवास कबूल करते हैं कि यहां के अधिकांश कारोबार अनौपचारिक क्षेत्र के हैं, यह बड़ी अड़चन है, क्योंकि उसका मतलब ''निम्न-स्तरीय निवेश और अधिकांश लोगों के पास कोई लाइसेंस न होना’’ है. उनका कहना है कि नई धारावी में वे सभी औपचारिक क्षेत्र का हिस्सा होंगे. उन्होंने बताया कि नई धारावी में व्यावसायिक इकाइयों को पहले पांच वर्षों के लिए राज्य जीएसटी रिफंड मिलेगा.
आलोचकों का कहना है कि एसआरए परियोजनाओं में डेवलपर की नियुक्ति के लिए 51 फीसद निवासियों की सहमति जरूरी होती है, लेकिन धारावी के मामले में इस प्रावधान को हटा दिया गया. श्रीनिवास कहते हैं, ''डेवलपर की नियुक्ति सरकार ने की है, इसलिए सहमति है.’’ मुख्यमंत्री फडणवीस ने वादा किया है कि सभी झुग्गीवासियों और उद्योगों और व्यवसायों का धारावी के अंदर पुनर्वास किया जाएगा. उनका दावा है कि घर-घर जाकर सर्वेक्षण 90 फीसद पूरा हो चुका है और लोग भी समर्थन कर रहे हैं.
भविष्य के अंदेशे
धारावी के लोगों में सबसे बड़ा डर यह है कि इस परियोजना को पुनर्वास के बजाय रियल एस्टेट की तरह देखा जा रहा है. कमला नगर के व्यवसायी, स्थानीय निवासी के. कण्णन का दावा है कि यह पुनर्विकास ''परदे के पीछे से जमीन हड़पने’’ का मामला है. वे आरोप लगाते हैं कि कई घरों को सर्वेक्षण टीम ने रहने वालों से पूछे बिना गिन लिया.
उन्हें डर है कि धारावी की अधिकांश ऐसी आबादी को जो स्थानीय इकाइयों से सीधे या परोक्ष रोजगार पाती है, 'अयोग्य’ घोषित कर दिया जाएगा और उन्हें बाहर कर दिया जाएगा, जिससे उनकी आजीविका और छोटी अर्थव्यवस्था नष्ट हो जाएगी. कण्णन गुस्से से पूछते हैं, ''कुछ लोगों को घर तो मिल जाएंगे लेकिन नौकरियों का, रोजगार का आखिर क्या होगा?
क्या उन्हें इन घरों के बाहर बैठकर भीख मांगनी चाहिए?’’ लेकिन लातूर गली की स्वानंदी स्वामी पूछती हैं, ''देखिए हम किन हालात में रह रहे हैं?’’ उनकी पड़ोसी, 63 वर्षीय महानंदा सावले, जो अपने नौ सदस्यों के परिवार के साथ 10×10 फुट के कमरे में रहती हैं, ने यहां जीने को ''गटर में रहने’’ जैसा बताया. वे आने वाली पीढ़ियों के बेहतर जीवन की कामना करती हैं.
जाहिर है, धारावी परियोजना जितनी सद्भावना लाएगी, उतनी ही अशांति भी. सेवानिवृत्त आइएएस अधिकारी और डीआरपी तथा महाराष्ट्र रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण के पूर्व प्रमुख गौतम चटर्जी चेताते हैं, ''इसे पुनर्वास परियोजना कहते हैं तो यह विस्थापन परियोजना नहीं बननी चाहिए.’’ फिलहाल, स्वामी को उम्मीद है—एक फ्लैट, एक बेहतर जिंदगी और ऐसे भविष्य की, जहां उन्हें बिस्तर के नीचे नहीं सोना पड़ेगा.
अदाणी के लिए सवाल यह है कि एशिया के सबसे अमीर शख्सियतों में से एक क्या वे मुंबई की सबसे गरीब बस्ती को सचमुच नए सिरे से बसा सकते हैं? और क्या उसके इस विशाल दांव को बदलाव या फरेब के रूप में याद किया जाएगा?