एटमी जंग के कितने करीब हैं भारत-पाकिस्तान?

अगर कोई भी देश हिरोशिमा में इस्तेमाल किए गए 15-किलोटन सरीखा एटमी हथियार मुंबई या कराची पर दागता है, तो विशेषज्ञों का कहना है कि मरने वालों की तादाद दस लाख से ज्यादा हो सकती है

एटमी जंग
एटमी जंग

कोई भी समरनीति युद्ध में दागी गई पहली गोली के आगे टिक नहीं पाती. युद्ध की अनिश्चितता पर जोर देने वाली यह पुरानी सैन्य कहावत भारत और पाकिस्तान के बीच उस छठे युद्ध में सच साबित हुई जो शुरू होने के चार दिन बाद 10 मई को अचानक संघर्ष-विराम के साथ खत्म हो गया. भारत का इरादा उसकी सरजमीन पर इस अप्रैल में पहलगाम में हुए हमले समेत आतंकी हमलों को मदद और उकसावा देने के लिए पाकिस्तान को ऐसा सबक सिखाना था जिससे आगे वह ऐसा करने की जुर्रत न कर पाए.

उसने अपना लक्ष्य 7 मई के शुरुआती घंटों में अपने पहले हमले में ही हासिल कर लिया, जब उसके सशस्त्र बलों ने अंतरराष्ट्रीय सीमा और नियंत्रण रेखा के उस पार पाकिस्तान की सरपरस्ती में चल रहे प्रमुख आतंकी धड़ों के मुख्यालयों और प्रशिक्षण शिविरों के निशाने पर सटीक हमले किए. भारत ने पाकिस्तान के फौजी ठिकानों पर हमले करने से जानबूझकर परहेज किया और पाकिस्तान को बता दिया कि दुश्मनी बढ़ाने में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं है और वह सिर्फ तभी जवाब देगा अगर इस्लामाबाद कोई बदले की कार्रवाई करता है.

पाकिस्तान अलबत्ता भारत के हमलों को सहने की मन:स्थिति में नहीं था. अगले तीन दिन लड़ाई तेज से तेजतर होती गई. इसमें दोनों पक्षों ने एक दूसरे के एयरबेस और अन्य सैन्य ठिकानों को निशाना बनाने के लिए मुख्य रूप से अपने हवाई लाव-लश्कर का इस्तेमाल किया, जिनमें तेज रफ्तार मिसाइलों के साथ लॉइटरिंग और कामीकेज ड्रोन शामिल थे. भारत ने दावा किया कि उसने अपनी बेहतर मारक क्षमता की बदौलत इन परस्पर हमलों में बढ़त हासिल कर ली और पाकिस्तान को संघर्ष-विराम की मांग करने के लिए मजबूर कर दिया.

उसे अलबत्ता यह अंदाजा नहीं था कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप श्रेय हासिल करने का यह मौका हथिया लेंगे और युद्ध रोकने में अपनी जीत का दावा करेंगे. अपने सोशल मीडिया एकाउंट पर एक पोस्ट में ट्रंप ने ऐलान किया कि यह अमेरिका ही था जिसने संघर्ष-विराम के लिए मध्यस्थता में मदद की. यह ऐलान उन्होंने दोनों देशों के ऐसा कर पाने से पहले ही कर डाला. दो दिन बाद भारत को और ज्यादा शर्मसार करते हुए व्हाइट हाउस की प्रेस ब्रीफिंग में ट्रंप ने दावा किया, ''हमने एटमी टकराव रोक दिया. मुझे लगता है यह बदतर एटमी युद्ध हो सकता था. लाखों लोग मारे जा सकते थे."

ट्रंप अपने इस रुख पर उस वक्त भी अड़े रहे जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 12 मई को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में जोरशोर से कहा कि ऑपरेशन सिंदूर ने साबित कर दिया है कि ''भारत न्यूक्लियर ब्लैकमेल से नहीं डरेगा", और विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने युद्ध के दौरान किसी भी ''एटमी (युद्ध के) संकेत" से इनकार किया. फॉक्स न्यूज के साथ 16 मई को एक बातचीत में ट्रंप ने कहा, ''ये बड़े न्यूक्लियर देश हैं... और वे नाराज थे. और शायद अगला चरण था—आपने देखा कि यह कहां जा रहा था? यह जैसे को तैसे का मामला था.

वॉरहेड/लड़ाकू विमान की संख्या और उनकी रेंज

यह ज्यादा संगीन होता जा रहा था और ज्यादा मिसाइलें, वह तेज से तेज होता जा रहा था. ऐसे पड़ाव तक जहां क्या आपको पता है कि अगला पड़ाव क्या होने जा रहा था? एन शब्द. वह एन शब्द जो न्यूक्लियर अर्थ में इस्तेमाल किया जाता है—यह बदतरीन चीज थी जो हो सकती थी. और मैं समझता हूं वे काफी करीब थे. नफरत बहुत ज्यादा थी." इसमें शामिल तीनों देश—भारत, पाकिस्तान और अमेरिका—अलग-अलग बातें बता रहे हों कि युद्ध के अंतिम घंटों में क्या हुआ, तो एक प्रश्न जो अब भी हवा में लटका और अनुत्तरित है, वह यह कि एटमी जंग का खतरा कितना असली था और है?

एटमी समीकरण

अमेरिकी राष्ट्रपति के पद से बिल क्लिंटन ने इस उपमहाद्वीप को दुनिया की सबसे खतरनाक जगह यूं ही नहीं कहा था. भारत-पाकिस्तान दोनों ने 1998 की गर्मियों में एटमी परीक्षण करके जब अपने नए हासिल शौर्य का बढ़-चढ़कर प्रदर्शन किया, क्लिंटन पद पर थे. तब तक उनमें से हरेक के पास पहले ही 50 से ज्यादा एटमी हथियार थे.

अब यह संख्या तिगुनी हो चुकी है. दोनों के पास अपने एटमी हथियारों को छोड़ने के लिए सटीक सुपरसोनिक बैलिस्टिक मिसाइलें हैं. भारत को अपनी अग्नि शृंखला की मिसाइलों पर नाज है तो पाकिस्तान को गोरी और उसी कोटि की दूसरी मिसाइलों पर फख्र. भारत ने वायु सेना के विमानों के अलावा दो एटमी पनडुब्बियों को रणनीतिक मिसाइलों के समुद्री संस्करण से सुसज्जित करके एटमी हथियारों की डिलिवरी प्रणाली की मजबूत तिकड़ी पूरा कर ली है.

जहां तक सिद्धांत की बात है, भारत अपने एटमी हथियारों को पहले इस्तेमाल न करने की नीति में भरोसा करता है. लेकिन पाकिस्तान अगर उसके खिलाफ एटमी मिसाइल इस्तेमाल करेगा, तो वह जबरदस्त जवाबी एटमी हमला करके उसके बड़े शहरों को तबाह कर देगा. दूसरी तरफ पाकिस्तान अपनी भौगोलिक अखंडता और अर्थव्यवस्था के लिए खतरा पैदा होने पर पहले एटमी हथियारों का इस्तेमाल करने में यकीन करता है; ऐसी स्थिति में वह एटमी हथियारों की पूरी शृंखला का इस्तेमाल करेगा.

अगर कोई भी देश हिरोशिमा में इस्तेमाल किए गए 15-किलोटन सरीखा एटमी हथियार मुंबई या कराची पर दागता है, तो विशेषज्ञों का कहना है कि मरने वालों की तादाद दस लाख से ज्यादा हो सकती है. विकिरण के खतरे की वजह से इन शहरों के बड़े हिस्से इंसानों के रहने लायक नहीं बचेंगे.

दक्षिण एशिया की एटमी पहेली पर कई मौलिक किताबों के लेखक एश्ले टेलिस का मानना है कि पाकिस्तान ने इस मामले में भारत को पीछे छोड़ दिया है और उसके पास इस क्षेत्र में सबसे बड़ा और विविधतापूर्ण एटमी असलहा भंडार है. उनका कहना है कि ऐसा इसलिए है क्योंकि ''पाकिस्तान को लगातार इस बात का ख्याल कम है कि भारत हकीकत में क्या कर रहा है, बल्कि वह भारत की क्षमताओं के बारे में अपनी प्रचंड कल्पनाओं के साथ-साथ अपनी एटमी जरूरतों के बारे में अपनी ही व्यापक—और लगातार बढ़ती—धारणा से ज्यादा प्रेरित है."

पिछले दशक में पाकिस्तान ने भारत की तरफ से होने वाले अप्रत्याशित जमीनी आक्रमण को नाकाम करने के लिए रणभूमि के परिदृश्यों के अनुरूप रणनीतिक एटमी हथियारों और मिसाइलों का जखीरा जोड़ा है. इस तरह उसने जरा-से उकसावे पर फौरन दागे जाने वाले एटमी हथियारों के मामले में पेचीदगी पैदा कर दी है क्योंकि संकट के वक्त असरदार इस्तेमाल के लिए सामरिक हथियारों की कमान और नियंत्रण को आखिरकार ब्रिगेड स्तर तक विकेंद्रीकृत करना होता है, जिससे तथाकथित एटमी बटन अपेक्षया जूनियर अधिकारियों के हाथ में आ जाती है.

उम्मीद तो यह थी कि ऐसे खतरनाक हथियारों के मौजूद होने पर दोनों तरफ भारी तबाही के डर से टकराव का खतरा कम हो जाएगा, लेकिन इसके विपरीत दोनों देश तीन बड़े मौकों पर एटमी विध्वंस के कगार पर आ गए. ऐसा पहला मौका उनके एटमी परीक्षणों के साल भर बाद 1999 में आया जब दोनों देशों ने करगिल की बर्फीली पहाड़ियों पर एटमी छत्र की छाया तले भीषण सरहदी जंग लड़ी.

जब दोनों पक्ष अपने एटमी हथियार भांज रहे थे, क्लिंटन को दखल देकर पाकिस्तान से अपनी घुसपैठ वापस लेकर यथास्थिति बहाल करने के लिए कहने को मजबूर होना पड़ा. 2001 में भारत की संसद पर आतंकी हमले के बाद दोनों देशों के बीच पुरजोर युद्ध रोकने के लिए अमेरिका को दोबारा दखल देना पड़ा. ऐसा उसने पाकिस्तान को दहशतगर्दों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के लिए मजबूर करके किया.

एटमी टकराव का तीसरा मौका फरवरी 2019 में भी आया जब पुलवामा में हुए आतंकी हमले ने 40 अर्धसैनिक बल के जवानों की जान ले ली और भारत ने उसका जवाब पाकिस्तानी भूभाग के काफी भीतर जाकर बालाकोट में आतंकी शिविरों पर हमला करने के लिए लड़ाकू विमान भेजकर दिया.

हालांकि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में जब एक भारतीय लड़ाकू विमान को मार गिराया गया और उसके बच निकले पायलट अभिनंदन को पकड़ लिया गया, तो उस वक्त अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो के मुताबिक, वह संकट ''एटमी टकराव में तब्दील होने के करीब" पहुंच गया था.

पाकिस्तान ने भारत पर एटमी हथियारों से लैस पनडुब्बियां अपने तटों के करीब लगा देने का आरोप लगाया और अपने एटमी हथियारों को तैयार रखने का आदेश दे दिया. तब स्थिति को शांत करने के लिए पोम्पियो और अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन को दोनों पक्षों के साथ लंबी-लंबी वार्ताएं करनी पड़ीं, जिसके बाद पायलट को रिहा कर दिया गया और भारत-पाकिस्तान दोनों देशों ने अपनी-अपनी जीत के दावे बढ़-चढ़कर किए.

खतरनाक तेवर

करगिल में 1999 में दो महीने तक चली लड़ाई के मुकाबले छठी भिड़ंत महज चार दिन की थी, इसके बावजूद वाशिंगटन डीसी में सेंटर फॉर ए न्यू अमेरिकन सेक्यूरिटी में हिंद-प्रशांत सुरक्षा प्रोग्राम की निदेशक लीसा कर्टिस का मानना है कि यह 1971 के बांग्लादेश युद्ध के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच सबसे संगीन टकराव था.

उनकी दलील है, ''1999 में करगिल की सीमा पर सीमित लड़ाई के मुकाबले इस बार के टकराव की लंबाई-चौड़ाई और दायरा काफी बड़ा था. मैं 30 वर्षों से भारत-पाकिस्तान पर नजर रख रही हूं. चार दिन में दो एटमी असलहे वाले देशों को एक-दूसरे के काफी भीतरी इलाकों में मिसाइल और ड्रोन हमले, एक-दूसरे के सैन्य ठिकानों को निशाना बनाना हैरानी भरा और चिंताजनक था."

अमेरिकी उप-राष्ट्रपति जे.डी. वैंस ने 8 मई को फॉक्स न्यूज से कहा कि इस टकराव से अमेरिका का कोई लेना-देना नहीं लेकिन 12 घंटे बाद ही प्रधानमंत्री मोदी को फोन करके कदम पीछे खींचने को कहना, यही बताता है कि हालात कितनी तेजी से संगीन होते जा रहे थे.

अमेरिकी मीडिया की रिपोर्टों के मुताबिक, वैंस ने 9 मई को मोदी से कहा कि अमेरिकी आकलन से इसकी संभावना काफी है कि पाकिस्तान लड़ाई में नाटकीय इजाफा कर दे और भारतीय प्रधानमंत्री पर लड़ाई रोकने का दबाव बनाया. जो पाकिस्तानियों को भी मंजूर होगा. खबरें ये हैं कि मोदी इस पर चुप रहे, लेकिन विदेश मंत्रालय के सूत्रों ने खुलासा किया कि प्रधानमंत्री ने वैंस से कहा, ''अगर पाकिस्तान कुछ भी करता है, तो तय मानिए कि उसे जोरदार, ज्यादा कड़ा और ज्यादा तबाही वाला जवाब मिलेगा. पाकिस्तान को यह समझने की दरकार है."

मोदी की चेतावनी को पाकिस्तान ने अनसुना कर दिया. उस रात उसकी वायु सेना ने ऑपरेशन बुनयान मरसूस (शाब्दिक अर्थ सीसे की दीवार या ठोस दीवार, एकजुटता, ताकत और अनुशासन का प्रतीक मुहावरा) शुरू किया. भारतीय हवाई ठिकानों और सैन्य प्रतिष्ठानों समेत 26 संवेदनशील जगहों पर ड्रोन, तोपखाना और मिसाइल से हमले किए. 400 किमी. रेंज की सुपरसोनिक नियंत्रित रॉकेट सिस्टम की फतह-II मिसाइल दिल्ली हवाई अड्डे की ओर भी दागी गई लेकिन भारतीय मिसाइल सिस्टम ने उसे सिरसा में इंटरसेप्ट कर लिया. भारत का दावा है कि अधिकांश पाकिस्तानी हमलों को मामूली नुक्सान के साथ नाकाम कर दिया गया.

भारत ने 9-10 मई की दरम्यानी रात करीब 1.10 बजे जोरदार जवाब दिया. उसने अन्य मिसाइलों के अलावा अपने हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस भी दागे. आठ हवाई ठिकानों पर हमला किया गया, जिनमें एक पाकिस्तानी फौज के मुख्यालय रावलपिंडी और राजधानी इस्लामाबाद के बीच चकलाला में नूर खान हवाई ठिकाना भी था. भारतीय वायु सेना ने वहां अहम इन्फ्रास्ट्रक्चर के नुक्सान की तस्वीरें जारी कीं.

नूर खान ठिकाना पाकिस्तान के एटमी कमान और कंट्रोल हेडक्वार्टर के नजदीक है. पाकिस्तान के वजीरे आजम शहबाज शरीफ ने बाद में जाहिर किया कि फौज प्रमुख जनरल आसिम मुनीर ने उन्हें देर रात 2.30 बजे हवाई ठिकानों पर हमले से वाकिफ कराया, जिनमें एक राजधानी इस्लामाबाद के करीब है. इस बीच, सूत्रों ने यह खुलासा भी किया कि भारतीय नौसेना ने भी जंगी पोत को कराची के पास तैनात कर दिया है और खबरदार किया गया है कि पाकिस्तानी बंदरगाह की नाकेबंदी करने के आदेश आ सकते हैं.

निर्णायक मौका

घटनाक्रम के जानकारों का कहना है कि 9-10 मई की दरम्यानी रात 2.30 बजे से सुबह 10.30 बजे के बीच—यानी आठ घंटों तक—उपमहाद्वीप का नसीब अधर में लटका था. कैलिफोर्निया के मोंटेरे स्थित यूएस नैवल पोस्टग्रेजुएट स्कूल में रिसर्च प्रोफेसर तथा पहले पाकिस्तान के स्ट्रैटजिक प्लांस डिविजन में काम कर चुके ब्रिगेडियर फिरोज हसन खान (रिटायर) कहते हैं, ''राजधानी के पास नूर खान पर हमला ज्यादा राजनैतिक दबाव पैदा करता. भारत और पाकिस्तान दोनों सैन्य टकराव की सीढ़ियां इतनी तेजी से चढ़े कि जाहिर था कि अगले 24-48 घंटों में पूर्ण युद्ध का निर्णायक मौका आ गया होता."

भारत की तरफ से नूर खान और सरगोधा के मुसहफ सरीखे रणनीतिक एयरबेसों पर हमला करने का मतलब था कि लक्ष्मण रेखाएं बस पार ही की जाने वाली थीं. खान आगे कहते हैं, ''अगर भारत गलती से भी एटमी भंडार के ठिकानों पर हमला कर देता, तो पाकिस्तान इसे पहला हमला मानता और पलटकर एटमी हथियारों से हमला करता. अगर 10 मई को संघर्ष-विराम नहीं हुआ होता, तो अगली रात बहुत भयानक होती."

हालांकि टेलिस और अन्य नहीं मानते कि संकट एटमी उबाल बिंदु के करीब था. उनका मानना है कि 10 मई के भारतीय हवाई हमले बहुत मामूली थे: ''टकराव के बढ़कर एटमी देहरी पर पहुंच जाने का डर ऐसी लड़ाइयों में होता ही है. बुनियादी ढांचे पर हमला करना कोई ऐसा नहीं जो हिंसा की लहर पैदा कर सकते हों. इसके लिए लंबे वक्त तक निशाने लगाने होते हैं. नूर खान में भारत ने एटमी कमान सिस्टम को खत्म करने की शुरुआत नहीं की. उन्होंने जो किया वह अनिश्चितता, धमकी और डर का मनोवैज्ञानिक अभियान ज्यादा था, जो बुनियादी ढांचे के बड़े हिस्से को भौतिक रूप से नष्ट कर देने के बजाय असलियत में कहीं ज्यादा फायदेमंद होता है."

दोटूक प्रमाण नहीं मिल जाता कि पाकिस्तान जवाब एटमी स्तर तक बढ़ाने जा रहा था. टेलिस मानने को तैयार नहीं कि संकट अनियंत्रित ढंग से एटमी युद्ध की ओर बढ़ गया होता.

विदेश मंत्रालय के सूत्रों का भी यही कहना है कि इस टकराव ने एटमी आयाम कभी अख्तियार नहीं किए. एयरबेसों पर हमलों के बाद पाकिस्तान इसलिए पीछे हट गया क्योंकि उसे एहसास हो गया था कि युद्ध के और दो दिन उसे अपमानजनक ढंग से घुटने टेकने को मजबूर कर देंगे. उनका कहना है कि जनरल मुनीर ने ही उस सुबह रुबियो से बात की और भारत को लड़ाई रोकने के लिए मनाने की गुजारिश की.

फौरन बाद रुबियो ने विदेश मंत्री एस. जयशंकर को फोन किया, जिन्होंने उनसे कहा कि अगर पाकिस्तान लड़ाई खत्म करना चाहता है तो हॉटलाइन के जरिए सैन्य अभियान महानिदेशक से कहना होगा. तब पाकिस्तान के डीजीएमओ मेजर जनरल काशिफ अब्दुल्ला ने भारतीय डीजीएमओ लेफ्टिनेंट जनरल राजीव घई को दोपहर 3.35 बजे फोन करके कहा कि पाकिस्तान संघर्ष-विराम चाहता है. भारत राजी हो गया. भारत ने अमेरिकी दखल से इनकार किया.

यह खुलासा ट्रंप के इस दावे को झुठलाता है कि उन्होंने संभावित एटमी टकराव टाल दिया. रूबियो ने जयशंकर, जनरल मुनीर, शहबाज शरीफ और भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल—के साथ कई दौर की बातचीत की. सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में रूबियो ने कहा कि दोनों देश न केवल फौरन युद्धविराम के लिए बल्कि ''तटस्थ जगह पर व्यापक मुद्दों पर बातचीत शुरू करने को" भी राजी हो गए. यह अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता टैमी ब्रूस के उस बयान से भी मेल खाता है जो उन्होंने मुनीर और जयशंकर के साथ रूबियो की बातचीत के बारे में पढ़ा.

मुनीर के साथ बातचीत के बारे में कहा गया, ''वे दोनों पक्षों से टकराव को कम करने का आग्रह करते रहे और भावी टकरावों को टालने के लिए उन्होंने अमेरिकी सहायता की पेशकश भी की." जयशंकर के साथ हुई बातचीत के बारे में ब्योरा था: ''रूबियो ने जोर दिया कि दोनों पक्षों को टकराव कम करने के तरीकों की पहचान करने और बातचीत फिर कायम करने की जरूरत है. उन्होंने भावी विवादों को टालने के लिए बातचीत के सुभीते की खातिर अमेरिकी सहायता का प्रस्ताव रखा." अपना पक्ष रखते हुए एक्स पर जयशंकर ने कहा, ''सुबह अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो से बात हुई. भारत का नजरिया नपा-तुला और जिम्मेदारी का रहा है और आगे भी रहेगा."

आखिरी पायदान

हालांकि ऑफ द रिकॉर्ड बातचीत में विदेश मंत्रालय ने कहा कि पाकिस्तान के साथ बातचीत शुरू करने के बारे में कोई सहमति नहीं हुई. यह भारत की घोषित नीति के खिलाफ होता कि जब तक पाकिस्तान आतंक को प्रश्रय देना बंद नहीं करता, कोई बातचीत नहीं होगी. यूनिवर्सिटी ऑफ अल्बानी, स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूयॉर्क में राजनीति विज्ञान के असिस्टेंट प्रोफेसर तथा दक्षिण एशियाई एटमी मुद्दों पर विशेषज्ञ क्रिस्टोफर क्लैरी मानते हैं कि संघर्ष-विराम कई वजहों से हुआ, जिनमें यह भी शामिल है कि अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने पाकिस्तान की एटमी असलहों की तैयारी के दर्जे में बदलाव देखा हो.

क्लैरी कहते हैं, ''मेरा अनुमान है कि भारतीय सैन्य दबाव के साथ अमेरिकी प्रलोभनों के जोड़ ने इनाम और सजा का ऐसा मिश्रण तैयार किया जिसके चलते पाकिस्तान ने यह संकेत दिया कि वह लड़ाई खत्म कर सकता है." कर्टिस भी मानती हैं कि भारत और पाकिस्तान खुद-ब-खुद संघर्ष-विराम को राजी नहीं होते और एटमी कगार से पीछे हटने के लिए उन्हें तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप की जरूरत थी.

पाकिस्तान ने अलबत्ता ट्रंप के बयानों और रूबियो की बात को अहम जीत की तरह देखा. बाद की एक ब्रीफिंग में ट्रंप ने न सिर्फ कश्मीर पर भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता की पेशकश की बल्कि अमेरिका ने भारत से प्रमुख मुद्दों पर बातचीत के लिए भी कहा. पाकिस्तान ने दावा किया कि वह कश्मीर मुद्दे को फिर अंतरराष्ट्रीय बना सका और अपने को फिर भारत की बराबरी में रख सका. जनरल मुनीर ने पाकिस्तान के असल शहंशाह के तौर पर खुद को फील्ड मार्शल के पद पर पदोन्नत करवा लिया.

कर्टिस कहती हैं, ''इससे लगता है कि आतंक की इस वारदात ने कश्मीर की तरफ अंतरराष्ट्रीय ध्यान खींचने में मदद की और गलत संदेश दिया जो भविष्य में हिंसा बढ़ा सकता है. इससे तनाव शांत करने में मदद नहीं मिली." उनका मानना है कि अमेरिका को दोनों पक्षों को आतंकवाद और एटमी जोखिम कम करने समेत विभिन्न मुद्दों पर दोतरफा संवाद शुरू करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए.

ज्यादातर विशेषज्ञ मानते हैं कि संघर्ष-विराम कमजोर है. एक और आतंकी हमले से फिर लड़ाई छिड़ सकती है. अमेरिका में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत तथा वाशिंगटन डीसी के हडसन इंस्टीट्यूट में सीनियर फेलो हुसैन हक्कानी कहते हैं, ''हो सकता है जिहादी शांति भंग करना चाहें, लेकिन मुझे लगता है कि पाकिस्तान अब उन पर लगाम कसेगा क्योंकि वे इस राह पर दोबारा जाना नहीं चाहते." हक्कानी को डर है कि दोनों देशों के लोगों में अंधराष्ट्रवाद चरम पर है और उन्हें अंदाजा नहीं कि एटमी हमले का खतरा क्या होता है.

उनकी राय में, ''रवैया ऐसा है कि हमारा विमान हादसे का शिकार हो रहा है, लेकिन हम खिलखिला रहे हैं और भर-भरकर व्हिस्की मांग रहे हैं." हसन खान का मानना है कि भारत और पाकिस्तान को ऐसा ढांचा खड़ा करने की जरूरत है जो उनके खतरनाक युद्ध की तरफ धकेलने वाले 'प्रतिबद्धता के जाल’ में फंसने से ठीक पहले ऐसी चीजों को सुलझा सके. टेलिस को लगता है कि लंबे वक्त की चुनौती अब भारत-पाकिस्तान के रिश्तों के भविष्य से बंधी है और इसे दोनों देशों के बीच असल बातचीत के बिना नहीं सुलझाया जा सकता.

वे कहते हैं, ''मेरी राय में सवाल यह है कि आप अपने लिए जोखिम को कम से कम करके दुश्मन को सजा कैसे दे सकते हैं." शीत युद्ध के जमाने की साइंस-फिक्शन फिल्म में एटमी जंग के बारे में बात करते हुए यह बात कही गई थी, ''यह अजीबोगरीब खेल है. इसमें जीत की अकेली चाल वह है जो चलना नहीं है." यह साधने योग्य रणनीति हो सकती है.

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