चार दिन की जंग के बाद क्या है भारत-पाक के बीच खतरे का नया निशान?
संघर्ष विराम और शांति अस्थिर बनी हुई, भारत ने पाकिस्तान की आतंकवाद की सरपरस्ती के खिलाफ सख्त नीति को 'न्यू नॉर्मल’ बनाया और पाकिस्तान अगर बाज नहीं आया तो भारत विनाशकारी जवाबी कार्रवाई फिर शुरू करेगा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 12 मई को पाकिस्तान के साथ अब तक की छठी लड़ाई के अचानक थमने के दो दिन बाद राष्ट्र को संबोधित करने के लिए तैयार हुए, तो उन्हें एहसास था कि यह उनके तीसरे कार्यकाल का निर्णायक पल है. छब्बीस साल पहले, 1999 की गर्मियों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पहले प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के दौरान भारतीय सशस्त्र बलों ने करगिल की पहाड़ियों पर पाकिस्तानियों के कब्जे के दुस्साहस को नाकाम कर दिया था.
वह दोनों देशों के बीच पांचवीं लड़ाई थी. तब हालात ने वाजपेयी को जंग के लिए मजबूर किया था. मोदी के लिए भी पड़ोसी देश के दहशतगर्दों को शह देने के खिलाफ सैन्य कार्रवाई करने के अलावा कोई चारा नहीं था, जो 22 अप्रैल को कश्मीर के पहलगाम में 26 मासूम लोगों की करीब से गोली मारकर जान लेने के जिम्मेदार थे.
मोदी ने अपने पहले कार्यकाल (2014-2019) के दो साल में ही पाकिस्तान के दुस्साहस के खिलाफ पूर्ववर्ती मनमोहन सिंह सरकार की रणनीतिक संयम की नीति से हटकर सख्त कार्रवाई का फैसला किया था. इसका मतलब था कि पाकिस्तान को अब किसी भी नापाक हरकत की कीमत खून के बदले खून देकर चुकानी पड़ेगी. उसे भारत के इस नए संकल्प का जल्द ही एहसास भी करा दिया गया. सितंबर 2016 में उड़ी के सैन्य शिविर पर आतंकी हमले के जवाब में मोदी ने नियंत्रण रेखा (एलओसी) के पार सर्जिकल स्ट्राइक का आदेश दिया.
तीन साल बाद, फरवरी 2019 में पुलवामा में फिदायीन कार बम विस्फोट में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के 40 जवान मारे गए तो प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान के बालाकोट में आतंकी ठिकाने पर बम गिराने के लिए वायु सेना के जेट विमानों को मंजूरी दी. छह महीने बाद, दूसरी बार प्रधानमंत्री चुने जाने पर, मोदी ने संविधान में जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का ऐतिहासिक कदम उठाया. उससे पाकिस्तान के घाटी पर बेतुके दावे पर विराम लग गया. अलबत्ता, पाकिस्तान के फौजी हुक्मरान जनरल आसिम मुनीर हाल में कश्मीर घाटी को अपने देश की ''गले की नस" बताने से नहीं चूके.
पहलगाम हमले के बाद मोदी ने पाकिस्तान की सरपरस्ती में दहशतगर्द हमलों से निबटने के लिए गहरी नई लाल रेखा खींच दी है. इसके तहत जवाबी कार्रवाई मोटे तौर पर तीन सिद्धांतों पर आधारित है. जैसा कि विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भारत की जवाबी कार्रवाई से पहले अमेरिका और चीन सहित प्रमुख विश्व शक्तियों को आगाह कर दिया था. कथित तौर पर जयशंकर ने उनसे कहा था कि सबसे पहले भारत की ओर से जवाबी कार्रवाई में तेजी दिखेगी, फिर आतंकवादियों और उनके सरपरस्तों (यानी पाकिस्तान) दोनों को जवाबदेह ठहराया जाएगा और अंत में, उन्हें इंसाफ के कठघरे में लाया जाएगा.
इन मकसदों की खातिर राजनैतिक, सैन्य, आर्थिक और मनोवैज्ञानिक कई तरह के उपायों का इस्तेमाल किया जाएगा. भारत पहले ही राजनैतिक विकल्प का इस्तेमाल कर चुका था. उसने पहलगाम हमले के फौरन बाद 65 साल पुरानी सिंधु जल संधि को स्थगित करने का फैसला किया, जो चार बड़ी लड़ाइयों के बावजूद कायम थी. सिंधु का पानी पाकिस्तान में सिंचाई के लिए, खासकर पंजाब और सिंध जैसे सियासी तौर पर अहम प्रांतों में बेहद जरूरी है. तो, कहा जा सकता है कि सिंधु नदी प्रणाली की नदियां कश्मीर से भी ज्यादा पाकिस्तान की गले की नस हैं. संधि के स्थगित होने से पानी की धारा फौरन नहीं रुकेगी, लेकिन उसकी समीक्षा करने की भारत की धमकी से पाकिस्तानी लीडरान पर जबरदस्त मनोवैज्ञानिक दबाव पड़ेगा.
नई सिंदूर रेखाएं
सैन्य विकल्पों की बात आई, तो ऑपरेशन सिंदूर निर्णायक हमले की ताकत का इजहार था. मोदी ने सेना को जवाबी कार्रवाई की पूरी छूट दी और सेना के तीनों अंगों के प्रमुखों से कहा, ''वहां से गोली चलेगी, तो यहां से गोला दगेगा." निर्देश था कि हर बार हद बढ़ानी होगी और आतंकवादियों तथा उनके सरपरस्तों को मुंहतोड़ जवाब देना होगा.
बेहद भावनापूर्ण और कठोर शब्दों में राष्ट्र के संबोधन में मोदी ने इन कार्रवाइयों को भारत की आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में ''न्यू नॉर्मल" या नया मानक कहा. फैसले की प्रक्रिया में शामिल एक शीर्ष अधिकारी ने विस्तार से बताया, ''हम अब सिर्फ रंगरूटों को नहीं, बल्कि सांप का फन कुचलने जा रहे हैं. हमने उन्हें साफ संदेश दिया है कि ऐसी कोई जगह नहीं, जहां छिप सको, चाहे पाकिस्तान में कहीं भी हो, हम मार गिराएंगे."
ऑपरेशन सिंदूर भारत के नए नजरिए का एकदम साफ इजहार था. पहले दिन ही सशस्त्र बलों ने न सिर्फ पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में, बल्कि 1971 के युद्ध के बाद पहली बार पाकिस्तान के गढ़ पंजाब प्रांत में प्रमुख आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया. दो प्रमुख आतंकी गुटों—बहावलपुर में जैश-ए-मोहम्मद और लाहौर के पास मुरीदके में लश्कर-ए-तैयबा के मुख्यालयों को निशाना बनाया गया.
मोदी की रणनीति का दूसरा हिस्सा पाकिस्तान के परमाणु हमले की पोल खोलना था. दोनों देशों के बीच पहले दौर के हमलों के बाद अमेरिका के उप-राष्ट्रपति जे.डी. वैंस ने 9 मई को प्रधानमंत्री मोदी से संपर्क किया और कहा कि पाकिस्तान लड़ाई को बड़े स्तर पर ले जाने की सोच रहा है. वैंस की फिक्र यह थी कि दोनों देश एटमी ताकत हैं, इसलिए लड़ाई बढ़ी तो भारी तबाही का सबब बन सकती है. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने कथित तौर पर नेशनल कमान अथॉरिटी की बैठक बुलाकर अपने इरादे का संकेत दे दिया था.
यह अथॉरिटी एटमी हथियारों की तैनाती का फैसला करने वाली सर्वोच्च संस्था है, जिसके शरीफ अध्यक्ष हैं और तीनों सेना प्रमुख सदस्य. वैंस की बात से मोदी अडिग रहे और कहा कि भारत का जवाब ''बहुत ताकतवर, तगड़ा और भारी तबाही वाला" होगा. उन्होंने राष्ट्र के नाम संबोधन में इसे और जोरदार ढंग से कहा, "भारत किसी परमाणु ब्लैकमेल को बर्दाश्त नहीं करेगा, और निर्णायक हमला करेगा" और यह भी कि उस कार्रवाई में ''आतंकवाद की सरपरस्त सरकार और आतंकवाद के आकाओं के बीच कोई फर्क नहीं करेगा."
पाकिस्तान के भारत की पश्चिमी सीमा पर 36 अलग-अलग जगहों पर ड्रोन और मिसाइल हमले के एक दिन बाद, बकौल एक अधिकारी, भारत ने धुआंधार ''आग" की बारिश कर दी. पाकिस्तान के आठ प्रमुख ठिकानों पर सटीक हमले किए और रनवे तथा संचार सुविधाओं को नुक्सान पहुंचाया. उसमें पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद और पाकिस्तानी फौज के मुख्यालय रावलपिंडी के बीच स्थित नूर खान पर हमला भी था.
पाकिस्तान क्यों 'अंकल-अंकल' चिल्लाया
भारत ने दिखा दिया कि वह पाकिस्तान सरकार और फौज के केंद्र पर भी जब चाहे बेरोकटोक हमला कर सकता है, और उसकी नौसेना कराची बंदरगाह की आवाजाही बंद कर सकती है, जिससे वह आर्थिक तौर पर लाचार हो जाएगा. ऐसे में, बकौल एक वरिष्ठ भारतीय अधिकारी, पाकिस्तानी लीडरान ''अंकल-अंकल" पुकार उठे, यानी मदद के लिए अमेरिका का फोन खड़खड़ाने लगे. उस भारतीय अधिकारी की मानें तो मारक हवाई हमलों ने पाकिस्तान को चेताया कि जंग उन्हें गर्त की ओर ले जाएगी.
कथित तौर पर शरीफ और मुनीर दोनों ने अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो से बात की, और अमेरिका से हस्तक्षेप करने और भारत को पीछे हटने के लिए कहने को कहा. उन्होंने साफ-साफ दावा किया कि बड़ी लड़ाई छिड़ गई, तो पाकिस्तान अपने सभी विकल्पों का इस्तेमाल करने पर मजबूर हो जाएगा, जिसमें एटमी हथियार भी हो सकते हैं.
अमेरिका में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत तथा फिलहाल हडसन इंस्टीट्यूट के वरिष्ठ फेलो हुसैन हक्कानी बताते हैं, ''कई बार खतरा ही कार्रवाई से बड़ा हो जाता है. भारत दहशतगर्दी पर अपना नैरेटिव गंवा बैठा और पाकिस्तान को तबाह करने की बातें करने लगा. सांप-छछूंदर जैसी स्थिति बन गई. अंतरराष्ट्रीय मीडिया कवरेज में एक चीज गायब है, और वह है दहशतगर्दी."
कहा जाता है कि रुबियो ने जयशंकर से बात की. जयशंकर ने उन्हें बताया कि पाकिस्तान तनाव बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है. पहलगाम हमले के जवाब में भारत ने आतंकवादी ठिकानों पर हमला किया और फौजी ठिकानों को निशाना नहीं बनाया. थल सेना के सैन्य अभियान महानिदेशक (डीजीएमओ) लेफ्टिनेंट जनरल राजीव घई ने पहले हमले के 15 मिनट बाद पाकिस्तानी डीजीएमओ मेजर जनरल काशिफ अब्दुल्ला को फोन भी किया और उन्हें बताया था कि भारत का आगे कोई हमला करने का इरादा नहीं है.
लेकिन अब्दुल्ला ने शायद कहा, भाड़ में जाओ, पाकिस्तान जवाबी कार्रवाई करेगा. इसलिए रुबियो से जयशंकर ने कथित तौर पर कहा कि अगर पाकिस्तान संघर्ष विराम चाहता है, तो वह डीजीएमओ हॉटलाइन के जरिए यह पेशकश खुलकर करे. आखिरकार, 10 मई को अब्दुल्ला ने घई को फोन किया और कहा कि पाकिस्तान लड़ाई रोकना चाहता है.
घई ने वरिष्ठ अधिकारियों से बातचीत की और उनके फैसले के बाद तीसरे पहर 3.35 बजे अब्दुल्ला को हॉटलाइन पर बताया कि भारत राजी है. और इस तरह 88 घंटे की लड़ाई रुक गई. अलबत्ता, दोनों तरफ के दावे-प्रतिदावे और विरोधाभास बने रहे. एक वरिष्ठ भारतीय अधिकारी ने कहा, ''पाकिस्तान ने संघर्ष विराम इसलिए नहीं चाहा कि आप अच्छी अंग्रेजी बोलते हैं, बल्कि उसने इसलिए चाहा कि आसमान से वज्र उसके ठिकानों पर गिर रहे थे."
पाकिस्तान की लड़ाई बंदी की मांग पर भारत इसलिए मान गया क्योंकि वह कभी भी पूर्ण युद्ध नहीं चाहता था. मकसद सिर्फ यह संदेश देना था कि 'बस बहुत हो गया, अब और नहीं', और पिछले 25 साल में भारत पर हमले करने वाले आतंकवादी गुटों को सबक सिखाना. इसके अलावा, पाकिस्तान और उसके पाले-पोसे दहशतगर्दों को चेतावनी देनी थी कि वे अपने नापाक एजेंडे को जारी रखते हैं तो सख्त से सख्त कार्रवाई होगी.
हालांकि, भारत यह देख हैरान रह गया कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत और पाकिस्तान के संघर्ष विराम की घोषणा से पहले ही सोशल मीडिया पर पोस्ट डाल दिया, और संघर्ष विराम कराने का पूरा श्रेय लेने लगे. यही नहीं, मामला और बिगाड़ा रुबियो ने एक्स पर अपने एक पोस्ट से. उसमें दावा किया कि भारत और पाकिस्तान दोनों ''तटस्थ स्थान पर व्यापक मुद्दों पर बातचीत शुरू करने" पर राजी हो गए हैं.
ट्रंप की बयानबाजी जारी रही. उन्होंने एक सोशल मीडिया पोस्ट में उपमहाद्वीप में ''एटमी टकराव" को रोकने का श्रेय लिया, और दूसरे में दोनों देशों के नेताओं के साथ मिलकर काम करने की बात कही, ताकि यह देखा जा सके कि ''क्या 'हजार साल’ बाद कश्मीर के मुद्दे का कोई हल निकले." इससे भी ज्यादा किरकिरी कराने वाला यह था कि ट्रंप चाहते थे कि दोनों देश व्यापार बढ़ाएं, उन्होंने कहा, ''चलो, एटमी मिसाइलों की नहीं, उन चीजों की लेनदेन करो जिन्हें आप खूबसूरती से बनाते हो."
यही नहीं, ट्रंप प्रशासन का भारत और पाकिस्तान को साथ जोड़ना, एक ही तराजू पर तौलना भी भारी चुभता है. घाव पर नमक छिड़कने जैसा तो यह था कि ट्रंप ने आतंकी हमले के शिकार भारत की तुलना उसके अपराधी पाकिस्तान से कर दी.
कार्नेगी एंडाउमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस के सीनियर फेलो एश्ले टेलिस की राय में ट्रंप और रुबियो की मध्यस्थता के दावे बेमानी हैं. वे कहते हैं, ''यह ऐसा वादा है जो पूरा नहीं हो सकता. मुझे लगता है कि ट्रंप के हाथ में अरबों मामले हैं और हमें अभी भी गजा में युद्ध विराम और यूक्रेन युद्ध के अंत का इंतजार है, जो उनके कुर्सी संभालने के 24 घंटे के भीतर होने वाला था." टेलिस का मानना है कि आम धारणा के उलट भारत और पाकिस्तान दोनों बेमन से लड़ाई में उतरे और उनके लिए यह अनचाहा था.
वे कहते हैं, ''नाटकीय मोड़ तब आया, जब दोनों पक्षों को लग गया कि अपने नजरिए से उन्होंने एक-दूसरे को पर्याप्त नुक्सान पहुंचा दिया है और संकेत दे दिया कि किसी भी उकसावे का जवाब खाली नहीं जाएगा. कुछ मौकों पर, लड़ाई के मकसद से आपके विकल्प निकलते हैं. और, वह मौका अमेरिकी दखल ने यह समझाकर पैदा किया कि दोनों ने पर्याप्त किया है और वे आगे जो भी कदम उठाएंगे, उसके लिए पछताएंगे. इसके लिए, रुबियो को श्रेय देना चाहिए कि उन्होंने रास्ता निकाला."
हालांकि, बड़बोले बयानों और दावों से ऐसा लगा कि भारत ने अमेरिकी दबाव के आगे घुटने टेक दिए, न कि पाकिस्तान ने बढ़ते फौजी नुक्सान की वजह से भारत से संघर्ष विराम की गुहार लगाई. हक्कानी कहते हैं, ''मोदी के लिए सबक है कि ट्रंप के बहुत करीब जाने से सावधान रहना चाहिए, क्योंकि उनके बारे में कुछ भी शर्तिया कहना मुश्किल हैं."
रुबियो का वह बयान भी भारत के लिए उतनी ही किरकिरी वाला था कि नई दिल्ली किसी तटस्थ स्थान पर इस्लामाबाद से बातचीत फिर शुरू करने को तैयार है, जो भारत के इस पक्के ऐलान के खिलाफ है कि पाकिस्तान के साथ तब तक बातचीत नहीं होगी, जब तक वह आतंकवाद पर ढक्कन नहीं लगा देता. इससे भी बदतर यह है कि ट्रंप कश्मीर का हल खोजने के लिए खुद को बीच में लाना चाहते हैं, लेकिन भारत की स्पष्ट नीति है कि अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद घाटी की स्थिति पर पाकिस्तान के साथ कोई और चर्चा नहीं होगी.
मोदी ने अपने भाषण में ट्रंप के दावों को परोक्ष रूप से खारिज कर दिया. उन्होंने कहा, ''भारत का रुख एकदम स्पष्ट है—आतंक और वार्ता, व्यापार और वार्ता एक साथ नहीं चल सकते." उन्होंने यह भी संकेत दिया कि वे सिंधु जल संधि पर रोक तभी हटाएंगे जब पाकिस्तान आतंकवाद पर लगाम लगाएगा. उन्होंने कहा, ''पानी और खून एक साथ नहीं बह सकते." जहां तक कश्मीर मुद्दे पर मध्यस्थता की ट्रंप की पेशकश का सवाल है, मोदी ने इसे यह कहकर खारिज कर दिया, ''मैं वैश्विक बिरादरी को बताना चाहूंगा कि हमारी घोषित नीति है: अगर पाकिस्तान के साथ बातचीत होगी, तो वह सिर्फ आतंकवाद पर होगी, वह सिर्फ पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर पर होगी."
हालांकि, अमेरिकी नेतृत्व के दावों ने पाकिस्तान में जरूर दम भर दिया है. शहबाज शरीफ ने दावा किया कि न सिर्फ भारत के हमले का मुंहतोड़ जवाब दिया गया, बल्कि उन्हें उसकी कीमत भी चुकानी पड़ी. पाकिस्तान ने दावा किया कि उसने छह भारतीय लड़ाकू विमानों को मार गिराया, जिनमें पांच हमले की पहली रात को ही गिर गए. भारत ने अब तक इस आरोप का खंडन नहीं किया है. हालांकि वायु सेना अभियान के महानिदेशक एयर मार्शल ए.के. भारती ने कहा कि सभी भारतीय लड़ाकू पायलट सुरक्षित हैं, लेकिन ''नुक्सान लड़ाई का हिस्सा है.'
पाकिस्तान में भारत के पूर्व उच्चायुक्त अजय बिसारिया कहते हैं, ''साफ है कि भारत ने आतंकवादी अपराधियों और उनके सरपरस्त पाकिस्तान के खिलाफ भरोसेमंद प्रतिरोध कायम करने का अपना उद्देश्य हासिल कर लिया है, और पाकिस्तान संघर्ष विराम की मांग के लिए अमेरिकी हस्तक्षेप से नहीं, बल्कि भारत की सैन्य कार्रवाई से मजबूर हुआ. लेकिन मुनीर ने भी पाकिस्तानी झंडे से खुद को एकाकार करके, मुल्क की संप्रभुता के सच्चे रक्षक होने का दावा करके और कश्मीर के मुद्दे का एक बार फिर अंतरराष्ट्रीयकरण करके ताकत बटोरी है."
आगे क्या उम्मीद
अधिकांश विशेषज्ञ मौजूदा संघर्ष विराम को अस्थिर मानते हैं. इससे दोनों देशों के बीच कोई प्रमुख मुद्दा नहीं सुलझा है, इसलिए टकराव कभी भी पैदा हो जाने की पूरी गुंजाइश है. प्रधानमंत्री मोदी ने खुद कहा, ''हमने पाकिस्तान के आतंकी और सैन्य ठिकानो के खिलाफ जवाबी कार्रवाई स्थगित की है. आने वाले दिनों में हम पाकिस्तान के हर कदम को उसके अपनाए रवैये के आधार पर ही आंकेंगे.’’ एक अधिकारी ने भी कुछ इसी तरह टिप्पणी की, ''ऑपरेशन सिंदूर रोका गया है, खत्म नहीं हुआ है."
इस बीच, कई न्यूज चैनल मोदी सरकार के सूत्रों के हवाले से दावा कर रहे हैं कि अब भारत में होने वाले हर आतंकी हमले को युद्ध की कार्रवाई मानने का निर्णय लिया गया है. हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि यह आधिकारिक नीति है या नहीं. लेकिन यह जोखिम भरी नीति है जो भारत का फोकस सैन्य नजरिए की ओर कर सकती है, जबकि इसके बजाए उसे आर्थिक विकास पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और ऐसे हमले नाकाम करने के लिए अपने खुफिया और निगरानी तंत्र को मजबूत करना चाहिए.
दक्षिण एशिया मामलों के अमेरिकी विशेषज्ञ माइकल कुगेलमैन कहते हैं, ''शांति की स्थिति बहुत ही नाजुक है. जंग से दोनों देशों के बीच मौजूदा संकट के अलावा पहले से ही कायम तनाव के मुख्य कारणों से निबटा नहीं जा सका है, जिसमें आतंकवाद और कश्मीर मुद्दा शामिल है. इसमें एक-दूसरे के खिलाफ बेहद आक्रामक तरीके से अत्याधुनिक हथियारों और तकनीक का इस्तेमाल करना दर्शाता है कि संकट सुलझा नहीं है और दोनों देश आने वाले समय में कभी भी एक-दूसरे के खिलाफ खड़े नजर आ सकते हैं."
मोदी सरकार भी आसन्न खतरों से अच्छी तरह वाकिफ है और उसने सेना के तीनों अंगों को पूरी तरह सतर्क रहने का निर्देश दिया है. सेना के तीनों अंग इस जंग के नतीजों पर मंथन करने में जुटे हैं ताकि अपनी ताकत और कमजोरियों का आकलन कर सकें. भारत यह भी जानता है कि पाकिस्तान भी यही सब कर रहा होगा. आशंका यह है कि वह चीन और तुर्किए को भारतीय वायु शक्ति के मुकाबले के लिए अपनी क्षमता बढ़ाने में मदद के लिए राजी कर सकता है क्योंकि पाकिस्तान अच्छी तरह जानता है कि उसके पास भारतीय नौसेना की ताकत का कोई तोड़ नहीं है. ऐसे में भारत को दो मोर्चों पर विरोधियों से निबटना पड़ सकता है.
तनाव बढ़ने की स्थिति में चीन की तरफ से पाकिस्तान को हथियार मुहैया कराने की संभावना भी भारत के लिए गंभीर चिंता का विषय है. ऐसे में हथियारों के मामले में पाकिस्तान पर भारी पड़ने वाली भारत की साख प्रभावित हो सकती है क्योंकि तब पाकिस्तान को भारत के खिलाफ मोर्चे पर डटे रहने में मदद मिलेगी. जैसे, यूरोप और अमेरिका से लगातार हथियारों की आपूर्ति के कारण ही यूक्रेन रूस के खिलाफ टिक पाया है. भारत को अपने अंतरिक्ष-आधारित निगरानी और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध क्षमता को बेहतर बनाने पर काम करना होगा, जिन क्षेत्रों में चीन हमसे बेहतर स्थिति में है.
यह भी स्पष्ट है कि भारत ने जिस तरह आतंकी गुटों को निशाना बनाया और हमले में जैश-ए-मोहम्मद सरगना मसूद अजहर के परिजन मारे गए, वे फिर किसी बड़े हमले के लिए ताकत बटोरेंगे. फिर, पहलगाम हमले के तीन हफ्ते बाद भी उसे अंजाम देने वाले दहशतगर्दों को नहीं पकड़ा जा सका है.
पूर्व विदेश सचिव हर्ष शृंगला कहते हैं, ''हमें अपने खुफिया तंत्र और सुरक्षा व्यवस्था को और मजबूत करने की जरूरत है. पर्यटकों की कश्मीर में वापसी और आतंकी गुटों के मंसूबे नाकाम करने में सफलता तभी मिलेगी जब हम पूर्ण सुरक्षा मुहैया करा पाएंगे. हमारे पास ऐसे हमलों पर त्वरित प्रतिक्रिया का भी एक मजबूत तंत्र होना चाहिए. यानी जितना बड़ा हमला, उतनी ही कड़ी प्रतिक्रिया."
जाहिर है, यह सब इसलिए भी जरूरी है क्योंकि भारत को महत्वाकांक्षी आर्थिक विकास लक्ष्यों को हासिल करने के लिए बड़े पैमाने पर निवेश की जरूरत है. बार-बार टकराव से अनिश्चितता बढ़ेगी जो भारत के व्यापक हितों के खिलाफ है.
आगे कोई बड़ा संघर्ष टालने के लिए जरूरी है कि पाकिस्तान नियंत्रण रेखा पर संयम बरते और पहलगाम हमले से पहले तक लागू रहे 2021 के संघर्ष विराम समझौते की बहाली की दिशा में काम करे. कई विशेषज्ञों का मानना है कि भारत के लिए असल समस्या तो पाकिस्तान है लेकिन वह इसकी बजाए पाकिस्तान की तरफ से पैदा की गई समस्याओं से निबटने पर ध्यान केंद्रित करता है. पाकिस्तान में भारत के उच्चायुक्त रह चुके शरत सभरवाल का मानना है कि यह सारी कवायद निरर्थक है.
वे कहते हैं, ''जब 1971 की जंग में मिली करारी हार पाकिस्तान का रवैया नहीं बदल पाई तो क्या आपको लगता है कि चार दिन की लड़ाई से कुछ बदलने वाला है? रणनीतिक रूप से हमारा प्रयास उसे ऐसे बिंदु पर लाना होना चाहिए, जहां उसके साथ रचनात्मक जुड़ाव हो सके. यह लक्ष्य दूर की कौड़ी है लेकिन अच्छी कूटनीति कुछ न कुछ रास्ता तो निकाल ही सकती है." उनके मुताबिक, पाकिस्तान पर फौज के मुखिया मुनीर की पकड़ मजबूत होने के बावजूद तमाम आम लोगों को यही लगता है कि उनके देश को आतंकवाद के बजाय आर्थिक विकास और जनकल्याण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए.
पाकिस्तान आर्थिक मोर्चे पर तबाह हो चुका है और समय-समय पर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से मिलने वाली मदद पर निर्भर है, इसलिए उनका सुझाव है कि भारत को पाकिस्तान पर दबाव बनाने के दूसरे रास्ते खोजने चाहिए. शृंगला कहते हैं कि भारत को अमेरिका के अलावा सऊदी अरब के साथ मिलकर काम करना चाहिए, जिसकी पाकिस्तान सुनता है. यही नहीं, एक अनौपचारिक अंतरराष्ट्रीय गठबंधन बनाकर इस्लामाबाद को ऐसे बुरे और पुराने ढर्रे से बाहर निकालने के भी प्रयास किए जा सकते हैं.
भारत-पाकिस्तान के रिश्ते हमेशा उतार-चढ़ाव भरे रहे हैं, और कई अप्रत्याशित मोड़ के गवाह बनते रहे हैं. लेकिन किसी ने नहीं सोचा था कि युद्ध इतनी जल्दी खत्म हो जाएगा, और वह भी तब जब बड़े संघर्ष की ओर बढ़ रहा था. कभी-कभी अप्रत्याशित के सकारात्मक नतीजे भी हो सकते हैं, यही उपमहाद्वीप पर मंडराते काले बादलों के बीच उम्मीद की इकलौती किरण की तरह है.
चार दिन की जंग
पहलगाम नरसंहार का बदला लेने के लिए आतंकी ठिकानों पर भारत का हमला भड़काऊ नहीं था. पाकिस्तान ने सैन्य ठिकानों पर हमला किया और लड़ाई को ज्यादा घातक बना दिया. उसके हर हमले का भरपूर जवाब दिया गया. फिर, भारत ने पाकिस्तानी वायु सेना ठिकानों पर जोरदार हमले किए
पहला दिन
मई 7, रात 0100-0130 बजे
● पाकिस्तान के पंजाब और पीओके में नौ जगहों के आतंकी ढांचे पर सटीक प्रहार करके भारत ने ऑपरेशन सिंदूर की शुरुआत की.
● सटीक हथियारों से लैस राफेल/मिग 29 जेट ने जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के ठिकानों को निशाना बनाया; 100 के मारे जाने की खबर. पाकिस्तान ने भारतीय जेट विमानों को मार गिराने का दावा किया.
● उस दिन बाद में, पाकिस्तान ने राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की बैठक बुलाई. कश्मीर के जिलों में सीमापार गोलीबारी तेज हुई.
रात 8.30 बजे
● पाकिस्तान ने पलटवार शुरू किया; अवंतीपुर, श्रीनगर, जम्मू, अमृतसर, जालंधर, आदमपुर, बठिंडा, पठानकोट, उत्तरलई और भुज समेत 15 भारतीय एयरबेस पर ड्रोन, लॉइटरिंग म्यूनिशन से निशाना साधा गया.
● भारत के एयर डिफेंस (एडी) ग्रिड ने हमलों को बेअसर कर दिया.
● भारत का दावा है कि जवाबी कार्रवाई में पाकिस्तानी एडी को निशाना बनाया गया, सप्रेशन ऑफ एनमी एयर डिफेंसेज (एसईएडी) ऑपरेशनों के जरिए लाहौर में अहम एडी सिस्टम को ध्वस्त कर दिया गया.
दूसरा दिन
8 मई, रात 8:30 बजे- सुबह 04:30 बजे (8 मई)
● पाकिस्तान ने सतह से सतह पर मार करने वाली छोटी दूरी की मिसाइलों से हमला किया, उधमपुर और पठानकोट एयरबेस को निशाना बनाया गया.
● भारत की एस-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली पहली बार जंग में सक्रिय हुई और कई हमलों को रोक दिया; इसके अलावा सतह से वायु मिसाइलें आकाश, बराक 8 वायु रक्षा प्रणाली, ऐंटी-ड्रोन प्रणालियां भी लड़ाई में कूदीं.
● पाकिस्तान ने जम्मू को निशाना बनाया; भारत का दावा है कि सभी मिसाइलों को सफलतापूर्वक मार गिराया गया.
● कुल मिलाकर, पाकिस्तान ने तुर्किए निर्मित 300-400 सोंगर ड्रोन को भारत के 36 ठिकानों पर भेजा. भारत ने जवाब में पाकिस्तान के चार एडी ठिकानों पर ड्रोन से हमला किया.
तीसरा दिन
9 मई रात 8.30 बजे से संघर्ष तेज हो गया
● पाकिस्तान ने भारतीय सैन्य ठिकानों पर हमले की कोशिश में 26 जगहों को निशाना बनाने की गरज से तीसरी लहर की शुरुआत की. भारत ने पाकिस्तान पर ड्रोन, भारी हथियारों से आम बस्तियों और धार्मिक स्थलों पर हमले का आरोप लगाया.
● पाकिस्तानी फतह-II मिसाइल से 'महत्वपूर्ण ठिकाने’, खबरों के मुताबिक, दिल्ली की ओर निशाना साधा गया, जिसे सिरसा के ऊपर मार गिराया गया. किसी तरह के नुक्सान के पाकिस्तानी दावे को झुठलाते हुए भारत ने सही-सलामत एयरबेसों की तस्वीरें जारी की.
● भारत ने अभियान तेज किया और पाकिस्तानी सैन्य ठिकानों पर हमला बोला. तेज हवाई संघर्ष. पाकिस्तान भारतीय वायु रक्षा प्रणाली को भेदने के लिए संघर्ष करता रहा.
चौथा दिन
10 मई, रात 1.40 के बाद
● पाकिस्तान ने ऑपरेशन बनयान अल मरसूस शुरू किया. पंजाब में एयरबेसों पर हमले बढ़ाए, जम्मू-कश्मीर पर मिसाइलों से हमला किया, अमृतसर के पास आम लोगों के क्षेत्रों को भी निशाना बनाया.
● भारत ने पाक के आठ एयरबेसों—मुरीद (चकवाल), सक्खर, रहीम यार खान, भोलारी, रफीकी, शाहबाज (जैकबाबाद), मुशफ (सरगोधा) और नूर खान (चकलाला/रावलपिंडी) पर हमला बोला.
● सैन्य ठिकानों, कमान सेंटर, रडार स्थलों, हथियार भंडार इलाकों को निशाना बनाया गया.
● नूर खान पाक फौज मुख्यालय और उसके एटमी कमान की ऑपरेशनल शाखा, सामरिक योजना डिविजन के करीब है, जिससे तनाव बढ़ गया.
● पाकिस्तान से मिली खबरों में दावा किया गया कि नेशनल कमान अथॉरिटी ने बैठक की जो उसके एटमी रिस्पॉन्स को संचालित करती है. बाद में इससे इनकार किया गया.
● जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा, बारामूला, पुंछ, राजौरी, अखनूर सेक्टरों में भारी तोपखाने, मोर्टार से गोलाबारी की गई.
● पाकिस्तान ने 31 आम लोगों की मौत और 57 लोगों के घायल होने की बात कही, जबकि भारत ने रातभर की पाकिस्तानी गोलाबारी में 12 लोगों की मौत और 57 लोगों के जक्चमी होने की खबर दी.
5 बजे शाम: संघर्ष विराम लागू हुआ.
—प्रदीप आर. सागर.