दर्शकों और बॉक्स ऑफिस को कैसे हंसा रहे हैं बॉलीवुड के ये भुतहा चेहरे?
पल में मजाकिया, पल में खौफनाक. बॉलीवुड में हॉरर कॉमेडी फिल्मों का आया नया जमाना. चौंकने-डरने को बेताब दर्शकों के कंधों पर सवार होकर भूतों ने धूमधाम से की बॉक्स ऑफिस पर वापसी

चंदेरी की एक अंधेरी गली में एक नौजवान नाइजीरियाई गायक रीमा और सेलेना गोमेज के हिट गाने 'काम डाउन' अपनी ही किस्म की धुन और अंदाज में गाने में खोया है. वह अपने उस दोस्त का इंतजार कर रहा है जिसने अभी-अभी अपनी गर्लफ्रेंड को "सॉफ्ट चिट्टी, वार्म चिट्टी" (द बिग बैंग थ्योरी के गाने "सॉफ्ट किटी" का संदर्भ) लोरी सुनाना खत्म किया है. तभी मोटा-तगड़ा, विशालकाय सिरविहीन दैत्य कमरे में दाखिल होता है. सिरकटा के अलावा इसे आप और क्या कहेंगे! वह अपना कटा सिर बिस्तर के नीचे छिपाता है, और फिर चिट्टी को अगवा कर लेता है.
दर्शक ज्यों-ज्यों हंसी और डर के इस विशाल झूले में लोटपोट होते जाते हैं, स्त्री 2 देखते-देखते भारत में अब तक की दूसरी सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बन जाती है (अब इसने सबसे ज्यादा कमाई का रिकॉर्ड तोड़ दिया है). इसके 554 करोड़ रुपए बटोरने वाली जवान को भी पीछे छोड़ देने का अनुमान है. स्त्री 2 तो शाहरुख खान की अदाकारी से सजी और ऐक्शन से भरपूर फिल्म के आधे से भी कम बजट में बनी है. तरह-तरह के अदाकारों, चुटीले जुमलों और 'पितृसत्तात्मकता को चकनाचूर' करने के गूढ़ संदेश की बदौलत यह हॉरर कॉमेडी 530 करोड़ रुपए पहले ही छाप चुकी है.
स्त्री 2 कामयाबी के झंडे गाड़ने वाली इस साल की कोई पहली हॉरर-कॉमेडी नहीं है. बिना किसी नामी स्टार के, वीएफएक्स से रचे गए बाल राक्षस को आगे रखकर यही काम जून में मुंज्या ने किया था जिसने हैरतअंगेज ढंग से 100 करोड़ रुपए से ज्यादा कमाए थे. 1 नवंबर को भूल भुलैया 3 आने वाली है, जो सबसे पहली हॉरर-कॉमेडी फिल्मों में से एक का तीसरा संस्करण है. इससे भी बड़ी ओपनिंग की उम्मीद है. भूल भुलैया 2 (2022) ने 180 करोड़ रुपए बटोरे थे. ऐसे में यह पक्के तौर पर कहा जा सकता है कि 2024 हॉरर-कॉमेडी फिल्मों का साल है.
स्त्री 2 की कामयाबी इसके शानदार आंकड़ों से भी आगे जाती है. एक तो यह दुर्लभ फ्रेंचाइज फिल्म है जिसका नाम एक औरत और वह भी चुड़ैल के नाम पर रखा गया है और किसी सितारे के कंधे पर सवार नहीं है. इसके बजाए यह फिल्म दमदार अदाकारों—श्रद्धा कपूर, राजकुमार राव (बिकी), अभिषेक बनर्जी (जना), अपारशक्ति खुराना (बिट्टू) और पंकज त्रिपाठी (रुद्र भैया)—पर भरोसा करती है जो सितारों की बंधी परिभाषा के दायरे में भले न आते हों लेकिन इस फिल्म के किरदार निभाते हुए अपने आप में सितारे बन गए हैं.
राव को दहशत और आतंक के बीच हंसाने-गुदगुदाने का फन आता है—रागिनी एमएमएस इसका अच्छा उदाहरण है. वे कहते हैं, "मुझे लगता है ट्रैजडी में कहीं न कहीं कॉमेडी होती है. चैपलिन साहब का पूरा करियर इसी पर टिका है. स्त्री 2 में मैं जो कर रहा हूं, वह पूरी तरह ट्रैजिक है—भूतों का मुकाबला करते और उनसे लड़ते हुए बुरी तरह डरा हुआ हूं, लेकिन लोगों के लिए यह देखना मजेदार है." उन्हें लगता है कि इस विधा की ताजगी दर्शकों को अपनी तरफ आकर्षित कर रही है.
स्त्री को सेट पर ऐक्टर्स की चुहलबाजी, एक-दूसरे से विचार साझा करने और मौके पर इंप्रूवाइजेशन का भी फायदा मिला. बनर्जी कहते हैं, "यह कॉलेज की तरह है जहां कोई किसी का सगा नहीं है. ज्यों ही आप गलत हुए, दूसरे हंसने लगेंगे. अपार की अपनी चुटीली फब्तियां हैं, मैं कभी-कभी बेहद बेवकूफाना बातें कह सकता हूं. पंकज जी सीनियर शख्सियत हैं, इसलिए उनके सामने हमें कभी-कभी कायदे से रहना पड़ता है, पर वे भी किसी से कम नटखट और चुलबुले नहीं. खैर, लफंडरपने की बातें छोड़ दें तो हम लोग खासे एकाग्रचित्त और मेहनती प्रोफेशनल्स हैं."
शैतानों के पीछे की शख्सियतें
इस प्रोजेक्ट की कप्तानी निर्देशक अमर कौशिक ने की है, जो फॉरेस्ट रेंजर के बेटे हैं और जिन्होंने बचपन का बड़ा हिस्सा अरुणाचल प्रदेश में बिताया. (भेड़िया की पृष्ठभूमि और शूटिंग इत्तेफाकन अरुणाचल की है). हॉरर-कॉमेडी फिल्मों की दुनिया की तीन केंद्रीय और लोकप्रिय फिल्मों—स्त्री (2018), भेड़िया (2022) और स्त्री 2 (2024)—का निर्देशन कौशिक ने किया है. अपनी फिल्मों से उनका प्यार और लगाव सांताक्रूज के उनके दफ्तर में दिखता है.
चाहे वह भेड़िया के लिए जिंदा-सा दिखता भेड़िया हो, या दीवार पर लगी और चमकते लाल रंग में चीखती स्त्री की चर्चित अपील "ओ स्त्री कल आना". अपने काम के तरीके के बारे में कौशिक कहते हैं, "आप जोश में आकर कह सकते हैं, 'वाह, क्या फिल्म बनाई है', पर ज्यादा जरूरी बनाना और इसे अपने तरीके से कहना है." कौशिक की तीनों फिल्मों का सह-निर्माण दिनेश विजान की मैडॉक फिल्म्स ने किया है. मुंज्या को भी जोड़ लें तो साथ मिलकर दोनों इस विधा की पहेली बन गए हैं.
कोई एक धागा इन सभी फिल्मों को बांधता है तो वह यह कि कहानियों की जड़ें भारतीय लोककथाओं और अंधविश्वासों में हैं. इस साल की धीरे-धीरे हिट होने वाली फिल्म मुंज्या के निर्देशक आदित्य सरपोतदार कहते हैं, "असुर, राक्षस, काला जादू और तंत्र-मंत्र हमारे धार्मिक रीति-रिवाजों का हिस्सा रहे हैं. स्थानीय लोककथाओं पर आधारित हॉरर नैरेटिव पैठ बनाने और दिलों से तार जोड़ने में उनकी मदद करते हैं." कौशिक तो हॉरर के ज्यादा मुरीद भी नहीं. वे बताते हैं कि माकूल शीर्षक खोजने के लिए भी उन्हें गूगल करना पड़ता था.
लेकिन दादी की सुनाई कहानियां उनके मन में बसी हैं. वे कहते हैं, "हॉरर को मैं फंतासी की दुनिया की तरह बरतता हूं. कब्र से निकलती लाशें, महल में कोई अकेला... ये मेरे दृश्य नहीं." डर पैदा करने वाले सेट के हिस्से गढ़ने के अलावा उन्हें राहत के कुछ पल खोजना अच्छा लगता है. यही वजह है कि वे रोज किसी हिंदी फिल्म का गाना, खासकर नब्बे के दशक की फिल्म का भूला-बिसरा गाना, बजाकर और उसकी धुन पर अदाकारों और क्रू के सदस्यों को नचाकर शूटिंग की शुरुआत करते हैं ताकि दिन जज्बे के साथ शुरू हो.
कहानी, संवाद और स्क्रीनप्ले की कमान नीरेन भट्ट के हाथ में है, जो सिविल इंजीनियर से आईटी कंसल्टेंट और फिर लेखक बने हैं. अपने किरदार जना के स्त्री और भेड़िया दोनों में होने की वजह से खुद को खुशकिस्मत मानने वाले बनर्जी का कहना है कि कौशिक और भट्ट फिल्म उद्योग के नए जमाने के गैंगस्टर हैं. कौशिक सेट पर सबसे ज्यादा मौज-मस्ती करते हैं और भट्ट भले गुलजार जैसे मिजाज वाले दिखते हों पर अंदर से वे भी खासे मजाकिया हैं. बनर्जी कहते हैं, "वे पूरी तरह से कुछ ऐसा कर रहे हैं जिसकी दूसरों को खबर नहीं. मैं दोनों के करीब हूं, पर कभी-कभी मैं भी उनकी कल्पना से हैरान रह जाता हूं."
गुलजार और गालिब के मुरीद और स्टीफन किंग की डार्क टावर सीरीज (गन स्लिंगर पसंदीदा) के प्रशंसक भट्ट बताते हैं कि हॉरर-कॉमेडी की दुनिया रचने का ख्याल पहले-पहल उन्हें महामारी के दौरान भेड़िया लिखते वक्त आया. भट्ट डर पैदा करने वाले लम्हों को उस चीज से बनाते-संवारते हैं जिसे वे 'केले के छिलके' वाला हास्य कहते हैं. मसलन, जना को जब उसके दोस्त अकेला छोड़कर चले जाते हैं तो उसकी दुर्दशा दर्शकों में हास्य उपजाती है. इसमें शब्दों के खेल, स्लैप्स्टिक कॉमेडी और बेवकूफाना पॉप कल्चर के इशारे भी हैं.
भट्ट कहते हैं, "इस विधा की खूबसूरती यह है कि ड्रामा फिल्मों के विपरीत हॉरर-कॉमेडी फिल्म दर्शकों में स्वत:स्फूर्त प्रतिक्रिया पैदा करती है. यह सामुदायिक अनुभव है. पूरा आनंद लेने के लिए आप इसे ज्यादा लोगों के साथ देखते हैं." इस विधा को उद्देश्यपूर्ण बनाने वाला सामाजिक संदेश 'दृश्य रचनाओं, रूपकों और व्यंग्य के माध्यम से' दिया जाता है.
इसीलिए भेड़िया फिल्म में भेड़िया मूलवासियों और बाहरी लोगों के बीच टकराव और तीव्र औद्योगिकीकरण की वजह से छीजते जंगलों को सामने लाने के लिए वाहक का काम करता है. कौशिक इसमें इतना और जोड़ते हैं, "आपको दर्शकों को आईना दिखाना होता है, पर संदेश उन्हें डांटे-फटकारे या उन पर चीखे-चिल्लाए बिना देना होगा."
डर के आगे...हंसना जरूरी
अच्छी हॉरर फिल्म की सबसे खास बात होती है कि यह आपको घबराहट से उबारने के लिए बीच-बीच में थोड़ा हंसाती है. लेकिन खराब तरीके से बनाई गई फिल्मों में घटिया विजुअल इफेक्ट्स और बेढंगे दृश्यों को देखकर आपकी हंसी छूट जाती है. सत्तर और अस्सी के दशक में हॉरर फिल्मों के बेताज बादशाह रामसे ब्रदर्स ने भी डराने की अपनी चिर-परिचित शैली के बीच लोगों को थोड़ा ब्रेक देने की जरूरत महसूस की, जिनकी फिल्मों में भयानक राक्षस, कब्रिस्तान, जादू-टोना, कोहरा, बिजली कड़कने-गिरने की आवाज, भूसे से भरे जानवरों के सिर और प्राचीन मूर्तियों वाली हवेलियां मुख्य आकर्षण हुआ करती थीं.
लेखक शाम्या दासगुप्ता की किताब डोंट डिस्टर्ब द डेड हमें उस परिवार से रू-ब-रू कराती है जिसे फिल्म जगत में हमेशा हॉरर का पर्याय माना जाएगा. किताब बताती है, श्याम रामसे हॉरर की तरफ झुकाव रखते थे जबकि तुलसी का रुझान कॉमेडी, म्यूजिक और अन्य पहलुओं में था.
दासगुप्ता किताब में कहते हैं, "वरना डरावनी फिल्में लोगों को गुदगुदाने वाले दृश्यों के बिना एकदम नीरस हो जातीं." जरा याद कीजिए, पुराना मंदिर में ललिता पवार और जगदीप पर फिल्माया गया शोले की पैरोडी वाला सीक्वेंस या फिर वीराना में हॉरर फिल्म निर्देशक की भूमिका निभाने वाले सतीश शाह को, जो प्रेरणा की तलाश में जाने-माने फिल्म निर्देशक हिचकॉक को पूजते हैं. लेकिन रामसे ब्रदर्स की फिल्में असल में हॉरर कॉमेडी नहीं थीं. हिंदी में सबसे पहली हॉरर कॉमेडी फिल्म भूत बंगला (1965) को माना जा सकता है, जो मशहूर कॉमेडियन महमूद के निर्देशन में बनी थी.
हालांकि, भूत बंगला इस मामले में एक अपवाद थी. तब तक हिंदी फिल्म जगत में हॉरर का कोई नामलेवा भी न था, जब तक रामसे ब्रदर्स इस मैदान में नहीं कूदे. राम गोपाल वर्मा ने नब्बे और 2000 के दशक में रात, कौन, भूत और फूंक जैसी फिल्मों के जरिए लोगों को रोंगटे खड़े कर देने वाले डरावनी फिल्मों की दुनिया से परिचित कराया. वही काम भट्ट परिवार ने राज फ्रेंचाइच के जरिए किया.
फिर भी आमराय यही रही कि हॉरर फिल्में दर्शकों की भीड़ नहीं जुटा पातीं. खासकर, इसलिए क्योंकि अधिकांश फिल्में वयस्कों के लिए होती हैं. पर 2024 में यह सब बदल जाने वाला लगता है. जियो स्टूडियोज की शैतान 100 करोड़ रुपए के क्लब में शामिल होने वाली पहली हॉरर फिल्म बनी. काला जादू वाले शैतान की इस कहानी में अजय देवगन और आर. माधवन जैसे बड़े स्टार नजर आए. माधवन ने जहां बुरी आत्मा वाला किरदार निभाया, वहीं देवगन बेटी को बचाने की जद्दोजहद में जुटे एक पिता के रूप में दिखे.
मौजूदा समय में हॉरकॉम यानी हॉरर कॉमेडी की भरमार ने इस शैली की पूरी रूपरेखा बदलकर रख दी है. इसमें संकट में घिरी एक युवती अपनी लड़ाई खुद लड़ने में सक्षम हो सकती है (रूही). शोधकर्ता मितुराज धुसिया ने इंडियन हॉरर सिनेमा: (एन) जेंडरिंग द मॉन्स्ट्रस नाम से किताब लिखी है. वे कहते हैं कि "हॉरर कॉमेडी दरअसल मुख्यधारा की नॉन-हॉरर फिल्मों में जगह बनाने वाले पुरुष विषमलैंगिक विमर्श से इतर ऐसी चीजों पर चर्चा करती है जो उन्हें अधिक प्रगतिशील और शक्तिशाली बनाती हैं."
स्त्री 2 में बनर्जी का एक जोरदार डायलॉग है, "भेड़िया बन, जानवर नहीं." यह रणबीर कपूर की ब्लॉकबस्टर पर एक कटाक्ष है. हंसराज कॉलेज में अंग्रेजी के एसोसिएट प्रोफेसर धुसिया जंगल के रक्षक उस भेड़िये का जिक्र करते हैं जो कृति सैनन अभिनीत भेड़िया और मुंज्या में नजर आया और जो बड़ी संजीदगी के साथ सहमति का मुद्दे भी को उठाता है. क्योंकि एक लड़के की बेचैन आत्मा एक ऐसी महिला को पाने की इच्छा रखती है जिसकी उसमें दिलचस्पी नहीं है.
धुसिया कहते हैं, "हिंदी फिल्म उद्योग तो प्रेमी के प्रेमिका के आगे-पीछे घूमने वाली कहानी पर फलता-फूलता है लेकिन मुंज्या किसी तरह के उन्माद, किशोरवय के मर्दानगी वाले भाव और प्यार के जुनून से अलग हटकर थोड़ा-सा सेंसर वाले प्यार को दिखाती है, जिसमें अंत में आप यही सोच सकते हैं कि लड़के-लड़कियां अच्छे दोस्त भी तो हो सकते हैं."
क्षेत्रीयता का तड़का
क्षेत्रीय सिनेमा में तो हॉरर-कॉमेडी खूब फल-फूल रही है. राघव लॉरेंस की मुनि सीरीज के रूप में तमिल फिल्म उद्योग की अपनी हॉरकॉम फ्रेंचाइज है, जिसमें अब तक चार फिल्में आ चुकी हैं. लेकिन बंगालियों से ज्यादा हॉरकॉम तो शायद ही किसी को पसंद हो. अजब गायेर अजब कथा (1998), भूतेर भबिष्यत (2012), जेखाने भूतेर भोय (2012), गोयनार बख्शो (2013), छायामोय (2013), भबिष्यतेर भूत (2019), बल्लभपुरेर रूपकथा (2022) कुछ ऐसी ही लोकप्रिय फिल्में हैं.
मराठी हॉरकॉम जपटलेला, पच्चदलेला और भूताचा भाऊ के प्रशंसक सरपोतदार ने मौली और फास्टर फेने जैसी हिट मराठी फिल्में बनाई हैं. लेकिन जिस एक फिल्म ने उन्हें इस शैली के महारथी का दर्जा और मुंज्या निर्देशित करने का मौका दिलाया, वह थी जोम्बिवली (2022).
सरपोतदार बताते हैं कि उनका परिवार इस तरह की डरावनी चीजों के प्रति उनके नए झुकाव को समझ नहीं पा रहा. वे कहते हैं, "मुझे छोटे शहरों में स्थानीय लोगों के साथ बैठकर बतियाना और उनसे भूत-प्रेतों वाली कहानियां सुनना बेहद पसंद है." तीन हॉररकॉम के निर्देशन के बाद अब वे मैडॉक फिल्म्स के लिए एक और फिल्म बना रहे हैं, जिसमें वैंपायर दिखेंगे.
सरपोतदार का मानना है कि हिंदी सिनेमा में हॉरर कॉमेडी का बेंचमार्क स्थापित करने वाली फिल्म भूल भुलैया (2007) थी. हालांकि, यह फिल्म मोहनलाल, सुरेश गोपी और शोभना अभिनीत 1993 की मलयालम फिल्म मणिचित्रताजू की रीमेक थी. सरपोतदार कहते हैं, "आप इसके प्रभावशाली दृश्यों में खो जाते हैं. हॉरकॉम में आप भावनात्मक अनुभवों की दुनिया में पहुंच जाते हैं. ये आपकी कल्पनाशक्ति जगाती हैं और फैंटसी, एडवेंचर और रोमांच के भाव से भर देती हैं."
फैलता यूनिवर्स
एक समय फिल्मों में इंसानों के दैत्यों में तब्दील होने वाले दृश्य ऐसे बनावटी हुआ करते थे कि लोगों की चीख तो नहीं निकलती थी, बल्कि ठहाके जरूर गूंजने लगते. लेकिन डीईएनजी, मूविंग पिक्चर कंपनी और डिजिटल डोमेन जैसे विश्व प्रसिद्ध विजुअल इफेक्ट स्टूडियो के भारत में कदम रखने के साथ फिल्म निर्माताओं के पास अब डरावने दृश्यों को एकदम असली जैसा दिखाने के कई तकनीकी साधन हैं.
कई ऑस्कर जीत चुके डीएनईजी स्टूडियो में सीईओ नमित मल्होत्रा को मुंज्या के लिए बनाए गए "भयानक लेकिन हास्यपूर्ण किरदार" पर गर्व है. वे कहते हैं, "हॉरर कॉमेडी शैली में संतुलन स्थापित करना सबसे बड़ी चुनौती है. कारण यह कि इन प्रोजेक्ट्स में किरदारों का निर्माण इस तरह किया जाना चाहिए जो न केवल आकर्षक हों, बल्कि हॉरर और कॉमेडी दोनों तरह के तत्वों के लिहाज से दर्शकों को प्रभावित कर सकें."
मुंज्या को छोड़कर बाकी सभी मैडॉक हॉरकॉम की सह-निर्माता रिलायंस इंडिया लिमिटेड में प्रेसिडेंट मीडिया ऐंड कंटेंट बिजनेस ज्योति देशपांडे के लिए स्त्री 2 की सफलता में सबसे अच्छी बात यह है कि "पैसा प्रोडक्शन में लगाया जाता है, न कि किसी खास व्यक्ति पर. किरदार, कहानी और वर्ल्ड-बिल्डिंग ने बाकी सभी चीजों को पीछे छोड़ दिया है." इसकी एक मिसाल यह है कि मैडॉक की अब तक की कोई भी हॉरर फिल्म विदेश में शूट नहीं की गई. अधिकांश छोटे शहरों में शूट हुईं और सबमें अलग तरह की सेटिंग थी.
रही बात किरदारों की तो इसने श्रद्धा कपूर, राजकुमार राव, अभिषेक बनर्जी, पंकज त्रिपाठी को स्टार बना दिया है और मुंज्या अभिनेता अभय वर्मा और शरवरी को भी एक अलग मुकाम पर पहुंचा दिया. 2024 की हॉरर फिल्मों ने साबित कर दिया है कि बड़े बजट की, सितारों से भरी ऐक्शन ड्रामा ही ऐसी फिल्म नहीं होतीं जो सिनेमाघरों में भीड़ जुटाती हैं. मुंज्या, सरकटा, स्त्री जैसे चरित्र रचें और उनके लिए कहानियां बनाने पर पैसा खर्चें, दर्शक डरने और बीच-बीच में गुदगुदाने वाले दृश्यों का मजा खुद-ब-खुद सिनेमाघरों में खिंचे चले आएंगे.
हॉरकॉम की कमाई
स्त्री फ्रैंचाइज की सफलता के साथ जियो स्टूडियो अब अपनी आईपी (बौद्धिक संपदा) स्थापित करने और उससे पैसे कमाने की कोशिश कर रहा है. देशपांडे की नजर में यह ठीक वैसा ही सुनहरा मौका है, जैसे डिज्नी ने पिक्सर और मार्वल टाइटल्स और वार्नर ब्रदर्स ने डीसी एक्सटेंडेड यूनिवर्स के साथ अपने प्रशंसकों का एक व्यापक आधार तैयार कर लिया है. वे कहती हैं, "भारत में हम कभी मर्चेंडाइज और गेमिंग की बिक्री में आगे नहीं बढ़ पाए क्योंकि हमारे किरदार कभी सितारों से आगे बढ़ ही नहीं पाए. आइपी से सिर्फ एक बार में बड़ी कमाई नहीं होती, बल्कि यह लंबे समय तक कमाई कराता रहता है."
इसमें दो राय नहीं कि किसी चीज की बड़ी सफलता के साथ उसकी नकल की संभावना भी बढ़ जाती है. हॉरकॉम यूनिवर्स का केंद्रबिंदु बनने की वजह से मैडॉक फिल्म्स के पास इन दिनों इसी शैली की स्क्रिप्ट और कॉन्सेप्ट की भरमार है. लेकिन जैसा कि भट्ट जानते हैं, इसे भुनाना इतना भी आसान नहीं है और जरूरत से ज्यादा होने पर यह उल्टा भी पड़ सकता है.
आखिरकार, हर स्त्री और मुंज्या के साथ भूत पुलिस और फोन भूत भी तो हैं, और जो औंधे मुंह गिरे हैं. मैडॉक की भेड़िया और रूही भी स्त्री जैसी सफलता दोहराने में असमर्थ रहीं. सरपोतदार कहते हैं, "सवाल है कि यह शैली आखिरकार कब तक दर्शकों को थिएटर तक खींचने में सफल रहेगी? जाहिर है कि बहुत ज्यादा हॉरर कॉमेडी लोगों को उबा देगी."
यही वजह है कि कौशिक, विजान और भट्ट भेड़िया, स्त्री और मुंज्या की अगली सीरीज में अपना पूरा समय ले रहे हैं. कौशिक कहते हैं, "हमें ये यूनिवर्स संभालकर रखना है. अगर अच्छी फिल्में बनाते हैं, तो पैसा आएगा." बहरहाल, स्त्री 2 बढ़ती कमाई के साथ अपनी सफलता का जश्न मना रही है.
खासे दमदार साबित हुए ये दैत्य
हॉरर-कॉमेडी फिल्में जिन्होंने बॉक्स ऑफिस पर कैश गिनने वालों का काम बढ़ा दिया
गो गोवा गॉन (2013)
बजट*: 19 करोड़ रुपये
बॉक्स ऑफिस पर कमाई: 24 करोड़
राज और डीके निर्देशित इस हॉरर फिल्म में गोवा की एक रेव पार्टी कॉमिक अंदाज में अस्त-व्यस्त हो जाती है. कुणाल खेमू, वीर दास और आनंद तिवारी गड़बड़झाले में फंस जाते हैं. पूरे बवाल में सैफ अली खान की शक्ल में रूसी लुटेरा बोरिस साथ है, जो नकली आवाज से हास्य पैदा करता है.
स्त्री (2018)
बजट: 21 करोड़
बॉक्स ऑफिस पर कमाई: 135 करोड़
चंदेरी कस्बे में स्त्री नाम की एक चुड़ैल रात में सड़कों पर इंनसानों का शिकार करती घूमती है. लिहाजा सभी घरों के बाहर लिखा होता है 'ओ स्त्री कल आना'. विकी (राजकुमार राव) को जरा भी अंदाजा नहीं कि खूबसूरत रहस्यमयी बाला (श्रद्धा कपूर) के चक्कर में पड़कर उसने क्या जहमत मोल ले ली है.
रूही (2021)
बजट: 35 करोड़
बॉक्स ऑफिस पर कमाई: G 23 करोड़
एक बिरली हॉरर कॉमेडी जो नाकाम रही. नाकामी में इसकी रिलीज की तारीख का खासा अहम रोल रहा. यह ठीक महामारी के बीच 11 मार्च, 2021 को रिलीज हुई जब सिनेमाघरों में क्षमता से आधे लोगों को ही जाने की इजाजत थी. रूही के सिर पर सवार चुड़ैल अफजा से सामना हो जाने पर रूही के अपहर्ताओं की योजना गड्ड-मड्ड हो गई.
मुंज्या (2024)
बजट: 30 करोड़
बॉक्स ऑफिस पर कमाई: 127 करोड़
बाल दैत्य मुंज्या सता-सताकर बिट्टू (अभय वर्मा अपनी पहली मुख्य भूमिका में) की जिंदगी को नर्क बना देता है. वह उससे मांग करता है कि उसे बिट्टू के बचपन के प्यार बेला (शरवरी बाघ) से मिलवा दे. पुणे की पृष्ठभूमि में बनी यह फिल्म पीपल के पेड़ पर रहने वाली आत्मा से जुड़ी महाराष्ट्रियन लोककथा पर आधारित है और अपना साथी चुनने के औरत की योग्यता को भी छूती है.
स्त्री 2 (2024)
बजट: 100 करोड़
बॉक्स ऑफिस पर कमाई: 530 करोड़
बिकी और उसके साथियों के गैंग-बिट्टू (अपारशक्ति खुराना), रुद्रा (वरुण धवन) और जना (अभिषेक बनर्जी)-को रात में औरतों को अगवा करने वाले राक्षस सरकटा से कस्बे को बचाना है. टर्मिनेटर 2 की तरह पहले संस्करण में खौफ पैदा करने वाला पहलू दूसरे संस्करण में रक्षक बन जाता है.
भूल भुलैया 2 (2022)
बजट: 90 करोड़
बॉक्स ऑफिस पर कमाई: 81.65 करोड़
विद्या बालन की शक्ल में मंजुलिका और अक्षय कुमार की मूल फिल्म (जो खुद भी 1993 की मलयालम फिल्म मणिचित्रताजु की रीमेक थी) ने जबरदस्त ठहाके लगवाए. 15 साल बाद कार्तिक आर्यन इस फ्रेंचाइज में रूह बाबा बनकर आए, जो उजाड़ हवेली में दुरात्मा से लड़ता है. पर इसमें सारी वाहवाही तब्बू का किरदार लूट ले जाता है.
भेड़िया (2022)
बजट: 23 करोड़
बॉक्स ऑफिस पर कमाई: 70 करोड़
यपुम नाम के रूप बदलने वाले इंसानी भेड़िए की अरुणाचली लोककथा को उठाकर निर्देशक अमर कौशिक और लेखक नीरेन भट्ट ने एक दिलचस्प कहानी का तानाबाना बुना. यह फिल्म जंगलों की कटाई के खतरों को छूती और स्वीकार तथा सहअस्तित्व पर जोर देती है. फिल्म यह सब बड़े ही मजाकिया अंदाज में करती है
बॉलीवुड के ये भुतहा चेहरे
हिंदी सिनेमा की हॉरर फिल्मों के चर्चित चेहरे
ठाकुर, जानी दुश्मन (1979)
हिंदी सिनेमा के एकदम शुरुआती दैत्यों में से एक. संजीव कुमार एक ऐसे शख्स की भूमिका में जो एक प्रेतात्मा का साया पड़ने पर भूतिया काया में तब्दील होकर नवविवाहिताओं का शिकार करता है.
टाइगर, जुनून (1992)
फिल्मकार महेश भट्ट ने चर्चित क्लासिक भेड़िए को देसी बाने में ढालकर पेश किया. इसमें राहुल रॉय का किरदार किसी शाप के चलते हर अमावस की रात को एक बाघ में तब्दील हो जाता है.
चेटकिन, रागिनी एमएमएस (2011)
इसकी खूंखार आत्मा बार-बार कहती है: "मी चेटकिन नहीं." दो युवा दंपतियों पर उसने बुरी तरह से कहर बरपाया हुआ है.
हस्तर, तुम्बाड (2018)
ब्रह्मांड पर आधारित इस पीरियड हॉरर में हस्तर को लालच के चलते देवताओं की बिरादरी से निकाल दिया जाता है. अब यह अभिशप्त दैत्य लाल-सुनहरे रंग में नुमायां होता है.
भेड़िया, (2022)
भेड़िए के किरदार में वरुण धवन की देह में बदलाव होने लगते हैं. कभी उनका अंडरवियर फटने लगता है तो कभी दैत्यों-सी भूख जगती है
सरकटा, स्त्री 2 (2024)
औरतों के बारे में उसका नजरिया है: "चूल्हा-चौका और कपड़े धोना, और जब मर्द चाहे तब उसके साथ सोना." फिर वह एक स्त्री पर भरोसा कर लेता है.
सामरी, पुराना मंदिर (1984)
6.5 फुट लंबे अनिरुद्ध अग्रवाल (क्रेडिट में अजय) को शैतान के रोल के लिए ज्यादा मेकअप की जरूरत नहीं पड़ी थी. महिलाओं का शिकार कर वह मुर्दे खाता था. अग्रवाल ने बाद में बंद दरवाजा में नेवला की भूमिका निभाई. यह पिशाच चमगादड़ की देह अख्तियार कर मनुष्यों का शिकार करता था.
मंजुलिका, भूल भुलैया (2007)
विद्या बालन ने एक विद्रोही औरत के रूप में इसमें खौफनाक रूप धरा था. इसे लेकर अब भी खूब मीम बनते हैं और कई बार इस तर्ज पर लोग डराते भी हैं. फिल्म के तीसरे संस्करण में बालन फिर इसे दोहराने वाली बताते हैं.
स्त्री, (2018)
इस चुड़ैल में प्रतिशोध वाली रूह है. उससे मर्दों की पोंक सरकती है. इस स्त्री के पास अपनी एक मानवीय किस्म की बैकस्टोरी है. यह गरिमा और प्रेम जैसे एक स्त्री के अपने अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ती है.
मुंज्या, (2024)
शैतानों की जमात का सबसे युवा यह किरदार लॉर्ड ऑफ द रिंग्स के गोलम जैसा दिखता है. यह अपने को बेताल सरीखे नायक की तरह पेश करता है. इसमें बच्चों जैसे नाक में दम करने जैसे गुर भी हैं.