टी20 विश्व कप: भारतीय जांबाजों ने कैसे लिखी जीत की इबारत?
कैसे टीम इंडिया के कप्तान रोहित शर्मा और उनके जानदार, दिमागदार खिलाड़ियों की टोली ने टी20 क्रिकेट विश्व कप का खिताब अपने नाम किया, एक बेहद प्रेरणादायी अनकही कहानी

उस 'एक अभागे दिन' के साए से कैसे छुटकारा पाया जाए? मैनुअल कहता है, भूल जाओ और आगे बढ़ो. रोहित शर्मा ने यही किया. बस, उन्हें अहमदाबाद में 2023 क्रिकेट विश्व कप फाइनल के भूत को दफनाने में करीब 223 दिन लग गए. कप्तान ने बाद में 19 नवंबर की उस अभागी रात को कुछ ऐसे याद किया, "पिछली रात एक बुरा सपना था, है न? मुझे लगता है कि फाइनल कल है."
सो, आश्चर्य नहीं कि वे 29 जून, 2024 को बारबाडोस में विश्व कप जीतने के फौरन बाद केंसिंग्टन ओवल मैदान पर लंबे लेट गए, आंखें बंद कर ली, मानो एक झपकी और सपने में खो जाना चाहते हों. वाकई, वह भारतीय टीम की जीत की सबसे प्यारी तस्वीर थी. वे बोले, "मैं 2007 में (टी20) विश्व कप जीत के साथ मैदान में उतरा था और अब जीत के साथ अंत करना कितना सुखकर है. इस लम्हे जीवन का एक चक्र पूरा हुआ...यह शानदार है."
मगर दोनों फॉर्मेट में चौथी विश्व कप ट्रॉफी उठाने से पहले टीम इंडिया एक नहीं, कई अहम मौकों पर धोबी पछाड़ खाती नजर आई. इस मामले में भला दो साल पहले टी20 विश्व कप के पिछले संस्करण के सेमीफाइनल से अहम क्या हो सकता है. उसमें टीम इंडिया जैसे इंग्लैंड के सामने बिछ-सी गई, और इंग्लैंड चैंपियन बना. एडिलेड की अच्छी बल्लेबाजी वाली पिच पर 10 विकेट से हार ने बदस्तूर यह साफ किया कि टी20 क्रिकेट के मामले में टीम इंडिया अभी काफी पीछे है. तो, बहुत कुछ बदलना लाजिमी था.
उस 2022 टी20 विश्व कप से बाहर होने के बाद भारतीय क्रिकेट की अहम त्रिमूर्ति-रोहित शर्मा, विराट कोहली और राहुल द्रविड़ सबके निशाने पर आ गए. हालांकि किसी ने रो-को (रोहित-कोहली) के टी20 से संन्यास लेने की बात नहीं की, उन लोगों ने भी नहीं, लेकिन मोटे तौर पर यह समझ लिया गया कि 2024 का टी20 विश्व कप उनके करियर का आखिरी होगा.
उधर, द्रविड़ ने 50 ओवर फॉर्मेट के विश्व कप के बाद अपने अनुबंध को छह महीने के लिए बढ़ा लिया. जाहिर है, कुछ अधूरा था जो पूरा करना था. उन्होंने 2024 फाइनल के बाद कहा, "यह विश्व कप का महीने भर का सफर नहीं, बल्कि दो साल का सफर है. इस टीम को जोड़ने, हुनर में इजाफे, पसंदीदा खिलाड़ी, संतुलन, जैसा हम चाहते थे, वह सब कुछ बारबाडोस में इस खूबसूरत दोपहर में साकार हुआ."
इस टूर्नामेंट की तैयारी रोहित शर्मा और विराट कोहली के लिए भी आसान नहीं रही. तेजतर्रार हार्दिक पांड्या को टीम इंडिया का नया टी20 कप्तान बनाया गया, जबकि रोहित और विराट दोनों ही करीब 11 महीने तक टीम से बाहर रहे. यह संकेत था कि भारतीय क्रिकेट ने खेल के सबसे छोटे प्रारूप में युवाओं पर भरोसा करने का फैसला किया है. हालांकि पिछले साल वनडे विश्व कप में रोहित और विराट के प्रदर्शन के कारण उन्हें आखिरी समय में भारतीय टीम में शामिल किया गया था, लेकिन उनके लिए यह काम आसान नहीं था.
नाकामी का डर भगाना
सत्रह साल बाद टी20 ट्रॉफी फिर उठाने की टीम इंडिया की योजना का सबसे अहम हिस्सा नाकामी का डर भगाना था, जिससे वह पिछले मौकों पर लाचार हो गई थी. खिताब जीतने और हर बड़े क्रिकेट आयोजन में पसंदीदा प्रदर्शन का दबाव उन पर भारी पड़ रहा था. प्रमुख मैचों में उनका प्रदर्शन लड़खड़ा जाता था, जबकि बाकी टूर्नामेंट के दौरान वे शानदार फॉर्म में होते थे. डर भगाने का पहला कदम यह कबूल करना था कि 'नाकामी का डर’ आंखों के सामने था.
यह पद अमूमन विशेषज्ञों की राय और मीडिया रिपोर्टों में फाइनल में लस्तपस्त प्रदर्शन की खातिर जाहिर होता रहा है, लेकिन टीम में कभी किसी ने इसका जिक्र नहीं किया. अब यह रवैया भी बदल गया था. इस विश्व कप में मीडिया से बातचीत के दौरान, रोहित शर्मा ने खुलकर और दो-टूक कबूल किया कि नाकामी के डर ने आइसीसी ट्रॉफियों में भारतीय टीम के लंबे समय तक सूखे में अहम भूमिका निभाई. यह महसूस हुआ कि अहम मौकों पर खिलाड़ियों के लिए अपने आला गेम को दोहरा पाना आसान नहीं हो पाता था. इस समस्या का हल जरूरी था. भारतीय टीम को टी20 के लिए नए ब्लूप्रिंट की दरकार थी.
टी20 'टोटल क्रिकेट'
योजना सीधी-सरल थी कि भारतीय टीम को नए जमाने का टी20 क्रिकेट खेलना है. भारतीय क्रिकेट के सामने वही उलझन थी, जिसे महान डच फुटबॉलर दिवंगत जोहान क्रूफ ने यादगार शब्दों से व्यक्त किया था, "फुटबॉल खेलना बहुत आसान है, लेकिन आसान फुटबॉल खेलना सबसे मुश्किल." टी20 क्रिकेट की नई जरूरतों के मुताबिक खेलने का यह विचार कोई नया नहीं था कि चाहे कितने भी विकेट गिरें, ठोस इरादे के साथ आक्रामक बल्लेबाजी करो.
रोहित शर्मा ने यूएई में 2022 एशिया कप में पहले दौर में ही बाहर हो जाने के बाद कहा था, "हम अपना स्वाभाविक आक्रामक खेल खेलना चाहते हैं, भले ही हम 30 रन पर 3 विकेट खो दें." फिर भी, जब-जब कोई बड़ा मौका आया, भारतीय टीम परसेंट क्रिकेट के आसान तरीके में उतर आती.
परसेंट क्रिकेट का तरीका उसने 2013 की चैंपियंस ट्रॉफी के दौरान अपनाया था और वह कई साल कामयाब रहा. तरीका यह था कि तीन आला बल्लेबाजों रोहित, शिखर धवन और विराट पर जिम्मेदारी होगी कि सतर्कता और आक्रामकता के मेलजोल से ज्यादा से ज्यादा ओवरों में ठीक-ठाक स्कोर खड़ा कर दें.
लेकिन, हर तरीके की तरह, इसका भी एक वक्त था, खासकर टी20 क्रिकेट में, जिसमें बाकी दुनिया 'सावधानी और सर्तकता जाए भाड़ में' वाले रवैए में आगे बढ़ चुकी थी. अलबत्ता, भारतीय टीम का ट्रेडमार्क तरीका वन-डे में फायदा देता रहा है, मगर टी20 में तो यह सूर्यकुमार यादव के अर्धशतक से भी कम समय में पुराना पड़ गया.
ऐसे में, क्रूफ की 'टोटल फुटबॉल' की क्रांतिकारी अवधारणा की तरह, भारतीय क्रिकेट को 'टोटल क्रिकेट' की दरकार थी.
क्रूफ के 'टोटल फुटबॉल' ने खेल के पुराने तरीके सिरे से बदल दिए.
पुराने तरीके में डिफेंडर गोल बचाने के लिए होते, मिडफील्डर स्ट्राइकर को गेंद थमाने और स्ट्राइकर गोल करने के लिए होते हैं. इस बने-बनाए ढांचे को तोड़कर टोटल फुटबॉल की शैली में सभी 11 खिलाड़ियों की हिस्सेदारी आक्रमण और बचाव दोनों में ज्यादा से ज्यादा बनाई गई. इस प्रकार विपक्षी टीम के लिए खिलाड़ियों की खास भूमिका वाली शैली की खातिर रणनीति बनाना मुश्किल हो गया.
डच उस्ताद के विचार ने इस शैली को भी प्रोत्साहित किया कि आक्रमण ही बचाव का सबसे अच्छा तरीका है. उनकी अगुआई की टीमें ठीक-ठाक गोल अंतर से आगे होने पर भी गोल दागने की कोशिश करतीं, जबकि दूसरी टीमें सुरक्षित महसूस करने लगतीं. जब क्रिकेट में यह शैली लाई जाती है, तो टीमों से उम्मीद की जाती है कि एक, कई सारे हरफनमौला खिलाड़ी उतारे जाएं, और दूसरे, विकेटों का ख्याल रखे बिना आक्रामक बल्लेबाजी की जाए.
पिछले कुछ साल में टी20 क्रिकेट में भी ऐसा बदलाव देखने को मिला है, ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड और वेस्टइंडीज जैसी अधिकतर टॉप टीमें इसी शैली को अपना चुकी हैं. दूसरी ओर, भारतीय टीम अपनी पुरानी रणनीति में कैद थी. टी20 विश्व कप के उद्घाटन संस्करण के विजेताओं के लिए, टोटल क्रिकेट खेलने के नजरिए में 360 डिग्री बदलाव की जरूरत होती.
पहले तो, भारतीय क्रिकेट को 'स्टार खिलाड़ी' वाले दौर से बाहर निकलना था. खिलाड़ी को अपने रनों के बजाय टीम के स्कोर पर ध्यान लगना था. और यही वह समय था जब भारतीय टीम के दो सबसे बड़े नामों ने, जाहिर तौर पर, हामी में अपने हाथ ऊपर उठा दिए.
साथ मिलकर बने दमदार
अगुआ को आगे बढ़कर अगुआई करनी चाहिए, यह वाक्य सुनने में भले घिसा-पिटा लगे, असर पैदा करने की इसकी क्षमता को कम करके नहीं आंका जा सकता. जब आप पूरी टीम से उम्मीद करते हैं कि वह लगातार हमलावर रहे, फिर भले ही खिलाड़ियों के व्यक्तिगत स्कोर और औसतों पर इसका चाहे जो असर पड़े, तब आपको ऐसे कप्तान की जरूरत होती है जो रास्ता दिखाए. रोहित शर्मा ठीक यही करने में कामयाब रहे. बल्लेबाजी की प्रचुर प्रतिभा से भरपूर कप्तान टीम को तेज शुरुआत देने की खातिर अपने विकेट को जोखिम में डालने से कभी नहीं कतराए.
उनका अति आक्रामक रवैया प्रशंसकों को मायूस करने वाला हो सकता है, पर यही वह रवैया है जिसकी बदौलत 2024 के विश्व कप में उन्होंने मैच का रुख तय करने वाली कई पारियां खेलीं. यह कहना कि कप्तान की मानसिकता रिसकर नीचे बल्लेबाजी करने वाले हरेक खिलाड़ी तक गई, जाहिर-सी बात को कहना होगा, क्योंकि यह मैदान पर दिखा भी.
भारत की बल्लेबाजी के नए सांचे की विराट कोहली से बेहतर कोई मिसाल नहीं है. उनके अपने नामुमकिन तौर पर ऊंचे मानदंडों को देखते हुए यह टूर्नामेंट पूर्व कप्तान के लिए वैसा नहीं रहा जैसा उन्होंने चाहा होता, लेकिन खेल के सबसे अनिश्चित फॉर्मेट में भी ढेरों रन बटोरने की कला को सुप्त रखने और टीम की खातिर नया नजरिया अपनाने के लिए भी उच्च कोटि की प्रतिबद्धता चाहिए होती है. जहां तक बल्लेबाजी का नया नजरिया अपनाने की बात है, यह जाहिर था कि सभी बल्लेबाज एक ही ढंग से सोच रहे थे.
बुनियादी विचार यह था कि बल्लेबाजी इकाई को मिलकर अपने अलग-अलग हिस्सों के जोड़ से ज्यादा और बेहतर होना चाहिए. आठ बल्लेबाजों की टीम को अपने बल्लेबाजी के चरण में अपने सभी संसाधनों का इस्तेमाल करने के लिए लगातार दबाव और रफ्तार बनाए रखनी होती है. इससे टीम पहले बल्लेबाजी करते हुए हर मौके पर उम्मीद से ज्यादा रनों का अंबार लगा पाती है, बजाय महज बनाए जा सकने वाले रनों के, जैसा कि पहले ज्यादा तंग नजरिए के दिनों में आम था.
सुपर-8 चरण के दौरान इंडिया और बांग्लादेश का मैच इसका अच्छा उदाहरण था. ऐसी पिच पर जहां 180 रनों की उम्मीद की जा सकती थी, भारत ने बहुत अच्छे 196 रन का अंबार खड़ा कर दिया. पता यह चला कि महज एक अर्धशतक के बूते ही यह स्कोर हासिल कर लिया गया और बाकी बल्लेबाज तो फटाफट 20-30 रन बनाने के लिए आए. कप्तान रोहित शर्मा ने बाद में इसे 'परफेक्ट' मैच बताया, जिससे हमें भारतीय टीम के नजरिए में आए बदलाव की तरफ साफ अंदाजा हुआ.
ठीक इसी शैली और सांचे की बदौलत टीम इंडिया सेमीफाइनल में इंग्लैंड के खिलाफ गयाना की पेचीदा पिच पर मैच-जिताऊ 171 रन बटोर सकी, जो चुनौती देने के लिए काफी, बल्कि ज्यादा ही था. जहां दूसरी ज्यादातर टीमें 150 रनों का सुरक्षित लक्ष्य लेकर चली होतीं, भारतीय टीम ने अपनी नई रणनीति पर टिके रहते हुए पहले आधे मैच में ही पिछले चैंपियन को बैकफुट पर धकेल दिया.
टीम इंडिया में यह सहज बदलाव विपक्षी टीमों की नजर से भी छिपा नहीं रहा. यह पूछे जाने पर कि मौजूदा भारतीय टीम और 2022 के टी20 विश्व कप में इंग्लैंड से हारने वाली टीम के बीच क्या फर्क है, इंग्लैड के कोच मैथ्यू मॉट ने जवाब दिया, "2022 में उन्हें पक्का पता नहीं था कि अच्छा स्कोर क्या होगा. अब उनका तरीका हमें कड़ी टक्कर देना, अपनी बल्लेबाजी को अधिकतम करना, और हमारी पहुंच से बाहर स्कोर खड़े करना है."
बड़े स्तर पर देखें तो आईसीसी टी20 विश्व कप 2024 में भारत के बल्लेबाजी के फलसफे का लब्बोलुआब इस तरह रखा जा सकता है—खिलाड़ी के नाम के आगे टंके रन मायने नहीं रखते, अहमियत टीम के कुल रनों की है, जिससे खिलाड़ी का नाम भी अधिक रोशन हो सकता है.
जीत के बाद इंडिया टुडे के साथ बातचीत में इसकी तस्दीक करते हुए सूर्यकुमार यादव ने कहा, "मुझे अपना खेल, अपना ईगो पीछे रखना होगा और टीम को आगे रखना होगा. अमेरिका, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ मैचों में मुझे एक कदम पीछे हटकर टीम की जरूरतों के हिसाब से खेलने की जरूरत थी. जब हमें रफ्तार से बल्लेबाजी करनी होती है, तो मैं एक्सीलेरेटर जोर से दबा देता हूं."
हरफनमौला
बल्लेबाजी का नजरिया तो सुलझा लिया गया था, पर पूरे क्रिकेट को गढ़ने के लिए पहेली का अगला टुकड़ा खिलाड़ियों का चयन और बहुआयामी उपयोग था. भारतीय क्रिकेट में ऑलराउंडर या हरफनमौला खिलाड़ियों की कमी के बाद भी थिंक-टैंक ने चार बहुआयामी खिलाड़ियों को 15 के दस्ते में शामिल करने का तरीका ढूंढ लिया.
यह किसी भी तरह आसान काम नहीं था, क्योंकि कुछ अलोकप्रिय फैसले लेने पड़े. एक या दो ओवर गेंदबाजी करने की शिवम दुबे की क्षमता—हालांकि उन्हें टूर्नामेंट में गेंद फेंकने के लिए बुलाया नहीं गया—का नतीजा यह हुआ कि फॉर्म में चल रहे मध्य क्रम के बल्लेबाज रिंकू सिंह को बाहर बैठना पड़ा.
अक्षर पटेल और रवींद्र जड़ेजा—भले ही उन्होंने समान भूमिकाएं निभाई हों—दोनों ही अपनी ऑलराउंड क्षमताओं की वजह से खेलने वाली एकादश में अपनी जगह बनाने की खातिर प्रबल दावेदार कुलदीप यादव से आगे थे. फिर टीम मैनेजमेंट ने तीसरे सीमर के रूप में उनकी भूमिका के लिए हार्दिक पांड्या को समर्थन दिया, बावजूद इसके कि उनका आईपीएल बहुत खराब रहा था. पांड्या की तकदीर में आए 360 डिग्री उलटफेर से बेहतर कोई भी कहानी इस विश्व कप में भारत के बहादुराना कायापलट को बयां नहीं करती.
एक बार जब खिलाड़ियों की पहचान हो गई, तो उनका बेहतर से बेहतर इस्तेमाल अच्छे नतीजों की कुंजी था. यही वह चीज थी जिसका द्रविड़ और शर्मा ने अचूक सावधानी से तानाबाना बुना. भारत के बल्लेबाजी क्रम में रबर सरीखा लचीलापन (टोटल फुटबॉल की तरह) पूरे टूर्नामेंट के दौरान सामान्य थीम बना रहा.
टीम की बल्लेबाजी की क्षमता को अधिकतम तक पहुंचाने के लिए बल्लेबाजों को स्कोर, पिच की स्थितियों, मैच के मोड़ और गेंद फेंकने वाले गेंदबाजों के आधार पर अलग-अलग स्थितियों में उतारा गया. दरअसल विश्व कप की शुरुआत में ही भारतीय कप्तान अपनी व्यूहरचना बताने से कतराए नहीं. उन्होंने कहा, "केवल सलामी बल्लेबाजों की निश्चित जगह है, बाकी सभी को अपनी बल्लेबाजी के क्रम को लेकर लचीला होने और सामने मौजूद स्थिति के हिसाब से अपने को ढालने की जरूरत है."
इसीलिए पूरे विश्व कप में भारतीय बल्लेबाजी के क्रम में मध्यक्रम को ढुलमुल देखना आम बात थी. अक्षर पटेल पाकिस्तान के खिलाफ मैच में नंबर 4 पर बल्लेबाजी करने उतरे और उन्होंने 20 रन जोड़े, तो वही खिलाड़ी अफगानिस्तान के खिलाफ मैच में नंबर 8 पर बल्लेबाजी करने उतरा और ताबड़तोड़ 20 रन बनाए.
हार्दिक पांड्या ने सेमीफाइनल में नंबर 5 पर और फाइनल में नंबर 8 पर बल्लेबाजी की. रवींद्र जड़ेजा ने गयाना की अनिश्चित पिच पर दमदार शॉट लगाने वाले शिवम दुबे से पहले बल्लेबाजी की, तो दुबे बारबाडोस की बल्लेबाजी के अनुकूल पिच पर उनसे दो स्थान पहले बल्लेबाजी करने उतरे. इस लचीलेपन की बदौलत 'टोटल क्रिकेट' अपनी पूरी रंगत के साथ सामने आ सका. बल्लेबाज स्थितियों के हिसाब से अपनी क्षमता का इस्तेमाल कर सके, जबकि मैदान में भेजे गए बल्लेबाज से विपक्षी टीम को हैरान करके उनके मनसूबों में खलल डाल दिया.
जीत के सिरमौर!
टीम इंडिया के गेंदबाजों ने इस विश्व कप में एकदम जुदा अंदाज में शानदार-जानदार प्रदर्शन कर खुद को भारत के अजेय अभियान का अहम हिस्सा साबित किया—बल्लेबाजी में चमक बिखेरते सितारों की जगह गेंदबाजों ने दूसरी टीम के एक से बढ़कर एक धुरंधरों की जमकर धुनाई की और भारत को विश्व कप का हकदार बनाया. एक पुरानी कहावत है, "बल्लेबाज मैच जिताते हैं लेकिन गेंदबाज आपको टूर्नामेंट जिताते हैं," जो टीम इंडिया पर एकदम सटीक बैठती है.
हर मैच में जब गेंदबाज मैदान में उतरकर मोर्चा संभालते तो स्टेडियम में जुटे भारतीय प्रशंसकों का सिर्फ उत्साह ही नहीं, भरोसा भी कई गुना बढ़ जाता. दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ फाइनल मैच के दौरान आखिरी पांच ओवरों में से तीन में जसप्रीत बुमराह और अर्शदीप सिंह की गेंदबाजी बाकी थी, और इसी बात ने सूर्यकुमार यादव को यकीन दिला दिया था कि भारत अभी पूरी मजबूती से खेल में बना हुआ है. यहां तक, कई मौकों पर ऐसा लगा कि बल्लेबाज अच्छा-खासा स्कोर खड़ा करने में चूक गए हैं लेकिन तब बुमराह ऐंड कंपनी ने प्रशंसकों का भरोसा टूटने नहीं दिया और टीम को हार के मुंह से बाहर निकाला.
ग्रुप स्टेज में पाकिस्तान के खिलाफ जब टीम इंडिया का स्कोर महज 119 रन था और फिर फाइनल में जब बल्लेबाजों के मुफीद पिच पर 176 रन का ही स्कोर था, भारतीय बल्लेबाजों ने शानदार प्रदर्शन कर एक मिसाल कायम की. जाहिर है कि उनकी भूमिका अतीत से एकदम उलट थी, जब गेंदबाजों की लापरवाही से रन बहाने की भरपाई बल्लेबाजों को करनी पड़ती थी. निश्चित तौर पर भारतीय गेंदबाजों ने इसी भरोसे के दम पर बल्लेबाजों को किसी तरह के दबाव बिना खुलकर खेलने का मौका दिया. और इन सबका नतीजा सुखद निकला.
बल्लेबाजों की तरह गेंदबाजों के लिए भी पूरा खाका तैयार किया गया था—सबकी भूमिकाएं अच्छी तरह निर्धारित थीं. लेकिन इसमें थोड़ा हेरफेर भी महत्वपूर्ण था. अर्शदीप को अपनी स्विंग के साथ नई गेंद से विकेट लेने वाले और डेथ ओवर में रन घटाने की रणनीति के साथ उतारा गया तो लूप, डिप, टर्न और बदलती लाइन से अक्सर बल्लेबाजों के पसीने छुड़ा देने वाले कुलदीप यादव पर एक साथ विकेट लेने का जिम्मा था; हार्दिक और जडेजा का काम था, मध्य क्रम का तालमेल बिगाड़ना; जबकि अक्षर पटेल ऐसे फ्लोटर की भूमिका थे, जिसे मैच के बीच किसी भी चरण में उतारकर विपक्षी टीम की लय बिगाड़ी जा सके. और इन सबमें सिरमौर थे जसप्रीत बुमराह, जो अपने शानदार प्रदर्शन के बलबूते शो-स्टॉपर भी साबित हुए.
हर बार जब गेंद इस 30 वर्षीय तेज गेंदबाज के हाथ में होती, भारतीय प्रशंसक गजब के आत्मविश्वास से लबरेज हो जाते. पाकिस्तान को 36 गेंदों पर 40 रन चाहिए थे लेकिन भारत की जीत साफ नजर आ रही थी, क्योंकि उन 36 गेंदों में से 12 बुमराह के खाते में आ सकती थीं. दक्षिण अफ्रीका को 30 गेंदों पर 30 रन चाहिए थे लेकिन प्रशंसकों ने उम्मीद कतई नहीं छोड़ी क्योंकि 30 गेंदों में से 12 तेज गेंदबाज को फेंकनी थीं.
टीम इंडिया के लिए यह पहला मौका था जब क्रिकेट पंडित और प्रशंसक कोहली, रोहित और सूर्यकुमार यादव की शानदार बल्लेबाजी के बजाय बुमराह की जादुई गेंदबाजी पर अधिक भरोसा जता रहे थे. हाल यह था कि वेस्टइंडीज में मजाक-मजाक में यह कहा जाने लगा था कि भारत तो बेईमानी कर रहा है—रोहित ऐंड कंपनी तो पूरे 20 ओवर में बैटिंग कर लेती है लेकिन भारत के खिलाफ मैदान में उतरी टीम के बल्लेबाजों को केवल 16 ओवर मिलते हैं, क्योंकि बुमराह के चार ओवर उन्हें कोई स्कोर ही नहीं बनाने देते.
गुजरात में जन्मे इस तेज गेंदबाज ने टूर्नामेंट में सबसे ज्यादा विकेट भले ही न लिए हों लेकिन बल्लेबाजों को रन बटोरने से रोकने में प्रदर्शन इतना शानदार रहा कि सर्वसम्मति से प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट चुना गया. असल में उन्होंने विकेट लेने के बजाय अपने रन औसत की वजह से लोगों को हैरत में डाल दिया.
अब जबकि गेंदबाजों का प्रति ओवर आठ-नौ रन देना एक सामान्य बात माना जाता है, बुमराह का रन औसत 4.17 प्रति ओवर रहा. बारबाडोस में फाइनल के बाद मोहम्मद सिराज हाथ में जो तख्ती लिए नजर आए, वह बुमराह की क्षमताओं को दर्शाने का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है, इस पर लिखा था— "जल, थल और नभ में बुमराह ही सर्वश्रेष्ठ गेंदबाज हैं."
कैरिबियाई धरती पर धुला मलाल
भारतीय टीम जब अपने शानदार प्रदर्शन की बदौलत चैंपियन बनने जा रही थी, तब भी उसे इस मुकाम तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाने वाला सारथी पर्दे के पीछे रहकर ही खुश था. और, यह काम केवल राहुल द्रविड़ ही कर सकते थे. जैसा, वे अपने पूरे क्रिकेट करियर के दौरान हमेशा करते रहे हैं.
यहां तक, टीम को अपने कोच की खातिर खिताब जीतने के लिए प्रेरित करने वाला एक अच्छा सोशल मीडिया अभियान भी उनकी भावनाएं जगजाहिर करने में नाकाम रहा. डूइटफॉरद्रविड़ अभियान पर प्रतिक्रिया मांगे जाने पर टीम इंडिया के कोच ने कहा, "मैं किसी और के लिए ऐसा करने में विश्वास नहीं करता, यह मेरे मूल्यों के विरुद्ध है. एक पर्वतारोही माउंट एवरेस्ट क्यों चढ़ना चाहता है? क्योंकि उसे यह फतह करनी है. इसी तरह, हम विश्व कप क्यों जीतना चाहते हैं? क्योंकि हम इसे जीतने के लिए ही वहां हैं."
आखिरकार, उन्होंने अपनी भावनाओं पर नियंत्रण का यह बांध तोड़ा—और विश्व कप ट्रॉफी हाथ में लेने के साथ ही खुशी आंसू बनकर बह निकली. लेकिन यह तभी हुआ जब मिशन पूरा हो चुका था. उस समय, शायद यह मुमकिन भी नहीं था कि 2007 का वह क्षण दिमाग में न कौंधे. यह वही कैरेबियाई द्वीप था, जब द्रविड़ की कप्तानी में भारत 50 ओवर वाले विश्व कप में पहले दौर में ही बाहर हो गया था.
उस समय, भी कप्तान खुद को आंसू बहाने से नहीं रोक पाए थे. वह भारतीय क्रिकेट के लिए सबसे शर्मनाक पल था और आखिरकार द्रविड़ को अपनी कप्तानी छोड़नी पड़ी थी. अब बतौर कोच कैरिबियाई देश में जीत से मानो वह चक्र पूरा हुआ, जिसकी ओर रोहित भी इशारा करते हैं.
जीत के बाद मैदान पर मौजूद भारतीय कोच ने कहा, "मैं खुद को भाग्यशाली मानता हूं कि टीम ने मेरे लिए यह ट्रॉफी जीतना संभव बनाया...मेरी कोई थाती नहीं है. मुझे बस खुशी है कि हमने अपना सर्वश्रेष्ठ दिया.’’ जब टीम इंडिया ने जीत का जश्न मनाते हुए उन्हें हवा में उछाला तो ऐसा लगा कि राहुल द्रविड़ को वह सब कुछ मिल गया, जिसकी उनके जीवन में कमी रह गई थी. आखिरकार, बारबाडोस की धरती पर बिखरी सूर्य की किरणों के बीच पूरी तैयारी और सही रणनीति के साथ मैदान में उतरी टीम इंडिया ने अपने शानदार प्रदर्शन के बलबूते चमचमाती ट्रॉफी अपने नाम कर ली थी, जिसने पिछले सारे मलाल धोकर नए उत्साह से भर दिया."
— निखिल नाज़ बारबाडोस में