क्या है वो अनोखी दवा जो डायबिटीज और मोटापे को एक साथ कंट्रोल कर सकती है?

डायबिटीज और मोटापे के बेजोड़ इलाज के वादे के साथ उतरी इस औषधि ने देश-दुनिया में तहलका मचा दिया है. लेकिन वजन घटाने के लिए मनमाने ढंग से इस्तेमाल के हो सकते हैं खतरनाक नतीजे

 सेमाग्लुटाइड डायबिटीज और मोटापे दोनों में साबित हो रहा है फायदेमंद, इलस्ट्रेशन: नीलांजन दास
सेमाग्लुटाइड डायबिटीज और मोटापे दोनों में साबित हो रहा है फायदेमंद, इलस्ट्रेशन: नीलांजन दास

कोविड महामारी में दिल्ली के 44 वर्षीय कारोबारी नितिन चड्ढा (बदला हुआ नाम) का वजन 23 किलो बढ़ गया. इससे दांपत्य जीवन पर असर पड़ा, उन्हें आत्मग्लानि भी होने लगी. वे कहते हैं, "खुद को आईने में देखना या तस्वीरें लेना जैसे गुनाह हो गया." फिर वे डॉक्टर के पास गए जो उनके भाई के डायबिटीज का इलाज कर रहे थे.

उनके भाई राईबेल्सस दवाई ले रहे हैं, जो ओजेम्पिक दवा का टैबलेट स्वरूप है. इन दोनों में सेमाग्लुटाइड नाम का बेजोड़ रासायनिक घटक है. यह डायबिटीज काबू करने के साथ वजन भी घटाता है. चड्ढा बताते हैं, "कुछ ही महीनों में मेरे भाई का सात किलो वजन घट गया. मैं दवाई लेने लगा तो मेरा वजन भी 10 किलो घट गया." चड्ढा को डायबिटीज नहीं, मोटापे का रोग है. उनका बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) 34 है. वे चार महीने से राईबेल्सस ले रहे हैं. 

इसे नई चमत्कारिक दवा कहा जा रहा  है. सेमाग्लुटाइड ने अपने दोहरे फायदे की वजह से हर किसी का ध्यान आकर्षित किया. न सिर्फ यह इंसुलिन पैदा करने में सहायक है, बल्कि भूख पर लगाम कसकर और तृप्ति का भाव बढ़ाकर शरीर को 10-15 फीसद वजन घटाने में भी मदद करता है. डेनमार्क की दिग्गज फार्मा कंपनी नोवो नॉर्डिस्क ने इसे तीन रूपों में पेश किया है.

इंजेक्शन में दी जाने वाली ओजेम्पिक, टैबलेट या गोली में राईबेल्सस, (दोनों डायबिटीज के इलाज के लिए स्वीकृत) और वजन घटाने के लिए स्वीकृत इंजेक्शन वेगोवी है. मुंबई के एक कारोबारी की 48 वर्षीया पत्नी अनुराधा वर्मा (बदला हुआ नाम) कहती हैं, '"यह मुझे बहुत रास आई." जून 2023 से हर दो हफ्तों में वे अपना 'खरीदारी भत्ता' ओजेम्पिक की सुई लेने दुबई जाने पर खर्च करती रही हैं.

चार साल पहले डायबिटीज होने का पता चलने के बाद यह दवाई वर्मा के लिए जीवन रक्षक रही है. वे कहती हैं, "न सिर्फ मेरी ब्लड शुगर कंट्रोल में है, बल्कि इसे लेना शुरू करने के बाद मेरा वजन भी कई किलो कम हो गया है." अमेरिकी फूड ऐंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने 8 मार्च को कार्डियोवैस्कुलर डिजीज (सीवीडी) या दिल की बीमारियों से ग्रस्त वयस्कों के इलाज के लिए भी वेगोवी को मंजूरी दे दी.

यह उस देश के लिए अच्छी खबर ही हो सकती है जो न सिर्फ दुनिया की डायबिटीज राजधानी कहा जाता है और जहां अमेरिका और चीन के साथ "2022 में सबसे ज्यादा संख्या में मोटापे से ग्रस्त लोग पाए गए," बल्कि जिसकी आबादी को हृदय रोग जल्द होने का खतरा भी है. 2023 में छपे भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद और इंडिया डायबिटीज (आईसीएमआर-आईएनडीआईएबी) के अध्ययन ने 2021 में भारत में 10.1 करोड़ लोगों के डायबिटीज से और अन्य 13.6 करोड़ लोगों के प्री-डायबिटीज से पीड़ित होने का अनुमान लगाया.

ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज (जीबीडी) अध्ययन के अनुसार सीवीडी के मामले 1990 में 2.57 करोड़ से दोगुने बढ़कर 2016 में 5.45 करोड़ हो गए. भारत की आयु-मानकीकृत सीवीडी मृत्यु दर प्रति 1,00,000 आबादी पर 272 है, जो प्रति 1,00,000 पर 235 के वैश्विक औसत से ज्यादा है. वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम और हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ की 2014 की रिपोर्ट का अनुमान है कि 2012 और 2030 के बीच भारत को सीवीडी की वजह से करीब 21.7 खरब डॉलर (आज के हिसाब से 180 लाख करोड़ रुपए) का आर्थिक नुकसान होगा. 

डायबिटीज और सीवीडी दोनों का एक अंदरूनी कारक मोटापा हो सकता है. ताजातरीन राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे (एनएफएचएस-5) के आंकड़ों के मुताबिक, 24 फीसद महिलाएं और 23 फीसद पुरुष ज्यादा वजन के हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन मोटापे की परिभाषा शरीर में वसा का असामान्य या अत्यधिक जमा होना बताता है.

इसकी गणना बॉडी मास इंडेक्स या बीएमआई है, 25 से ज्यादा माने अधिक वजन और 30 से ज्यादा माने मोटापा. बदतर यह कि 56.7 फीसद महिलाएं और 47.7 फीसद पुरुष पेट के मोटापे से ग्रस्त हैं. फोर्टिस हॉस्पिटल फॉर डायबिटीज ऐंड एंडोक्राइनोलॉजी के डायरेक्टर डॉ. रीतेश गुप्ता कहते हैं, "पेट के मोटापे की वजह से पैंक्रियाज (पाचक-ग्रंथि) के लिए इंसुलिन पैदा करना मुश्किल हो जाता है और कई दूसरे अंगों पर भी दबाव आ जाता है."  

इसलिए जब दिग्गज डैनिश फार्मा कंपनी नोवो नॉर्डिस्क ने 2017 में अमेरिका में ओजेम्पिक लॉन्च की, तो भारत के केंद्रीय दवा मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) को ज्यादा वक्त नहीं लगा और उसने 2020 में टाइप 2 डायबिटीज के इलाज के लिए राईबेल्सस को मंजूरी दे दी. अलबत्ता व्यायाम और आहार संतुलन पर भी जोर दिया गया.

जनवरी, 2022 में भारत में लॉन्च इस दवा को अब तक पारंपरिक दवा के रूप में प्रयुक्त मेटफॉर्मिन के साथ इलाज के लिए दिया जाने लगा. यह डायबिटीज से ग्रस्त मोटे या अधिक वजन के मरीजों के लिए खास तौर पर कारगर थी, क्योंकि यह वजन कम करने में भी मददगार थी, जो डायबिटीज के दूसरे दो इलाज, मेटफॉर्मिन और इंसुलिन नहीं कर सकते थे. कुछ डॉक्टरों के मुताबिक, मेटफॉर्मिन का व्यक्ति के वजन पर असर नहीं होता, इंसुलिन में वजन बढ़ाने वाले गुण थे.

अलबत्ता यह सेमाग्लुटाइड का वरदान ही था जिसमें इसका अभिशाप भी उभरने लगा. शरीर की छवि को लेकर जुनूनी दुनिया में इस दवा का इस्तेमाल छरहरे होने की गरज से ऐसे लोग ज्यादा करने लगे जो न तो डायबिटिक थे और न ही जिनका वजन ज्यादा था. बेंगलूरू के बैन्नरघट्टा रोड स्थित फोर्टिस अस्पताल में एंडोक्राइनोलॉजी के कंसल्टेंट डॉ. श्रीनिवास पी. मुनिगोटि कहते हैं, "इसे भारत सहित दुनिया भर के लोग वजन घटाने के धमाकेदार एजेंट के तौर पर देखने लगे."

ओपरा विन्फ्रे से लेकर ईलॉन मस्क तक, टेक मुगल से लेकर टिक टॉक इन्फ्लुएंसर तक तमाम किस्म के जाने-माने लोग वेगोवी की खूबियों के गुण गाने लगे. नतीजतन, ऐसी तंगी पैदा हुई कि वही लोग इसके लिए तरस गए जिन्हें वाकई इस दवा की जरूरत थी. ठीक यही वह नुक्ता था जो ओजेम्पिक के करीबी प्रतिद्वंद्वी मौन्जारो और जेपबाउंड के निर्माता एली लिली ने ऑस्कर की रात से एक दिन पहले अपने विज्ञापन में उठाया, और हॉलीवुड के ए-लिस्टर्स की आलोचना की कि वे पोशाक या टक्सेडो में फिट होने की खातिर छरहरे होने के लिए उनकी दवाई का इस्तेमाल कर रहे हैं.

यह दीवानगी भारतीय समुद्र किनारों तक भी आ पहुंची. इसकी महंगी कीमत भी मजबूत देसी इरादों को शादी और अवार्ड फंक्शन में बेहतरीन दिखने की ललक से यह स्किनी पेन (दुबला-पतला पेन, जैसा कि सेमाग्लुटाइड के इंजेक्शन को कहा जाता है) हासिल करने से नहीं रोक सकी.

मार्केट रिसर्च कंपनी आईएमएआरसी ग्रुप के अनुसंधान से पता चला कि भारत का वजन प्रबंधन बाजार 2022 में 1.72 लाख करोड़ रुपए का था और 2028 तक इसके 3.14 लाख करोड़ रुपए पर पहुंचने का अनुमान है. मगर, कॉमर्स से लेकर इनसाइट्स टेक्नोलॉजी कंपनी फार्मारैक के आंकड़ों के मुताबिक, राईबेल्सस के लॉन्च के बाद भारत में वजन घटाने का बाजार आकार में करीब तिगुना बढ़कर 4.74 लाख करोड़ रुपए का हो गया है.

तो, क्या सेमाग्लुटाइड वाकई वह वरदान है जिसके लिए इसकी जय-जयकार की जा रही है? नेशनल डायबिटीज ओबेसिटी कोलेस्टरॉल फाउंडेशन के डायरेक्टर और फोर्टिस सी-डीओसी सेंटर ऑफ एक्सेलेंस फॉर डायबिटीज के चेयरमैन डॉ. अनूप मिश्रा ऐसा नही मानते. वे कहते हैं, "सेमाग्लुटाइड में वजन घटाने और डायबिटीज पर नियंत्रण के फायदे हैं, मगर मैं दो वजहों से इसे भारत में डायबिटीज के मरीजों के इलाज की प्रथम पंक्ति बनते नहीं देखता. एक, कीमत बहुत ज्यादा है. दूसरे, डायबिटीज के भारतीय मरीज उतने मोटे नहीं हैं जितने पश्चिम के हैं. अभी ऐसा कोई डेटा नहीं है जिससे पता चले कि यह दवाई 30 से कम बीएमआई वाले लोगों के लिए वजन कम करने में फायदेमंद है, जो औसत भारतीयों का होता है."

कीमत वाकई हतोत्साहित करने वाली है. अमेरिका में ओजेम्पिक की लागत हर महीने 936 डॉलर (करीब 77,461 रुपए) और वेगोवी की 1,300 डॉलर (1.07 लाख रुपए) पड़ती है और भारत में राईबेल्सस की 10 टैबलेट की स्ट्रिप के लिए अंटी से 3,000 रुपए से ज्यादा ढीले करने पड़ते हैं. इनकी आसमान छूती मांग से तंगी पैदा हुई और तंगी से नकली और अनधिकृत दवाइयों की बाढ़ आ गई.

दूसरी दवाओं की तरह सेमाग्लुटाइड भी साइड-इफेक्ट से अछूती नहीं है. ये साइड इफेक्ट मतली और उलटी सरीखे हल्के जठरांत्र लक्षणों से लेकर पेट के लकवे और यहां तक कि कैंसर सरीखे ज्यादा गंभीर नतीजों तक होते हैं. दवाई के लंबे वक्त के असर या भारतीय क्लिनिकल स्थितियों में परीक्षणों के नतीजों से जुड़ा कोई अहम डेटा अभी नहीं है.

लेकिन डेटा का न होना एगोनिस्ट यानी शरीर की किसी कोशिका विशेष में रिसेप्टर से स्वाभाविक रूप से उत्पन्न हॉर्मोन की तरह बंध जाने वाली दवाओं को खारिज करने का पर्याप्त कारण नहीं हो सकता. जैसा कि डायबेसिटी (डायबिटीज+ ओबेसिटी) और सीवीडी के सबसे बुनियादी इलाज में होता है. फार्मा कंपनियां स्लीप एप्निया से लेकर फैटी लीवर रोग और अलजाइमर्स तक दूसरी कई बीमारियों के लिए उनकी क्षमता और संभावनाओं की छानबीन कर रही हैं. 

इससे सवाल यह उठता है, क्या ओजेम्पिक, यानी वह नाम जो सभी एगोनिस्ट की नुमाइंदगी करने लगा है, हमारी तमाम बीमारियों का जवाब है?

एगोनिस्ट और परमानंद

सेमाग्लुटाइड उन दवाओं की श्रेणी में आता है जिन्हें ग्लुकागन-लाइक पेप्टाइड 1 या जीएलपी-1 एगोनिस्ट के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिन्हें जीएलपी-1 रिसेप्टर एगोनिस्ट, इनक्रेटिन माइमेटिक्स, या जीएलपी-1 एनालॉग, कृत्रिम पेप्टाइड के नाम से भी जाना जाता है. ये स्वाभाविक रूप से पैदा होने वाले हॉर्मोन की क्रिया की नकल करते हैं. नोवो नॉर्डिस्क 2012 से सेमाग्लुटाइड पर काम कर रही है, पर जीएलपी-1 दवाइयां अपने आप में नई नहीं हैं.

मैक्स हेल्थकेयर हॉस्पिटल्स में एंडोक्राइनोलॉजी और डायबिटीज विभाग के चेयरमैन और प्रमुख डॉ. अंबरीश मिथल कहते हैं, "उन्हें अब तकरीबन 20 साल हो गए हैं." एफडीए ने पहले जीएलपी-1 एगोनिस्ट एक्सेनाटाइड (बायेटा) को दरअसल 2005 में मंजूरी दी थी.  अन्य जीएलपी-1 एगोनिस्ट में इंजेक्शन से दिए जाने वाले डुलाग्लुटाइड (ट्रूलिसिटी), लीराग्लुटाइड (विक्टोजा) और लाइक्सिसेनाटाइड (एडलाइक्सिन) शामिल हैं.

391 मरीजों और 262 परीक्षणों में शामिल होने के साथ सेमाग्लुटाइड ने अपने उत्साहजनक नतीजों, वजन में अहम कमी और इस्तेमाल में आसानी की बदौलत उन सभी को पीछे छोड़ दिया. मगर मई 2022 में दिग्गज अमेरिकी फार्मा कंपनी एली लिली को अपनी दवाई टिरजेपेटाइड के लिए एफडीए की मंजूरी मिल गई, जो, सेमाग्लुटाइड के विपरीत, जीएलपी-1 और जीआईपी (ग्लुकोज-डिपेंडेंट इंसुलिनोट्रॉपिक पॉलीपेप्टाइड) एजेंट दोनों है. इस वजह से टिरपेजेटाईड वजन घटाने और रक्त शर्करा पर नियंत्रण दोनों में ज्यादा असरदार साबित हुआ. इसे डायबिटीज के लिए मौन्जारो और वजन घटाने के लिए जेपबाउंड के नाम से बेचा जाता है.

मगर जीएलपी-1 एगोनिस्ट काम कैसे करते हैं? सेमाग्लुटाईड अग्नाशय और मस्तिष्क के कुछ न्यूरॉन में पाए जाने वाले ग्लूकागन-लाइक पेप्टाइड रिसेप्टरों से बंध जाता है और उन्हें सक्रिय कर देता है, काफी कुछ उसी तरह जैसे प्राकृतिक रूप से उत्पन्न जीएलपी हॉर्मोन खाना खाए जाने के बाद करते हैं.

फिर यह अग्नाशय की बीटा कोशिकाओं को इंसुलिन पैदा करने के लिए राजी करता है, जो ऊर्जा के लिए ग्लूकोज को हमारी कोशिकाओं में स्थानांतरित करता है. जटिल एंडोक्राइन या अंत:स्रावी तंत्रों के जरिए सेमाग्लुटाईड अग्नाशय में ही बने और छोड़े गए एक और हॉर्मोन ग्लूकागन के स्राव को भी कम करता है. ग्लूकागन लीवर से ग्लूकोज के स्राव को बढ़ावा देकर शर्करा के स्तर को बढ़ा देता है. अंत में, जैसा कि डॉ. मिथल बताते हैं, "ये दवाइयां आमाशय से छोटी आंत में खाने के जाने की गति को धीमा करती हैं. नतीजतन आप ज्यादा तेजी से और ज्यादा लंबे वक्त तक पेट भरा महसूस करते हैं."

इस तरह सेमाग्लुटाईड न केवल शरीर के इंसुलिन के स्राव के काम में सहायता करता है, बल्कि यह भूख पर अंकुश लगाता है और इसलिए वजन कम करता है. गुरुग्राम स्थित मेदांता अस्पताल में एंडोक्राईनोलॉजी और डायबिटीज विभाग के प्रमुख डॉ. जसजीत वसीर भूख को दो किस्मों में वर्गीकृत करते हैं.होमियोस्टैटिक यानी जरूरी और हेडोनिक यानी सुखदायक. 

होमियोस्टैटिक भूख नियंत्रण ऊर्जा चुकने पर खाने की इच्छा में इजाफा करके शरीर में संतुलन रखता है. अगर समय से भोजन न किया जाए तो यह आम तौर पर कमजोरी, पेट में गड़गड़ और कभी-कभी सिरदर्द के रूप में जाहिर होता है. हेडोनिक भूख तब लगती है जब आप खाने की जरूरत के बजाए महज सुख या आनंद के लिए खाते हैं. ऐसे समय शरीर उच्च वसा और उच्च शर्करा खानों की मांग करता है. सेमाग्लुटाइड तृप्ति के भाव को बढ़ावा देकर शरीर को हेडोनिक खाने से रोकता है. यह रक्त शर्करा के स्तर में कमी नहीं लाता, इसलिए यह गैर-डायबिटिक के लिए भी उपयोगी है.

नोवो नॉर्डिस्क की तीन मौजूदा सेमाग्लुटाईड दवाइयां रूप और आवृत्ति में एक दूसरे से अलग हैं. इंजेक्शन से ली जाने वाली ओजेम्पिक सीधे रक्त-प्रवाह में 2 मिग्रा खुराक पहुंचाती है और इसे हफ्ते में एक बार लेने की सिफारिश की जाती है. एफडीए ने 2017 में टाइप 2 डायबिटीज में इसके इस्तेमाल को मंजूरी दी, पर भारत में इसे अभी लॉन्च होना है. वेगोवी भी हफ्ते में एक बार इंजेक्शन से दी जाती है, जिसमें 2.4 मिग्रा की ज्यादा खुराक होती है.

2021 में एफडीए की मंजूरी हासिल करने वाली यह दवाई अकेली जीएलपी-1 एगोनिस्ट है जिसे खासकर वजन घटाने के इलाज और हाल ही में सीवीडी से ग्रस्त वयस्कों के लिए मंजूरी दी गई है. दूसरी तरफ राईबेल्सस को डायबिटीज मेलिटस के इलाज के लिए ओजेम्पिक के साथ 2017 में एफडीए की मंजूरी मिली, और यह 3 मिग्रा, 7 मिग्रा और 14 मिग्रा की टैबलेट की शक्ल में आती है, जिन्हें दिन में एक बार लिया जाता है. एली लिली की मौन्जारो को मई 2022 मे, जेपबाउंड को पिछले साल नवंबर में मंजूरी मिली.

भारत में सीडीएससीओ ने नोवो नॉर्डिस्क की तरफ से पेश डेटा के आधार पर राईबेल्सस को मंजूरी दी. इससे पहले नोवो नॉर्डिस्क ने राईबेल्सस का 3ए परीक्षण (असर का प्रदर्शन करने के बाद और नई दवाई का आवेदन प्रस्तुत करने से पहले किया गया अध्ययन) प्रायोजित किया, जिसे पायोनियर ट्रायल्स कहा जाता है. बेतरतीब नियंत्रित परीक्षणों में दुनिया भर के 10,000 लोग शामिल थे, जिनमें कुछ भारतीय भी थे.

टाइप 2 डायबिटीज से ग्रस्त और आहार या व्यायाम से नियंत्रित नहीं किए जा रहे वयस्कों को बेतरतीब ढंग से चुनकर रोज एक बार 3 मिग्रा, 7 मिग्रा और 14 मिग्रा की खुराक सेमाग्लुटाईड या प्लैसेबो यानी प्रायोगिक दवाई दी गई. नतीजों से पता चला कि सेमाग्लुटाईड ने बेहतर रक्त शर्करा नियंत्रण, वजन में कमी और हृदय की सुरक्षा का प्रदर्शन किया. बाद में नोवो नॉर्डिस्क की तरफ से ही प्रायोजित 3बी परीक्षण (दवाई के आवेदन के बाद लेकिन मंजूरी के पहले किए गए अध्ययन) में 25 मिग्रा और 50 मिग्रा की सेमाग्लुटाईड की गोली से डायबिटीज के मरीजों का इलाज किया गया.

इन मरीजों ने एचबीए1सी में और भी काफी ज्यादा क्रमश: 1.9 और 2.2 फीसद अंकों की कमी का प्रदर्शन किया, जबकि सेमाग्लुटाईड की 14 मिग्रा से उपचारित मरीजों में 1.5 फीसद अंकों की गिरावट देखी गई थी. 5.7 फीसद और 6.4 फीसद के बीच एचबीए1सी का स्तर आपको प्री-डायबिटिक बनाता है और 6.5 फीसद से ऊपर यह स्तर आपको डायबिटिक होने के खाने में रखता है. 25 मिग्रा और 50 मिग्रा खुराक लेने वाले मरीजों ने क्रमश: 7 किग्रा और 9.2 किग्रा वजन घटने का अनुभव किया, जबकि कमतर खुराक लेने वालों के मामले में 4.5 किग्रा वजन घटा था.

फिर, आप शायद पूछें, झोल कहां है. दिक्कत यह है कि हमें अभी पता नहीं.

इतनी सुखद भी नहीं कहानी

किसी भी दूसरी दवाई की तरह सेमाग्लुटाईड के भी कई सारे साइड इफेक्ट हो सकते हैं. एफडीए ने ऐसे 14,000 मामले दर्ज किए. इनमें से 9,000 जठरांत्र की परेशानियों जैसे मतली, उल्टी, दस्त, पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द और पेट में गड़बड़ी से जुड़े थे.

गंभीर चेतावनियों में हैं गैस्ट्रोपैरेसिस (आमाशय का लकवा), गॉल ब्लैडर या पित्ताशय की परेशानियां, नजर की समस्याएं और पैंक्रिएटाईटिस या अग्नाशयशोथ. अक्टूबर 2023 में इस फेहरिस्त में ईलियस जोड़ी गई, जो ऐसी दर्दनाक स्थिति है जिसमें आंतें सिकुड़ने की क्षमता गंवा देती हैं और मल को शरीर से बाहर नहीं निकाल पातीं. चरम मामलों में इन दवाइयों से मेडुलरी थायरॉइड या अंत:स्रावी कैंसर हो सकता है.

दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल में एंडोक्राईनोलॉजी की सीनियर कंसल्टेंट डॉ. ऋचा चतुर्वेदी कहती हैं, "कुछ मरीजों में महज एक ही टैबलेट लेने के बाद इतनी प्रबल प्रतिक्रिया होती है कि वे फिर खाने की तरफ देखना तक गंवारा नहीं कर पाते. ज्यादातर मरीज 3 मिग्रा लेते हैं और किसी तरह 7 मिग्रा बर्दाश्त करते हैं." मुंबई की पब्लिक रिलेशंस एग्जीक्यूटिव सुष्मिता भाटिया (बदला हुआ नाम) ने अपनी बहन के नुस्खे में लिखी राईबेल्सस ली.

न मोटी और न ही डायबिटिक 40 वर्षीया भाटिया नई पोशाक में समाने के लिए बस थोड़ा वजन घटाना चाहती थीं. वे कहती हैं, "पहली गोली लेते ही मुझे 2-3 दिनों तक उलटियां होती रहीं." दवाई बंद करने के बाद उनके पेट के लक्षण दुरुस्त होने में चार दिन लगे. उनकी 45 वर्षीया बहन, जो डायबिटिक थीं और जिनका बीएमआई 28 था, जिसके हिसाब से वे अधिक वजन की थीं, ठीक थीं और एक महीने में उनका 3 किलो वजन कम हुआ.

इस दवाई के अंधाधुंध इस्तेमाल से चीजें बदतर हो रही हैं. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के चेयरमैन डॉ. शरद अग्रवाल का कहना है कि भारत में प्रिस्क्रिप्शन ऑडिट न होने से यह निश्चित पता लगाने का कोई तरीका ही नहीं है कि दवाइयां नुस्खे के बगैर गैर-कानूनी ढंग से बेची जा रही हैं या नहीं. इंडियन फार्मास्यूटिकल एसोसिएशन के वाइस प्रेसिडेंट जयसीलन जे. इस रुझान को खतरनाक बताते हुए कहते हैं, "सभी दवाओं के साइड इफेक्ट होते हैं और इन्हें तथ्यों की जानकारी के साथ देखरेख में ही लेना चाहिए."

मरीजों और डॉक्टरों दोनों को शिक्षित करने की जरूरत है. मरीजों को समझना होगा कि वजन घटाने के लिए पोषक आहार, फिटनेस, नींद और तनाव मुक्त होना किसी दवाई जितना ही जरूरी है. डॉक्टरों को भी किसी नई दवाई के अच्छे और बुरे पहलुओं के बारे में शिक्षित करने की जरूरत है. जयसीलन कहते हैं, "डॉक्टर फार्माकोलॉजिस्ट नहीं हैं.

वे दवाई का असर और उसके इस्तेमाल का तरीका जानते तो हैं, पर उस हद तक नहीं जानते जिस हद तक फार्माकोलॉजिस्ट जानता है. भारत में फार्मेसिस्ट की भूमिका को बेहतर ढंग से परिभाषित करने की जरूरत है." मसलन, अमेरिका में नुस्खा मरीज के हाथ में कतई नहीं दिया जाता, बल्कि सीधे फार्मासिस्ट को भेजा जाता है, जो फिर दवाई, उसके इस्तेमाल और असर की पूरी जानकारी देता है.

नई होने के कारण इन दवाइयों के लंबे वक्त के असर के बारे में अभी कोई डेटा मौजूद नहीं है. सेमाग्लुटाईड टैबलेट की मंजूरी, दिशानिर्देशों और क्लिनिकल प्रमाण की पहचान के लिए साइंस डायरेक्ट पत्रिका में प्रकाशित 2022 के एक लिटरेचर रिव्यू से पता चला कि भारतीय परिस्थिति में इस दवाई के बारे में कोई डेटा ही नहीं था. सेमाग्लुटाईड और टिरजेपेटाईड का असर और दुष्प्रभाव साबित करने के लिए किए गए दो बड़े अध्ययन उन्हीं कंपनियों ने प्रायोजित किए, जिन्होंने इन्हें बनाया था.

स्वतंत्र परीक्षण बहुत कम और छितराए हुए हैं. ऐसी भी कोई रिसर्च नहीं है जो बता सके कि ये दवाइयां उन लोगों के लिए कारगर हैं या नहीं जो न तो मोटे हैं और न डायबिटिक हैं. हम दुबलेपन के मोह से ग्रस्त समाज हैं. मुंबई में रहने वाले प्लास्टिक सर्जन और डिवाइन एस्थेटिक्स के डायरेक्टर डॉ. अमित गुप्ता कहते हैं, "डॉक्टर होने के नाते मरीजों को असुरक्षित फैसले लेने के खिलाफ सलाह देना हमारा कर्तव्य है."

दरअसल इन दवाइयों को लेने से वह हो सकता है जिसे 'ओजेम्पिक फेस', 'ओजेम्पिक बट' और 'ओजेंम्पिक हेयर' कहा जाने लगा है. पहले का मतलब है अचानक वजन घटने से सिकुड़ा हुआ चेहरा, दूसरे का मतलब है इसी वजह से लटका हुआ पिछला हिस्सा, और तीसरे का मतलब है शारीरिक बदलावों के कारण बाल झड़ना.

फरीदाबाद के अमृता अस्पताल में आंतरिक चिकित्सा के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. मोहित शर्मा बताते हैं, "शरीर अमूमन रक्त के ग्लूकोज का इस्तेमाल सबसे पहले करता है. अगर वहां उसे पर्याप्त ग्लूकोज नहीं मिलता तो यह ग्लाइकोजन स्टोर्स पर दस्तक देता है. अगर यह भी काम नहीं आता, तो यह ऊर्जा के लिए प्रोटीन का इस्तेमाल करता है. आपकी मांसपेशियां प्रोटीन से बनी हैं और इस तरह मसल मास (पेशियों का द्रव्यमान) कम हो जाता है."

डॉ. इशी खोसला सरीखी पोषण विशेषज्ञ आंत की सेहत पर ऐसी दवाओं के असर को लेकर भी चिंता जाहिर करती हैं. वे कहती हैं, "आधुनिक आंत पर पहले ही इस कदर मार पड़ चुकी है. आपके पाचन के तरीकों को बदल देने वाली दवाइयां लेना भलाई से ज्यादा नुकसान कर सकता है. आंत के फ्लोरा में गड़बड़ी 300 चिकित्सकीय स्थितियों से जुड़ी है, जिनमें मनोदशा के विकार भी हैं."

राईबेल्सस का विद्रोह

भारत में राईबेल्सस केवल एंडोक्राईनोलॉजिस्ट या आंतरिक चिकित्सा विशेषज्ञ के हाथों नुस्खे में लिखी जानी थी. नोवो नॉर्डिस्क ने पिछली फरवरी में उस स्वीकृत चेतावनी वक्तव्य में संशोधन के लिए अर्जी दी और बैरिएटिक सर्जन, स्त्रीरोग विशेषज्ञों और प्रसूति विशेषज्ञों को इसमें शामिल करने को कहा.

मंजूरी तो नहीं मिली, पर यह डॉक्टरों को गैर-डायबिटिक लोगों को नुस्खे में ये दवाइयां लिखने से नहीं रोक सकी. डॉक्टर के लिए नुस्खे में इसे लिखना गैरकानूनी नहीं है क्योंकि वे गैर-डायबिटिक के लिए उपयुक्त मानते हैं. लेकिन, जैसा कि जयसीलन बताते हैं, "मैन्युफैक्चरर या डॉक्टर किसी ऐसी चीज में इस्तेमाल के लिए उन्हें बढ़ावा नहीं दे सकते, जिसकी मंजूरी ही नहीं दी गई है."

इस तरह मुंबई के कोकिलाबेन अंबानी अस्पताल में सर्जन डॉ. मनोज जैन, जो बैरिएट्रिक और मेटाबोलिक प्रोसीजर्स में प्रशिक्षित हैं, कहते हैं कि गैर-डायबिटिक लोगों में राईबेल्सस की मांग बढ़ गई है और खुद उन्होंने गैर-डायबिटिक मरीजों के लिए इसकी सिफारिश की है. वे कहते हैं, "मैंने महीने में 10 फीसद वजन कम होते देखा है. मैंने 22.5 और 32.5 के बीच बीएमआई वाले लोगों में 10 से 25 फीसद वजन घटते देखा है."

डॉ. चतुर्वेदी भी राईबेल्सस के ऑफ-लेबल इस्तेमाल यानी स्वीकृत दवा के अस्वीकृत इस्तेमाल की तरफ ध्यान दिलाती हैं. वे कहती हैं, "डॉक्टर उन लोगों को भी सेमाग्लुटाईड टैबलेट लिखते हैं जिन्हें डायबिटीज नहीं है, क्योंकि यहां वेगोवी तो है नहीं और मोटापे के लिए कोई असरदार दवाई भी नहीं है, जो सेहत की बढ़ती चिंता है."

अलबत्ता, वजन घटाने के रामबाण के रूप में सेमाग्लुटाईड की बेलगाम लोकप्रियता ने इस दवाई के लिए भारी मारामारी पैदा कर दी है. जयसीलन कहते हैं, "बीस साल पहले दुनिया प्रोजैक की तरफ भाग रही थी. आज यह सेमाग्लुटाईड है. इस दवाई की निश्चित रूप से कई खूबियां हैं, पर मार्केटिंग इतनी तगड़ी है कि इसे हमारी तमाम आधुनिक स्वास्थ्य चिंताओं के लिए जादुई गोली की तरह देखा जा रहा है."

इस आसमान छूती मांग का बुरा पहलू यह है कि इन दवाइयों की तंगी पैदा हो गई है. नोवो नॉर्डिस्क ने कहा है कि 2024 तक इसकी सप्लाई सीमित रहेगी. दुबई से ओजेम्पिक लाने वाली वर्मा कहती हैं, "कुछ क्लिनिक में लंबी प्रतीक्षा सूची हैं." दूसरे दिल्ली के केमिस्टों से ये दवाइयां ले रहे हैं, जो उन्हें मिस्र और दुबई में मैन्युफैक्चर किए गए वैरिएंट बेच रहे हैं. फर्जी ओजेम्पिक का गोरखधंधा भी खूब फल-फूल रहा है. यह ब्रिटेन, जर्मनी, मिस्र और रूस सहित कम से कम 14 देशों में पाया गया है. एफडीए वजन घटाने की दवाइयों के गुणवत्ता नियंत्रण के लिए यूरोपोल, इंटरपोल और 23 अन्य कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ काम कर रहा है.

बेंगलुरू की 29 वर्षीया आईटी पेशेवर स्निग्धा शर्मा, जिनका बीएमआई 24 है, कहती हैं, "चार महीने में मेरी शादी होने वाली है. कुछ वजन घटाने के लिए मैं लॉस एंजेलिस के एक क्लिनक से वेगोवी ले रही थी. मगर अब डॉक्टरों का कहना है कि मुझे कुछ महीने इंतजार करना होगा. मगर तीन महीने इसे लेने के बाद अब मुझे डर है कि मैंने जो 3-4 किलो वजन घटाया था, वह लौट आएगा."

असल में इन्हें लेना बंद कीजिए और वजन दूने वेग से बढ़ जाता है, बार-बार वजन घटने और बढ़ने से कोशिकीय चोट का कारण बन सकता है. डॉ. वसीर कहते हैं, "हरेक कोशिका को जिंदा रहने के लिए ग्लूकोज की जरूरत होती है. अगर आप इसे कभी कम और कभी ज्यादा देते हैं तो यह कोशिका का मेटाबोलिक अपमान है और सूजन पैदा कर सकता है."

डायबिटिक मरीज की दुविधा

अपने देश में जहां स्वास्थ्य के कुल खर्च का 52 फीसद जेब से खर्च करना पड़ता है, इन दवाइयों की महंगी कीमत उनके खिलाफ जा सकती है. नोवो नॉर्डिस्क ने बताया नहीं है कि भारत में लाईसेंस मिला तो वह ओजेम्पिक और वेगोवी की कीमत कैसे तय करेगी. कंपनी ने भारत में ओजेम्पिक को लॉन्च करने की योजनाओं पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया, पर मीडिया में कुछ रिपोर्ट 2026 में इसके आने की तरफ इशारा करती हैं.

समाधान एगोनिस्ट के नए और बेहतर अणुओं में भी निहित हो सकता है. दुनिया की पहली एक खरब डॉलर की फार्मा कंपनी बनने की होड़ में लगीं नोवो नॉर्डिस्क और एली लिली के अलावा दूसरे दवा निर्माता भी इसमें अपना हिस्सा लेने के लिए आ रहे हैं. लुपिन डुलाग्लुटाईड का उत्पाद एप्लेवैंट भारत में एली लिली के साथ मिलकर बेचता रहा है.

सन फार्मा डायबिटीज से मुक्त मोटे और गैर-मोटे वयस्कों में अभिनव धीरे-धीरे लेकिन देर तक असर करने वाले जीएलपी-1 एगोनिस्ट जीएल0034 के परीक्षण कर रही है. सीडीएससीओ ने डॉ. रेड्डीज लैब्ज को भारत में सेमाग्लुटाइड इंजेक्शन का बायोइक्विवैलेंस अध्ययन करने की मंजूरी दे दी है. बायोकॉन, एलेक्विबक फार्मा और सिप्ला ने भी इस सेग्मेंट में आने की दिलचस्पी जाहिर की है.

फार्मा फर्मों का भविष्य बेशक सेहतमंद दिखाई देता है, पर डायबिटीज और मोटापे से ग्रस्त आबादियों को भी जबरदस्त फायदे होने की उम्मीद है. अलबत्ता सेमाग्लुटाईड का इस्तेमाल महज छरहरा दिखने भर के लिए नहीं, बल्कि सावधानी से और केवल जरूरत पड़ने पर ही करने की जरूरत है. 

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