सेहतमंद रहने के लिए क्या खाना है ज़रूरी? जानें हेल्दी डाइट पर एक्सपर्ट की राय

देश में खान-पान की गैर-सेहतमंद आदतों के बारे में जागरूकता बढ़ी, तो क्या खाना अच्छा और क्या नहीं की अंतिम सूची आपके हवाले

सेहतमंद शाकाहारी थाली
जब पकवानों की बात आती है तो वे इतने सारे और तरह-तरह के हैं कि भारतीयों के लिए चुनना मुश्किल हो जाता है

कहावत है कि आप वही होते हैं जो खाते हैं. जब पकवानों की बात आती है तो वे इतने सारे और तरह-तरह के हैं कि भारतीयों के लिए चुनना मुश्किल हो जाता है. पाक कला की इस भरपूर दौलत के नतीजे जल्द शरीर पर दिखने लगते हैं. जीवन-शैली से जुड़ी बीमारियां देश में चिंताजनक स्तर पर पहुंच गई हैं.

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के हालिया अध्ययन से वह सच्चाई उजागर हुई जो हम कुछ वक्त से जानते हैं- भारत अब दुनिया की डायबिटीज या मधुमेह राजधानी है. देश में 10.1 करोड़ लोग डायबिटीज से ग्रस्त हैं और 13.6 करोड़ लोग प्री-डायबिटिक हैं. दुनिया के डायबिटीज से ग्रस्त 17 फीसद मरीज भारत में हैं. दुश्मन बेगाना नहीं है. वह हमारे ज्यादातर खाने में मौजूद चीनी या शक्कर है.

बुरी खबरें और भी हैं. यह विडंबना जायकेदार तो नहीं ही है कि एक-तिहाई भारतीय शिशु कुपोषण से ग्रस्त हैं, और फिर भी मोटापा महामारी की हदें छू रहा है. 2021 के पांचवें राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे (एनएफएचएस-5) से पता चला कि 60 फीसद महिलाओं और 50 फीसद पुरुषों में कमर-नितंब अनुपात (डब्ल्यूएचआर) काफी हद तक जोखिम वाला है, जो पेट के मोटापे का संकेत है. इसका स्वाभाविक नतीजा है उच्च रक्तचाप और दिल की बीमारियां.

दिक्कत यह है कि युवा और अधेड़ उम्र के लोग इनकी चपेट में आ रहे हैं. जैसा कि द लैंसेट से खतरनाक चेतावनी आई है कि भारत में एक-चौथाई से ज्यादा मौतें अब दिल की बीमारियों से हो रही हैं. यह दर बीते दो दशकों में तेजी से बढ़ी है. नई दिल्ली के एम्स में डाइटेटिक्स या आहार विद्या की पूर्व प्रमुख और मुख्य आहार विशेषज्ञ डॉ. अलका मोहन कहती हैं, "खासकर युवाओं में डायबिटीज और दिल की परेशानियों सरीखी गैर-संक्रामक बीमारियों का बढ़ना साफ संकेत है कि भारतीयों का खानपान सही नहीं है."

सेहतमंद ऑयली थाली

डॉ. मोहन ने एक और दिलचस्प परिघटना देखी. वे कहती हैं, "खाने की गैर-सेहतमंद आदतें बढ़ी हैं, तो स्वस्थ और पोषक आहार में दिलचस्पी भी बढ़ी है. समस्या यह है कि अभी भी ज्यादातर लोग पैकेटबंद भोजन लेते हैं और पोषण को लेकर उनकी जानकारियां कम हैं." इसकी तस्दीक 2022 में किए गए मोंडेलेज इंडिया के 'स्टेट ऑफ स्नैकिंग' अध्ययन से भी हुई, जिसे 253 लोगों पर किया गया.

पता चला कि इनमें से 95 फीसद भविष्य में अच्छी गुणवत्ता की चीजें खाने के लिए उत्सुक थे, जो 87 फीसद के वैश्विक औसत से ज्यादा थे. एवेंडस कैपिटल की रिपोर्ट बताती है कि भारत सबसे तेजी से बढ़ता हेल्थ फूड मार्केट है, जो 20 फीसद की सीएजीआर से बढ़ रहा है, और अगले चार साल में इसके 30 अरब डॉलर (2.5 लाख करोड़ रुपए) का हो जाने की उम्मीद है.

इस बीच, सेहत को लेकर जागरूक ग्राहकों की तादाद 2020 में 10.8 करोड़ से बढ़कर 2026 में 17.6 करोड़ हो जाने की उम्मीद है. मांग केवल खानपान की स्वस्थ चीजों की ही नहीं है. फूड दर्जी, ईटफिट, पैराफिट, न्यूट्रि91 और न्यूट्रिओबॉक्स सरीखी स्वस्थ खाद्य सेवाएं भी कुकुरमुत्तों की तरह उग आई हैं. ये पोषक आहार में सुधार करने को बेताब ग्राहकों को खाने की सेहतमंद चीजें देने का वादा करती हैं और उन्हें मुहैया करा रही हैं.

उपभोक्ता हों या फूड कंपनियां, सभी का एक ही राग है-अच्छा खाना कैसे खाएं. मगर अच्छा खाना है क्या? यह कश्मकश दिल्ली में तीन बच्चों की मां, 49 साल की गृहिणी जया दासगुप्ता के शब्दों में बेहतर झलकती है, जब वे अफसोस के साथ कहती हैं, "खाने के बारे में मौजूद जानकारियां बहुत ही भ्रामक हैं. हम चावल खाएं, या मोटे अनाज, या गेहूं? क्या हम ए2 दूध पिएं? घी खाएं? क्या हम व्रत रखें? मैं खुद नहीं चुन सकती थी, इसलिए पोषक आहार की अपनी जरूरतें मुझे आहार विशेषज्ञ को सौंपनी पड़ीं." दासगुप्ता सरीखे लोगों को इस कश्मकश से बाहर निकालने के लिए इंडिया टुडे ने कई न्यूट्रिशनिस्ट और खानपान विशेषज्ञों से बात की और अच्छे खानपान की गाइडबुक बनाई.

अनाज की परेशानी

यह तो आप जानते ही हैं कि कार्बोहाइड्रेट के मामले में भारतीय कोई लिहाज नहीं करते. ये कार्बोहाइड्रेट आते कहां से हैं? सबसे बड़ा दुश्मन गेहूं है. कभी यह उत्तर भारतीय थालियों का मुख्य हिस्सा हुआ करता था. अब पूरे भारत के डाइनिंग रूम का मुख्य हिस्सा बन गया है. गेहूं में ग्लुटन कूट-कूटकर भरा होता है. इससे कुछ लोगों को सेहत की गंभीर परेशानियां होती हैं. ऐसे मामलों में शरीर भांप लेता है कि यह जहर है और प्रतिरक्षक कोशिकाएं पैदा करके इस पर हमला करता है. इसके लगातार सेवन से ऐसे लोगों की जठर आंत के रास्ते में सूजन पैदा हो जाती है और नुक्सान पहुंचाती है. इसे आम तौर पर सीलिएक या औदरिक रोग कहा जाता है. भारत की एक फीसद आबादी इससे पीड़ित बताई जाती है.

एक आदर्श चावल थाली

दूसरे लोगों को सीलिएक रोग भले न हो, पर वे ग्लुटन के प्रति संवेदनशील हो सकते हैं. ग्लुटन से भरपूर अनाज भकोसने से उन्हें भी ऐसी ही सूजन, दस्त या कब्ज की परेशानियां होती हैं. डॉक्टर इसे गैर-सीलिएक ग्लुटन संवेदनशीलता कहते हैं. दिल्ली की डॉ. डांग्ज लैब के सीईओ डॉ. अर्जुन डांग बताते हैं, "कई लोग कहते हैं 'हम बचपन से गेहूं ही खाते रहे हैं, हमें ग्लुटन की संवदेनशीलता नहीं हो सकती'. मगर वे यह नहीं समझते कि गेहूं में ग्लुटन की मात्रा काफी बदल गई है."

दिल्ली की न्यूट्रिशनिस्ट डॉ. इशी खोसला, जो सीलिएक सोसाइटी ऑफ इंडिया की प्रेसिडेंट भी हैं, कहती हैं, "पहले गेहूं में करीब 3 फीसद ग्लुटन होता था. मगर जब हमने पहले ही सूजन पैदा करने वाले पदार्थ से भरे अनाज का आनुवंशिक रूपांतरण किया, तो यह 30 फीसद तक बढ़ गया. हमने इसके सूजन पैदा करने वाले गुणों को बढ़ाने का जोखिम मोल लिया और यही हुआ." आज भारत में सबसे ज्यादा उगाई जाने वाली गेहूं की प्रजाति ट्रिटिकम एस्टिवम या ब्रेड गेहूं है, टी. डिकोकम या इमर गेहूं नहीं, जो आम तौर पर प्रोसेस्ड होता है और जिसमें ब्रेड गेहूं किस्म के मुकाबले ज्यादा फाइबर और कम ग्लुटन होता है.

सफेद चावल दूसरा अनाज है जिसे लंबे वक्त से 'खराब' या 'खोखला' कार्बोहाइड्रेट होने के लिए भला-बुरा कहा जाता है. कई नो-कार्ब या कार्बोहाइड्रेट से शून्य आहारों से इसे पूरी तरह हटा दिया गया है. आहार की मौजूदा समझदारी इसे उस बदनामी से निकालने में लगी है. कई न्यूट्रिशनिस्ट गेहूं के एवज में खासकर ग्लुटन के प्रति संवेदनशील लोगों के लिए इसकी सिफारिश कर रहे हैं. संयम अलबत्ता अहम शब्द है.

मुंबई की क्लिनिकल न्यूट्रिशन कंसल्टेंट और नेहा सहाय वेलनेस की संस्थापक नेहा सहाय कहती हैं, "अगर आपको सफेद चावल भाते हैं, और अपने कार्बोहाइड्रेट दुरुस्त करने की जरूरत है, तो सबसे अच्छा तरीका यह है कि इसे सब्जियों, लीन प्रोटीन (कम सैचुरेटेड फैट और कैलोरी वाले) और स्वस्थ वसाओं सरीखे पोषण से भरपूर खानों के साथ लें." ऐसा इसलिए क्योंकि जब आप कार्बोहाइड्रेट से भरपूर चीजें खाते हैं, तो आपकी रक्त शर्करा (शुगर का स्तर) तेजी से बढ़कर अचानक बहुत नीचे गिर जाती है. ऐसा होना अच्छा नहीं होता. लेकिन अगर आप कार्बोहाइड्रेट का सेवन ऐसे खाद्य पदार्थों के साथ करते हैं जिनमें फाइबर के साथ प्रोटीन और वसा होता है, तो कार्बोहाइड्रेट के ग्लुकोज में टूटने की गति धीमी हो जाती है, जिससे रक्त शर्करा का स्तर स्थिर रखने में मदद मिलती है.

मगर कार्बोहाइड्रेट क्यों बुरे हैं? दिल्ली के मैक्स सुपर स्पेशिएलिटी अस्पताल में न्यूट्रिशन की प्रमुख रितिका समद्दार कहती हैं, "खाने के बाद आपका शरीर कार्बोहाइड्रेट को शक्कर में तोड़ता है, जिससे ऊर्जा निकलती है. इसकी रफ्तार को ग्लाइसेमिक इंडेक्स या सूचकांक से मापा जाता है. गेहूं और चावल का ग्लाइसेमिक सूचकांक बहुत ज्यादा है, जिससे रक्त में वसाओं के अलावा शुगर का स्तर बहुत बढ़ जाता है, खासकर आरामतलब जिंदगी जी रहे लोगों में, जो आजकल ज्यादातर भारतीय जी रहे हैं."

दिल्ली के लेडी इर्विन कॉलेज के फूड और न्यूट्रिशन विभाग ने 2019 में एक सर्वे किया, जिससे पता चला कि चाय, चपाती, दूध (पेय के तौर पर), उबले चावल और बिस्कुट बार-बार खाई जाने वाली आला पांच चीजों में सबसे ऊपर हैं. इनमें से तीन- चपाती, चावल और बिस्कुट- में कार्बोहाइड्रेट कूट-कूटकर भरे हैं और बिस्कुट में शुगर और वसा कुछ और ज्यादा है.

मसलन, 6 इंच की चपाती में 15 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 3 ग्राम प्रोटीन, 0.04 ग्राम वसा के अलावा 71 कैलोरी होती हैं. वजन घटाने के इच्छुक लोगों के लिए कम कार्बोहाइड्रेट वाले आहारों में औसतन 30 ग्राम कार्बोहाइड्रेट की सिफारिश की जाती है, और औसत कैलोरी करीब 1,200 हैं. ऐसे में तरकीब खाने की चीजों का ग्लाइसेमिक सूचकांक कम करना है.

मोटे अनाजों का जादू

लंबे वक्त से बेचारे गरीब कजिन बना दिए गए रागी, बाजरा, ज्वार, अमरंठ और कोदो सरीखे मोटे अनाज अब सबके पसंदीदा बन गए हैं. सरकार ने 2023 को ईयर ऑफ मिलेट जो घोषित कर दिया है. मुंबई के फोर्टिस हीरानंदानी अस्पताल में क्लिनिकल न्यूट्रिशनिस्ट स्वाति भूषण कहती हैं, "मोटे अनाज लंबे वक्त से भारतीय आहार में शामिल रहे हैं." केक, कुकी, पास्ता, ब्रेड सरीखी गेहूं की चीजें लोकप्रिय क्या हुईं, ये नजर से उतर गए थे.

मोटे अनाज की थाली

अब वे गेहूं का विकल्प बनकर उभर रहे हैं. उनसे न केवल रोटियां, खिचड़ी और अनाज से बनने वाली दूसरी चीजें बनाई जा सकती हैं, बल्कि पिज्जा, पास्ता, केक और कुकी सरीखे पश्चिमी व्यंजनों में भी इस्तेमाल किए जा सकते हैं. भूषण कहती हैं, "चाहे आयरन हो, जिंक, मैग्नीशियम, फोलिक एसिड या कैल्शियम, मोटे अनाजों में किस्म-किस्म के सूक्ष्म पोषक तत्व होते हैं, जो गेहूं में नहीं पाए जाते." इसका यह मतलब नहीं कि आप अपने आहार से गेहूं की रोटियां या पास्ता बिल्कुल हटा दें. विशेषज्ञ खुद ही अपने में सीलिएक रोग की पहचान के खिलाफ आगाह करते हैं. मसालों के वैश्विक रुझानों पर नीलसन की 2016 की रिपोर्ट के मुताबिक, इसी रुझान की वजह से ग्लुटन-मुक्त आहार दूसरे देशों के मुकाबले भारत में सबसे ज्यादा लोकप्रिय हुए.

मुंबई में माहिम स्थित एस.एल. रहेजा अस्पताल में डाइटेटिक्स की प्रमुख राजेश्वरी वी. शेट्टी कहती हैं, "मैं कहूंगी कि अति की जरूरत नहीं. ग्लुटन खाने से दिक्कत हो तो बेशक इसमें कटौती करें. मोटे अनाजों के ढेरों फायदे हैं. लेकिन अगर आप में लक्षण नहीं हैं, तो महज दूसरों की देखा-देखी एक खाद्य समूह से दूर होकर खुद पर जुल्म न करें." मोटे अनाजों में बढ़ती दिलचस्पी देखकर रेस्तरां भी अपनी व्यंजन सूची इसी हिसाब से बना रहे हैं. बेंगलूरू के शेरेटन ग्रैंड बंगलौर होटल में एग्जीक्यूटिव सूस शेफ गौरव बंसल ने मोटे अनाजों को मेन्यू का केंद्रबिंदु बनाया और नाश्ते में मोटे अनाजों के पेनकेक और फ्रेंच टोस्ट सरीखे व्यंजन लेकर आए. वे कहते हैं, "मोटे अनाज न केवल पौष्टिक बल्कि तरह-तरह से उपयोगी भी हैं. वे स्वस्थ और टिकाऊ खानों के विकल्पों में बढ़ती दिलचस्पी के साथ बखूबी अटते हैं."

अलबत्ता, मुंबई और बेंगलूरू के बैस्टियन, बिज्जा और बिंज में क्युलिनेरी डायरेक्टर सुवीर सरन का कहना है कि मोटे अनाजों को मेन्यू में शामिल करने की अकेली वजह सेहत नहीं है, वे स्वादिष्ट भी हैं. गुरुग्राम के द ओबेरॉय में ब्लू लेबल की तरफ से आयोजित अपनी तरह के पहले ऐंद्रिक तजुर्बे में उन्होंने अलेप्पी करी के साथ झींगा और मोटे अनाजों से बना चिवड़ा परोसा. सरन कहते हैं, "बेहतर सेहत, लजीज जायके और बनावट में जबरदस्त फर्क की वजह से इस शानदार बदलाव के बारे में मेरा सुनना बंद नहीं हुआ."

आईटीसी में कॉर्पोरेट एग्जीक्यूटिव शेफ मनीष भूषण कहते हैं, "आईटीसी में हम दशकों से टिकाऊ खानों की हिमायत करते रहे हैं. मेन्यू भी नियमित रूप से ताजा, बिल्कुल लोकल, और टिकाऊ सामग्रियों से बनाते रहे हैं. इन्हें और खासकर मोटे अनाजों सरीखे भूले-बिसरे खाद्यान्नों से बने व्यंजनों को हाथो-हाथ लिया गया." मगर इन चमत्कारिक अनाजों की भी अपनी सीमाएं हैं. कुछ मोटे अनाजों में फाइटिक एसिड होता है, जिससे खाने के पोषक तत्व कम जज्ब हो पाते हैं. समद्दार कहती हैं, "मोटे अनाजों को आम तौर पर दो-एक घंटे पानी में भिगोने की सिफारिश की जाती है. अंकुरित मोटे अनाजों का आटा भी ज्यादा पौष्टिक होता है." सारे मोटे अनाज पोषक आहार नहीं होते. 100 ग्राम बाजरे में एक कटोरी चावल से ज्यादा घनी कैलोरी हो सकती है. मोटे अनाजों को पकाने के तरीके पर बहुत कुछ निर्भर करता है. पोषक मूल्य बढ़ाने के लिए समद्दार सब्जियों की सर्विंग्स और प्रोटीन के साथ मोटे अनाज खाने की सिफारिश करती हैं.

आदर्श भारतीय थाली

हर दूसरी चीज की तरह आहार में निर्वाण हासिल करने के लिए भी संतुलन बहुत जरूरी है. विशेषज्ञ सिफारिश करते हैं कि 2,000 कैलोरी के आदर्श आहार में रोज 45-65 फीसद या करीब 225-325 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 23-30 फीसद या करीब 80 ग्राम या उससे कम अनसेचुरेटेड वसा (ट्रांसफैट या हाइड्रोजनीकृत वसा से बचना चाहिए), करीब पांच भाग अलग-अलग रंगों के फल और सब्जियां, और करीब 10-35 फीसद प्रोटीन (अच्छा हो कि कम सेचुरेटेड वसा वाला; सीफूड की बहुत ज्यादा सिफारिश की जाती है) होने चाहिए. खमीर वाले अचार, दही, छाछ भारत में बहुतायत से मिलते हैं और लंबे वक्त तक भले-चंगे रहने के लिए बहुत अच्छे हैं. तो, यह सेवन करें.

सूक्ष्म पोषक तत्वों के लिए ताजा फलों और सब्जियों का मेल शानदार अमृत का काम करता है. इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एपिडेमियोलॉजी में छपे 90 भविष्यदर्शी अध्ययनों के 2017 में किए गए मेटा-विश्लेषण से पता चला कि रोज 200-200 ग्राम अतिरिक्त फल और सब्जियां लेने से कोरोनरी हृदय रोगों का जोखिम 8 फीसद, लकवे का जोखिम 16 फीसद, कार्डियोवैस्कुलर रोगों का जोखिम 8 फीसद, कैंसर का जोखिम 3 फीसद और समय से पहले मौत का जोखिम 10 फीसद तक कम हो जाता है.

कोलकाता की न्यूट्रिशनिस्ट आरुषि आचार्य कहती हैं, "आपके लिए सभी सब्जियां अच्छी और पोषक तत्वों का पावरहाउस हैं." वे आलू सरीखी स्टार्च वाली सब्जियां कम से कम खाने और बैंगनी गोभी, लाल सलाद के पत्ते, चुकंदर वगैरह अलग-अलग रंगों की सब्जियां ज्यादा चुनने की सिफारिश करती हैं. वे कहती हैं कि गहरे हरे रंग की पत्तेदार सब्जियां रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले गुणों के कारण खास तौर पर अच्छी हैं. आचार्य यह भी बताती हैं कि ब्रेड या रोटी सरीखी बहुत ज्यादा कार्बोहाइड्रेट वाली चीजों को पोषक कैसे बनाएं- सब्जियों को पीसकर उनमें मिला लें. यह भी जरूरी है कि सब्जियों को ज्यादा न पकाएं, बल्कि पोषक तत्वों को ज्यादा से ज्यादा बनाए रखने के लिए हल्की भाप में पकाएं.

फलों के बारे में क्या कहेंगे? खाएं या न खाएं? डॉ. समद्दार कहती हैं कि हां, उनमें शुगर (फ्रुक्टोज) ज्यादा होती है, पर उनमें फाइबर इतने होते हैं कि मधुमेह के रोगी भी उन्हें संयमित मात्रा में ले सकते हैं. बेंगलूरू के जिंदल नेचरक्योर इंस्टीट्यूट में चीफ डायटीशियन सुषमा पी.एस. कहती हैं, "फल इम्यूनिटी (रोग प्रतिरोधक क्षमता) बनाते हैं, हाइड्रेटेड (जलयुक्त) रहने में मदद करते हैं और विटामिन तथा खनिजों का समृद्ध स्रोत हैं. अपने आहार में तमाम किस्म के फल शामिल करने से आपको तरह-तरह के जीवनदायी पोषक तत्व मिलते हैं."

केले, आम और चीकू सरीखे फलों में दूसरों के मुकाबले शुगर भले ज्यादा हो, पर ये सेहत के लिहाज से बुरे केक, कुकी और पुडिंग की तलब को कम कर सकते हैं. स्ट्रॉबेरी, ब्लूबेरी, ब्लैकबेरी और गूजबेरी सरीखे सरस फलों में अतिरिक्त पोषक तत्व होते हैं जो आपके शरीर में कैंसर का जोखिम कम कर सकते हैं. रोज एक सुपरफूड के आगमन को देखते हुए सेहतमंद माने जाने वाले खाद्य पदार्थों के आयात में अच्छी-खासी बढ़ोतरी देखी गई है. वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक अप्रैल और अगस्त के बीच एवोकैडो का आयात मूल्य के लिहाज से 70 फीसद बढ़ा, बादाम का आयात दोगुना हो गया, और पिस्ते और जैतून के आयात में क्रमश: 80 फीसद और 60 फीसद का इजाफा हुआ.

अलबत्ता आपको ये आयातित चीजें महंगी लगती हों या आसानी से न मिलती हों, तो आपके यहां जो मिले, वही खाइए. डॉ. समद्दार कहती हैं, "मौसमी फल और सब्जियां सेहत के लिए अच्छी होती हैं. गर्मियों में प्राकृतिक रूप से भरपूर पानी वाले फल और सब्जियां ज्यादा मिलती हैं, जबकि सर्दियों में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले पालक और सरसों के पत्ते मिलते हैं." आचार्य को भी यही लगता है. उनकी राय भी यही है. वे कहती हैं, "दुनिया भर का चक्कर लगाकर आई सब्जियों के बजाए आपको अपने आंगन में उगाई गई सब्जियों से ज्यादा नहीं तो उतने ही फायदे मिल सकते हैं."

डेयरी प्रोडक्ट्स

पिछले कुछ दशकों में डेयरी मिल्क काफी जबरदस्त उतार-चढ़ावों से गुजरा है. कभी इसे कैल्शियम का प्रमुख स्रोत और हड्डियों के लिए अच्छा माना जाता था. जब लैक्टोज की असहिष्णुता को लेकर शोर-शराबा बढ़ा और आंत की सेहत की गहनता रफ्तार पकड़ने लगी, दूध अवांछित हो गया. अमेरिकन जर्नल ऑफ न्यूट्रिशन के अध्ययन के अनुसार, दक्षिण भारत की करीब 66 फीसद और उत्तर की करीब 27.4 फीसद आबादी में लैक्टोज की असहिष्णुता बताई गई.

लेकिन अगर आप उन लोगों में हैं जिनमें लैक्टोज की असहिष्णुता नहीं है, तो आपके दैनिक आहार में एक गिलास दूध बेजा नहीं होगा. मुंबई के फोर्टिस ग्रुप में न्यूट्रिशनिस्ट रसिका परब कहती हैं, "दूध दालों से भी बेहतर है. दालें दूसरे दर्जे का प्रोटीन हैं. दूध संपूर्ण प्रोटीन है. शाकाहारियों को इससे न केवल रोजमर्रा के कामों के लिए बल्कि बीमारी से उबरते समय के लिए भी जरूरी प्रोटीन मिल सकता है. अस्पताल में स्वास्थ्य लाभ के समय हम मरीजों को थोड़ा दूध अक्सर देते हैं." केवल दो स्थितियों में दूध से बचना चाहिए-जब व्यक्ति में लैक्टोज की असहिष्णुता हो या पेट गड़बड़ हो. दूध की जगह ज्यादा फैशनेबल अखरोट या सोया दूध लेने से पहले डॉक्टर से यह पता लगवा लेना बेहतर है कि मरीज लैक्टोज के प्रति संवेदनशील है या नहीं.

दरअसल, न्यूट्रिशनिस्ट किसी भी एक खाद्य समूह को आहार से निकालने के खिलाफ आगाह करते हैं. या वह आहार लेने से जो सोशल मीडिया पर हर कोई ले रहा है. दिल्ली के द्वारका में मणिपाल अस्पताल में ऑब्स्टेट्रिक्स और गायनेकोलॉजी की एचओडी और कंसल्टेंट डॉ. लीना एन. श्रीधर कहती हैं, "अपने शरीर की जरूरतों को समझे बिना खाने से पूरा खाद्य समूह हटा देना या बहुत सारा वसा खाना फैशनेबल हो गया है. यह सेहत के लिए हानिकारक है और वजन कम करने में इसका उलटा नतीजा भी होता है."

क्या खाना गलत है

सीधे-सादे ढंग से कहें, तो चीनी, हाइड्रोजनीकृत तेल और नमक. 2008 और 2010 के बीच किए गए और 2016 में प्रकाशित आईसीएमआर-आईएनडीआईएबी के अध्ययन के मुताबिक भारत में अतिरिक्त चीनी की प्रति व्यक्ति खपत 2000 में 22 ग्राम से दोगुनी बढ़कर 2010 में 55.3 ग्राम हो गई, और वसा की खपत 2002 में 21.2 ग्राम से बढ़कर एक दशक बाद 54 ग्राम हो गई. इसी अवधि में लीवर और दिल की बीमारियों से मजबूती से जुड़ी हाइड्रोजनीकृत वसा का माप भी तेजी से बढ़कर 1.57 ग्राम से 2.8 ग्राम पर पहुंच गया. आईसीएमआर के ताजा अध्ययन के मुताबिक हम रोज 8 ग्राम नमक का सेवन करते हैं, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की तरफ से स्वीकृत 5 ग्राम से काफी ज्यादा है. हमारे आहार में एक साथ बढ़ती चीनी, वसा और नमक की वजह से कैंसर से लेकर बांझपन तक और उच्च रक्तचाप से लेकर किडनी फेल होने तक कई बीमारियों में बढ़ोतरी हुई है.

बीएमसी मेडिसिन में छपे हालिया अध्ययन ने दिल की सेहत में फ्री शूगर की भूमिका की जांच करते हुए पाया कि महज 5 फीसद फ्री शूगर की बढ़ोतरी से दिल के रोग का जोखिम 6 फीसद और लकवे का जोखिम 10 फीसद बढ़ जाता है. जाने-माने एंडोक्रायनोलॉजिस्ट डॉ. एस.के. मिश्रा कहते हैं, "हम साबुत अनाज या फल या सब्जियों से मिली चीनी का सेवन करते हैं. वसा सूखे मेवों, कुछ सब्जियों, दुग्ध उत्पादों और बीजों से आई. अतिरिक्त चीनी और वसा आधुनिक परिघटना हैं."

2019 में यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड ने 12 देशों में 4,00,000 खाद्य और पेय उत्पादों का अध्ययन किया. ओबेसिटी रिव्यूज में छपे इस अध्ययन से भारत के सबसे कम स्वस्थ लोगों में संतृप्त वसा, चीनी और नमक के ऊंचे स्तरों का पता चला. हमारे डिब्बाबंद खाद्य और पेय पदार्थ औसतन प्रति 100 ग्राम 1,515 केजे (किलो जूल. एक जूल में 0.24 कैलोरी होती है) और प्रति 100 ग्राम 7.3 ग्राम चीनी के साथ सबसे ऊर्जा-सघन थे. इसी तरह भारत में नमक की खपत भी बढ़ी. महज इसलिए कि हम नहीं जानते कि डिब्बाबंद उत्पाद में कितना नमक है. समद्दार कहती हैं, "अस्पताल में हम कई मरीजों को शिक्षित करने की कोशिश करते हैं. हमारे कई पैकेज्ड फूड में बहुत ज्यादा नमक होता है. यहां तक कि कूकिंग सॉसेज और ड्रेसिंग्ज भी."

जॉर्ज इंस्टीट्यूट ऑफ ग्लोबल हेल्थ, पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया और सेंटर फॉर क्रॉनिक डिजीज कंट्रोल इन इंडिया के 2016 में 5,796 लोगों पर किए गए अध्ययन से नमक के बहुत ज्यादा स्तरों का पता चला. भारतीय थाली के अहम हिस्से उस दीन-हीन पापड़ के चक्कर में बेवकूफ न बनें-इसमें प्रति 100 ग्राम सोडियम की 1,219 मिलीग्राम औसत मात्रा होती है. कुछ उत्पादों में प्रति 100 ग्राम में नमक की 4,000 मिग्रा मात्रा होती है. अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन रोज 2,300 मिग्रा से कम सेवन की सिफारिश करती है!

हमें सेहत पर डिब्बाबंद खानों के असर को लेकर चिंतित होना चाहिए, क्योंकि भारतीय पहले से ज्यादा ये स्नैक ले रहे हैं. सबसे बेरहम अल्ट्रा-प्रोसेस किए गए पैकेज्ड फूड हैं, जिन्हें ब्रिटिश हार्ट फाउंडेशन ऐसे खाद्य पदार्थों के रूप में परिभाषित करता है जिनका जीवनकाल लंबा होता है और जिनमें आम तौर पर पांच या उससे ज्यादा मसाले होते हैं, जिनमें प्रिजर्वेटिव, एमल्सिफायर, स्वीटनर और कृत्रिम रंग और स्वाद शामिल हैं. इस साल डब्ल्यूएचओ-आईसीआरआईईआर की रिपोर्ट ने बताया कि भारत में यह क्षेत्र 2011 से 2021 के बीच खुदरा बिक्री मूल्य के लिहाज 13.4 फीसद की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ा. पांच लोकप्रिय श्रेणियां हैं चॉकलेट और शुगर कन्फेक्शनरी, साल्टी स्नैक, बीवरेज, रेडीमेड और कन्वीनिएंट फूड और ब्रेकफास्ट सिरीयल.

अध्ययन ने सिफारिश की कि भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) दूसरे संबंधित पक्षों के साथ सलाह-मशविरा करके हाई फैट, शुगर और साल्ट (एचएफएसएस) खाद्य पदार्थों की साफ और पारदर्शी परिभाषा लेकर आए. उन्होंने पोषण तत्वों पर आधारित टैक्स मॉडल की सिफारिश की, जिसमें ज्यादा वसा, चीनी और नमक की स्वीकृत सीमा से ज्यादा मात्रा वाले उत्पादों पर ज्यादा कर हो. उसने कहा कि ऐसे मॉडल उन देशों में सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद रहे हैं जहां इन्हें लागू किया गया है.

एफएसएसएआई के चेयरमैन जी. कमला वर्धन राव कहते हैं, "हमने एचएफएसएस फूड के सेवन में बढ़ोतरी पर गौर किया है और इस पर काम कर रहे हैं." खाद्य सुरक्षा नियामक ने पिछले साल सितंबर में पैकेज पर न्यूट्रिशन रेटिंग व्यवस्था की सिफारिश की थी. उत्पादों का आकलन करके एक से पांच की न्यूट्रिशनल प्रोफाइल पर उन्हें रेटिंग दी जाएगी, जिससे खरीदारों को फौरन और आसानी से जानकारी मिलेगी कि वे कितनी गुणवत्ता वाला पदार्थ खाने जा रहे हैं. राव कहते हैं, "हमें उद्योग से 14,000 प्रतिक्रियाएं मिलीं उनका हम अध्ययन कर रहे हैं."

मैन्युफैक्चरर एसोसिएशन ने इस विचार का पुरजोर विरोध किया, वहीं उपभोक्ता इस तरह की लेबलिंग के खिलाफ नहीं हैं. भारत में 19,000 लोगों के साथ किए गए लोकलसर्कल्स के 2023 के अध्ययन से पता चला कि 77 फीसद ने अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों पर पैक के ऊपर लेबल लगाने का विरोध नहीं किया, हालांकि वे चाहेंगे कि यह संख्या के बजाए कलर-कोडेड हो. कुछ बड़ी कंपनियां इस रुझान के आगे पहले ही नतमस्तक हैं. नेस्ले इंडिया की प्रवक्ता कहती हैं, "हम अपने उत्पादों में साबुत अनाज, सब्जियां और सूक्ष्म पोषक तत्व शामिल करने सहित ज्यादा पौष्टिक पेशकश में निवेश कर रहे हैं. नेस्ले इंडिया में स्वेच्छा से पैक के अग्रभाग पर गाइडलाइन डेली अमाउंट (जीडीए) चस्पा करने की व्यवस्था है, जो उपभोक्ताओं को उनकी दैनिक जरूरतों के संदर्भ में ऊर्जा और अन्य जरूरतों के बारे में पोषण से जुड़ी पारदर्शी जानकारी देती है." आईटीसी की भसीन कहती हैं, "एफएसएसएआई के दिशानिर्देशों के अनुसार हम मेन्यू पर सभी व्यंजनों की कैलोरी गणना का जिक्र करते हैं, ताकि लोग जानकार रहें."

सरकार ने भी अपने ईट राइट अभियान का विस्तार किया है. इसका मकसद स्कूल कार्यक्रमों, इंटरनेट पैंफलेट, खानपान मेलों, और होटलों को स्वस्थ खानपान प्रमाणपत्र देने के जरिए जनता को खानपान की स्वस्थ और विचारशील आदतों के बारे में शिक्षित करना है. हाल में हुए जी20 शिखर सम्मेलन के दौरान मोटे अनाज भी परोसे गए व्यंजनों के मेन्यू का हिस्सा थे. यह दोतरफा जीत की स्थिति है. तो अच्छा खाएं और अपने वजन को काबू में और बीमारियों को दूर रखें, और खुलकर ज्यादा लंबी जिंदगी जिएं.

—साथ में, अदिति पई, चुमकी भारद्वाज और शैली आनंद

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