'भारत' पर अब सर्वानुमति

मोदी सरकार ने पहली दफा इंडिया के बदले भारत का इस्तेमाल अचानक किसी खामख्याली में नहीं किया.

इलस्ट्रेशन : सिद्धांत जुमडे
इलस्ट्रेशन : सिद्धांत जुमडे

- शेषाद्री चारी

राष्ट्रपति कार्यालय से भेजे गए जी20 रात्रिभोज निमंत्रण में सिर्फ भारत (प्रेसिडेंट ऑफ भारत) का उल्लेख किया गया, जिससे एक तीखी बहस छिड़ गई. जी20 शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री के सामने नेमप्लेट पर भी सामान्य इंडिया की जगह गर्व से भारत लिखा हुआ था. संविधान कहता है कि इंडिया भारत है, भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री प्रोटोकॉल के सही तरफ हैं या सही दिशा में गलत तरफ हैं. हालांकि सरकार नाम बदलने के लिए कोई तर्क नहीं दे रही है. लगता है कि विपक्ष गलत फंस गया है.

मोदी सरकार ने इंडिया की जगह भारत नाम का इस्तेमाल करने वाली पहली सरकार किसी खामख्याली में नहीं है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) परंपरा से ही अपने आख्यान में भारत नाम का उपयोग करता रहा है और उसकी प्रार्थना 'भारत माता की जय' नारे के साथ समाप्त होती है. आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने हाल ही में कहा था कि व्यक्तिवाचक संज्ञाओं का अनुवाद नहीं किया जा सकता और इसलिए आग्रह किया कि 'सभी क्षेत्रों में बदलाव देखने के लिए' भारत नाम का उपयोग किया जाए. मोदी सरकार ने जी20 शिखर सक्वमेलन में भारत का उपयोग शुरू किया और बदलाव देखने का इंतजार कर रही है. ऐसा लगता है कि दुनिया ने यह बदलाव तेजी से स्वीकार कर लिया है, लेकिन विपक्ष का एक वर्ग इससे खुश नहीं है. आरएसएस से पहले भी खासकर कांग्रेस और अन्य राजनैतिक दलों से आधिकारिक तौर पर भारत नाम के उपयोग के सुझाव आते रहे हैं.

गोवा से कांग्रेस सांसद शांताराम नाईक ने संविधान के अनुच्छेद 1 में संशोधन की मांग करते हुए एक नहीं बल्कि दो बार राज्यसभा में एक निजी विधेयक पेश किया, जिसमें 'इंडिया दैट इज भारत' का उल्लेख है. उनके विधेयक में मूल रूप से तीन महत्वपूर्ण बदलावों की मांग की गई थी-संविधान की प्रस्तावना में इंडिया शब्द के स्थान पर भारत शब्द शामिल करना, इंडिया यानी भारत के स्थान पर केवल भारत शब्द का उपयोग करना और तीसरा, संविधान में जहां भी इंडिया शब्द आता है, वहां भारत किया जाना चाहिए. कांग्रेस सांसद ने देशभक्ति की भावना पैदा करने वाले लोकप्रिय गीत 'जहां डाल-डाल पर सोने की चिड़िया करती हैं बसेरा, वो भारत देश है मेरा' का हवाला देकर भारत की वकालत की.

समाजवादी पार्टी (सपा) ने देशभक्ति के तर्क को आगे बढ़ाया और उसे 'स्वदेशी आर्थिक नीतियों' से जोड़ा, संविधान में इंडिया की जगह भारत शब्द की मांग कर पश्चिमी उपभोक्तावाद को खारिज किया. अप्रैल, 2004 में सपा ने 'देश की पहचान की रक्षा के लिए', 'लग्जरी वस्तुओं के आयात पर प्रतिबंध लगाने' और 'पश्चिमी उपभोक्तावादी जीवनशैली से सांस्कृतिक पतन को मिल रहे बढ़ावा को खत्म करने के लिए अन्य उपयुक्त आर्थिक और राजनैतिक उपाय करने' के लिए संविधान में सिर्फ 'भारत' नाम के उपयोग करने का प्रस्ताव रखा. भाजपा का तर्क जो भी हो, लेकिन कांग्रेस और सपा के भारत के जोरदार समर्थन के सामने यह फीका-सा लगता है. भाजपा के दिग्गज नेता और कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा ने इंडिया की जगह 'भारत' करने के लिए संविधान में संशोधन का सुझाव दिया और नाम परिवर्तन को कन्नड़ गौरव से जोड़ा. तो, भारत के प्रति दक्षिणी रुझान भी है.

भारतविद् जॉन मुइर का मुख्य अध्ययन मूल संस्कृत ग्रंथों के आधार पर भारत के लोगों, उनके धर्म और संस्थानों की उत्पत्ति और इतिहास (1852-1870) था. उन्होंने दो निष्कर्ष सामने रखे. उसमें एक यह है कि 1858 में अपने अध्ययन के पहले खंड में उन्होंने जाति की उत्पत्ति पर लिखा कि वैदिक युग में उसका अस्तित्व नहीं था. उस खंड में उन्होंने पुराणों की भौगोलिक अवधारणाओं का वर्णन करते हुए भारत के लोगों की उत्पत्ति और इतिहास पर भी विस्तार से लिखा और 'भारतवर्ष' तथा इंडिया की तुलना की है. यह संभवत: किसी ब्रिटिश भारतविद् का भारत के पक्ष में शुरुआती तर्कों में एक था.

लगभग 35 साल बाद जर्मन प्राच्यविद् गुस्ताव ओपर्ट 1893 में एक कदम आगे बढ़ गए और उन्होंने जोरदार तर्क दिया कि भारतवर्ष ही 'इंडिया का एकमात्र प्रासंगिक राष्ट्रीय पदनाम' है. उन्होंने तर्क दिया कि सिर्फ भारत नाम ही ''आर्य'' और ''द्रविड़'' के बीच विभाजन को पाटने में सक्षम है.

विडंबना यह है कि 'भारत' ऐसा विचार माना जाता है जो हर 'भारतीय' को जोड़ता है और उसे ऐसी पहचान देता है जो अनोखी है और जिसकी जड़ें परंपरा और संस्कृति में गहरी हैं. यह तर्क जितना बेतुका लगता है, उतना ही अतार्किक भी है कि इंडिया का नाम बदलकर भारत कर दिया गया तो इसके मूलभूत सिद्धांत बदल जाएंगे. संविधान में भारत नाम स्पष्ट रूप से दर्ज है और इंडिया की सभी विशेषताएं भारत पर भी लागू होती हैं.

वरिष्ठ कांग्रेसी नेता कमलापति त्रिपाठी से अधिक जोरदार ढंग से शायद कोई भी भारत की वकालत नहीं कर सकता. उन्होंने घोषणा की थी कि, "मैं 'भारत' के ऐतिहासिक नाम से प्रभावित हूं... हजारों वर्षों के बाद भी हमारा देश अभी भी 'भारत' के नाम से जाना जाता है. वैदिक काल से ही यह नाम हमारे साहित्य में आता रहा है. हमारे पुराणों में संपूर्ण भारत के नाम की स्तुति की गई है.''

संविधान सभा में 18 सितंबर, 1949 को शुरू हुई 'भारत' बहस 74 साल बाद पुनर्जीवित हो गई है. इस मुद्दे पर आगे बहस करना देश के हित में होगा. संविधान सभा की बहस के दौरान कांग्रेस पार्टी के दिग्गजों के तर्कों के मद्देनजर भारत नाम को सर्वसम्मति से अपनाए जाने में उनकी हिस्सेदारी कहीं अधिक लगती है.

मुद्दा यह नहीं है कि श्रेय किसे मिलता है, बल्कि यह है कि हम कितनी जल्दी और कितनी सर्वसम्मति से संविधान निर्माताओं की परिकल्पना के भारत नाम को अपना सकते हैं.

- शेषाद्रि चारी, ऑर्गेनाइजर के पूर्व संपादक हैं.

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