ब्रांड न्यू इंडिया
2002 में इन्क्रेडिबल इंडिया से अब डिजिटल इंडिया तक ब्रांड इंडिया विश्व और राष्ट्र के साथ संवाद के प्रभावशाली प्रतीक के रूप में उभरा है

- रविंदर कौर
भारतीय सोशल मीडिया पर 5 सितंबर, 2023 को #भारत सबसे ज्यादा ट्वीट किया गया और सबसे लंबे वक्त तक ट्रेंड करने वाला विषय था. दिन गहन अटकलों के साथ शुरू हुआ कि मोदी सरकार देश के दो संवैधानिक नामों में से एक 'इंडिया' को रद्द करने वाली है, ताकि दूसरे नाम 'भारत' को विशेषाधिकार दिया जा सके. मगर जिस चीज की औपनिवेशीकरण से मुक्ति और नामकरण की प्रामाणिक परंपराओं की ओर लौटने के संकेत के रूप में जय-जयकार की गई, उसने जल्द ही अप्रत्याशित मोड़ ले लिया- अटकलबाजी पर आधारित सुझाव सामने आया कि अगर भारत 'इंडिया' नाम छोड़ना तय करता है, तो पाकिस्तान इस नाम पर दावा कर सकता है.
अफवाह की भनक भर इंटरनेट पर चुहल-भरे और उतने ही अविश्वास से भरे मीम को हवा देने के लिए काफी थी. भारत का पड़ोसी और दुश्मन देश उस पहचान की गुजारिश क्यों करता जिसे उसने कभी ठुकरा दिया था? यह सचमुच कल्पना से परे परिदृश्य था, जिसमें उस चीज की व्यंग्यात्मक अटकल लगाई जा रही थी जो इतिहास के सबसे बड़े उलटफेरों में से एक होती. मगर कहानी में इस विडंबना भरे मोड़ से कुछ और भी उजागर हुआ-पुरातनकाल के हरदिल अजीज भौगोलिक निशान इंडिया नाम का चिरस्थायी मोह-इंडिका, इंडीज, हिंद, हिंदुस्तान और इंडिया, जो संस्कृत की सिंधु नदी के सजातीय रूप हैं-जिसे 21वीं सदी की विश्व अर्थव्यवस्था में ब्रांड इंडिया के रूप में नए सिरे से पेश किया गया है.
ब्रांड इंडिया सहस्राब्दी के मोड़ पर पूरी तरह निखरकर सामने आया, जब वैश्विक भारतीय पहचान उस बेशकीमती संसाधन की शक्ल में मूर्त हुई, जिसे विश्व अर्थव्यवस्था में चाहे-जाने-योग्य कमोडिटी ब्रांड के रूप में नए सिरे से गढ़ा जा सकता था. इसने राष्ट्र के संसाधनों-प्राकृतिक भूदृश्यों, लोगों और संस्कृतियों-के बीच मध्यस्थता करते हुए राष्ट्र का एक उदार व्यक्तित्व प्रस्तुत किया. इन्क्रेडिबल इंडिया या अतुल्य भारत की छवियां इस लिहाज से खास तौर पर गौरतलब थीं कि इस ब्रांड के जरिए प्रकृति-पहाड़, रेगिस्तान, जंगल, नदियां और समुद्र-एक बार फिर इस तरह उकेरे गए कि उन्हें इसके वस्तु या पण्य रूप से अलग नहीं किया जा सकता था.
1990 के दशक के मध्य में जो 'मेड इन इंडिया' को बढ़ावा देने की कोशिश के रूप में शुरू हुआ था, तीन दशक बाद वह 'मेक इन इंडिया' और देश मैन्युफैक्चरिंग हब बन गया. तिस पर भी, चीन के विपरीत, भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था को न केवल दुनिया के लिए खोला, बल्कि वह 'दुनिया का सबसे बड़ा मुक्त-बाजार लोकतंत्र' होने का दावा भी कर सकता था. इस तरह ब्रांड इंडिया उदार राजनीति और उदार अर्थव्यवस्था दोनों का जोड़ बन गया, एक ऐसी इकाई जिसका बड़े पैमाने पर प्रचार अभियानों के जरिए जश्न मनाया और अभिषेक किया गया. 2002 में लॉन्च किए गए ऐतिहासिक इन्क्रेडिबल इंडिया कैंपेन, 2003-04 के इंडिया शाइनिंग, 2006 के इंडिया एवरीव्हेयर से लेकर 2007 के लीड इंडिया और स्किल इंडिया तक, क्लीन इंडिया से लेकर डिजिटल इंडिया तक ब्रांड इंडिया विश्व और राष्ट्र के साथ संवाद के प्रभावशाली बिंदुपथ के रूप में उभरा.
इसीलिए शायद भारत के इन दो डोमेन नामों की यह परिकल्पित उपलब्धता ही है जिसने ब्रिटिश इंडिया के दो उत्तराधिकारी देशों के नाम रखे जाने के तरीके को लेकर पुरानी, भूली हुई ऐतिहासिक कटुता को सामने रख दिया. कई लोगों को याद आया कि जब नेहरू ने इंडिया नाम बनाए रखने का फैसला किया, तो किस तरह जिन्ना मायूसी महसूस करते बताए गए थे. कहा जाता है कि उन्हें उपनिवेशवाद से छुटकारे का संकेत देने के लिए स्वतंत्र भारत को भारत या हिंदुस्तान कहे जाने की उम्मीद थी.
इसके बजाए आधुनिक भारत के निर्माताओं ने उस स्थापित नाम पर कब्जा कर लिया जो प्राचीनकाल से मौजूद था, और इसे भारत के साथ जोड़कर संविधान में एक दोहरा नाम 'इंडिया, अर्थात् भारत' उत्कीर्ण कर दिया. नए नामकरण ने न केवल व्यापक रूप से मान्य नाम का बढ़-चढ़कर प्रयोग किया बल्कि यह उस ऐतिहासिक निरंतरता का पहचान चिह्न भी बन गया जिसने कई पुराने भारतों को नए उत्तर-औपनिवेशिक देश में एक साथ गूंथ दिया था. अगर भारत ने अंदरूनी निर्वाचन क्षेत्र को और खासकर हिंदू पहचान के उपभोक्ताओं को संबोधित किया, तो जाना-पहचाना नामपट्ट इंडिया राष्ट्र और विश्व के बीच कॉस्मोपोलिटन इंटरफेस बन गया.
मैं एक दमदार उदाहरण के साथ बात खत्म करती हूं कि ब्रांड इंडिया ने अतीत और भविष्य को जोड़ने के लिए कैसे काम किया. इंडिया शाइनिंग कैंपेन के एक विज्ञापन ने दुनिया भर के सैलानियों को 'हमारे खूबसूरत तटों के समुद्री सफर' पर निकलने के लिए लुभाया था. तस्वीर में अमेरिकी महाद्वीप पर कोलंबस के आगमन का कलात्मक चित्रण था और बगल में मोटे अक्षरों में लिखा था, ''पिछली बार जब हम इतनी संभावनाओं से भरे थे, कोलंबस ने अमेरिका की खोज की.'' उसके नीचे छोटे अक्षरों में समझाया गया था कि ''जब कोलंबस हमारी भूमि के समृद्ध मसालों की खोज के लिए समुद्री सफर पर निकला, नियति को कुछ और मंजूर था. हमें खोजने के बजाए उसने अमेरिका खोज लिया. वर्षों बाद आधुनिक खोजकर्ताओं ने हमारी इन्क्रेडिबल (अतुल्य) भूमि को अपने नक्शों पर वापस पा लिया है.''
इशारा क्रिस्टोफर कोलंबस के हाथों की गई उस मशहूर भारत की खोज के उस किस्से की तरफ था, जो धनधान्य से भरे भूभाग के रूप में यूरोपीय कल्पना में लंबे वक्त से मौजूद रहा था. जैसा कि सबको पता है, कोलंबस अपने मूल मिशन में नाकाम रहा और कभी भारत नहीं पहुंचा. यह कहानी इसलिए याद दिलाई गई ताकि न केवल आधुनिक निवेशकों और खोजकर्ताओं का ध्यान भारत के प्रसिद्ध आकर्षणों की तरफ खींचा जा सके बल्कि उन्हें सुरक्षित ढंग से भारत की राह खोजने का भरोसा भी दिलाया जा सके.
यहां हम जो देख रहे हैं, उसमें भूमिकाएं उलट गई हैं. अन्वेषक और निवेशक ही भारत की तलाश में नहीं जाते, इस बार भारत भी अपनी पूंजीवादी ग्रोथ स्टोरी में हिस्सा लेने के लिए दुनिया को अपने तटों पर बुला रहा है. हम यह भी देख रहे हैं कि दुनिया में ब्रांड इंडिया की स्थिति मजबूत करने के लिए भारत की पिछली मुठभेड़ों का किस तरह गैरमामूली तरीकों से इस्तेमाल किया गया.
- रविंदर कौर, ब्रांड न्यू इंडिया : कैपिटलिस्ट ड्रीम ऐंड नेशनलिस्ट डिजाइंस इन ट्वेंटी फर्स्ट सेंचुरी इंडिया, की लेखक हैं