भारत, बर्बर ताकत का प्रतीक
'इंडिया' समावेशी शब्द है जो हमारी सामाजिक, आध्यात्मिक और सञ्जयतागत जड़ों को मूर्त रूप देता है. 'भारत' सनातन धर्म के जाति, नस्ल और मर्दानगी के पाश्विक काढ़े के नशे में गहराई से डूबा है.

- कांचा इलैया शेफर्ड
विपक्षी दलों ने पहले अक्षरों को मिलाकर बनाया गया शब्द इंडिया (इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव एलायंस) क्या अपनाया, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के दूसरे नेताओं ने इसे विपक्ष की औपनिवेशिक मानसिकता का संकेत बताकर हमला बोल दिया. आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत के नक्शे-कदम पर चलते हुए उन्होंने लोगों से ''राष्ट्रीय गौरव'' की भावना का संचार करने के लिए ''इंडिया के बजाए भारत'' का इस्तेमाल करने को कहा. इस तरह आरएसएस/भाजपा का नाम बदलने का गेम प्लान शुरू हो गया.
अब वे इसे अपने उपनिवेशवाद से मुक्ति के एजेंडे के अंग के रूप में पेश करने की कोशिश कर रहे हैं. डॉ बी.आर. आंबेडकर ने संविधान की उद्देशिका में 'इंडिया' नाम को अंतिम रूप से अपनाया- 'वी द पीपल ऑफ इंडिया'- और इसे अनुच्छेद 1 में किए गए इसके इस्तेमाल के तरीके- 'इंडिया, दैट इज भारत'- के ऊपर प्राथमिकता मिली. उन्होंने देश के नाम के रूप में भारत पर इंडिया को तवज्जों क्यों दी, जबकि संविधान में दोनों का ही प्रयोग किया गया?
1950 में संविधान को अंगीकार किए जाने के वक्त तक भारत की दबी-कुचली जातियां अपने अधिकारों को लेकर जागरूक होने लगी थीं. भारत नाम उत्तर वैदिक काल की सनातन धरोहर से उपजा था और इसके जातिगत/नस्लीय निहितार्थ हैं. उपमहाद्वीप का इंडिया नाम ज्यादा स्वीकार्य है, क्योंकि यह हमारी सबसे प्राचीन प्रगति को प्रतिबिंबित करता है. यह सभी को एक साझा पहचान के तले एकजुट करता है- द्रविड़, आर्य, और मंगोलियाई नस्लें और विशाल कृषि उत्पादक जनसाधारण.
ऐसे ज्यादातर उत्पादक जनसाधारण अब शूद्र (ओबीसी), दलित और आदिवासी सरीखी सामाजिक श्रेणियों में मौजूद हैं. इस देश के नाम में उनका योगदान भी झलकना चाहिए. 'भारत' का ऐसा कोई सभ्यतागत महत्व नहीं है; यह इस उपमहाद्वीप की लंबे समय से चली आ रही उत्पादक सभ्यता को समाहित नहीं करता. इंडिया नाम उपमहाद्वीप की सामाजिक, आध्यात्मिक और सभ्यतागत जड़ों की ओर इंगित करता है, न कि केवल राष्ट्र-राज्य के मौजूदा विशाल भूभाग की तरफ. इसमें बौद्ध, जैन, सिख, मुस्लिम, ईसाई और वैदिक धर्म शामिल हैं.
'भारत' चाहे रामायण के दशरथ के क्षत्रिय वंश से उपजा हो या महाभारत के दुष्यंत के क्षत्रिय वंश से, इसकी जड़ें ऊंची जातियों के पुरुष राजवंशीय शासकों में हैं. यह शूद्रों/दलितों/आदिवासियों के अलावा महिलाओं को भी क्यों स्वीकार्य होना चाहिए, जिन्हें इस नाम की क्षत्रियता से परेशानी है? यह राजशाही की बर्बर ताकत का प्रतीक है, न कि हमारी प्राचीन गणतांत्रिक धरोहर का.
सिंधु सभ्यता, जिससे कई- यूनानी, लैटिन, फारसी आदि- मोड़ों से गुजरकर इंडिया नाम उभरा, सामूहिक श्रम शक्ति की झलक देती है और साथ ही पितृसत्तात्मक वैदिक काल से पहले के हमारे पूर्वजों के हाथों विकसित विज्ञान और टेक्नोलॉजी को भी दर्शाती है. सिंधु स्रोत सेक्युलर स्रोत है; यह हमारी धार्मिक/जातिगत जड़ों की याद नहीं दिलाता.
अगर 'इंडिया' का औपनिवेशिक इस्तेमाल इसे बदलने की मुख्य वजह है, तब तो इस 'हिंदू धर्म' शब्द को भी हटाने की जरूरत है, जिसे औपनिवेशिक काल में लोकप्रिय बनाया गया और व्यापक रूप से इस्तेमाल किया गया. उपनिवेशवाद से पहले सभी मौजूदा रिकॉर्ड में 'हिंदू' या 'हिंदु' है, जबकि ब्राह्मणवादी धर्म का उल्लेख 'सनातन धर्म' के रूप में किया गया था. मुस्लिम शासकों और ईस्ट इंडिया कंपनी ने 'हिंदू धर्म' शब्द गढ़ा, जिसका अर्थ सनातन धर्म है. मुस्लिम और ब्रिटिश शासकों की तरफ से इस्तेमाल किए जाने से पहले उस धर्म के लिए हिंदू धर्म नाम किसी भी लिखित ग्रंथ- चाहे वह संस्कृत में हो या क्षेत्रीय भाषाओं में- मौजूद नहीं है. मुस्लिम शासकों ने 'इंडिया' का नहीं, बल्कि हिंदुस्तान नाम का इस्तेमाल किया. इस नाम में धर्म ('हिंदू') और भूमि ('स्तान') दोनों समाहित हैं.
इसलिए आरएसएस/भाजपा की फौजों को मुस्लिम और ब्रिटिश शासन दोनों का विरोध करने के लिए 'हिंदू धर्म' का इस्तेमाल छोड़ देना चाहिए. उनके धर्म के लिए आदर्श राष्ट्रवादी नाम 'सनातन' हो सकता है. तब शूद्र/दलित/आदिवासी उनके और सनातनों के बीच स्पष्ट अंतर कर सकेंगे. सनातन की अवधारणा वर्ण धर्म के पक्ष में है. डॉ. आंबेडकर और ई.वी. रामासामी 'पेरियार' ने जाति और सनातन धर्म के बीच करीबी रिश्तों के बारे में लिखा है.
आम तौर पर भाजपा और खास तौर पर नरेंद्र मोदी नेहरू परिवार के वंशवादी शासन पर हमले करते रहते हैं. ऐसा क्यों है कि वही भाजपा/आरएसएस अब देश के लिए ही क्षत्रिय राजवंशीय नाम को तवज्जो दे रहे हैं? प्रधानमंत्री के विमान पर पहले ही हिंदी में 'भारत' लिख दिया गया है. जी20 शिखर सक्वमेलन में भी सरकार ने 'भारत' का इस्तेमाल किया. अगर मोदी की हुकूमत में देश का नाम बदलकर भारत रख दिया गया है, तो वंशवादी शासन के खिलाफ प्रधानमंत्री के तमाम भाषण पाखंड के सिवा कुछ नहीं बचते.
आंबेडकर का विचार था कि इंडिया सरीखे नाम से उनकी दृष्टि की झलक मिलेगी, जिसमें जाति, धर्म, वर्ग या लिंग के आधार पर उत्पीड़न नहीं होना चाहिए. संविधान सभा में उन्होंने कई सनातनियों की यह मांग ठुकरा दी थी कि देश का नाम इंडिया नहीं बल्कि भारत रखा जाना चाहिए. अगर यह सरकार 'इंडिया' को हटा देती है, तो भारत के शूद्रों/दलितों/आदिवासियों को पूरी ताकत से इस कदम का विरोध करना चाहिए.
- कांचा इलैया शेफर्ड राजनैतिक सिद्धांतकार, कार्यकर्ता और लेखक हैं.