चंद्र योद्धाओं का चमत्कार
भारत के चंद्र अभियानों के दौरान नाकामी से उबर कर कामयाबी की पटकथा लिखे जाने तक की अनकही-अनसुनी कहानी

बेंगलूरू में छोटे उद्योगों के गहमागहमी वाले केंद्र पीन्या में एमओएक्स या मिशन ऑपरेशन्स कॉम्प्लेक्स-2 एक बेहद सामान्य-सा पीडब्ल्यू टाइप परिसर है. इसकी ओर आने वाली सड़क पर ताजा-ताजा तारकोल बिछा है. यह 26 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आने की तैयारी में किया गया था, जो चंद्रमा पर चंद्रयान-3 मिशन की शानदार सफलता पर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिकों को बधाई देने पहुंचे थे. लेकिन सुरक्षा कारणों से इसे उनके दौरे तक बंद रखा गया था.
एमओएक्स के परिसर में अब चर्चित मून लैंडर विक्रम और उसके सहयात्री प्रज्ञान रोवर के वास्तविक आकार का मॉडल प्रदर्शित किया गया है. ये प्रधानमंत्री को दिखाने के लिए शहर के दूसरे छोर पर स्थित यू. आर. राव उपग्रह केंद्र (यूआरएससी) से लाए गए थे. चमकीले स्वर्णिम रंग के थर्मल कंबल में लिपटा विक्रम अपने चार लैंडिंग पैरों के अस्वभाविक रूप से करीब 10 फुट ऊंचा है, लेकिन किसी बक्से जैसा दिखता है. 1,742 किलोग्राम वजन का लैंडर चंद्रमा पर ऐसे उतरा, जैसे कोई लघु एसयूवी उपग्रह की सतह पर गिरा हो. चमकदार एल्युमीनियम के पहिए वाला रोवर प्रज्ञान किसी बड़े स्केटबोर्ड की तरह दिखता है. इसरो के वैज्ञानिक और उनके परिजन स्पेसक्राफ्ट की प्रतिकृति के साथ सेल्फी लेने में जुटे हैं, उससे पहले कि इसे फिर अलग-अलग करके यूआरएससी न पहुंचा दिया जाए.
एमओएक्स-2 में 29 अगस्त को इंडिया टुडे की टीम पहुंची तो अंदर तीन मिशन कंट्रोल हॉल में भारी गहमागहमी थी. चंद्रयान प्रोजेक्ट टीम को कंप्यूटर कंसोल्स के दूसरे सेट की तरफ जाना था, ताकि आदित्य एल-1 मिशन की टीम के लिए जगह खाली की जा सके, जो सूर्य के अध्ययन के लिए 2 सितंबर को लॉन्च होने वाले अंतरिक्ष यान की तैयारी कर रही थी. इन दिनों इसरो में काफी व्यस्तता है. परिसर की ऊंची दीवारों पर विशालकाय कंप्यूटर स्क्रीन लगे हैं, जिनके डैशबोर्ड पर विक्रम का हाल-चाल और प्रज्ञान की गतिविधियां प्रदर्शित हैं.
रोवर चंद्रमा की भूरी-काली सतह पर सचमुच रेंगता है. उसकी 'सबसे ज्यादा रफ्तार' प्रति सेकंड एक सेंटीमीटर है और उसमें सामने की तरफ दो कैमरे लगे हैं, जो उसकी आंख का काम करते हैं. सतह काफी ऊबड़-खाबड़ और गड्ढों से भरी हैं. उस दिन रोवर को लैंडर से महज आठ मीटर की दूरी से लौटना पड़ा. लेकिन पहले वह चारों ओर घूमा और चंद्रमा की सतह पर विक्रम की एकदम पहली तस्वीर भेजी, जो यकीनन भारत की ताकत का स्थायी प्रतीक बनेगी.
धरती पर लौटते हैं. एक कंसोल में सिर गड़ाए एकदम सामान्य-से 46 साल के पलानिवेल वीरमुतुवेल गहरे रंग की पूरी बांह की सूती कमीज और थोड़ी हल्के रंग की चेकदार पैंट पहने बैठे हैं. उनके सफेद-काले बाल करीने से पीछे की ओर कंघी किए हुए हैं. तमिलनाडु के वीरमुतुवेल की पढ़ाई विल्लमपुरम रेलवे स्कूल में हुई और उन्होंने चेन्नई के एक कॉलेज से इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की. उसके बाद तिरुचिरापल्ली के एक इंस्टीट्यूट से एम.टेक किया. वे थोड़े समय के लिए एचएएल से जुड़ने के बाद 2004 में इसरो में आ गए, क्योंकि उसका ''ब्रांड नाम काफी बड़ा" है.
अब चार साल से चंद्रयान-3 के प्रोजेक्ट डायरेक्टर हैं. सो, उनके पतले से कंधे पर देश की अंतरिक्ष आकांक्षाओं का भारी बोझ है और यह भी कि इसरो को ब्रांड नाम कहीं फीका न पड़े. यही नहीं, उनके साथ सैकड़ों भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की प्रतिष्ठा भी जुड़ी हुई है, जिन्होंने चंद्रमा मिशन की कामयाबी के लिए दिन-रात एक कर दिए. विनम्रता मगर ठोस इरादों से वीरमुतुवेल खुद को ''सीधा-सादा आदमी" बताते हैं, जिसका मानना है कि ''स्व-अनुशासन, बिना किसी उम्मीद के सौ फीसद जुड़ाव और कड़ी मेहनत कभी जाया नहीं जाती.’’
अलबत्ता, हमेशा नहीं. चार साल पहले 6 सितंबर, 2019 को वे और सैकड़ों दूसरे वैज्ञानिक देखते ही रह गए कि चंद्रयान-2 लैंडर चंद्रमा की सतह से 800 मीटर ऊपर नियंत्रण खो बैठा और मिशन कंट्रोल से सभी टेलीमीटरी संपर्क टूट गया. वह चंद्रमा की सतह पर जा टकराया. तब तत्कालीन इसरो चेयरमैन पी. सिवन पर प्रधानमंत्री मोदी तक इस मायूसी की खबर पहुंचाने का जिम्मा था, जो दर्शक दीर्घा में लैंडिंग देखने के लिए बैठे थे.
प्रधानमंत्री को सिवन को ढाढस बंधाना पड़ा, क्योंकि उनके जज्बात उनके चेहरे के हाव-भाव से बयान हो रहे थे. उस दिन मिशन कंट्रोल में मौजूद लोगों में एस. सोमनाथ भी थे, जो तब तिरुवनंतपुरम स्थित विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी) के डायरेक्टर थे. वे याद करते हैं, ''हम सभी दुखी थे क्योंकि हमने पहले उसका शानदार प्रदर्शन देखा था और आखिरी हिस्से में हमें कुछ पता नहीं था कि वह सुरक्षित उतर गया है या टकरा गया है, क्योंकि संचार संपर्क टूट जाने से कोई डेटा नहीं आ रहा था."
चार साल बाद लंबे, फिट और चुस्त-दुरुस्त सोमनाथ ने एक बार फिर खुद को एमओएक्स-2 के एक कंसोल में आगे बैठा पाया, अलबत्ता, इस बार बतौर इसरो चेयरमैन, जब चंद्रयान-3 लैंडर के उतरने के आखिरी पलों की उलटी गिनती शुरू हुई. उनकी बगल में बैठे अहमदाबाद में स्पेस ऐप्लिकेशंस सेंटर (एसएसी) के डायरेक्टर नीलेश देसाई थोड़े चौकन्ने थे, क्योंकि हाल ही में रूस का लुना 25 दक्षिणी ध्रुव पर ही लैंडिंग में नाकाम हो गया था. उन्हें बतौर सिवन ''अनजानी अनहोनियों’’ की फिक्र थी. सोमनाथ खुद असामान्य तौर पर एकदम शांत थे.
1985 में इसरो के साथ जुड़कर 50 रॉकेट लॉन्च देख चुके दिग्गज कहते हैं, ''मेरी आदत उत्तेजित होने की नहीं है. हमने वह सब किया था, जो कामयाबी के लिए जरूरी था. उससे ज्यादा हम कुछ कर भी नहीं सकते थे और मुझे यकीन था." उनकी और उनकी टीम का यह अति आत्मविश्वास उस कड़ी मेहनत से उपजा था, जो पहले वाले लॉन्च की खामियों को दूर करने और अनहोनियों से बचने के लिए की गई थी.
कुल मिलाकर यह बेहद प्रेरणादायक कहानी है कि कैसे टीम इसरो ने निराशा से उबरकर, तमाम रुकावटों से पार पा चंद्रमा को लेकर नया इतिहास रच दिया. उन्होंने साथ मिलकर भारत को चंद्रमा पर अंतरिक्ष यान उतारने वाला चौथा और दक्षिण ध्रुव के दुर्गम और अंधियारे इलाके के पास पहुंचने वाला पहला देश बना दिया.
निराशा का गर्त
चार साल पहले चंद्रयान-2 के चांद की सतह पर उतरते वक्त जब इसरो का उसके साथ संपर्क टूट गया, तो यह पता लगाने में कई दिन लगे कि वह कहां गिरा था. वह तो जब, लैंडर के विपरीत, बिल्कुल अच्छी तरह काम कर रहे चंद्र ऑर्बिटर ने उसकी तस्वीर ली, तब कहीं जाकर वैज्ञानिकों को पता चला कि वह दुर्घटनाग्रस्त होकर चंद्रमा की सतह पर जा गिरा था और बिखरा पड़ा था. प्रोटोकॉल के मुताबिक इसरो के चेयरमैन के नाते सिवन ने नेशनल फेल्यर एनालिसिस कमेटी (एफएसी) या राष्ट्रीय विफलता विश्लेषण समिति बनाई, जिसके प्रमुख तिरुवनंतपुरम स्थित लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम्स सेंटर (एलपीएससी) के अनुभवी और निपुण डायरेक्टर वी. नारायणन थे.
नारायणन की टीम ने ही चंद्रयान-2 के लिए प्रोपल्शन सिस्टम बनाई थी और इसकी नाकामी से वे हतप्रभ और मायूस थे. उन्हें चंद्रयान-2 और उसकी प्रणालियों के समूचे कामकाज की जांच-पड़ताल करने, इस झटके के कारण बताने और अगली बार सफल प्रक्षेपण की सिफारिशें करने के लिए एक महीने का वक्त दिया गया. महीने के आखिर में टीम 900 पन्नों की रिपोर्ट लेकर आई, जिसमें बताया गया कि क्या गड़बड़ी हुई और उन गड़बड़ियों से कैसे पार पाएं.
अंतरिक्ष जरा माफ नहीं करता और एक फीसद की भी चूक या दोषपूर्ण प्रणाली का हश्र विनाशकारी विफलता में होता है. चंद्रयान-2 की नाकामी के कारणों की जांच करने पर समिति को यही पता चला. सिवन, जो तब भी चेयरमैन थे, याद करते हैं, ''अंतरिक्षयान के लिए बेहद अहम तीनों प्रमुख प्रणालियों—प्रोपल्शन यानी प्रणोदन, नैविगेशन यानी पथ-प्रदर्शन और गाइडेंस कंट्रोल यानी मार्गदर्शन नियंत्रण- में गड़बड़ियां थीं." ये सब उस वक्त घटित हुईं जिसे सिवन ने जाने-माने ढंग से ''15 मिनट का आतंक" करार दिया था, यानी वह वक्त जो चंद्रयान को चांद के इर्द-गिर्द अपनी कक्षा से बाहर आकर सतह पर उतरने में लगता है. इस पूर्णत: स्वायत्त चरण में, जिसे रफ ब्रेकिंग फेज के तौर पर जाना जाता है, चंद्रयान-2 के साथ सब ठीक-ठाक ही लग रहा था.
चंद्रमा की सतह से 30 किमी की ऊंचाई पर उतार की शुरुआत में अंतरिक्षयान 6,000 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से जा रहा था, जो भारतीय वायु सेना के सबसे तेज और शानदार लड़ाकू विमान सुखोई एसयू30 एमकेआइ की अधिकतम रफ्तार से तीन गुना ज्यादा थी. इस गति को घटाकर करीब 1,200 किमी प्रति घंटे (सवारी विमान की औसत गति 800 किमी प्रति घंटे से 400 किमी प्रति घंटे ज्यादा) तक और इसकी ऊंचाई को चंद्रमा की सतह से करीब 8 किमी ऊपर तक लाना पड़ा. ऐसा करने के लिए अंतरिक्ष यान के पिछले हिस्से को अपने इंजनों में चार इंजन दागने पड़े ताकि वे ब्रेक लगाने के तंत्र का काम कर सकें, और साथ ही आठ थ्रस्टरों के अपने समूह को इस तरह कमांड करना पड़ा कि अंतरिक्ष यान डीसेंट मोड या उतार की मुद्रा के लिए जरूरी कोण पर झुक सके.
सोल या कंट्रोल रूम में अंतरिक्षयान ठीक वही करता मालूम दे रहा था जो इस चरण में उसे करना था. अगले चरण में, जिसे कैमरा कोस्टिंग या एटीट्यूड होल्ड चरण कहा जाता है, अंतरिक्ष यान अपनी स्थिति का आकलन करके तय करता है कि ब्रेक लगाने के नाजुक चरण के लिए क्या उसे कोई सुधार करने की जरूरत है. मिशन टीम को पता भी नहीं चला और चीजें गड़बड़ होने लगीं क्योंकि चार थ्रस्टरों ने उत्साह में कुछ ज्यादा ही काम कर दिखाया, जिससे अंतरिक्ष यान की रफ्तार जरूरत से कोई 100 किमी प्रति घंटे ज्यादा कम हो गई. रफ्तार में कमी की भरपाई के लिए लगाई गईं नैविगेशन और गाइडेंस प्रणालियों ने उसे वापस रास्ते पर लाने के लिए आक्रामक हरकतें शुरू कीं.
मगर इस मुकाम पर सॉफ्टवेयर की गंभीर गड़बड़ियां होने लगीं, जिससे अंतरिक्ष यान गफलत में पड़ गया और उसे एक अनियोजित कलाबाजी भी खानी पड़ी. दूसरे हिस्से में इंजन का जोर कम होने के बजाए अधिकतम बढ़ गया, क्योंकि अंतरिक्ष यान की स्वायत्त गाइंडेस और कंट्रोल प्रणालियां विसंगतियों को दुरुस्त करने की बेतहाशा कोशिश कर रही थीं. तब तक काफी देर हो चुकी थी और लैंडर तय जगह से करीब 500 मीटर आगे बढ़कर तेज रफ्तार से चांद की सतह से जा टकराया. इसरो के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक कहते हैं, ''सामान्य 3-सिग्मा विसर्जन के बजाए, जिसे यान संभाल सकता था, हम कंट्रोल रूम की बड़े विचलनों को संभाल पाने की क्षमता से कहीं आगे के सिग्मा स्तर तक गिर रहे थे."
फिर जीत की लड़ाई
इसरो की विफलता समीक्षा प्रणाली को इस बात का श्रेय जाता है कि उसने गड़बड़ियों के मूल कारणों का ठीक-ठीक पता लगाया, बजाए उस कटुता के जो इसकी वजह से विभिन्न टीमों के बीच पैदा हो सकती थी. साफ है कि लैंडिंग के चरण में हर प्रमुख प्रणाली इस हद तक त्रुटियों के लिए जवाबदेह थी कि उन्हें संभाला नहीं जा सकता था, जिसकी वजह से अंतरिक्ष यान की संपूर्ण जांच और मरम्मत जरूरी हो गई. टीम इसरो के लिए गनीमत यह थी कि चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर मुकम्मल ढंग से काम कर रहा मालूम देता था, चांद की सतह के बारे में लगातार जानकारी भेज रहा था, और चंद्रयान-3 की कामयाबी में जबरदस्त योगदान दे रहा था.
चंद्रयान-2 की नाकामी के कारणों की पड़ताल केवल आधी लड़ाई जीतना था. ज्यादा मुश्किल हिस्सा गलतियों को दुरुस्त करना था. वीरमुतुवेल को, जो चंद्रयान-2 के एसोसिएट प्रोजेक्ट डायरेक्टर थे और उससे जुड़े प्रणालीगत मसलों की जबरदस्त समझ हासिल कर चुके थे, उस साल दिसंबर में चंद्रयान-3 का प्रोजेक्ट डायरेक्टर बना दिया गया. चंद्रयान-2 पर काम कर चुकी 49 वर्षीया कलाहस्ती कल्पना को उनकी एसोसिएट प्रोजेक्ट डायरेक्टर बनाया गया. चेन्नई इंजीनियरिंग कॉलेज से ग्रेजुएट कल्पना 1999 में रडार इंजीनियर के रूप में इसरो से जुड़ीं. इसरो की स्त्री-पुरुष समानता को बढ़ावा देने की संस्कृति की प्रतीक कल्पना कहती हैं, ''अपने स्त्री होने की वजह से इसरो में मुझे कभी नहीं लगा कि हम बराबर नहीं हैं या मेरे साथ पक्षपात हुआ है. सभी चर्चाओं और कामों में हमें पुरुषों के बराबर माना जाता है."
कोविड ने तकरीबन एक साल विघ्नकारक भूमिका अदा की और चंद्रयान-2 की त्रुटियों को सुधारने के काम में गंभीर खलल डाला. शीर्ष स्तर पर भी बदलाव होने लगे. एक तो जून 2021 में मुतुसामी शंकरन ने यूआरएससी के डायरेक्टर का काम संभाल लिया, जो चंद्रयान-3 सहित अंतरिक्ष यानों की असेंबली के लिए जिम्मेदार नोडल सेंटर है. साफ ढंग से सोचने वाले 49 वर्षीय शंकरन, जो चंद्रयान और मंगलयान दोनों परियोजनाओं पर काम कर चुके थे, इस नतीजे पर पहुंचे कि नाकाम कोशिश का प्रमुख सबक यह है कि लैंडर महज अंतरिक्षयान से कहीं ज्यादा था. यह दोबारा इस्तेमाल किए जा सकने वाले रॉकेट के साथ एक उपग्रह भी था और ऐसा विमान भी जिसमें इस जागरूकता का एहसास था कि कैसे और कहां उतरना है.
शंकरन बताते हैं, ''यह वाकई एक-में-तीन यान है और ज्यों ही हमने इसे इस समग्र तरीके से बरता, हमें इससे कामयाब ढंग से काम करवाने की बेहतर समझ मिलने लगी.’’ उन्हें यह भी एहसास हुआ कि दुर्घटना के शिकार लैंडर का टेलीमीट्री डेटा सीमित था और उससे गड़बड़ियों का कोई बड़ा सुराग हाथ नहीं लगेगा. इसलिए उन्होंने यान के उतरने के अंतिम मिनटों के घटनाक्रमों को नए सिरे से रचने पर जोर दिया और फिर उसमें सुधार के मजबूत समाधान लेकर आए.
जनवरी 2022 में सिवन की जगह सोमनाथ इसरो के चेयरमैन बने. शांत स्वभाव के अलावा सोमनाथ ने अपने जोश को साहसी और दिलेर रवैये से जोड़ा, जिसने उनकी टीम के सदस्यों को उत्साह से भर दिया. वे अपने साथ पिछले चंद्रयान मिशन सहित जटिल अभियानों की रूपरेखा बनाने और उन्हें संभालने का विशाल अनुभव लेकर आए. सोमनाथ ने परियोजना की प्रबंधन शैली में दो बड़े बदलाव किए. एक तो उन्होंने विफलता उन्मुख नजरिए को पुरातन मर्फी के नियम का बदला हुआ रूप करार दिया, जिसके अनुसार वह सब जो गड़बड़ हो सकता है, गड़बड होगा.
उन्होंने स्पष्ट किया कि ऐसा नजरिया निराशावाद के मुकाम से नहीं आया था, बल्कि यह सफलता को तय मानने और सब कुछ अच्छा होने की उम्मीद से हटकर था, और इसके बजाए यह हर उस चीज का खाका बनाने, जो गड़बड़ हो सकता है और फिर उन्हें समूल खत्म करने के तरीके निकालने या बैकअप प्रणालियां लाने पर केंद्रित था.
दूसरे, उन्होंने अपनी टीम से कहा, ''हम चंद्रयान-3 लॉन्च करने के लिए तब तक आगे नहीं बढ़ेंगे जब तक कि इसमें शामिल सभी टीमें इसके बारे में 100 फीसद संतुष्टि नहीं होगी." इस अनिवार्यता के चलते लैंडर और रोवर के हर पहलू का रेशा-रेशा उघाड़कर एक बार फिर नए सिरे से जांच-पड़ताल की गई. उतार से सतह छूने तक 170 अहम मानदंड होते हैं जिनमें से हरेक की तब तक बार-बार जांच की गई जब तक कि उससे जुड़ी हर टीम में आत्मविश्वास का स्तर काफी बढ़ नहीं गया.
वीरमुतुवेल मुस्कराते हुए याद करते हैं कि जब उन्होंने सोमनाथ को बताया कि उन्हें पूरा विश्वास है कि समस्या हल हो गई है, तो उन्होंने उनसे कहा, ''यह आपके ऊपर है कि आप कहें कि आप पूरी तरह आश्वस्त हैं. इसे संभाल रही टीम को यह कहना चाहिए.’’ सोमनाथ प्रक्रिया की समीक्षा करने और टीमों का मार्गदर्शन करने के लिए इसरो के सेवानिवृत्त वैज्ञानिकों के विशाल समूह के पास भी गए. उनमें प्रमुख इसरो के पूर्व चेयरमैन ए.एस. किरण कुमार थे, जिन्होंने कामयाबी के लिए जरूरी सुधारों के बारे में बेशकीमती अंतर्दृष्टि प्रदान की.
कोई जोखिम नहीं लेने का नजरिया
फिर हर प्रमुख प्रणाली की टीम गलतियों की पहचान करने और उन्हें दुरुस्त करने में जुट गई और इस प्रक्रिया में चंद्रयान-2 के मुकाबले सभी मामलों में 20 से ज्यादा बड़े बदलाव किए गए. मसलन, प्रोपल्शन या प्रणोदन प्रणालियों में गहराई से जांच की गई कि ब्रेकिंग के ऊबड़-खाबड़ चरण में चार इंजनों के जरूरत से ज्यादा काम करने का क्या कारण रहा हो सकता है. ऐसा करने के लिए एलपीएसयू के नारायणन ने अपनी टीम से तिरुवनंतपुरम में वलियामाला परिसर के अपने केंद्र में चार इंजनों को एक प्लेटफॉर्म पर बांधने और फिर विक्रम के उतरने की योजना की पूरी अवधि के लिए उन्हें चालू करने को कहा. यहीं टीम को एक इलेक्ट्रॉनिक पल्स के गायब होने का पता चला, जो प्रणोदकों के प्रवाह को सुचारु ढंग से चलाने वाले वॉल्व को नियंत्रित करती है.
इसी के नतीजतन एक छोटी-सी ज्यादती हुई जिसकी वजह से इंजनों ने जरूरत से ज्यादा काम किया. लिहाजा, इनमें सुधार करके यह आश्वस्त किया गया कि ईंधन का प्रवाह थोड़ धीमा व सुस्त हो ताकि किसी भी गलती की भरपाई हो सके. फिर चार इंजनों को विक्रम के एक ऐसे प्लेटफॉर्म पर बांधा गया जिसमें सेंसर और कंट्रोल प्रणालियों सरीखी सारी अहम प्रणालियां थीं और उसे श्रीहरिकोटा के लॉन्चपैड पर 60 मीटर ऊंचे टावर से लटका दिया गया. उन्हें दागकर यह देखा गया कि रॉकेट इंजनों के शोर से पैदा कंपन कहीं संवेदकों को तो बाधित नहीं कर रहे थे और पक्का किया गया कि उड़ान के दौरान ईंधन के घूमने की आवाजों का अंतरिक्ष यान के गुरुत्वाकर्षण केंद्र पर असर न पड़े. इन्हें रोकने वाली चीजों का सहारा देकर इन मसलों को हल किया गया.
जब उन मार्गदर्शन और नियंत्रण प्रणालियों की बात आई जिनसे मिलकर विक्रम का दिमाग बनता है, तो सभी 1,16,000 सॉफ्टवेयर लाइनों (जैसा कि उन्हें कहा जाता है) की समीक्षा करके उनमें सुधार किए गए और इसके अलावा विसर्जन तथा विचलनों का दायरा इस तरह बढ़ाया गया कि यह उन्हें संभाल सके. सोमनाथ के पास वीएसएससी की एक अलग टीम भी थी जो सॉफ्टवेयर प्रणालियों से नहीं जुड़ी थी, ताकि सभी मानदंडों की स्वतंत्र ढंग से जांच करके यह सुनिश्चित कर सके कि सभी गड़बड़ियां दुरुस्त कर दी गई हैं.
फिर यह देखने के लिए कि मार्गदर्शन और नियंत्रण प्रणालियां काम कर रही थीं, वीरमुतुवेल ने अपनी टीम से एक हेलिकॉप्टर किराये पर लेने और विक्रम का मॉडल उड़ाने को कहा. वह 150 मीटर की ऊंचाई पर मंडराता रहा, यानी उतनी ही ऊंचाई पर जिस पर वह चांद पर मंडराता. चंद्रयान-2 की नियंत्रण की परेशानियों से बचने के लिए त्रुटियों को इस तरह प्रोग्राम किया गया कि वे जब और जहां पैदा हों, वहीं सुलझा ली जाएं और कोस्टिंग यानी इंजन की शक्ति के बिना उतरने के चरण का इंतजार करें.
इस बीच अहमदाबाद स्थित एसएसी में देसाई ने विक्रम के मुख्य मानदंडों की निगरानी करने वाले सभी सेंसरों और उसकी आंख का काम करने वाले आठ कैमरों की कड़ाई से जांच की और उन्हें ऊबड़-खाबड़ सतह पर काम करने योग्य बनाया. इसमें लैंडर हैजार्ड डिटेक्शन ऐंड एवॉयडेंस कैमरा (एलएचडीएसी) भी था, जो विक्रम के उतरने के आखिरी मिनटों में हरकत में आता है. यान 150 मीटर की ऊंचाई पर उतरने के स्थल के ऊपर मंडराते हुए तब तक इंतजार करता है जब तक कि एलएचडीएसी की तस्वीरें इस बात की तस्दीक नहीं कर देतीं कि और नीचे उतरने से पहले कोई कंकड़-पत्थर, गड्ढा या दूसरा अवरोध नहीं है. कैमरों में अतिरिक्त क्षमताओं का भी निर्माण किया गया ताकि अगर एक नाकाम हो जाए तो दूसरे उसकी जगह ले लें. यहां तक कि उन्होंने सलेम से रिगोलिथ से मिलती-जुलती रेत मंगवाकर चांद की सतह की नकल तैयार की और कैमरों के परीक्षण के लिए गड्ढों व कंकड़-पत्थरों से भरी मिनी लैंडिंग पट्टी बनाई.
दूसरे नवोन्मेषी समाधान भी थे. चंद्रयान-2 के चंद्र ऑर्बिटर की कामयाबी के साथ टीम को चंद्रयान-3 के लिए लंबी अवधि के ऑर्बिटर की जरूरत नहीं रह गई थी. इसलिए इसके ऑर्बिटर को हल्का और लैंडर को 250 किलो से भी ज्यादा भारी बनाया गया. इससे वे किसी भी विफलता की स्थिति में अतिरिक्त क्षमताओं का निर्माण करने के लिए और ज्यादा बैकअप उपकरण जोड़ सके. इस क्षमता के बड़े हिस्से का इस्तेमाल अतिरिक्त ईंधन ले जाने के लिए किया गया, ताकि योजना के अनुसार तय उतार पथ पर किसी भी आकस्मिकता और भटकाव से निबटा जा सके. पिछले मौके पर महज जरूरत भर का इंजन था, जिसने स्वायत्त निर्णय लेने की प्रक्रिया को बहुत सीमित कर दिया.
अब वे 170 किलो अतिरिक्त ईंधन ले जा सकते थे. विक्रम लैंडर के ज्यादा भारी होने के चलते चंद्रयान-2 के लैंडर में उतार के अंतिम चरण में इस्तेमाल के लिए लगाए गए पांचवें इंजन को भी तिलांजलि दे दी गई. इसीलिए मौजूदा लैंडर में चार इंजन हैं, जिसमें से दो को सतह छूने तक दागा जाता रहा. लैंडर के पेट से पांचवें इंजन के हटने की बदौलत उसके गुरुत्वाकर्षण का केंद्र ज्यादा स्थिर हो गया, तो ग्राउंड क्लियरेंस यानी सतह से ऊंचाई भी बढ़ गई, जिसकी यान का ऊंचे-नीचे भूभाग से सामना होने पर बहुत ज्यादा जरूरत थी. विक्रम के लेग पैड भी मजबूत बनाए गए ताकि जरूरत पड़ने पर दोगुनी ताकत जज्ब कर सकें. ये लेग पैड शहद के छत्ते के अनोखे पैटर्न में एल्यूमीनियम से बनाए जाते हैं, जो गिरने के ज्यादातर झटके को जज्ब करने के बाद उसके असर से कुचले जाते हैं.
एक और मुद्दा उस इलाके से जुड़ा था जिसकी चंद्रयान-२ की लैंडिंग के लिए पहचान की गई थी. यह 500 मीटर गुणा 500 मीटर की संकरी-सी पट्टी थी, जिसकी वजह से चतुराई के साथ उनका संचालन और ज्यादा जटिल हो गया. इस मुश्किल को दरकिनार करने की खातिर चंद्रयान की टीम ने लैंडिंग के इलाके का पूरा खाका खींचने के लिए अपने मौजूदा ऑर्बिटर का इस्तेमाल किया और लैंडिंग का क्षेत्र बढ़ाकर चार किमी गुणा 2.4 किमी कर लिया. टीम के एक सदस्य बताते हैं, ''तुलनात्मक फर्क टेनिस कोर्ट के बजाए फुटबॉल के मैदान में लैंङ्क्षडग करने की तरह था.’’
इस तरह जब सारी मुश्किलें सुलझा ली गईं और चंद्रयान से जुड़ी प्रणालियों के हरेक प्रमुख ने कह दिया कि वे संतुष्ट हैं कि उन्होंने ऐसे सारे सुधार कर लिए हैं जिनसे विफलता की कोई गुंजाइश न रहे, तो सोमनाथ ने 14 जुलाई, 2023 को अंतरिक्ष यान के प्रक्षेपण को मंजूरी दे दी. जब एलवीएम3 चंद्रयान-3 प्रोपल्शन मॉड्यूल और लैंडर को लेकर ऊपर उठा और उसे मुकम्मल ढंग से कक्षा में प्रक्षेपित कर दिया, तो मिशन डायरेक्टर मोहना कुमार ने कहा, ''यह कामयाब प्रक्षेपण देश भर में फैले इसरो के कई केंद्रों की तपस्या का नतीजा है.’’ ऐसा वाकई था.
रमुतुवेल, जो लॉन्च पैड पर थे, जानते थे कि अब इसकी कामयाबी को साबित करने की जिम्मेदारी उन पर और उनकी टीम पर है. उन्होंने इसके लिए कड़ी मेहनत की थी और इतने जुनूनी तौर पर इससे जुड़ गए थे कि यूआरएससी के शंकरन मजाक में कहा करते, ''हम फिक्रमंद थे कि वह खुद को एलवीएम3 से बांध लेगा और विक्रम को निजी देखरेख में चंद्रमा पर ले जाएगा.’’ अभी 40 दिन का वक्त और लगना था, तब कहीं जाकर टीम मॉड्यूल से अलग होने के बाद विक्रम को लैंड करवाने की कोशिश करती.
निर्णायक दिन वीरमुतुवेल और कल्पना दोनों अपने कंसोल में टीम के साथ इकट्ठा थे. कल्पना कहती हैं, ''जिस पहली चीज पर हमारी नजर थी, वह रफ (ऊबड़-खाबड़) ब्रेक फेज या चरण था, जो खूबसूरती से गुजर गया. ज्यों-ज्यों हम उस चरण में पंहुचे जहां पिछली बार यह फेल हो गया था, हमारे दिल और तेजी से धड़कने लगे.’’ ज्यों ही विक्रम ने वह रुबिकॉन पार किया, वीरमुतुवेल ने कल्पना को देखा और मुस्कराए. वे कहते हैं, ''एक बार जब यह हो गया, हम आश्वस्त थे कि यह अचूक ढंग से लैंड करेगा. हजारों लोगों ने इस मिशन पर काम किया था और यह तय करने के लिए कि यह नाकाम न हो, वह सब किया था जो इंसानी तौर पर मुमकिन है.’’
उनसे कुछ ही दूरी पर इसरो की टीम के दूसरे शीर्ष सदस्यों के साथ बैठे सोमनाथ कंसोल पर नजरें गड़ाए थे. अपने कंसोल पर जब उन्होंने पांच हरे चौकोर इमेज चमकते देखे, जिसका मतलब था कि विक्रम ने चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग संपन्न कर ली थी और सारी प्रणालियां सुचारु ढंग से काम कर रही थीं, तो उन्होंने सहयोगियों के साथ हाथ मिलाया, टहलते हुए वीरमुतुवेल के पास गए और उन्हें गले लगा लिया. फिर वे प्रधानमंत्री को इत्तला देने के लिए डायस पर गए, जो जोहानसबर्ग में (जहां वे ब्रिक्स की बैठक में भाग लेने गए थे) टेलीविजन स्क्रीन पर यह घटना लाइव देख रहे थे. जैसे ही मोदी ने खुशी से भारत का झंडा लहराया, सोमनाथ ने उनसे कहा, ''माननीय प्रधानमंत्री, हमने चंद्रमा पर सॉक्रट लैंडिंग हासिल कर ली है. भारत चांद पर है.’’