लौट आया बादशाह
पठान ने न सिर्फ शाहरुख की प्रतिष्ठा बहाल की बल्कि हिंदी फिल्म उद्योग को भी नई जिंदगी बख्शी. इतना ही नहीं, बायकॉट-बायकॉट खेलने के शौकीनों को भी इसने सामने से और मुंहतोड़ जवाब दिया.

बादशाह राज करते हैं मगर सल्तनत भी कभी न कभी उजड़ती ही है. शाहरुख खान के सिर करीब दो दशकों तक ताज सजा रहा, दिलों पर राज करते रहे, चाहे किसी नवयौवना को रेलगाड़ी में चढ़ने में मदद करें, या ट्रेन की छत पर डांस करें. वे हरदिल अजीज और खुदा बने रहे. वे हंसे तो आप हंसे, रोए तो आप रोए, जब युवा भारतीय महिला हॉकी टीम की चक दे!
इंडिया के हुंकार के साथ अगुआई की या स्वदेस में घर लौटे तो आप में भी देशभक्ति का जज्बा जोर मारने लगा. वे प्रेम में पड़े तो आप खुश हुए, उनका दिल टूटा तो आप भी उदास. पठान में उनके सह-अभिनेता जॉन अब्राहम इसे कुछ इस तरह बयान करते हैं, ''शाहरुख अब महज अदाकार नहीं रहे, वह एक जज्बे का नाम है.’’
अलबत्ता, एक अरसे तक ऐसा लगा कि सल्तनत हिल रही है. उनके दीवाने गलतियां माफ करने को तैयार न थे और उनके प्रयोगों को उन्होंने बहुत तवज्जो न दी. शाहरुख ने समझ लिया कि अधिक ताकत उसी दर्जे की जिम्मेदारियों से हासिल होती है. उसके अपने जोखिम भी हैं. अंत नजदीक लग रहा था. लेकिन पेशे और जिंदगी की तमाम चुनौतियों को, विवादों और उम्र को धता बताते हुए, चार साल बाद शाहरुख लौटे. बतौर बादशाह 2.0.
उनके दीवानों को और क्या चाहिए था! यह सब ताज लैंड्स एंड होटल में बने नजारे से साफ था. यहां उनके खांटी दीवाने जनवरी के अंत में देश भर से बादशाह की वापसी का जश्न मनाने जुटे थे. वहां ''वी लव शाहरुख’’ और ''बच्चे, बूढ़े और जवान, सब देखेंगे पठान’’ के नारे गूंज रहे थे. नवयौवनाएं उनके चेहरे वाले टी-शर्ट पहने थीं. नौजवान पठान के हिट गाने झूमे जो पठान की धुन पर बेसाख्ता डांस कर रहे थे.
करीब 250 करोड़ रु. के बजट से बनी पठान की कमाई अब तक पूरी दुनिया में 925 करोड़ रु. की हो चुकी है. देश में 400 करोड़ रु. से ज्यादा कमाई वाली यह पहली हिंदी फिल्म है. इसकी कामयाबी ने न सिर्फ शाहरुख के करियर में जान डाल दी बल्कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री भी लहलहा उठी, जो अपने दर्शक हाल के वर्षों में डब दक्षिण भारतीय फिल्मों के हाथों गंवा चुकी थी. उसने सिंगल स्क्रीन सिनेमाघरों की ओर भी दर्शकों को लौटाया.
यह शाहरुख की 2013 में चेन्नै एक्सप्रेस के बाद पहली ब्लॉकबस्टर है. बांद्रा के उनके पड़ोसियों सलमान और आमिर के नाम पिछले दशक में देश में टॉप 10 बड़ी हिंदी फिल्मों में से पांच देने का रिकॉर्ड है. पठान से यह सिलसिला फिर शुरू हुआ. या एक उत्साही दीवाने के लफ्जों में ''एसआरके और बॉलीवुड लौट आया.’’ अब्राहम उसे दुरुस्त करते हैं, ''वे तो बस कुछ हल्के होने गए थे.’’
पठान ने आखिर कैसे दिलों को छुआ?
यह फिल्म बॉलीवुड की बदलती मांग और उसे पूरा करने की शाहरुख की काबिलियत की गवाह है. 57 साल की उम्र में उन्होंने खुद को एट-पैक ऐब वाले मास ऐक्शन हीरो के अवतार में ढाला. यह रोमांटिक, भावुक, गुदगुदे हीरो की छवि से लंबी छलांग है, जिसने उन्हें अतीत के सिने दर्शकों की पूरी पीढ़ी का अजीज बना डाला था. उन्होंने ऐक्शन पहले भी आजमाया था-दो डॉन फिल्मों और रा.वन में, मगर असर इतना धमाकेदार कभी नहीं हुआ.
शाहरुख ने सोच-समझकर नई पीढ़ी की बदलती दिलचस्पी के मुताबिक खुद को ढाला, जो अच्छा-खासा दर्शक वर्ग है, और जो देखने के बदले 'रंगरेलियां’ मनाता है, जिसे पूरी 'रील’ से ज्यादा सुकून इंस्टाग्राम पर एक छोटी क्लिप देती है. वे उसके तौर-तरीकों और बोली में उतर आना चाहते हैं. पठान के संवाद इसी पीढ़ी को ध्यान में रखकर लिखे गए. मसलन, फिल्म में एक वैज्ञानिक कहता है, ''साइंस ईजी है फारूकी, मोहब्बत सख्त.’’
पूरी तरह व्यावसायिक फॉर्मूलों वाली पठान खुद को बहुत गंभीरता से नहीं लेती, मगर ख्याल रखती है कि दर्शकों की उम्मीदों पर संजीदगी के साथ खरी उतरे. दो घंटे 26 मिनट की कसी फिल्म. एक पल भी ऐसा नहीं, जिससे मन उचटे, जिसमें विदेशी लोकेल में भारी धूम-धड़ाके वाले दृश्य अटे पड़े हैं, जो कई हॉलीवुड फिल्मों की खासियत होते हैं. लेखक श्रीधर राघवन और संवाद लेखक अब्बास टायरवाला ने कुछ हल्का-फुल्का ह्यूमर डाला है, ज्यादा सियासी टिप्पणियों से परहेज किया, ताकि किसी की भावनाएं आहत न हों.
भाईचारे और सांप्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए अंध-राष्ट्रवाद को परे रखा है. फिल्म में एक महिला आइएसआइ जासूस (दीपिका पादुकोण) भी है, जो एक बेहद महत्वाकांक्षी पाकिस्तानी जनरल से जंग में पठान की मदद करती है और दर्शकों का दिल जीत लेती है. लैंड्स एंड में शाहरुख ने फिल्म के किरदारों के चयन का इस्तेमाल दर्शकों को यह याद दिलाने के लिए किया कि भारत की विविधता और सेकुलर बनावट ही उसकी सबसे बड़ी ताकत है. उन्होंने कहा, ''यह दीपिका है, वह अमर है; मैं शाहरुख खान हूं, मैं अकबर और जॉन एंथनी है...हम हैं 'अमर, अकबर, एंथनी.’ और इसी से सिनेमा बनता है...हममें कोई फर्क नहीं, चाहे जिस संस्कृति के हों. हम दर्शकों के प्यार के भूखे हैं.’’
कुल मिलाकर, शाहरुख की बतौर संवेदनशील ऐक्शन हीरो लाजवाब अदाकारी ने पूरी फिल्म को एक धागे में पिरोए रखा और दिल जीत लिए. फिल्म में शाहरुख की लड़कियों, महिलाओं में दीवानगी का ख्याल रखा गया और खूंखार मर्दानगी से परहेज किया गया. हमें बताया गया कि पठान की दुखती रग है कि वह अपने दिल की सुनता है और उसकी कीमत चुकाता है.
पठान के निर्देशक सिद्धार्थ आनंद कहते हैं, ''आप एसआरके के बारे में सोचते हैं तो आपको प्यार याद आता है. पठान को ऐसा शख्स होना था जिसका दिल, दिमाग पर हमेशा भारी रहे. यह उसी का आईना है जो वे असल जिंदगी में हैं.’’ साथ-साथ वे अगली कतार में बैठकर फिल्म देखने वालों से अपील करते हैं, उन्हें ऐसा सिपाही सौंपते हैं, जो देश की सेवा करता है, जिस देश ने उसे बनाया है. पठान वन मैन आर्मी और अजेय नहीं है, दरअसल उसे सहारे की दरकार होती है-पादुकोण और सलमान खान के टाइगर से.
फिल्म की अपील एक हद तक इस पर भी निर्भर है कि दर्शक फिल्म के डायलॉग के क्या मायने निकालते हैं, जिनमें खान के अतीत के जिक्र भरे पड़े हैं. बुरी तरह जक्चमी जासूस की तरह, जिसके शरीर को बायोडिग्रेडेबल स्क्रू के जरिए बांधे रखा गया है, शाहरुख को भी पीठ, कंधे और घुटनों की सर्जरी से गुजरना पड़ा है. पठान की तरह शाहरुख को भी चुका हुआ मान लिया गया था और वे फिर उभर आए.
इसी वजह से उनकी शख्सियत के लिए किंतसुगी का जिक्र मौजूं है, जो मिट्टी के बर्तनों की मरम्मत की पारंपरिक विधि है, जिसमें स्वर्ण भस्म मिले लाख से दरारों को भरा और टूटे हिस्सों को जोड़ा जाता है. आनंद कहते हैं, ''अब फिल्म चल निकली है तो यही छवि जिंदा रहेगी. राज और राहुल पीछे गए, अब वे सबके लिए पठान हैं.’’ राज का किरदार शाहरुख ने दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे और राहुल का किरदार कुछ कुछ होता है में निभाया था.
बायकॉट कल्चर की धज्जियां
पठान की कामयाबी कुछ लोगों के लिए इस बात की तस्दीक है कि सोशल मीडिया पर बायकॉट की संस्कृति बॉक्स ऑफिस पर फिल्म की किस्मत पर ज्यादा असर नहीं डाल सकती. यह इस बात का भी सबूत है कि दर्शकों को बड़े परदे पर खान की गैरमौजूदगी खल रही थी, तभी उनके मुरीदों की फौज ने फिल्म को पहले ही दिन और कई-कई बार देखना तय किया.
डियर जिंदगी में खान के साथ काम कर चुकीं फिल्मकार गौरी शिंदे कहती हैं, ''परदे पर उनकी मौजूदगी का हर पल रोमांचित करने वाला था. हम सब चाहते थे कि वे अच्छा करें. सिनेमा में इतना ज्यादा इमोशन था. मुझे लगा कि पूरी कम्युनिटी के साथ बैठकर फिल्म देखने वाले दिन लौट आए हैं. ऐसी वफादारी और प्यार विरले ही मिलता है.’’
पठान थोड़े वक्त के लिए ही सही यह भी दर्शाती है कि हाल के दिनों में और खासकर आमिर की अदाकारी से सजी लाल सिंह चड्ढा के चारों खाने चित होने के बाद खान तिकड़ी के दबदबे पर मंडराते संदेहों के बावजूद खान अभी टिके रहेंगे. इसे परदे पर पोस्ट क्रेडिट आने वाले उस दृश्य से बेहतर कोई नहीं पकड़ता, जिसमें एसआरके का पठान सलमान खान के टाइगर से कहता है कि तीन दशक तक कर्तव्य निभाने के बाद वह इस पर बहस कर रहा है कि क्या अब उसके संन्यास लेने का वक्त आ गया है? हैरानी जताते हुए कि इस जिम्मेदारी को आगे कौन संभालेगा, पठान अपनी बात साफ-साफ रखते हुए बात खत्म करता है: ''हमें ही करना पड़ेगा, भाई. देश का सवाल है, बच्चों पे नहीं छोड़ सकते.’’
तीनों खान के साथ काम कर चुके एक फिल्म पेशेवर कहते हैं, ''अभिनेताओं की अगली पीढ़ी के पास वैसी फॉलोइंग नहीं है. खान कहीं नहीं जा रहे. कितने अभिनेता जबरदस्त ओपनिंग दर्ज करवा सकते हैं? कितने अभिनेताओं की फिल्में 300 करोड़ रुपए के क्लब में हैं?’’
2004-05 में बीबीसी की डॉक्युमेंट्री द इनर ऐंड आउटर वर्ल्ड ऑफ शाहरुख खान के लिए खान का इंटरव्यू करने और उन्हें करीब से जानने वाली फिल्मकार-लेखिका नसरीन मुन्नी कबीर कहती हैं, ''भारतीय सिनेमा के बारे में इतिहास की ऐसी कोई किताब नहीं लिखी जाएगी जिसमें एसआरके न हों. यह तीनों खान के बारे में सच है. नब्बे के बाद भारतीय सिनेमा जिस तरह से विकसित हुआ, उसमें वे गुंथे-बिंधे हैं.’’
इम्तिहान और मुश्किलें
जहां तक एसआरके की बात है, वापसी में कुछ वक्त लगा—ठीक-ठीक कहें तो 1,484 दिन. इस बीच फैन (2016), जब हैरी मेट सेजल (2017) और जीरो (2019) सहित एक के बाद एक फिल्मों की नाकामी और एसआरके की अदाकारी से सजी फिल्मों के बॉक्स ऑफिस की उम्मीदों पर खरा उतरने के तकाजों ने कुछ आत्ममंथन के लिए प्रेरित किया.
उनकी स्क्रिप्ट की पसंद और भीड़ खींचने की क्षमता पर सवाल उठने लगे. खान ने 2019 में खुद को नए सिरे से नापने-तौलने के लिए छुट्टी ले ली. ऐसे में 1992 में रुपहले परदे पर कदम रखने के बाद यह पहली बार था जब उनकी कोई फिल्म सिनेमाघरों में रिलीज नहीं हुई. कोविड-19 की महामारी ने यह अंतराल और बढ़ा दिया. इससे भी बड़ी मुश्किल उनके करियर में नहीं बल्कि निजी जिंदगी में अभी आनी थी.
नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने अक्तूबर 2021 में उनके तीन बच्चों में सबसे बड़े आर्यन खान को नशीले पदार्थ रखने, उनका सेवन करने और बेचने के आरोप में एक क्रूज शिप पर गिरफ्तार कर लिया. महज 25 साल से भी कम उम्र के आर्यन ने 22 दिन जेल में बिताए, जब उनके पिता ने बेटे को जमानत पर छुड़ाने के लिए देश के बेहतरीन वकीलों की फौज जुटाई. सात महीने बाद एनसीबी ने सारे आरोप हटा लिए.
मगर नुक्सान तो हो ही चुका था. एक तरफ जहां हिंदी फिल्म उद्योग का बड़ा हिस्सा उनके पीछे एकजुट था, उन पर हमला करने के लिए मीडिया के बड़े हिस्सों और कीबोर्ड के योद्धाओं को लामबंद किया गया. सबसे ज्यादा मीडिया-सैवी सेलिब्रिटीज में से एक खान ने अपनी इस अग्निपरीक्षा के दौरान या उसके बाद कोई भी बयान देने से परहेज किया. उनकी खामोशी से हमले रुके नहीं. उनकी दो फिल्मों पठान और जवान की शूटिंग में खलल पड़ा. बताते हैं खान उन दिनों अक्सर बाथरूम की शरण में चले जाते, उनके प्रियजन जानते हैं कि वहां वे रोने के लिए जाते हैं.
इस बार अलबत्ता वे खुशी के आंसू होंगे. वे कहते हैं, ''पिछले चार दिन के अंदर मैं वे चार साल भूल गया.’’ कम ही लोगों ने उम्मीद की थी कि पठान इतने सारे रिकॉर्ड तोड़ देगी, खासकर इसकी रिलीज से कुछ महीने पहले हुई घटनाओं को देखते हुए. जब सत्तारूढ़ पार्टी के कुछ सियासतदानों ने ''बेशरम रंग’’ गाने में उनकी को-स्टार दीपिका पादुकोण के स्विमवीयर के भगवा रंग पर ऐतराज किया.
तो खान को निजी तौर पर दखल करना पड़ा और कुछ मुख्यमंत्रियों को फोन करने पड़े ताकि फिल्म ठीक से रिलीज हो पाए. खान को इन दिनों फिल्म डंकी में निर्देशित कर रहे राजकुमार हीरानी कहते हैं, ''जिसने भी अतीत में या हाल ही में जिंदगी में इतना झेला हो वह मजबूत शख्स तो होगा ही. वैसे दबाव के आगे कोई भी लड़खड़ा जाता. इससे निबट पाने के लिए आपको फाइटर, सर्वाइवर, मानसिक तौर पर मजबूत और बेहद इंटेलिजेंट होना होता है.’’
निबटे तो वे हैं ही, फिर भले ही उन्होंने कहा कि बीते दो महीने खास तौर पर ''तनाव से भरे’’ रहे. करन जौहर अपनी आत्मकथा ऐन अनसुटेबल बॉय में खान की एक छोटी-सी झलक देते हैं, जिससे शायद हमें इस आइकन के पीछे छिपे शख्स को समझने में मदद मिल सके. जौहर लिखते हैं, ''मुझे लगता है जब वे आहत होते हैं तो चुप हो जाते हैं.’’ इस चुप्पी का मतलब हालांकि घुटने टेकना नहीं होता. इसके बजाए खान के लिए यह वह वक्त होता है जब वे भीतरी ताकत बटोर रहे होते हैं.
फिर बड़े परदे से उनकी गैरमौजूदगी का यह मतलब नहीं था कि वे काम नहीं कर रहे थे. जब महामारी ने फिल्म शूटिंग के कार्यक्रमों में खलल डाला, तो खान ने इटैलियन खाना बनाना सीखा. मुंबई में शूटिंग के दौरान पठान की कास्ट और क्रू को उनके बनाए पिज्जा की दावत दी गई. खान ने खाली वक्त का इस्तेमाल तीनों बच्चों—आर्यन, सुहाना और अबराम—के साथ रहने के लिए भी किया.
फैन को प्रमोट करते वक 2016 में उन्होंने इंडिया टुडे से कहा था, ''अपने बच्चों के अलावा मेरे जीने की कोई वजह नहीं है. मुझे उन पर जोर डालने और उनसे और अपनी फिल्मों से कुछ निकालने की जरूरत होती है.’’ उन्होंने और गौरी ने जिस तरह बच्चों की परवरिश की, उससे वे संतुष्ट हैं. नवंबर 2022 में शारजाह बुक फेयर में जब पूछा गया कि उनके माता-पिता किस उपलब्धि पर सबसे ज्यादा गर्व करते, तो खान ने कहा था कि उन्होंने जिस तरह अपने बच्चों की परवरिश की, उससे वे ''खुश’’ होते.
इनसान के तौर पर शाहरुख
पठान के लिए आयोजित अकेली पब्लिसिटी इवेंट में खान ने कहा, ''मुझे यह कहते हुए बहुत गर्व होता है कि कभी-कभी मैं डर जाता हूं, कभी-कभी मैं उदास महसूस करता हूं, कई बार दिन में कई-कई दफा मेरा आत्मविश्वास हिलता है.’’ मगर इन निराशाओं के बीच भी उन्हें उन सैकड़ों लोगों का ध्यान रहता है जो अपने आइडल की एक झलक भर पाने की मन्नत लिए उनके घर के बाहर खड़े रहते हैं. शारजाह में उन्होंने कहा, ''वे मुझे इंतहा प्यार करते हैं. यह कितना खूबसूरत है. जब भी मैं मायूस होता हूं, मुझे बस बाहर आना होता है और वहां लोगों का सैलाब होता है. मैं पक्का करता हूं कि जो खुशी वे मुझे देते हैं, उन्हें लौटा सकूं.’’
इसमें से बहुत कुछ का वास्ता उस शख्स से है जो शाहरुख हैं. इसका सबसे ताजा प्रमाण क्रिकेटर चेतेश्वर पुजारा के पिता आनंद पुजारा की तरफ से मिला, जब उन्होंने खुलासा किया कि 2009 में खान ने पुजारा के घुटने की चोट का इलाज दक्षिण अफ्रीका में ही करवाने पर जोर दिया. जरूरत पड़ने पर वे पुजारा के फैमिली डॉक्टर और परिवार के कितने भी सदस्यों को हवाई जहाज से वहां लाने को तैयार थे.
परदे पर आप जो चुंबकीय आकर्षण देखते हैं, वह बनावटी नहीं बल्कि इस इनसान की शख्सियत का ही हिस्सा है. इसका इस्तेमाल वे लोगों को खास महसूस करवाने के लिए करते हैं, खुद का मजाक उड़ाने वाले हास-परिहास के साथ जो अनायास उन्हें सहज बना देता है. लेखक और निर्देशक गण बताते हैं कि वे कितने हाजिरजवाब, तेज और चतुर हैं. वे उनके काम के नैतिक तौर-तरीकों के भी कसीदे पढ़ते हैं—निशाचर प्राणी होने के बावजूद सुबह 7 बजे शूटिंग के लिए आ जाते हैं.
उनमें जबरदस्त आत्मविश्वास भी है: खान मानते हैं कि वे सर्वश्रेष्ठ हैं. वे जानते हैं कि कैमरा ऑफ होने पर भी दर्शकों को कैसे बांधकर रखा जाए. हीरानी कहते हैं, ''अभिजात (जोशी) और मैं ज्यादातर वक्त बस उन्हें सुनते हैं. उन्होंने इतना कुछ पढ़ा है. हमने सिनेमा से लेकर खेल और धर्म तक दुनिया की हर चीज पर बातचीत की है.’’
चार फिल्मों में उनकी को-स्टार पादुकोण सरीखे कुछ लोग चीजों को देखने-समझने की उनकी काबिलियत की तारीफ करते हैं (देखें इंटरव्यू). वे कहती हैं, ''वे लोगों और रिश्तों को समझने के मामले में बेहद इंटेलिजेंट हैं और अपने आसपास के माहौल के बारे में बेहद जागरूक हैं. इस सबके प्रति वे संवेदनशील हैं.’’
ऐक्शन हीरो का बनना
वैसे तो खान को ''रोमांस के शहंशाह’’ के तौर पर सराहा और प्यार किया जाता है पर उन्हें दरअसल ऐक्शन फिल्मों से प्यार है. असिस्टेंट डायरेक्टर से लेखक बने और उनके साथ काम कर चुके एक शख्स कहते हैं, ''उन्हें सामान्य से बड़ा और भव्य सिनेमा पसंद है. उनके लिए फिल्में जादू हैं, बड़ा ड्रामा होना चाहिए, बड़ी और आलीशान चीजें होनी चाहिए.’’
जीरो की नाकामी के बाद खान ने फिल्मकारों से मिलने और उनके पास मौजूद कहानियां सुनने के लिए साल भर का वक्त लिया. तभी आदित्य चोपड़ा ने फोन किया. लेखक-निर्देशक-निर्माता ने अंतत: अपने उस वादे पर अमल किया जो उन्होंने खान से तीन दशक पहले किया था: एक ऐक्शन फिल्म की पेशकश.
यशराज फिल्म्स के सीईओ अक्षय विधानी कहते हैं, ''एसआरके जब अपने मुश्किल दौर से गुजर रहे थे, आदि मानते थे कि वाइआरएफ आज जो कुछ है, उसमें एसआरके का इतना ज्यादा योगदान रहा है कि उन्हें लगता था कि उनके लिए कम से कम एक बड़ी फिल्म बनाने की कोशिश करना उनकी जिम्मेदारी है.’’ चोपड़ा ने अंतत: वाइआरएफ की अब तक की सबसे महंगी फिल्म बनाई. खान उस मौके के लिए शुक्रगुजार हैं जिसकी वे तलाश में थे. वे किसी फिल्म को पूरा करने की हड़बड़ी में भी नहीं थे.
पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त
2023 का शानदार आगाज हुआ, पर खान ने अपनी वापसी का अभी आधा रास्ता भी तय नहीं किया है. उनकी दो बहुप्रतीक्षित फिल्में आने वाली हैं: जवान और डंकी. यह साल इसलिए ज्यादा खास है क्योंकि जोया अख्तर निर्देशित फिल्म द आर्चीज से उनकी बेटी सुहाना रुपहले परदे पर आगाज कर रही हैं.
यह इसी साल नेटफ्लिक्स पर रिलीज होगी. 22 वर्षीया सुहाना 2014 से ही इसकी तैयारी कर रही हैं. वे एक डायरी रखती हैं और अपने 'पापा’ की बताई अक्लमंदी की कई बातें वे उसमें दर्ज कर लेती हैं. हाल में जब बेटी ने डायरी की तस्वीरें इंस्टाग्राम पर साझा कीं तो खान ने जवाब दिया, ''ऐक्टिंग के बारे में जो कुछ मैं नहीं जानता, तुम्हारे सीखने और फिर वापस मुझे सिखाने के लिए छोड़ दिया है, मुनिया.’’
खान के बड़े बेटे आर्यन ने एनसीबी के किस्से के बाद अपने को चकाचौंध से दूर ही रखा. यूनिवर्सिटी ऑफ सदर्न कैलिफोर्निया के स्कूल ऑफ सिनेमैटिक आर्ट्स से ग्रेजुएट आर्यन ने एक सीरीज लिखी है, जिसे खान का बैनर रेड चिलीज एंटरटेनमेंट प्रोड्यूस कर रहा है. छोटा बेटा नौ वर्षीय अबराम परिवार का सबसे दुलारा सदस्य है, जो बालकनी पर खड़े होकर अपनी पहचान बन चुकी मुद्रा बनाते अपने पिता की स्टारडम देख रहा है. खान ने इस पत्रिका से कहा, ''इसको उसे वैसे ही देखना चाहिए जैसे दूसरों ने देखा है. इसलिए मुझे उसी तरह काम करना पड़ता है.’’
काम तो वे कर ही रहे हैं, इतना ज्यादा कि सार्वजनिक तौर पर कम और कभी-कभार ही दिखाई देते हैं. जब वे शूटिंग नहीं कर रहे होते हैं, अपने मुरीदों के प्यार के प्रति आभार व्यक्त करते और हंसी-मजाक से भरे जवाब देते हुए ट्विटर पर 'आस्कएसआरके’ सेशन कर रहे होते हैं. कभी वे चकाचौंध को गले लगाने वाली सेलेब्रिटी हुआ करते थे, अब इससे कतराते हैं. पत्रिकाओं के आवरण मायने नहीं रखते.
इंटरव्यू का हमारा अनुरोध विनम्रता से नामंजूर कर दिया गया. यह संकोच आत्मविश्वास की कमी से नहीं आता. यह पूछे जाने पर कि क्या वे अपनी आने वाली रिलीज को लेकर फिक्रमंद हैं, शारजाह में उन्होंने कहा, ''मै नहीं समझता कि मुझे घबराने की जरूरत है. मुझे लगता है कि वे सभी फिल्में सुपरहिट होने जा रही हैं. इसी यकीन के साथ मैं सोता और जागता हूं और यही मुझे 57 साल की उम्र में चलते रहने और स्टंट करने और दिन में 18 घंटे काम करने को प्रेरित करता है.’’ दूसरे करें तो यह दावा शायद बहुत तड़क-भड़क से भरा मालूम दे, पर शाहरुख इसे इस तरह बना देते हैं कि मानो वे आपको अपना एक रहस्य जानने दे रहे हैं या महज हकीकत बयान कर रहे हैं.
वापस लैंड्स एंड में लौटें, कमरे में शोर ज्यों-ज्यों तेज और तेज होता जाता है और मुरीद उनका ध्यान खींचने के लिए धक्का-मुक्की करते हैं, खान उन्हें शांत करने का जतन करते हैं, ''अभी जो वापस आया हूं, कहीं नहीं जा रहा हूं.’’ इसका उल्टा ही असर होता है. उनके मुरीद टूट पड़ते हैं. भावविभोर होकर. बादशाह को अपने दरबार में पाकर.
''पिछले चार दिन कुछ इस तरह से बीते हैं कि मैं अपने पिछले चार साल की बातों को भूल गया हूं’’
—शाहरुख खान
पठान को लेकर मुंबई में 30 जनवरी को हुए एकमात्र मीडिया इवेंट में बोलते हुए
''राज और राहुल (उनके पुराने किरदार) बीती बात हुए. अब हर किसी के लिए वे पठान हैं’’
—सिद्धार्थ आनंद
निर्देशक, पठान
''जिसने भी जिंदगी में इतनी दुख-तकलीफें झेली हों, निश्चित रूप से वह मजबूत इनसान ही होगा’’
—राजकुमार हीरानी
फिल्मकार
''जितनी देर भी वे स्क्रीन पर रहते थे, हर लम्हा बस यही लगता था कि क्या न कर गुजरेंगे’’
—गौरी शिंदे
पठान में शाहरुख का काम देखकर प्रतिक्रिया जताते हुए
''शाहरुख खान अब महज एक ऐक्टर का नाम नहीं, वे एक इमोशन, एक जज्बा बन गए हैं.’’
—जॉन अब्राहम
पठान के लिए मुंबई में हुए एकमात्र मीडिया इवेंट में.