भारत का लम्हा

दुनिया के देशों के सबसे ताकतवर गुट जी-20 के अध्यक्ष के नाते भारत मुख्य वैश्विक सवालों पर सर्वानुमति बनाने की पहल कर सकता है, और दुनिया में अगुआ के तौर पर उभर सकता है.

बाली शिखर सम्मेलन जी20 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
बाली शिखर सम्मेलन जी20 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

मध्य नवंबर में बाली शिखर सम्मेलन के अंत में जी20 (ग्रुप ऑफ ट्वेंटी) की अध्यक्षता का जो लकड़ी का हथौड़ा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सौंपा गया, वह भले बहुत छोटा दिखाई दे, मगर उसके साथ आने वाली जबरदस्त जिम्मेदारियां इसकी कदकाठी के मुकाबले बहुत बड़ी हैं.

1 दिसंबर को भारत ने औपचारिक रूप से जिस जी20 की जिम्मेदारी संभाली, उसके सदस्य देश दुनिया की 60 फीसद आबादी की नुमाइंदगी करते हैं, वैश्विक जीडीपी में उनका 85 फीसद और अंतरराष्ट्रीय व्यापार में 75 फीसद हिस्सा है. 1999 में शुरुआत से ही जी20 प्रमुख आर्थिक मुद्दों पर और हाल में भू-राजनैतिक सरोकारों पर भी दुनिया के सबसे ताकतवर अंतरराष्ट्रीय मंच के तौर पर उभरा.

संयोग से दिसंबर में भारत एक महीने के लिए सर्वशक्तिमान संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता भी ग्रहण करेगा. सितंबर, 2023 तक वह दुनिया के सबसे बड़े क्षेत्रीय मंच शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की अध्यक्षता भी करेगा. विश्व मंच पर यह वाकई भारत का लम्हा है. 

मगर भारत ऐसे वक्त इन मंचों की कमान संभाल रहा है जब विश्व मामलों में सरगर्मी तेज है और वे, विदेश मंत्री एस. जयशंकर के शब्दों में, अंग्रेजी के तीन 'सी’—यानी कोविड, कॉन्फिलक्ट (टकराव) और क्लाइमेट चेंज (जलवायु परिवर्तन)—के कृशकाय कर देने वाले नतीजों से घिरे हैं. कोविड-19 महामारी ने अमीर देशों सहित दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं को रसातल में पहुंचा दिया.

दुनिया अभी महामारी के भयावह प्रभावों से उबरने के लिए जूझ ही रही थी कि फरवरी में यू क्रेन युद्ध ने भू-राजनैतिक तनावों को खतरनाक हद तक बढ़ा दिया और खाद्य तथा ऊर्जा का जबरदस्त संकट पैदा कर दिया. नतीजा यह हुआ कि दुनिया भर में 20 करोड़ से ज्यादा लोग नौकरियों से हाथ धो बैठे और 10 करोड़ से ज्यादा लोग भारी गरीबी के शिकंजे में धकेल दिए गए.

संयुक्त राष्ट्र के टिकाऊ विकास लक्ष्यों को पाने की रफ्तार भी चिंताजनक ढंग से सुस्त हुई है और विकासशील देशों के सामने वजूद बचाए रखने के सवाल खड़े हो गए हैं. पड़ोसी श्रीलंका और पाकिस्तान सहित 70 से ज्यादा देश कर्ज के तीव्र संकट से जूझ रहे हैं और 2023 में खौफनाक वैश्विक आर्थिक मंदी की आशंका समूची दुनिया के आगे मुंह बाए खड़ी है.

कोविड के बाद की इस विखंडित और कुछ-कुछ विशृंखल दुनिया में भारत को यह मौका मिला है कि वह प्रमुख वैश्विक मुद्दों पर सर्वसम्मति बनाने, सामूहिक कार्रवाई के लिए जोर डालने की अगुआई करे और साथ ही विकासशील देशों के एजेंडे का चैंपियन बनकर उभरे. संक्षेप में, सच्चा वैश्विक नेता बने. 

जबानी जमाखर्च की वैश्विक दुकान नहीं

कौशल दिखाने का जी20 से बेहतर मंच नहीं हो सकता. इसकी स्थापना 1999 में इस मकसद से हुई थी कि विकसित और प्रमुख विकासशील देशों के वित्त मंत्री साथ बैठकर एशियाई वित्तीय संकट को सुलझाएं. 2008 में जब वैश्विक वित्तीय संकट पैदा हुआ, तब अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने जी20 को विश्व नेताओं के शिखर सम्मेलन का दर्जा दिया और इसकी कार्यसूची का आधार बढ़ाते हुए इसमंओ भू-आर्थिक और राजनैतिक मुद्दों को भी शामिल कर लिया.

हालांकि सारे फैसले आम राय से लिए जाते हैं और बाध्यकारी नहीं होते, फिर भी यह समूह इस धारणा से उबर सका कि यह महज जबानी जमाखर्च की एक और वैश्विक दुकान भर है. उसने कई प्रमुख मुद्दों पर एजेंडा तय किया और उसकी सक्रियताओं के सार्थक नतीजे मिले. इनमें अप्रैल 2009 में वैश्विक वित्तीय स्थिरता बोर्ड (एफएसबी) और जुलाई 2009 में बासेल III पैकेज की स्थापना शामिल हैं, जिसमें एक और वित्तीय गिरावट को रोकने की खातिर बैंकों के लिए पूंजी और तरलता की ज्यादा सख्त आवश्यकताएं तय की गईं.

बाली में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच कामयाब द्विपक्षीय बैठक हुई, जिसने तनाव खासा कम किया. इसके अलावा घोषणापत्र में यूक्रेन पर हमला करने के लिए रूस की भर्त्सना करने और युद्ध खत्म करने तथा बातचीत और कूटनीति की ओर लौटने को लेकर सर्वसम्मति कायम हुई, जिसे कामयाबी के तौर पर देखा गया.

बाली में वह सर्वसम्मति बनाने में अहम भूमिका निभाने वाले मोदी ने यह ठान लिया लगता है कि भारत इस चुनौती पर खरा उतरे और अपनी अध्यक्षता के दौरान अमिट छाप छोड़े. बाली शिखर सम्मेलन के समापन सत्र में मोदी ने विश्व नेताओं के जमावड़े से कहा, ''कोविड के बाद के दौर के लिए नई व्यवस्था बनाने की जिम्मेदारी अब हमारे कंधों पर है.

मैं आप सबको भरोसा दिलाना चाहता हूं कि भारत की जी20 की अध्यक्षता समावेशी, महत्वाकांक्षी, निर्णायक और कार्रवाई-उन्मुख होगी. साथ मिलकर हम जी20 को वैश्विक बदलाव का उत्प्रेरक बनाएंगे.’’ इंडोनेशिया की अध्यक्षता 'रिकवर टुगेदर, रिकवर स्ट्रॉन्गर’ को लेकर थी, तो भारत की थीम 'एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ है, जो, एक अधिकारी के शब्दों में, दर्शाती है कि किस तरह देशों को एकजुट होने और उन बहुत-से संकटों से मिलकर निबटने की जरूरत है, जो दुनिया के आगे मुंह बाए खड़े हैं.

भारत सरकार अपनी अध्यक्षता को सबसे कामयाब अध्यक्षताओं में से एक बनाने के लिए कोई कसर बाकी नहीं छोड़ रही है. इसी महीने से शुरू होकर दिसंबर, 2023 में ब्राजील को अध्यक्षता सौंपने तक भारत देश भर में फैली 56 जगहों पर जी20 की 200 से ज्यादा बैठकें आयोजित करेगा. ये जगहें उत्तर में श्रीनगर से दक्षिण में तिरुवनंतपुरम तक और पश्चिम में कच्छ के रण से पूरब में कोहिमा तक फैली हैं. इन बैठकों के आयोजन के लिए सभी 28 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का साथ लिया गया है.

इसमें आयोजन स्थल की साज-सज्जा, होटलों में पर्याप्त कमरों और आने-जाने के साधनों का इंतजाम शामिल है. जी20 की बैठकें दो मुख्य ट्रैक (पटरियों) पर आयोजित की जाती हैं. एक, फाइनेंस ट्रैक, जिसमें आठ कार्य धाराएं हैं जिनकी 40 बैठकें होंगी. दूसरे ट्रैक की अगुआई शेरपा करते हैं, जो 13 कार्य समूहों से मिलकर बना है और जिनकी 60 बैठकें होंगी. 15 मंत्री स्तर की उच्चस्तरीय बैठकें होंगी, जिनमें दो विदेश और वित्त मंत्री स्तर की बैठकें शामिल हैं.

इसके अलावा, कारोबार, विज्ञान, लैंगिक मुद्दों और स्टार्ट-अप—जो भारत ने जोड़ा है—के क्षेत्र में गैर-सरकारी प्रतिनिधि मंडलों के लिए 12 एंगेजमेंट समूह हैं. उनकी 50 बैठकें होंगी और इसके अलावा 25 सेमिनार व कार्यशालाएं भी होंगी (देखें, हर मुद्दे पर जोरदार पहल).

इसे 'अतुलनीय जी20’ बनाना

भारत का इरादा इन आयोजनों का फायदा उठाकर घरेलू मैदान में अपनी वैश्विक अहमियत और वजन साबित करने का है. सितंबर, 2023 में मुख्य नेताओं के शिखर सम्मेलन के लिए दिल्ली के प्रगति मैदान में सम्मेलन केंद्र को सजाया-संवारा जा रहा है. पारंपरिक रूप से शिखर सम्मेलन नवंबर में आयोजित किया जाता है, क्योंकि अगला देश 1 दिसंबर को अध्यक्षता संभालता है.

मगर उस महीने राजधानी में प्रदूषण बहुत अधिक होने के कारण सरकार को इसे कुछ महीने पहले आयोजित करने में समझदारी नजर आई. नए केंद्र में 7,000 से ज्यादा प्रतिनिधियों के बैठने की जगह होगी और जी20 के नेताओं के शिखर सम्मेलन के लिए विशेष तल होगा.

भारत अब तक की सबसे ज्यादा भागीदारी पर जोर दे रहा है. उसे इसमें 43 शासन प्रमुखों के भाग लेने की उम्मीद है, जिनमें विशेष आंमत्रित के तौर पर शामिल नौ देशों के नेता भी होंगे. उनमें बांग्लादेश, यूएई और नाइजीरिया हैं. जी20 के लिए भारत के शेरपा और प्रधानमंत्री की तरफ से सभी बैठकों की देख-रेख करने वाले अमिताभ कांत ने इंडिया टुडे से कहा, ''अच्छी अध्यक्षताएं तीन मूल स्तंभों पर काम करके दिखाती हैं.

एक राजनैतिक संचालन जो हम सर्वसम्मति और सम्मेलन से उभरने वाला व्यापक नैरेटिव बनाने के लिए प्रदर्शित करते हैं. दूसरा कंटेट या कथ्य, ताकि एजेंडे में निरंतरता और बदलाव दोनों हो सके, जिसमें नए और अभिनव विचार जोड़ना भी शामिल है. तीसरा प्रशासनिक लॉजिस्टिक जो पक्का करे कि वैश्विक मानव गतिवधियों के हरेक क्षेत्र से शीर्ष नेताओं का यह जमावड़ा ध्यान रखने वाला और दक्ष दोनों है. अपने प्रधानमंत्री की अगुआई में हमें इन तीनों उद्देश्यों पर खरा उतरने का पूरा यकीन है.’’

नीति आयोग के पूर्व सीईओ कांत भारत को प्रमुख पर्यटन स्थल के तौर पर पेश करने की अपनी काबिलियत के लिए भी जाने जाते हैं. उन्हें 'इनक्रेडिबल इंडिया’ या अतुल्य भारत और केरल के लिए 'गॉड्स ओन कंट्री’ सरीखे अभियानों का श्रेय हासिल है. जैसा कि एक अफसर ने मुस्कराते हुए कहा, अब वे भारत की अध्यक्षता को ''इनक्रेडिबल जी20’’ या ''अतुल्य जी20’’ के तौर पर पेश करना चाहते हैं. कांत और उनकी टीम ऐसी चीज का ताना-बाना बुनने में लगी है.

जिसे वे आने वाले प्रतिनिधियों के लिए ''आध्यात्मिक रूप से ऊंचा उठाने वाला, सांस्कृतिक रूप से समृद्ध करने वाला, मानसिक रूप से तरोताजा करने वाला और शारीरिक रूप से बलवान बनाने वाला अनूठा भारतीय अनुभव’’ कहते हैं. वे भारत के बड़े उत्सवों में भाग लेंगे, चाहे वह अहमदाबाद का पतंग उत्सव हो, या कोणार्क का रेत कला उत्सव, सूरजकुंड का शिल्प मेला, कोहिमा का हॉर्नबिल संगीत उत्सव और खजुराहो का नृत्य उत्सव.

इन सभी को भारत की सांस्कृतिक शक्ति को पेश करने के लिए जी20 के आयोजन के साथ पिरोया गया है. वैश्विक जलवायु संकट के समाधान के लिए भारत के लाइफस्टाइल फॉर एनवायरनमेंट अभियान के हिस्से के रूप में समुद्रतटों की सफाई मुहिम चलाई जाएंगी. 'लोकतंत्र की जननी’ के रूप में प्रस्तुत भारत की महिलाओं की अगुआई में हो रहे विकास की कोशिशों को प्रमुखता से सामने रखा जाएगा, तो डिजिटल हैकेथन के माध्यम से डिजिटल समावेशन और कायापलट में देश की ऊंची छलांगों को भी.

यही स्वर प्रतिनिधियों के किट तक जाता है, जिसमें विभिन्न राज्यों की कलाओं और शिल्पों का शुमार होगा, चाहे वह चाय के प्यालों पर बिहार की मधुबनी कला हो, बोतलों पर कश्मीर का कनी काम या कांजीवरम या प्रतिनिधियों के झोलों पर गोंड डिजाइन.

अब मुश्किल हिस्सा

उम्मीद यही है कि यह सब जी20 की आम तौर पर धीर-गंभीर बैठकों को वैश्विक तमाशे में बदल देगा, जो ज्ञानवर्धक, मनोरंजक और जानदार होगा. पर भारत की अध्यक्षता की कामयाबी की कुंजी मुट्ठी भर पेचीदा मुद्दों पर सदस्य देशों के साथ बातचीत करते हुए ऐसी रचनात्मक सर्वसम्मति बना पाने में है जो सार्थक नतीजे दे सके. इनमें सबसे अव्वल यूक्रेन में चल रही लड़ाई है, जिसने दुनिया भर की अर्थव्यवस्था में ऐसा खलल डाला कि मुद्रास्फीति में बढ़ोतरी के रुझान के अलावा खाद्य और ऊर्जा का संकट भी पैदा हो गया है.

इस मुद्दे पर भारत नाजुक संतुलन साध रहा है क्योंकि रूस उसका करीबी दोस्त है और पूरे संकट के दौरान उसने भारत को यथोचित कीमत पर ईंधन और उर्वरक दोनों की आपूर्ति की. हालांकि अमेरिका और यूरोप ने भारत की मजबूरी को माना, पर कई मौकों पर वे भारत के महत्वाकांक्षी रुख को लेकर हताशा में दांत भी पीसते रहे. मगर सितंबर में समरकंद में हुए एससीओ के शिखर सम्मेलन में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ अपनी द्विपक्षीय बैठक में मोदी के बहुत नफासत के साथ दिए गए बयान ने उनकी धारणा बदली.

मोदी ने पुतिन को दोनों देशों के बीच ''अटूट दोस्ती’’ के बारे आश्वस्त करते हुए कहा कि ''आज का युग युद्ध का नहीं है.’’ भारत के रुख में इस बारीक बदलाव की पश्चिम ने प्रशंसा की. एक वरिष्ठ अफसर कहते हैं, ''हमने साफ कर दिया कि हम युद्ध के पक्ष में नहीं हैं और कूटनीति तथा संवाद के जरिए शांति की दिशा में कोई भी योगदान देकर हमें खुशी होगी.’’

जी20 के बाली घोषणापत्र में भारत ने चतुराई से गतिरोध से बाहर निकलने का रास्ता खोजा, जिसमें यूक्रेन पर आक्रमण के लिए रूस की भर्त्सना करने के मकसद से संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव को उद्धृत किया गया, बजाए इसके कि जी20 सीधे ऐसा करता. नतीजा यह हुआ कि रूस तक ने घोषणापत्र पर दस्तखत किए और भारत की ऐसे देश के रूप में धाक जम गई जो सर्वसम्मति बना सकता है.

रूस में भारत के पूर्व राजदूत बाल वेंकटेश वर्मा कहते हैं, ''भारतीय कूटनीति ने उच्च कोटि की व्यवहारिकता का प्रदर्शन किया. बाली में भारत ने इस विषय पर अहमियत रखने वाली हरेक हस्ती के लिए अपने दरवाजे खुले रखे. फिर रूस के साथ-साथ हमने पश्चिम के प्रमुख खिलाड़ियों के साथ भी अलग-बगल के दरवाजे खुले रखे. यहां तक कि इंडोनेशिया ने भी, जो अध्यक्षता कर रहा था, इसकी तारीफ की. अगर बाली में जी20 संयुक्त बयान जारी किए बिना खत्म हो जाता, तो हमारी अध्यक्षता के दौरान काम दोगुना बढ़ गया होता.’’

अब जी20 के अध्यक्ष के नाते भारत ऐसी स्थिति से हटकर, जिसमें उसे कोई न कोई रुख लेना पड़ता, ऐसी स्थिति में आ गया है जहां वह शांति समझौते पर पहुंचने का जतन करने की ज्यादा बड़ी भूमिका निभाने की तरफ बढ़ रहा है. रूस हालांकि यूक्रेन के बुनियादी ढांचों पर जान-बूझकर हमले करके उसे घुटनों पर लाने को आमादा दिखाई देता है. ऐसे में स्थिति की गंभीरता को कम करने के तरीके खोज पाना मुश्किल काम होगा.

मगर भारत जी20 की अपनी अध्यक्षता के दौरान थोड़ी-सी भी शांति और संवाद की स्थिति बना सका, तो यह बड़ी उपलब्धि होगी. वर्मा सलाह देते हैं, ''हमें फुटबॉल के रेफरी सरीखे दमखम और रफ्तार की जरूरत है ताकि हम बिना थके मैदान के एक छोर से दूसरे छोर तक दौड़ते रह सकें. कोई नहीं जानता कि युद्ध का ऊंट किस करवट बैठेगा, पर भारत के लिए खेल में होना जरूरी है.’’

कर्ज बम को बेमानी करना

भारत को जिस एक और बड़े मुद्दे की अगुआई करनी होगी, वह है वैश्विक कर्ज के बम को फटने से रोकना. विश्व बैंक की 2022 की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक, 70 से ज्यादा निम्न आय वाले देश और कोई दर्जन भर मध्यम आय वाले देश गंभीर कर्ज के संकट से घिरे हैं. भारत को ज्यादा दूर देखने की जरूरत नहीं है. उसके पड़ोसी श्रीलंका और पाकिस्तान जीते-जागते सबूत हैं कि किस तरह यह वित्तीय गिरावट और राजनैतिक अस्थिरता की तरफ ले जा सकता है.

जब दुनिया भर में मंदी का खतरा मंडरा रहा है, विश्व बैंक को हालात के और बदतर होने की आशंका है. भारत जी20 पर जलवायु परिवर्तन, स्वास्थ्य और पलायन सरीखे विदेशी मुद्दों के सामूहिक प्रभाव से निपटने के लिए वित्तीय टूलकिट विकसित करने पर जोर डाल रहा है. इसका एक प्रमुख हिस्सा यह होगा कि विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और अन्य बहुपक्षीय विकास बैंकों (एमडीबी) से उधार लेने और देने के नियमों को नए सिरे से तय करने का जतन किया जाए, ताकि देशों को उनकी वित्तीय मुश्किलों से उबरने के लिए पर्याप्त धन सुलभ हो.

दूसरा हिस्सा विकासशील देशों के लिए वैश्विक सार्वजनिक हित की परियोजनाओं में धन लगाने के लिए निजी निवेश लाना है. इनमें उनका जीवाश्म ईंधन से अक्षय ऊर्जा स्रोतों की तरफ जाना भी शामिल है. निजी निवेशक तब तक तैयार नहीं होंगे जब तक वे अच्छे रिटर्न मिलते नहीं देखते. इसलिए विशेषज्ञों का सुझाव है कि ये संस्थाएं निजी खिलाड़ियों को उसी तरह कर्ज की गारंटी देने सरीखे वित्तपोषण का तंत्र स्थापित करें जैसे विश्व बैंक की तरफ से स्थापित मल्टीलेटरल इनवेस्टमेंट गारंटी एजेंसी (एमआइजीए) करती है.

हाल ही में मिस्र के शर्म-अल-शेख में हुए जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन सीओपी 27 में हानि और क्षति कोष बनाने का जो समझौता हुआ है, उसे धरती के तापमान में वृद्धि से हो रहे नुक्सानों के लिए विकसित देशों की तरफ से विकासशील देशों को भरपाई की दिशा में बड़े कदम की तरह देखा जा रहा है. ऐसे नुक्सान हाल में पाकिस्तान में आई बाढ़ और अफ्रीका के कई हिस्सों में बड़े सूखों में देखे गए. सहभागी देश कोष बनाने के लिए सिद्धांतत: राजी हो गए हैं, पर नियम और तौर-तरीके जी20 के  जलवायु परिवर्तन और टिकाऊ विकास कार्य समूह में विकसित किए जा सकते हैं, जिसकी बैठक भारत में होगी.

टैक्स हैवन का खात्मा

जिन्हें ग्लोबल ऐंटी-बेस इरोजन मॉडल रूल्स के तहत टू-पिलर (दो-स्तंभ) अंतरराष्ट्रीय कर समझौते कहा जाता है और जो आर्थिक सहयोग तथा विकास संगठन (ओईसीडी) ने अक्तूबर 2021 में तय किए थे, उन्हें लागू करना एक और अहम मुद्दा है जिस पर भारत को आगे बढ़ने की उम्मीद है. पिलर वन या पहले स्तंभ का मकसद भारत सहित कई देशों के लिए—जहां अमेजन और वालमार्ट सरीखे विशालकाय बहुराष्ट्रीय उद्यम हैं, फिर चाहे उनकी उस अधिकार क्षेत्र में मौजूदगी हो या न हो जहां वे कारोबार कर रहे हैं.

मुनाफों और कर लगाने के अधिकारों का ज्यादा न्यायसंगत वितरण तय करना है. एक जटिल फॉर्मूले के तहत 20 अरब यूरो (20.7 अरब डॉलर) से ज्यादा की वैश्विक बिक्री वाले बहुराष्ट्रीय उद्यमों को 10 फीसद की सीमारेखा से ऊपर अपने कुल मुनाफों का 25 फीसद फिर उन्हीं बाजार क्षेत्रों में आवंटित करना होगा जहां वे काम करते हैं. इससे साल में 125 अरब डॉलर से ज्यादा धनराशि आवंटित की जा सकेगी, जिसमें विकासशील देशों को उन्नत देशों के मुकाबले ज्यादा राजस्व मिलने की उम्मीद है. 

पिलर टू का वास्ता आयरलैंड, सिंगापुर, केमैन आइलैंड और ऐसे ही दर्जन भर दूसरे देशों से है जो ज्यादातर देशों के मुकाबले बहुत कम कर दरों की पेशकश करते हैं. ओईसीडी देश सहमत हो गए हैं कि 75 करोड़ यूरो (77.7 करोड़ डॉलर) से ज्यादा राजस्व वाले बहुराष्ट्रीय उद्यमों को 15 फीसद की कर दर से वैश्विक न्यूनतम कर चुकाना होगा. वैश्विक न्यूनतम कर समझौता करों के मामले में प्रतिस्पर्धा खत्म करने के लिए नहीं, बल्कि सीमाएं तय करता है.

इससे भारत सहित कई देशों को साल में करीब 150 अरब डॉलर का नया राजस्व मिलेगा. जी20 इन फैसलों पर मोहर लगा चुका है. अध्यक्षता के दौरान भारत को उनसे जुड़े बाकी मुद्दे सुलझाने के लिए काम करना होगा. इसमें उन पर अमल के लिए बहुपक्षीय दस्तावेज पर दस्तखत करना भी शामिल है.

एक वरिष्ठ भारतीय अधिकारी कहते हैं, ''शुरुआत में भारत को करीब 4,000 करोड़ रुपए मिल सकते हैं, लेकिन यह अर्थव्यवस्था के साथ बढ़ेगा.’’ हालांकि अमेरिका और दूसरे देशों के लिए अपनी-अपनी विधायिका से उन्हें मंजूरी दिलवाने में शायद मुश्किल हो, जिससे देरी हो सकती है.

जहां तक व्यापार की बात है, महामारी ने मौजूदा वैश्विक मूल्य शृंखलाओं और खासकर चीन पर निर्भर मूल्य शृंखलाओं की कमजोरियों को उघाड़कर रख दिया. चीन इन दिनों एक और संकट से घिरा है, जिसमें शंघाई सहित कई बड़े शहरों में प्रचंड लॉकडाउन का स्वागत ब्लैंक पेपर या खाली कागज विरोध प्रदर्शनों से किया जा रहा है.

बड़े मैन्युफैक्चरर और निवेशक इतनी आसानी से चीन से नाता नहीं तोड़ सकते, इसलिए इसे चाइना प्लस मूल्य शृंखला के जरिए आगे बढ़ाया जा रहा है, जिसमें वैश्विक लचीलापन बनाने के लिए वैकल्पिक देशों की पहचान की जा सकती है. इन विकल्पों में से एक बनने के लिए भारत का बहुत कुछ दांव पर लगा है और वह अपने मामले को आगे बढ़ाने के लिए जी20 का इस्तेमाल करेगा. हालांकि उसे खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा सरीखे मुद्दों पर फूंक-फूंककर कदम रखना होगा. रूस हाल में उर्वरकों के अलावा तेल का उसका सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता बन गया है. अमेरिका और यूरोप रूसी तेल की बिक्री पर ऊपरी मूल्य सीमा तय करने पर जोर दे रहे हैं. 

जहां तक खाद्य सुरक्षा की बात है, बड़े गेहूं उत्पादक देशों—रूस और यूक्रेन—के युद्ध में उलझे होने के कारण गेहूं की जहाजों पर लदाई में भारी खलल पड़ा है, इसलिए भारत दुनिया भर में मोटे अनाजों के पैदावार में नई जान फूंकने पर जोर दे रहा है. गेहूं की फसल के लिए जहां बहुत ज्यादा पानी की जरूरत पड़ती है, मोटे अनाज पानी की कमी वाले इलाकों में उग आते हैं और दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों का मुख्य आहार हुआ करते थे, जब तक कि गेहूं की व्यावसायिक पैदावार ने उन्हें जड़ से उखाड़ नहीं फेंका.

अलबत्ता करीब 130 देश मोटे अनाज उगाते हैं, जिसमें भारत सबसे बड़ा है. 2019 में दुनिया भर में कुल 8.9 करोड़ टन मोटे अनाज उगाए गए, जिनमें भारत का योगदान 20 फीसद था. इसके मुकाबले गेहूं की वैश्विक उपज इस साल 80 करोड़ टन थी. भारत ने पिछले साल संयुक्त राष्ट्र में 2023 को अंतरराष्ट्रीय मिलेट वर्ष घोषित करने के अभियान की अगुआई की, जिसे 72 देशों के समर्थन से पारित किया गया. जी20 में वह मोटे अनाजों की तरफ जाने के लिए देशों पर पूरा जोर डालेगा, जिससे जलवायु परिर्वतन से लड़ने में भी मदद मिलेगी, क्योंकि गेहूं से इसके कार्बन उत्सर्जन और पानी की खपत बहुत कम है.

विकास के तौर पर डेटा

जिस एक और क्षेत्र में भारत अग्रणी भूमिका निभाने की उम्मीद कर रहा है, वह है डिजिटल खाई को पाटना. तकरीबन चार अरब लोगों या दुनिया की आधी आबादी के पास डिजिटल सुविधा नहीं है. करोड़ों लोग बैंक से जुड़े नहीं हैं. इसके अलावा दुनिया के कुल 195 में से 130 से ज्यादा देशों के पास अब भी डिजिटल भुगतान प्रणाली नहीं है. भारत खुद अपना उदाहरण सामने रखकर समावेशी डिजिटल क्रांति लाने की अगुआई कर सकता है.

अपनी जेएएम—जन धन बैंक खाते, आधार कार्ड और मोबाइल नेटवर्क—के माध्यम से सरकार जनकल्याण योजनाओं के तहत नकद सहायता के लिए शायद दुनिया के सबसे बड़े प्रत्यक्ष लाभ अंतरण को अंजाम दे पा रही है. मोदी सरकार के काल में 40 करोड़ से ज्यादा लोगों ने नए बैंक खाते खोले, जिससे भारत की बैंकों से कटी आबादी आधी कम हो गई.

सार्वजनिक क्षेत्र के यूपीआइ (यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस) के जरिए पिछले साल 46.8 अरब लेन-देन किए गए, जो दुनिया के रियल-टाइम लेन-देन का 40 फीसद हैं. कांत कहते हैं, ''हमने दुनिया के सर्वश्रेष्ठ सार्वजनिक डिजिटल बुनियादी ढांचे का निर्माण किया है और इसे विकासशील देशों के लिए आगे बढ़ाया जा सकता है. अपनी अध्यक्षता के दौरान हम इन समाधानों की वकालत करेंगे.’’

इन तमाम एजेंडों पर जोर देने में भारत किस हद तक कामयाब होगा, यह देखना बाकी है. मसलन, डिजिटल भुगतान के मामले में मास्टरकार्ड और वीजा सरीखी कार्ड भुगतान से जुड़ी विशालकाय कॉर्पोरेट कंपनियां वैश्विक कारोबार में बड़ा हिस्सा चाहेंगी और इस क्षेत्र में काबिज होने की भारत की कोशिशों का विरोध करेंगी. भारत इस सारी खींचतान और जी20 के मंच की सीमाओं से अच्छी तरह वाकिफ है.

जी20 के मुख्य संयोजक और पूर्व विदेश सचिव हर्ष शृंगला कहते हैं, ''जी20 सर्वसम्मति से चलता है, इसलिए हमें अपनी पहलों को आगे ले जाने के लिए अपने सभी सहभागी देशों के साथ मिलकर काम करना होगा.’’ भारत यह पक्का करने में कोई कसर नहीं छोड़ेगा कि उसकी साल भर लंबी अध्यक्षता से विश्व की उभरती शक्ति के रूप में उसका कद और रुतबा बढ़े और उसे विकासशील देशों की आवाज बनने में मदद मिले. 

क्या है एजेंडे में

यूक्रेन युद्ध
यूक्रेन में रूस के हमले से ऊर्जा और खाद्य संकट पैदा हो गया है. बाली में 2022 के जी-20 सम्मेलन में वह संदेश देने में भारत ने प्रमुख भूमिका निभाई जिसमें संयुक्त राष्ट्र महासभा की इस युद्ध के खिलाफ प्रस्ताव के हवाले से निंदा की गई. अब जी-20 के अध्यक्ष पद से भारत को शांति संबंधी सुलह-वार्ता के लिए बड़ी कोशिश करनी होगी. इस मामले में औसत कामयाबी भी बड़ी उपलब्धि होगी.  

कर्ज का दुष्चक्र
आइएमएफ और विश्व बैंक के मुताबिक, कम और मध्यम आयवर्ग के करीब 80 देशों के सामने गहरा कर्ज संकट खड़ा है. इसमें भारत के पड़ोस में पाकिस्तान और श्रीलंका जैसे देश हैं. वैश्विक मंदी के हालात इसे और बदतर कर सकते हैं. भारत जी-20 के जरिए ऐसे देशों को फंड आसानी से मुहैया कराने के लिए आइएमएफ और विश्व बैंक जैसी संस्थाओं से उधारी/कर्ज के कायदों में फेरबदल की पेशबंदी कर रहा है. 

जलवायु संकट
शरम अल शेख में सीओपी27 सम्मेलन से एक बड़ी खबर यह है कि जलवायु संकट का सबसे बुरा असर झेल रहे देशों को मुआवजे के लिए 'घाटा और नुक्सान’ फंड की स्थापना पर समझौता हुआ है. इसके तौर-तरीकों को तैयार करने के लिए इस मसले पर जी-20 कार्यदल बात आगे बढ़ा सकता है. दूसरी चुनौती निजी कंपनियों को जीवाश्म ईंधन से अक्षय ऊर्जा की ओर संक्रमण वाले परियोजनाओं में निवेश के लिए आकर्षित करना है.

वैश्विक मंदी
विश्व बैंक ने 2023 में वैश्विक मंदी के खतरे से आगाह किया है. महंगाई से निबटने के लिए केंद्रीय बैंक ब्याज दरें बढ़ा रहे हैं, मगर इसके साथ वित्तीय बाजारों में दबाव बनता है तो वैश्विक जीडीपी वृद्धि दर 0.5 प्रतिशत तक धीमी हो सकती है. आगामी सम्मेलन इस पर एक वैश्विक नजरिया हासिल कर सकता है.

खाद्य सुरक्षा
वैश्विक खाद्य कीमतें ऊंची बनी हुई हैं, इसका अधिक संबंध रूस और यूक्रेन से हंज क्योंकि दोनों बड़े गेहूं उत्पादक देश हैं. भारत मोटे अनाज की पैदावार को बढ़ावा दे रहा है, और जी-20 में वह देशों से इस कम कार्बन उत्सर्जन वाली फसलों की ओर बढ़ने के विचार को जोरशोर से आगे बढ़ाएगा.

ऊर्जा सुरक्षा
यूक्रेन युद्ध से वैश्विक ऊर्जा संकट खड़ा हो गया है. अपनी अध्यक्षता के कार्यकाल में भारत इसे आसान बनाने की कोशिश कर सकता है.

डिजिटल फासले को पाटना
दुनिया की आधी आबादी के पास डिजिटल सुविधाएं नहीं हैं. भारत जेएएम (जन धन-आधार-मोबाइल)के जरिए अपने समावेशी डिजिटल क्रांति की विशेषज्ञता का लाभ दूसरे देशों को दे सकता है.  

वैश्विक मूल्य शृंखला 
महामारी ने चीन पर निर्भर वैश्विक मूल्य शृंखला की कमियों को उजागर कर दिया है. हालात जस के तस बने हुए हैं, ऐसे में चाइना प्लस वन सप्लाई लाईन का विचार आगे बढ़ाया गया है. भारत खुद को वैकल्पिक देश के रूप में पेश करने की पेशकश को जी-20 के जरिए आगे बढ़ा सकता है.

मैदान में उतरकर
भारत उम्मीद करेगा कि कॉर्पोरेट कराधान पर शुल्क जड़ने और मुनाफे के मुनासिब बंटवारे पर आगे बढ़ा जाए, और उन देशों को कर लगाने का अधिकार मिले, जहां बहुराष्ट्रीय कंपनियां कारोबार करती हैं.

विकासशील देशों की आवाज 
बतौर जी-20 अध्यक्ष, भारत के पास दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों की आवाज बनने का भी भरपूर मौका है और वह इस तरफ की दुनिया के देशों के हितों का प्रतिनिधित्व करे.

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