बदलाव का वातावरण
पर्यावरण की सुरक्षा के लिए कदम आगे बढ़ाया गया है, लेकिन कथनी को करनी में भी बदलने की जरूरत है. भारत के जलवायु लक्ष्यों को ज्यादा फंड और प्रौद्योगिकी की भी दरकार

3 साल, मोदी सरकार 2.0
पर्यावरण
पर्यावरण के बारे में चिंता लगातार बढ़ रही है और वनों तथा वन्यजीवों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं. लेकिन अन्य मामलों में अमूमन बयानों के मुताबिक कार्रवाई होती नजर नहीं आती है. सिंगल-यूज प्लास्टिक के इस्तेमाल पर प्रतिबंध को लागू करने में नाकामी एक गंभीर मामला है. हालांकि, एक मिसाल पेश करने के लिए भूपेंद्र यादव के नेतृत्व में मंत्रालय ने पिछले दिसंबर में बेकार पड़े कंप्यूटर, प्रिंटर, फोटोकॉपियर सरीखी वस्तुओं के निपटान के लिए ई-कचरे की नीलामी का आयोजन किया. अस्पतालों समेत अन्य जगहों से आने वाले खतरनाक कचरे से निपटने की प्रक्रियाओं के इसके विवरण कुछ उम्मीद जगाते हैं.
हालांकि द्विवार्षिक भारत वन स्थिति रिपोर्ट (आइएसएफआर), 2021 के निष्कर्षों को चुनौती दी गई है. रिपोर्ट में स्वीकार किया गया है कि 'मध्यम स्तर के घने वनों' के क्षेत्र में 1,582 वर्ग किलोमीटर की कमी दर्ज की गई है. वहीं अन्य संकलनों में कहा गया है कि वन आवरण राष्ट्रीय वन नीति और जलवायु अनुकूल लक्ष्यों के करीब पहुंच रहा है.
पिछले साल ग्लासगो में जलवायु परिवर्तन समिट में भारत ने कहा था कि बातचीत को ऐक्शन में बदला जाना चाहिए. देश राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) के तहत अपने लक्ष्यों को हासिल करने की राह पर है. समिट में भारत ने 2030 तक अपने लिए नए लक्ष्य तय किए: 500 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा का उत्पादन, नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग करके अपनी ऊर्जा जरूरतों का 50 फीसद हिस्सा पूरा करना, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को एक अरब टन कम करना और अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता को 45 फीसद से कम करना. इसने 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन स्तर तक पहुंचने की प्रतिबद्धता जताई है.
यह सब महत्वाकांक्षी है, लेकिन शायद यथार्थवादी साबित नहीं हो. जलवायु परिवर्तन के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई के लिए फंड और प्रौद्योगिकी के निरंतर प्रवाह की दरकार है और औद्योगिक राष्ट्र 2015 में पेरिस में किए गए अपने वादों को पूरा करने में नाकाम रहे हैं. जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करते हुए कम लागत वाली जलवायु प्रौद्योगिकियों के विकास के लिए पूंजी खोजना एक बढ़ती चुनौती है. भारत को ऐसे में संतुलन साध कर चलना होगा.
क्या-क्या किया
वन्यजीवों के लिए संरक्षित क्षेत्र को बढ़ाया गया है
पर्यावरण, वन, वन्यजीव, सीआरजेड संबंधी पारदर्शी मंजूरी के लिए सिंगल विंडो एकीकृत प्रणाली विकसित की गई है
70 दिनों से कम समय में ही पर्यावरण अनुदान की मंजूरी के लिए सुव्यवस्थित प्रक्रिया
सभी क्षेत्रों में ईसी के अनुदान के लिए लगने वाले औसत समय को कम करने के लिए सुधार हुए, पहल की गईं
आगे की चुनौतियां
मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल की त्वरित सूची के अनुसार हानिकारक रसायनों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना
2020 के बाद के ग्लोबल बायोडाइवर्सिटी फ्रेमवर्क को अपनाने के लिए 2022 में चीन के कुनमिंग में पार्टियों की कॉन्फ्रेंस में शामिल होना
जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता कम करना