आवरण कथाः क्या आपके व्हाट्सऐप की टैपिंग हो सकती है?
फोन टैपिंग के लिए सर्विस प्रोवाइडर को एक औपचारिक अनुरोध भी किया जाना चाहिए. यह निगहबानी, बहरहाल सिर्फ फोन कॉल्स तक सीमित है.

टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 की धारा 5 के तहत केंद्रीय गृह सचिव या किसी राज्य का गृह सचिव भारत की संप्रभुता और अखंडता की रक्षा के लिए, राज्य की सुरक्षा के लिए, दूसरे देशों के साथ मित्रता या सार्वजनिक व्यवस्था की खातिर या किसी आशंकित अपराध को रोकने के वास्ते फोन पर बातचीत की टैपिंग का आदेश दे सकता है.
अपवाद की स्थितियों में कोई अधिकारी (जो संयुक्त सचिव से नीचे की रैंक का न हो) जिसे केंद्रीय गृह सचिव या राज्य के गृह सचिव से इस काम के लिए अधिकृत किया गया हो, भी इस बारे में आदेश जारी कर सकता है. यह इंटरसेप्शन 180 दिनों से अधिक जारी नहीं रह सकता.
टैपिंग के आदेश में ऐसा करने के औचित्य का उल्लेख होना चाहिए, और इस आदेश की एक प्रति सात कार्यदिवसों के भीतर समीक्षा समिति को भेजी जानी जरूरी है. केंद्रीय स्तर पर समीक्षा समिति में कैबिनेट सचिव, विधि सचिव और दूरसंचार सचिव शामिल होते हैं. राज्य स्तर पर मुख्य सचिव, विधि सचिव और गृह सचिव के अलावा कोई अन्य सचिव इस समिति के सदस्य होते हैं.
फोन टैपिंग के लिए आने वाला अनुरोध पुलिस अधीक्षक (या समकक्ष) के रैंक से नीचे के अधिकारी से नहीं होना चाहिए. टैपिंग के लिए अधिकृत अफसर इस प्रक्रिया के पूरे कागजात का रिकॉर्ड रखेगा और इसमें यह ब्योरा भी होगा कि इस टैपिंग को किस-किस के सामने रखा गया है. फोन टैपिंग के लिए सर्विस प्रोवाइडर को एक औपचारिक अनुरोध भी किया जाना चाहिए. यह निगहबानी, बहरहाल सिर्फ फोन कॉल्स तक सीमित है.
इलेक्ट्रॉनिक संचार की निगहबानी के लिए—मसलन ई-मेल, एसएमएस, चैट इत्यादि—सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 का सेक्शन 69 सरकार को यह अधिकार देता है कि वह किसी कंप्यूटर स्रोत से सूचना को अवरोधित करे, निगरानी और कूट संदेश पढ़ सके. इस शक्ति का इस्तेमाल फोन टैपिंग के संदर्भ में टेलीग्राफ ऐक्ट में दी गई परिस्थितियों के मद्देनजर ही किया जा सकता है.
इसके लिए सुरक्षा उपाय और समीक्षा व्यवस्था भारतीय टेलीग्राफ नियमों के नियम 419 ए और सूचना प्रौद्योगिकी (प्रक्रिया और सुरक्षा के लिए अवरोधन, निगरानी और सूचना के डिक्रिप्शन) नियम, 2009 में उल्लिखित हैं. इसके साथ ही इसके लिए मानक प्रक्रिया का भी इसमें उल्लेख है. बहरहाल, व्हाट्सऐप जैसे प्लेटफॉर्म पर चैट और फोन कॉल कूटबद्ध होते हैं, इन्हें ट्रांसमिशन के दौरान इंटरसेप्ट नहीं किया जा सकता.
फिर भी, पुलिस कानूनी रूप से किसी फोन या कंप्यूटर में स्टोर किए गए डेटा को हासिल कर सकती है. आइटी ऐक्ट का सेक्शन 76 कानून प्रवर्तन एजेंसियों को किसी भी कंप्यूटर संसाधन या संचार उपकरण को जब्त करने का अधिकार देता है. भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 के तहत निजी चैट को इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है. बहरहाल, इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य अदालतों में तभी मान्य होते हैं, जब भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 के सेक्शन 65 (बी) का कड़ाई से पालन किया गया हो.
जब भी अदालत में ऐसे साक्ष्य प्रस्तुत किए जाते हैं, इसके साथ एक प्रमाणपत्र जरूर लगा होना चाहिए कि इस साक्ष्य के साथ कोई छेड़-छाड़ नहीं की गई है. प्रमाणपत्र डिवाइस के मालिक, डिवाइस के कामकाज और रखरखाव के प्रभारी व्यक्ति या एक फोरेंसिक परीक्षक की ओर से जारी किया जा सकता है, जिसने इसका विश्लेषण किया हो. गैर-कानूनी तरीके से हासिल इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य आइटी ऐक्ट, 2000 के तहत खुद भी अपराध साबित हो जाता है—अनाधिकारिक रूप से हासिल इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों को अदालत में पेश नहीं किया जा सकता.
अगर किसी व्यक्ति को यह शक हो कि उसकी अनाधिकारिक रूप से फोन या डिजिटल संचार की जासूसी की जा रही है तो वह राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में शिकायत कर सकता है या नजदीकी थाने में इसे लेकर एफआइआर दर्ज करा सकता है. अनाधिकारिक टैपिंग के खिलाफ अदालत की शरण भी ली जा सकती है.
दिसंबर, 2018 में दिल्ली हाइकोर्ट के एक आदेश में कहा गया है कि सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत कोई भी नागरिक भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण से यह जानकारी हासिल कर सकता है कि क्या उसका फोन टैप किया जा रहा है. आधिकारिक रूप से निर्वाचित प्रतिनिधियों के फोन टैप नहीं किए जा सकते.