मेंटर भी गाइड भी
इल्युसिडेशन टुडे का. यह एक ऐसा मंच है जो ग्रेजुएट छात्रों को संवाद के अलावा बेसिक आइटी और डिजाइन आदि के मामले में दक्ष बनाने और रेज्यूमे तैयार करने में मदद करता है, जिससे उन्हें करियर बनाने में सहायता हो.

अवनी गर्ग, 23 वर्ष
इल्युसिडेशन टुडे की संस्थापक, दिल्ली की अशोका यूनिवर्सिटी से लिबरल स्टडीज में डिप्लोमा
इस साल की इससे बेहतर शुरुआत अवनी के लिए भला और क्या हो सकती थी. एक बहुराष्ट्रीय नियोक्ता सेवा कंपनी ने उन्हें 10 लाख रुपए सालाना की एक नौकरी की पेशकश की थी, वह भी जनवरी से ही, यानी कि अपना कोर्स पूरा करने से पांच महीने पहले ही. फिर क्या था! अवनी की खुशी का ठिकाना न रहा: आज यहां पार्टी हो रही है तो कल कहीं और वाइन की बोतल खुल रही है. और फिर दोस्तों के साथ घूमना-फिरना. उनका जश्न चलता ही रहा.
यहां तक कि जब कोविड महामारी के काले बादल उमडऩे शुरू हुए थे, तब भी अवनी बहुत ज्यादा फिक्रमंद नहीं थीं क्योंकि उनका नौकरी का उनका ऑफर लेटर मार्च के अंत में उनके पास पहुंच ही चुका था. वे बताती हैं, ‘‘मुझसे कहा गया था कि मुझे जून में जॉइन करना है. और जैसे हालात थे, उन्हें देखते हुए मेरा मानना था कि पहले कुछ महीने स्वाभाविक तौर पर वर्क फ्रॉम होम के होंगे.’’
लेकिन जब जून आया और चला भी गया, तब भी कंपनी की तरफ से उन्हें कोई चिट्ठी, कोई संदेश नहीं मिला तब उन्हें खासी फिक्र सताने लगी. जिस शख्स ने नौकरी के लिए उनका इंटरव्यू किया था उस तक पहुंच मुमकिन हो नहीं पाई. उधर, उनके कॉलेज का प्लेसमेंट सेल भी खासा लद्धड़ निकला. जवाब देने में काफी वक्त लेने वाला.
लेकिन यही वह मोड़ था, जहां वे चौकन्ना हो गईं. उन्होंने हताशा को खुद पर हावी नहीं होने दिया और अपनी ऊर्जा को उन चीजों पर केंद्रित करना शुरू कर दिया, जिन्हें वे शुरू से ही करना चाहती थीं: यानी एक स्टार्ट-अप की शुरुआत. और इस तरह जन्म हुआ इल्युसिडेशन टुडे का. यह एक ऐसा मंच है जो ग्रेजुएट छात्रों को संवाद के अलावा बेसिक आइटी और डिजाइन आदि के मामले में दक्ष बनाने और रेज्यूमे तैयार करने में मदद करता है, जिससे उन्हें करियर बनाने में सहायता हो.
अवनी कहती हैं, ‘‘बिना किसी पूंजी के बस अपने लैपटॉप के जरिए स्टार्ट-अप शुरू कर दिया. पहले महीने मैंने आठ कार्यशालाएं आयोजित कीं और उसमें पंजाब, दिल्ली और केरल के दो विश्वविद्यालय और कई कॉलेज कवर किए.’’
अब इस परियोजना में उनका सारा कामकाजी समय व्यतीत हो जाता है. उन्हें वेबिनार आयोजित करने होते हैं, गेस्ट स्पीकर तय करने होते हैं और कार्यशालाएं आयोजित करनी होती हैं. अवनी कहती हैं, ‘‘शुरुआत में हम यह मुक्रत करना चाहते थे, लेकिन अब हमें लगता है कि हमें मामूली शुल्क लेना चाहिए.’’ आपदा को अवसर में बदलने का पाठ सीखने के लिए यह बहुत छोटी रकम होगी. —रोमिता दत्ता
‘‘मेरे पास कोई बुनियादी पूंजी नहीं थी. बस एक लैपटॉप के बूते मैंने अपना स्टार्ट-अप शुरू कर दिया. नतीजा देखिए, पहले महीने में ही मैंने आठ वर्कशॉप कर डाली’’