शिक्षा-स्लेट पर साफ-साफ
किरकिरी कराते आए मानव संसाधन विकास मंत्रियों को किनारे कर दें, तो कह सकते हैं कि प्राथमिक शिक्षा जैसे अहम क्षेत्र में सुधार को गंभीरता से प्रयास हुए हैं

पिछले पांच वर्ष में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय को गलत वजहों से खबरों में बने रहने की आदत पड़ गई थी. यह पूर्व मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी के विवादास्पद कार्यकाल से शुरू हुआ और मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री सत्यपाल सिंह के डार्विन के विकास के सिद्धांत को खारिज करने और रिलायंस समूह के जियो विश्वविद्यालय, जो कि अभी अस्तित्व में भी नहीं आया है, को प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय का दर्जा देने के साथ जारी रहा.
बहुप्रचारित राष्ट्रीय शिक्षा नीति लाने की नाकामी इसमें और इजाफा करती है (कुछ विशेषज्ञ इसे बालू से दीवार बनाने जैसी कोशिश के रूप में देखते हैं). इन नकारात्मक कार्यों के बावजूद, शिक्षा क्षेत्र में एक मौन क्रांति हो रही है. बेमतलब के खर्चों की जगह, शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित हुआ है.
पहला कदम था बच्चों के लिए नेशनल अचीवमेंट सर्वे. राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) के इस सर्वे ने दर्शाया कि शिक्षा व्यवस्था कितनी खस्ताहाल है.
इसके आधार पर 2017 में शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम, 2009 में संशोधन करके इसमें कक्षा और विषय-वार शिक्षण के संदर्भों को शामिल करने का प्रावधान है. अन्य कदमों में शाला सिद्धि (स्कूल मानक और मूल्यांकन फ्रेमवर्क); प्राथमिक स्कूल शिक्षकों के लिए प्रदर्शन के सूचक (पीआइएनडीआइसीएस); और 15 लाख अप्रशिक्षित शिक्षकों को प्रशिक्षित करने वाला स्वयं (स्टडी वेब्स ऑफ एक्टिव लर्निंग फॉर यंग एस्पायरिंग माइंड्स) ऑनलाइन कोर्स शामिल हैं.
प्रथम फाउंडेशन की सीईओ रुक्मिणी बनर्जी का कहना है, ''एएसईआर 2018 रिपोर्ट विशेष रूप से प्राइमरी कक्षाओं में किताब पढ़ पाने और जोड़-बाकी कर पाने में कुछ सुधारों का संकेत दे रही है.''
पांच वर्ष में 7 आइआइटी, 7 आइआइएम, 2 एनआइटी और 3 केंद्रीय विश्वविद्यालय जोड़े गए हैं. लेकिन मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावडेकर की नजर में सबसे बड़ी कामयाबी रही लिंग और आर्थिक दोनों ही आधार पर बच्चों को शिक्षा में बराबरी के अवसर मिलना. जावड़ेकर कहते हैं, ''स्वयं के प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध ऑनलाइन पाठ्यक्रम एक बड़ी उलटफेर करने वाली तकनीक बनेगी."
हालांकि मंत्री अल्पसंख्यक शिक्षा और मध्यान्ह भोजन योजनाओं के लिए धन में भारी कटौती या 40 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के 6,141 रिक्त पदों और सिर्फ एक शिक्षक के भरोसे चल रहे 92,275 सरकारी स्कूलों जैसे उपेक्षित क्षेत्रों पर बात करने में ज्यादा रुचि नहीं दिखाते.
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