हरियाणा-जाटलैंड की सीधी जंग
क्या विपक्षी दलों में चल रही आपसी लड़ाई भाजपा को राज्य में आसान जीत दिलाएगी?

राज्य में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पहले और इकलौते मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का पहला कार्यकाल उथल-पुथल भरा रहा है. पद संभालने के बाद महीने भर के भीतर हिसार में पुलिस और स्वयंभू बाबा रामपाल के हजारों भक्तों के बीच हिंसक झड़प हुई थी. उसमें पांच महिलाओं और एक नवजात शिशु की मौत हो गई थी.
कुछ महीने बाद एक और उग्र आंदोलन खड़ा हो गया था. इस बार राजनैतिक रूप से दबदबा रखने वाले जाट समुदाय की ओर से सरकारी नौकरियों और शैक्षिक संस्थानों में आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन हुआ था जिसमें 30 लोग मारे गए थे और करोड़ों रु. की सरकारी तथा निजी संपत्ति का नुक्सान हुआ था. इससे परेशान होकर खट्टर सरकार को हिंसा की जांच के लिए उत्तर प्रदेश और असम के पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह की अध्यक्षता में एक समिति का गठन करना पड़ा था. तीन साल बीत जाने के बाद केवल मुट्ठी भर अपराधियों के खिलाफ मुकदमा चलाया जा सका है और राज्य सरकार ने समिति की रिपोर्ट में नामजद कुछ अधिकारियों के खिलाफ या तो धीरे-धीरे करके मामले वापस ले लिए हैं या उनके खिलाफ प्रशासनिक कार्रवाई को पलट दिया है.
2017 में एक बार फिर खट्टर को कड़ी परीक्षा देनी पड़ी थी जब डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह को बलात्कार के एक मामले में दोषी करार दिए जाने के बाद उनके अनुयायी हिंसा पर उतर आए थे. चंडीगढ़ की इस हिंसक घटना में मुख्यमंत्री के आवास से बमुश्किल 10 किलोमीटर दूर पुलिस की गोलीबारी में 30 से ज्यादा लोग मारे गए थे. इसके अलावा राज्य में लगभग हर रोज बलात्कार और हत्या की खबरें आने के साथ कुल मिलाकर कानून और व्यवस्था की स्थिति खराब होती गई.
लेकिन, आखिरकार खट्टर ने शासन पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली जिसका उन्हें राजनैतिक फायदा भी मिला. उनके नेतृत्व में भाजपा पिछले दिसंबर में हरियाणा के पांच नगरपालिका चुनावों में भारी जीत हासिल करने में कामयाब रही. इन चुनाव में जाट-बहुल क्षेत्र भी शामिल थे. इसके तुरंत बाद भाजपा के कृष्ण मिड्ढा ने पार्टी के लिए पहली बार जींद विधानसभा का उपचुनाव भी जीता. लोकसभा चुनाव से पहले इस चुनावी जीत ने हरियाणा के भगवा नेतृत्व के आत्मश्विास को बढ़ा दिया.
पार्टी के सदस्यों की सलाह थी कि इस 'अनुकूल हवा' का फायदा उठाते हुए राज्य में समय से पहले ही विधानसभा का चुनाव (जो सितंबर-अक्तूबर में होना है) करा लेना चाहिए. उस विकल्प को हालांकि टाल दिया गया लेकिन भाजपा को पूरा यकीन है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से पाकिस्तान के खिलाफ सैनिक कार्रवाई से लोकसभा और विधानसभा के चुनावों में उसे भरपूर फायदा मिलेगा. हरियाणा का सेना के साथ मजबूत रिश्ता है. सेना में करीब 10 प्रतिशत लोग हरियाणा से हैं. इसलिए पार्टी को इस बात में कोई संदेह नहीं है कि बालाकोट पर हमला, विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान की तत्काल वापसी और वन रैंक वन पेंशन (ओआरओपी) योजना ने उसे चुनावी जंग में पहले ही बढ़त दिला दी है.
हालांकि खट्टर भाजपा की ताजा चुनावी सफलताओं के लिए 'पारदर्शिता' और 'सुशासन' को श्रेय देना चाहेंगे, लेकिन वास्तविकता यह है कि इस जीत का एक बड़ा कारण विपक्ष में बिखराव है—हरियाणा के जाटों की मुख्य धारा वाले ओ.पी. चौटाला के इंडियन नेशनल लोक दल (आइएनएलडी) और कांग्रेस, दोनों में भारी विभाजन है. आइएनएलडी दो फाड़ हो गया है.
चौटाला के बड़े बेटे अजय सिंह के बेटों दुष्यंत और दिग्विजय ने अपनी अलग जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) बना ली है और चौटाला के छोटे बेटे अभय सिंह के नेतृत्व वाले आइएनएलडी के विधायक पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हो रहे हैं. दूसरी तरफ, कांग्रेस में कई खेमे बन चुके हैं. पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला, पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर का अलग-अलग खेमा आपस में भिड़ता रहता है. सुरजेवाला जींद उपचुनाव में हार के बाद पार्टी नेताओं पर विश्वासघात का आरोप लगा चुके हैं.
इस सब के बीच अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) राज्य में पैर जमाने की कोशिश कर रही है. आप ने जींद के उपचुनाव में जेजेपी का समर्थन किया था पर लोकसभा के चुनावों के लिए गठबंधन की बात अभी बन नहीं पाई है. बागी ओबीसी सांसद राज कुमार सैनी अपनी लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी (एलएसपी) बना रहे हैं और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के साथ गठबंधन कर रहे हैं. इससे भाजपा को मुश्किल हो सकती है. पर खट्टर को भरोसा है कि उनके सुशासन के आगे जाति-धर्म की सारी बाधाएं बेमानी साबित होंगी ठ्ठ
बड़े चेहरे
मनोहर लाल खट्टर
उथल-पुथल भरे कार्यकाल के बावजूद मुख्यमंत्री आश्वस्त लगते हैं
भूपिंदर सिंह हुड्डा
पूर्व मुख्यमंत्री और हरियाणा में कांग्रेस के सबसे लोकप्रिय नेता
अभय चौटाला
ओ.पी. चौटाला के छोटे बेटे भाजपा के साथ तालमेल कर सकते हैं
दुष्यंत चौटाला
आइएनएलडी के बागी नेता जेजेपी के साथ अपने परदादा देवीलाल की विरासत को आगे ले जाना चाहते हैं