"भाजपा और एनडीए कमजोर हैं, तभी तो वे मुकेश सहनी को अपनी तरफ बुला रहे हैं"

विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के अध्यक्ष मुकेश सहनी से उनके एनडीए में जाने की अटकलों और आगे के एजेंडे पर पुष्यमित्र से बातचीत

वीआईपी पार्टी के सुप्रीमो मुकेश सहनी.
वीआईपी पार्टी के सुप्रीमो मुकेश सहनी

'हर घर तिरंगा अभियान' भले ही केंद्र सरकार और एनडीए के दल जोर-शोर से चला रहे हैं, मगर अपने सोशल मीडिया प्रोफाइल में तिरंगा लगाना विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) नेता मुकेश सहनी के लिए फायदे का सौदा साबित हो गया है. इन दिनों वे बिहार की राजनीति में 'हॉट केक' बने हुए हैं. एक तरफ प्रेम कुमार, जमा खान और मदन सहनी जैसे एनडीए नेता यह दावा कर रहे हैं कि वे एनडीए में शामिल होने वाले हैं. वहीं महागठबंधन के दल सशंकित हैं कि क्या मुकेश सहनी सचमुच 2025 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले एनडीए का दामन थाम लेंगे.

हालांकि सहनी ने साफ कर दिया है कि वे किसी सूरत में भाजपा और एनडीए के साथ नहीं जाने वाले. इंडिया टुडे से खास बातचीत में उन्होंने कहा है कि वे 2025 का विधानसभा और 2029 का लोकसभा चुनाव भी इंडिया गठबंधन के बैनर तले ही लड़ेंगें. पुष्यमित्र के साथ बातचीत में मुकेश सहनी अपनी पार्टी, एनडीए में जाने की संभावनाओं, महागठबंधन से अपने जुड़ाव और दो अक्टूबर को बनने जा रही प्रशांत किशोर की 'जनसुराज पार्टी' समेत कई मसलों पर बातचीत की. इसके अश :

आजकल बहुत जोर-शोर से चर्चा है कि आप एनडीए में जा रहे हैं, हाल ही में वरिष्ठ भाजपा नेता प्रेम कुमार ने भी ऐसा बयान दिया है. आखिर बात क्या है?

मुझे तो खुशी हो रही है. इससे यह साबित हो रहा है कि भाजपा और एनडीए कमजोर हैं. तभी तो वे मुकेश सहनी को अपनी तरफ बुला रहे हैं. यह भी साबित हो रहा है कि बिहार में हमारी एक ताकत है. मगर हम इंडिया गठबंधन के साथ हैं. मजबूती से हैं और बिहार में अगली सरकार तेजस्वी यादव के नेतृत्व में बनाएंगे. लालू जी की विचारधारा को जमीन पर उतारेंगे.

मतलब आप एनडीए के साथ नहीं जा रहे.

बिल्कुल नहीं जा रहे. 200 पर्सेंट. लॉक कर दीजिए.

लोकसभा चुनाव में आपको एक भी सीट नहीं मिली, फिर भी आप लगातार चर्चा में बने हुए हैं. इसकी क्या वजह है?

यह सच है कि बिहार में जाति आधारित राजनीति होती है और निषाद समाज एक बड़ा वोट बैंक है. हर एक निषाद को पता है कि उनके समाज का एक बेटा उनकी लड़ाई लड़ रहा है. अगर वह जीत जाता है तो निषादों को घर बैठे नौकरी मिलेगी. आज उनके बच्चे मछली मारने को मजबूर हैं, दूसरे राज्य में नौकरी करने को मजबूर हैं. अच्छी पढ़ाई के बावजूद दर-दर भटक रहे हैं, दस हजार तक की नौकरी नहीं मिल रही. अगर पश्चिम बंगाल में निषाद समुदाय को आरक्षण मिलता है, दिल्ली में आरक्षण है तो बिहार में क्यों नहीं! इसी वजह से सभी लोग मजबूती से हमारे साथ हैं. 

हम पावर में भी आए, मंत्री भी बने. 2020 में हमारे दम पर बिहार में सरकार भी बनी. उसके बावजूद आरक्षण की लड़ाई लड़ते रहे. ऐसे में भाजपा ने हमारे विधायकों को तोड़ लिया और हमें मंत्री पद से हटा दिया. हम पहाड़ से टकराए और उसने हमें जख्मी किया. यह बात समाज के सभी लोगों को मालूम है. ऐसे में कोई वजह नहीं है कि भाजपा के साथ हमारा समाज खड़ा हो. वे हमारे साथ खड़े हैं. इसी वजह से भाजपा को लगता है कि मुकेश सहनी अगर हमारे साथ नहीं है तो हमारा नुकसान होगा.

लगातार आ रहे फोन पर व्यस्त मुकेश सहनी

क्या नुकसान होगा?

पिछले लोकसभा चुनाव में महागठबंधन को 32 फीसद वोट मिले थे. इस बार 39 फीसद वोट मिले हैं. पिछले दफे एनडीए को 53 फीसद वोट आया था, इस बार वो 46 फीसद पर खिसक आए. वहीं पिछली बार उन्होंने 39 सीटें जीती थीं, इस बार 30 सीटों पर आ गए. यह तब है जब उनके साथ उपेंद्र कुशवाहा और जीतनराम मांझी जी भी थे. पप्पू यादव और हिना शहाब का दस लाख वोट भी हमारे हिस्से का वोट था. अगर यह सब जोड़ लें तो बड़ा वोट बैंक हमारे साथ था. अगर लोकसभा में यह स्थिति थी तो विधानसभा में हमारी सरकार बनेगी. पिछली दफा सिर्फ 10-12 हजार वोट की वजह से तेजस्वी जी की सरकार नहीं बन पाई थी. इसी वजह से वे परेशान हैं. वे चाहते हैं, मुकेश सहनी को साथ लाएं, नहीं ला सकें तो परसेप्शन खराब (भ्रम पैदा कर रहे हैं) करें. इसी वजह से यह शोर चल रहा है.

बीजेपी की नीति है कि पहले गुलाम बनाने की कोशिश करो. नहीं गुलाम बना सके तो भटका दो. नहीं भटका सके तो खत्म कर दो. अभी वे हमें साथ लेने या भटकाने की नीति पर चल रहे हैं. मगर जिस एजेंडे को लेकर हम मुंबई से बिहार आए. अगर वही एजेंडा या विचारधारा काम नहीं करे तो क्या मतलब है. कुर्सी पर बैठना मेरा मकसद नहीं है, बदलाव लाना मेरा मकसद है इसलिए मुझे संघर्ष करना है. मोदी जी से हाथ मिला लेते तो 2016 में ही हम राज्यसभा चले जाते. लेकिन मुझे खुद को नहीं अपने समाज को सेटल करना है. 

अगर एनडीए निषाद जाति को आरक्षण देने का वादा करती है तो क्या आप एनडीए के साथ जा सकते हैं?

बिल्कुल नहीं. हमने 2014 में भी आरक्षण के मुद्दे पर मोदी जी की मदद की थी. उस वक्त उनके प्रदेश अध्यक्ष मंगल पांडेय ने लिख कर दिया था कि आरक्षण देंगे. 2015 में गृह मंत्री ने और 2020 में मोदी जी ने निषादों को आरक्षण दिलाने का वादा किया. वे तो वादा कर चुके हैं. अब उन्हें हमारी मजदूरी देनी है. दूसरी बात है, देश के पीएम के नाते यह उनका कर्तव्य बनता है कि निषादों का काम करें. अगर बीजेपी बोले कि मुकेश सहनी जी हम आरक्षण देते हैं, इसके बदले आपको हमारे साथ आना है, या अपनी जान दे देनी है, तो उस पर बात होगी.

अगर निषादों को एससी श्रेणी में रखने की घोषणा हो जाती है तो... ?

घोषणा करें. यह तो उनका कर्तव्य है. यह करके वे हम पर कोई अतिरिक्त मेहरबानी नहीं करेंगे. काम होने पर जरूर हम शुभकामना देंगे. अगर इसके बदले में कुछ चाहिए तो आप प्रस्ताव लेकर आइए. भाजपा से पूछिए कि उन्हें बदले में क्या चाहिए. फिर हम तय करेंगे.

तो कुल मिलाकर यह है कि आप 2025 का बिहार विधानसभा चुनाव इंडिया गठबंधन के बैनर तले लड़ेंगे.

100 फीसद लड़ेंगे. 2025 का विधानसभा और 2029 का लोकसभा चुनाव भी हम इंडिया गठबंधन के साथ मिलकर लड़ेंगे. राज्य में भी अपनी सरकार बनाएंगे और केंद्र में भी राहुल गांधी जी के नेतृत्व में अपनी सरकार बनाएंगे. वे (राहुल गांधी) कहते हैं, जिसकी जितनी भागीदारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी. इस नीति में हमारा आरक्षण फिट बैठता है तो उनके नेतृत्व में सरकार बनाकर हम निषादों का आरक्षण लेंगे. 

लोकसभा चुनाव में आप लोगों को अपेक्षित सफलता नहीं मिली, आपकी पार्टी ने इसकी समीक्षा की है?

कुछ कमियां थीं. जो रिजल्ट आया उससे संतुष्ट भी हैं. हालांकि हम बेहतर रिजल्ट की उम्मीद कर रहे थे. कमियों को भविष्य में दूर करेंगे. कोई भी सफलता जरूरी नहीं कि एक ही बार में मिल जाए. उसके लिए समय लगेगा और मैं समय देने के लिए तैयार हूं. मेरे पास समय भी है, अभी मेरी उम्र 42 साल ही है. अभी मैं मजबूती से 35 साल बिहार की राजनीति में काम करने को तैयार हूं.

'जनसुराज अभियान' अब एक राजनीतिक पार्टी के रूप में स्थापित होने वाला है. इस अभियान के नेता प्रशांत किशोर का कहना है कि उनकी पार्टी दलित, अति पिछड़ा और मुसलमानों को आगे बढ़ाने पर खास ध्यान देगी.  वे इन तीनों वोटबैंक को रिझाने की कोशिश कर रहे हैं. इससे इंडिया गठबंधन पर क्या फर्क पड़ सकता है?

उन्होंने अपनी जाति के लिए क्या कहा? कुछ नहीं कहा...?  जिस जाति में उन्होंने जन्म लिया उसी पर गर्व नहीं करते. उसी के साथ न्याय नहीं करना चाहते तो दूसरों के साथ क्या न्याय करेंगे. मैं मल्लाह जाति में पैदा हुआ तो गर्व से कहता हूं 'सन ऑफ मल्लाह' हूं. मगर वे अपनी जाति के लिए कुछ नहीं कह रहे, अपना घर नहीं चला पा रहे तो दूसरों के लिए क्या करेंगे. ये तो बेइमानी है. 

बाकी प्रशांत जी जो कह रहे वह बिहार के लिए अच्छी बात है. पहले तो उनकी बातें धरातल पर उतरें. वैसे एक सवाल ये भी है कि वे बीजेपी के लिए काम करेंगे. महागठबंधन के लिए काम करेंगे, या अकेले लड़ेंगे? हालांकि पहले पार्टी तो बने. लोकसभा में तो उन्होंने घूम-घूमकर मोदी जी का प्रचार किया. देश के अलग-अलग चैनलों पर दावा किया. आप अगर बदलाव के लिए मैदान में उतरे हैं तो आपके लिए दोनों खराब होने चाहिए, मोदी जी भी और इंडिया गठबंधन भी खराब है. मगर किसी एक की तरफदारी करने की उनकी राजनीति तो समझ में ही नहीं आई. आप क्यों अब्दुला की शादी में बेगाना बनकर नाच रहे थे.

क्या आपको लगता है कि वे बीजेपी की तरफ से इंडिया गठबंधन का वोट काटने की कोशिश करेंगे?

नहीं. बिल्कुल नहीं. हमारा इंडिया गठबंधन का वोट ऐसा नहीं है कि उनके बहकावे में आ जाए. उनकी राजनीति पर समय आने पर चर्चा होगी. अभी तो पार्टी बन जाए.

झारखंड चुनाव में भी आप लड़ेंगे?

हां, लड़ेंगे और इंडिया गठबंधन को मदद करेंगे.

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