राष्ट्रपति भवन के दरबार हॉल और अशोक हॉल का इतिहास ही नहीं, साज-सज्जा भी खास क्यों मानी जाती है?
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 25 जुलाई को राष्ट्रपति भवन के 'दरबार हॉल' और 'अशोक हॉल' का नाम बदलकर क्रमशः 'गणतंत्र मंडप' और 'अशोक मंडप' रखने की घोषणा की है

अंग्रेज जब भारत छोड़कर गए और देश के नेताओं ने बागडोर अपने हाथों में ली, तो इस संक्रमण काल में अनेक बदलाव हुए. उन तमाम बदलावों में से एक यह भी था कि वह वायसराय हाउस, जहां से ब्रिटिश अधिकारी राजकाज संभालते थे, 26 जनवरी 1950 को उसका नाम बदलकर राष्ट्रपति भवन रख दिया गया.
उस घटना के करीब 74 साल के बाद एक बार फिर राष्ट्रपति भवन से जुड़े दो प्रमुख हॉल के नाम बदल दिए गए हैं. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 25 जुलाई को राष्ट्रपति भवन के 'दरबार हॉल' और 'अशोक हॉल' का नाम बदलकर क्रमशः 'गणतंत्र मंडप' और 'अशोक मंडप' रखने की घोषणा की है.
राष्ट्रपति भवन की ओर से जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया,"राष्ट्रपति भवन के माहौल को भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों और लोकाचारों को दर्शाने वाला बनाने का लगातार प्रयास किया गया है. और इसलिए 'दरबार' और 'हॉल' शब्दों को बदल दिया गया है. दरबार शब्द भारतीय शासकों और अंग्रेजों के दरबार और सभाओं को दर्शाता है. भारत के गणतंत्र बनने के बाद इसकी प्रासंगिकता खत्म हो गई है."
इससे पहले 28 जनवरी, 2023 को राष्ट्रपति भवन के मुगल गार्डन का नाम बदलकर 'अमृत उद्यान' कर दिया गया था. राष्ट्रपति भवन के बारे में बात करें तो इसका इतिहास साल 1911 से शुरू होता है, जब किंग जॉर्ज पंचम (तत्कालीन ब्रिटिश सम्राट) ने भारत की राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित करने का फैसला किया.
किंग के इस फैसले के बाद इतिहास के कई खंडों में बंटी दिल्ली के इस नए हिस्से को डिजाइन करने की जिम्मेदारी मिली - सर एडविन लैंडसीर लुटियंस को. राष्ट्रपति भवन बनाने के क्रम में वहां पहले से मौजूद रायसीना और मालचा गांवों को शिफ्ट किया गया, और करीब 4,000 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया गया.
इसके बाद लुटियंस ने फारसी, यूरोपीय, मुगल और भारतीय शैली को मिलाकर जो क्लासिक वास्तुकला का नमूना रचा, वह आज भी राष्ट्रपति भवन और अन्य इमारतों के रूप में हमारी आंखों के सामने है. इस काम में लुटियंस को एक और बेहतरीन वास्तुकार हर्बर्ट बेकर का भी सहयोग मिला. दिल्ली का यह हिस्सा आज लुटियंस दिल्ली के नाम से भी जाना जाता है.
बहरहाल, राष्ट्रपति मुर्मू ने जिन दो हॉल के नए नामकरण की घोषणा की है, आइए उनके इतिहास के बारे में थोड़ा जान लेते हैं.
दरबार हॉल, जहां नेहरू ने ली थी प्रधानमंत्री पद की शपथ
कोई अगर कहे कि राष्ट्रपति भवन में सबसे भव्य कक्ष कौन-सा है, तो शायद दरबार हॉल का नाम इसमें सबसे ऊपर लिया जा सकता है. यह वही हॉल है जिसे पहले थ्रोन रूम (सिंहासन कक्ष) के नाम से जाना जाता था. लेकिन इसका सबसे दिलचस्प ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य यह है कि यहां पंडित जवाहरलाल नेहरू की अगुआई में आजाद भारत की पहली सरकार ने 15 अगस्त, 1947 को शपथ ली थी.
इसके अलावा आजाद भारत के पहले और आखिरी गवर्नर जनरल रहे सी. राजगोपालाचारी ने भी 1948 में यहां गवर्नर जनरल के रूप में शपथ ली थी. 1977 में जब तत्कालीन राष्ट्रपति फखरूद्दीन अली अहमद का निधन हुआ, तो इस गमगीन मौके पर भारत के पांचवें राष्ट्रपति को श्रृद्धांजलि देने के लिए दरबार हॉल का ही इस्तेमाल किया गया था.
अभी की मौजूदा स्थिति यह है कि इस हॉल में सिविल और रक्षा अलंकरण समारोह आयोजित किए जाते हैं, और इसी हॉल में ही राष्ट्रपति उन प्राप्तकर्ताओं को सम्मान देते हैं. विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत के मुख्य न्यायाधीशों का शपथ ग्रहण समारोह भी यहीं आयोजित होता है. इसके अलावा नई सरकार के शपथ समारोह भी यहीं आयोजित होते रहे हैं.
दरबार हॉल तक जाने के लिए कई रास्ते बने हुए हैं. एक रास्ता राष्ट्रपति भवन के प्रांगण से होकर जाता है, जहां इस साल जून में एनडीए 3.0 सरकार का शपथ ग्रहण समारोह हुआ था. इस हॉल के बारे में इतिहासकार क्रिस्टोफर हस्सी ने कहा था, "दरबार हॉल में पहुंचने का प्रभाव तुरंत, जबरदस्त और बिलकुल शांति का एहसास कराने वाला होता है."
इसकी आधिकारिक वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक, इसकी दीवारें 42 फीट ऊंची हैं, जो सफेद संगमरमर से बनी हैं. गुंबद का व्यास लगभग 22 मीटर है. इस हॉल की सजावट बेल्जियम से आयातित एक शानदार कांच के झूमर से की गई है, जो इसकी छत से करीब 33 मीटर की ऊंचाई पर लटका हुआ है. इसकी अटारी में संगमरमर की जालियां (जालीदार स्क्रीन) एक सजावट के रूप में काम करती हैं, साथ ही वेंटिलेशन और रोशनी प्रदान करती हैं.
दरबार हॉल के फर्श के लिए इस्तेमाल किए गए ज्यादातर मार्बल भारत से थे. इनमें सफेद मार्बल राजस्थान के मकराना और अलवर से लाए गए थे, जबकि ग्रे मार्बल मारवाड़ के थे. हरा मार्बल बड़ौदा और अजमेर से, वहीं गुलाबी मार्बल अलवर, मकराना और हरिबाग से लाए गए. हालांकि दरबार हॉल में जिन गहरी चॉकलेट रंग की किस्म के मार्बल का इस्तेमाल किया गया है, उन्हें खास तौर पर इटली से मंगाया गया था.
जब राष्ट्रपति भवन, वायसराय हाउस हुआ करता था, तब इस हॉल में दो सिंहासन रखे गए थे. इनमें से एक वायसराय के लिए था, तो दूसरा वायसराय की पत्नी के लिए. मौजूदा समय में उन दोनों सिंहासनों को हटा दिया गया है, और इनकी जगह एक राष्ट्रपति की कुर्सी रखी गई है. राष्ट्रपति की कुर्सी के पीछे दीवार के साथ लाल वैलवेट बैकग्राउंड में भगवान बुद्ध की एक पांचवी सदी की प्रतिमा रखी गई है.
अशोक हॉल, जहां बाहरी देशों के मिशन प्रमुख परिचय पत्र पेश करते हैं
अशोक हॉल का निर्माण मूल रूप से एक बॉलरूम के तौर पर हुआ था. बॉलरूम से आशय एक बड़े कमरे से है जिसमें पॉलिश किया हुआ फर्श होता है, और जिसका इस्तेमाल नृत्य या फिर अन्य गतिविधियों के लिए एक हॉल के रूप में किया जाता है. इनमें मोटी कांच की दीवारें और छत, पीछे की दीवार पर मखमल और लाल दीवारें जैसी खासियतें हो सकती हैं. परंपरागत रूप से, बॉलरूम में मजबूत लकड़ी या संगमरमर के फर्श होते हैं.
राष्ट्रपति भवन के भीतर जो अशोक हॉल मौजूद है, फिलहाल उसका इस्तेमाल बाहरी देशों के मिशन प्रमुखों द्वारा परिचय पत्र प्रस्तुत करने के लिए किया जाता है. इसके अलावा इसका इस्तेमाल राष्ट्रपति द्वारा आयोजित राजकीय भोज के आरंभ से पहले आने वाले और भारतीय प्रतिनिधिमंडलों के लिए औपचारिक परिचय स्थल के रूप में किया जाता है. इसमें एक मंच जैसी जगह भी है जिसका इस्तेमाल महत्वपूर्ण समारोहों के दौरान राष्ट्रगान बजाने के लिए किया जाता है.
आधिकारिक वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक, इस हॉल की छत से छह खूबसूरत झूमर लटके हुए हैं, जो बेल्जियम से मंगाए गए थे. इसका फर्श पूर्ण रूप से लकड़ी का बना हुआ है और जिसकी सतह के नीचे स्प्रिंग लगे हुए हैं. इस हॉल की छतें तैल पेंटिंगों से सुसज्जित हैं. इस हॉल के फ्रेंच विंडो से मुगल गॉर्डन का शानदार नजारा दिखता है.
अशोक हॉल की छत के केंद्र में एक चमड़े की पेंटिंग है, जिसमें फारस के सात कजर शासकों में से दूसरे फतह अली शाह का अश्वारोही चित्र दिखाया गया है. इस चित्र में वह अपने 22 बेटों की मौजूदगी में एक बाघ का शिकार कर रहा है. इस पेंटिंग को खुद फतह शाह ने इंग्लैंड के जार्ज चतुर्थ को भेंट में दी थी. लॉर्ड इरविन के कार्यकाल के दौरान इस कलाकृति को लंदन के भारत ऑफिस लाइब्रेरी से मंगाई गई, और इसे अशोक हॉल की छत पर लगाया गया.
इसके अलावा इटली के एक मशहूर कलाकार टॉमसो कोलोनेलो को बुलाया गया, जिन्होंने 23 भारतीय कलाकारों की मदद से कमरे के बाकी हिस्सों में जंगल की थीम को विस्तार दिया. वेबसाइट के मुताबिक, अशोक हॉल की छत को सुंदर बनाने के लिए फारसी में शिलालेखों के साथ चार और शिकार के दृश्य जोड़े गए. हॉल की दीवारों पर शाही जुलूस का चित्रण किया गया है और छतों को सीधे पेंट किया गया है, जबकि दीवारों को विशाल लटके हुए कैनवस पर चित्रित किया गया है.