कौन थे चार्ल्स बॉयकॉट, जिनका सरनेम बहिष्कार का पर्याय बन गया?
सोशल मीडिया पर बढ़ती अंग्रेजियत के बीच ये जानना और भी जरूरी हो जाता है कि ये 'बॉयकॉट' करना लोगों ने कब से शुरू किया; क्योंकि बहिष्कार तो काफी पहले से होता आया है

ये कहानी अंग्रेजों की है, अंग्रेजी की है और है 'बहिष्कार' करने के सलीके की. हिंदी में हम बहिष्कार उतनी जल्दी नहीं करते जितनी जल्दी सोशल मीडिया पर 'बॉयकॉट' करते हैं. कारण कि बहिष्कार करने में वो 'वाइब' नहीं जो 'बॉयकॉट' करने में है. ऐसे में सोशल मीडिया पर बढ़ती अंग्रेजियत के बीच ये जानना और भी जरूरी हो जाता है कि ये 'बॉयकॉट' करना लोगों ने कब से शुरू किया; क्योंकि बहिष्कार तो काफी पहले से होता आया है. तो शुरू करते हैं.
एक अंग्रेज थे. नाम था - चार्ल्स कनिंघम बॉयकॉट. अंग्रेजों की सेना में फौजी भी थे सो 'कैप्टन चार्ल्स बॉयकॉट' कहकर भी उनका ईगो सैटिस्फाय किया जाता था. फौज से निकले तो एक दूसरे अंग्रेज लार्ड एहन के यहां नौकरी कर ली. इस लार्ड के पास बहुत जमीन थी, लगभग 40,000 एकड़. अब इतनी जमीन पर लोगों से टैक्स वसूलना और देखरेख अकेले तो कर नहीं पाते, सो कई लैंड एजेंट रख लिए. इन्हीं में से थे अपने कैप्टन बॉयकॉट.
कैप्टन बॉयकॉट को आयरलैंड में अचिल आइलैंड में जमीन की देखरेख से लेकर, टैक्स वसूलने की जिम्मेदारी मिली. कैप्टन अपनी फौजी रुतबे को बरकरार रखते हुए जमकर टैक्स वसूलते और जो ना दे सके उसे निकाल बाहर करते थे. 'फाल्ट इन दी स्टार्स' उनका बस ये हो गया कि यह सब 1879-1882 के दौरान हो रहा था जब आयरलैंड में जमकर लैंड वॉर चल रहा था. चार साल से लगातार फसल खराब होने की वजह से लोगों की आर्थिक बुनियाद हिल चुकी थी लेकिन जमींदार अपने टैक्स से समझौता करने को तैयार न थे. उधर 'होम रूल मूवमेंट' ने आयरिश राष्ट्रवाद के चूल्हे में जोर से फूंक मारी थी जिससे पूरा आयरलैंड धधक उठा था.
जमीन पर बढ़ते नाजायज टैक्स और जमींदारों की मनमानी के खिलाफ 1879 में आयरिश नेशनलिस्ट लैंड लीग का गठन हो चुका था. और आयरलैंड के आंदोलनों में हिंसा न हो, ऐसा वही व्यक्ति सोच सकता है जिसने वहां का इतिहास न पढ़ा हो. चारों तरफ मार-काट मची थी, जमींदार गाजर-मूली की तरह काटे जा रहे थे. पश्चिमी आयरलैंड में भुखमरी के हालात थे, मगर जमींदार टैक्स न दे पाने की वजह से तब भी उन्हें जमीन से बेदखल करने पर तुले थे.
इन सब के बीच कैप्टन बॉयकॉट के साथ थोड़ा अलग तरह का मामला हुआ. आयरलैंड के गांव के गरीब लोगों की मौत हो रही थी और इसी सब के बीच आयरिश नेशनलिस्ट लैंड लीग ने कैप्टन बॉयकॉट को मिसाल बनाने की ठानी. पड़ोसियों को डरा-धमकाकर 'बॉयकॉट' से संबंध त्यागने को कहा, और उनके खेत के मजदूरों को भड़काकर काम बंद करने को कहा. जो नहीं भड़का, उन्हें हड़का दिया. आसपास के दुकानों ने भी कैप्टन को सामान देने से मना कर दिया. अब उनके पास उनके परिवार, तीन नौकरों और कुछ मेहमानों के अलावा कुछ भी नहीं बचा था.
इतिहासकार लियम ओ रॉयला अपने जर्नल आर्टिकल कैप्टन बॉयकॉट : मैन एंड मिथ में लिखते हैं कि मेल सर्विस के अलावा कैप्टन के पास कोई भी सेवा नहीं थी, सो उन्होंने चिट्ठी लिखने की सोची. चिट्ठी भेजी गई लंदन के अखबार द टाइम्स के दफ्तर में और अखबार ने अपना दायित्व निभाते हुए कैप्टन बॉयकॉट की पूरी स्थिति बयान करते हुए उनकी कहानी छाप दी. यह खबर उस दौर में वायरल हुई थी जब वायरल मतलब बुखार ही होता था. जहां-जहां लोग अंग्रेजी पढ़ सकते थे, द टाइम्स की ये खबर पढ़ी गई.
ब्रितानिया हुकूमत ने भी फौरन इसपर संज्ञान लिया. ब्रिटेन के ऑरेंजमेन, जो प्रोटेस्टेंट मत के लिए बनाई एक गुप्त संस्था थी, वहां से 57 लोग कैप्टन बॉयकॉट की मदद के लिए अचिल पहुंचे. सरकार ने उनकी सुरक्षा के लिए 900 सैनिकों को भेजा. लेकिन इतने लोगों का खाना-पीना, रहना कैसे होगा जब आस-पड़ोस में आपको कुछ मिले ही ना. इतिहासकार लियम लिखते हैं कि 350 पाउंड की फसल बचाने में 10,000 पाउंड से अधिक खर्च हो गए. और ये सब हुआ 2 हफ़्तों के भीतर. उन 2 हफ़्तों के बाद न तो उनकी मदद के लिए आए लोग रहे, न वो 900 सैनिक और न ही बॉयकॉट और उनका परिवार.
कैप्टन बॉयकॉट अपने परिवार के साथ अमेरिका की यात्रा पर निकल गए और नाम चार्ल्स कनिंघम बॉयकॉट की जगह सिर्फ कनिंघम तक बताते रहे. बॉयकॉट वाकई में एक मिसाल बन चुके थे और अब उन्हें एक शब्द बनना था. आयरलैंड के ही एक लोकल पादरी ने सुझाया कि जिस तरह से कैप्टन का बहिष्कार हुआ, उसको देखते हुए बहिष्कार के लिए 'ऑस्ट्रैसाइज' की जगह 'बॉयकॉट' का भी इस्तेमाल किया जा सकता है. यह शब्द पहले आयरलैंड में फैला, फिर ब्रिटेन और फिर वहां से अंग्रेजी की डिक्शनरी में अपनी जगह बना ली.
आज इंडिया में जिस तरह से बॉयकॉट कल्चर समृद्ध हो रहा है, उसे देखकर यही लगता है कि अगर कैप्टन चार्ल्स न होते आज फिल्में बिना वजह ऑस्ट्रेसाइज हो रही होतीं.