क्या है जोंबी वायरस, जो दुनिया के लिए नया खतरा बन सकता है?

जोंबी से मतलब उन वायरस से है जो लंबे समय से निष्क्रिय या हजारों सालों से बर्फ में जमे हुए हैं. वैज्ञानिकों का मानना ​​है कि ये वायरस गंभीर बीमारियों का कारण बन सकते हैं

पर्माफ्रॉस्ट से अलग किए गए पिथोवायरस साइबेरिकम की तस्वीर/फोटो- द गार्डियन
पर्माफ्रॉस्ट से अलग किए गए पिथोवायरस साइबेरिकम की तस्वीर

दुनिया अभी कोविड महामारी से पूरी तरह उबरी नहीं है. अब तक इसके नए वैरिएंट सामने आ रहे हैं. इस बीच अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक समुदाय ने एक और खतरे के प्रति दुनिया को आगाह किया है. वैज्ञानिकों के मुताबिक, पृथ्वी की गर्म होती जलवायु के चलते आर्कटिक 'पर्माफ्रॉस्ट' में जमे हजारों साल पुराने वायरस रिलीज (मुक्त) हो सकते हैं और नई महामारियों का कारण बन सकते हैं. इन्हें 'जोंबी' वायरस कहा जा रहा है.

जोंबी से मतलब उन वायरस से है जो लंबे समय से निष्क्रिय या हजारों सालों से बर्फ में जमे हुए हैं.पर्माफ्रॉस्ट के बारे में बात करें, तो यह उत्तरी गोलार्द्ध में करीब 20 फीसद हिस्से तक फैला वैसा इलाका है, जो कम-से-कम लगातार दो सालों से शून्य डिग्री सेल्सियस से कम तापमान पर जमी हुई अवस्था में होता है. इनमें आर्कटिक पर्माफ्रॉस्ट हजारों-हजार साल से उसी अवस्था में जमे हुए हैं.

लेकिन अब तेजी से गर्म होती पृथ्वी और तापमान में बदलाव से आर्कटिक पिघल रहा है. इससे इनमें हजारों साल से जमे मेथुसेलह या जोंबी वायरस बाहर आ सकते हैं, जिससे नई महामारियां फैल सकती हैं. 

यह सब देखते हुए वैज्ञानिक एक आर्कटिक निगरानी नेटवर्क बनाने की योजना बना रहे हैं. यह नेटवर्क इन सूक्ष्म जीवों से होने वाली बीमारी के शुरुआती मामलों का पता लगाएगा. यह महामारी के प्रसार को रोकने के लिए संक्रमित लोगों को क्वारंटीन में रखेगा, उन्हें एक्सपर्ट मेडिकल ट्रीटमेंट उपलब्ध कराएगा. इसके अलावा यह संक्रमित लोगों को क्षेत्र से बाहर जाने से रोकेगा.

इस मामले पर मीडिया से बातचीत में फ्रांस की मार्सिले यूनिवर्सिटी के जेनेटिसिस्ट (आनुवंशिकीविद्) जीन-मिशेल क्लेवेरी कहते हैं, "अभी के समय में महामारियों के खतरे का विश्लेषण उन बीमारियों पर केंद्रित होता है, जो दक्षिण में उभर कर उत्तर में फैल सकती हैं. इसके विपरीत उन महामारियों पर कम ध्यान दिया जाता है जो उत्तर में उभर सकती है और दक्षिण की ओर बढ़ सकती हैं. वहां (उत्तर) ऐसे वायरस हैं जो मनुष्यों को संक्रमित करने और एक नई महामारी शुरू करने की क्षमता रखते हैं."

इरास्मस मेडिकल सेंटर, रॉटरडैम के वायरोलॉजिस्ट मैरियन कूपमैन्स भी क्लेवेरी की बात का समर्थन करते हैं. वे कहते हैं, "हमें नहीं पता कि पर्माफ्रॉस्ट में कौन से वायरस मौजूद हैं. लेकिन मुझे लगता है कि वहां वैसा खतरा जरूर है जो पुराने पोलियो की तरह कोई महामारी फैलाने में सक्षम हो सकता है. हमें यह मानकर चलना चाहिए कि भविष्य में ऐसा कुछ घट सकता है."

करीब 10 साल पहले जब क्लेवेरी के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की टीम ने साइबेरिया का दौरा किया, तो उन्होंने पर्माफ्रॉस्ट से उन जीवित वायरसों को अलग किया था. उन्होंने ये दिखाया था कि भले ही ये वायरस हजारों साल पर्माफ्रॉस्ट में दबे हुए हों, लेकिन वे अब भी एकल-कोशिका (सिंगल सेल) जीवों को संक्रमित कर सकते हैं.

पिछले साल एक शोध पत्र प्रकाशित हुआ, जिसमें साइबेरिया में सात अलग-अलग जगहों का पता था. ये वैसी जगहें थीं, जहां कई तरह के संक्रमित करने वाले वायरल स्ट्रेन (प्रकार) मौजूद थे. इनमें से एक वायरस का नमूना 48,500 साल पुराना था. क्लेवेरी कहते हैं, "जिन वायरस को हमने अलग किया, वे केवल अमीबा को संक्रमित करने में सक्षम थे. मनुष्यों के लिए कोई खतरा नहीं था. लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि जो अन्य वायरस पर्माफ्रॉस्ट में जमे हुए हैं, वे मनुष्यों में बीमारियों को ट्रिगर करने में सक्षम नहीं हो सकते हैं." अब सवाल उठता है कि ये मनुष्य के लिए कितना खतरनाक हो सकते हैं?

वैज्ञानिकों का मानना ​​है कि पर्माफ्रॉस्ट के सबसे गहरे स्तर पर ऐसे वायरस हो सकते हैं, जो दस लाख साल तक पुराने हैं. ये हमारी अपनी प्रजाति से कहीं अधिक पुराने हैं. मनुष्य का आरंभ तीन लाख साल पहले माना जाता है. चूंकि हमारा इनसे संपर्क नहीं हुआ, इसलिए हमारे प्रतिरक्षा तंत्र के पास इनसे बचाव के लिए कोई एंटीबॉडी उपलब्ध नहीं होगा. ऐसे में क्लेवेरी कहते हैं, "अब हम एक निश्चित खतरे का सामना कर रहे हैं और हमें इससे निपटने के लिए तैयार रहने की जरूरत है." 

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