क्या है 9-9-6 का कामकाजी रूटीन जो टेक कर्मचारियों के लिए बड़ी राहत बन रहा?
यह रूटीन है, लस्त-पस्त जीवन से संतुलन की तरफ चलना यानी हफ्ते में छह दिन, सिर्फ सुबह 9 से शाम 6 बजे तक करें काम और हर दिन नौ घंटे अपने पर दें ध्यान

पुणे के कोथरुड में रहने वाले 26 वर्षीय फ्रीलांस सॉफ्टवेयर इंजीनियर मिहिर देशमुख की जिंदगी समय सीमाओं, रात भर चलने वाले कोडिंग सेशन से अस्त-व्यस्त हो गई थी. यह बाहरी दुनिया से पूरी तरह कटी हुई थी. अंतरराष्ट्रीय ग्राहकों के साथ काम करने का मतलब था कि उनके जागने के घंटे तय नहीं थे- वे अक्सर सुबह 4 बजे सोते, दोपहर तक उठ पाते और कैफीन के सहारे पूरा दिन गुजारते. उनके रिश्ते खराब हो गए, उनका पाचन बिगड़ गया और उनकी चिंताएं बढ़ती गईं.
यह सब इस साल की शुरुआत में तब बदल गया जब मिहिर को एक प्रोडक्टिविटी पॉडकास्ट के जरिए काम के '9-9-6' घंटों के ट्रेंड के बारे में पता चला. यह चीन की कुख्यात 996 कार्य संस्कृति (सुबह 9 से रात 9 तक, सप्ताह में छह दिन) नहीं थी बल्कि यह नए जमाने की व्याख्या थी जो दुनिया भर के फ्रीलांसरों और तकनीकी जानकारों के बीच लोकप्रिय हो रही हैः सप्ताह में 6 दिन, केवल सुबह 9 से शाम 6 बजे तक काम, हर रोज 9 घंटे योजनाबद्ध तरीके से अपने पर ध्यान.
मिहिर ने इसे एक महीने तक आजमाया, अपने दिनचर्या में बदलाव किया, जागने का समय तय किया, ठीक सुबह 9 बजे से शुरुआत, काम के लिए समर्पित समय, दोपहर के भोजन के बाद थोड़ी सी टहलकदमी और शाम 6 बजे हर हाल में काम की समाप्ति. कुछ ही हफ्तों में उन्हें बेहतर नींद आने लगी, खाना बेहतर हुआ और सबसे अहम बात, वे बेहतर सोचने लगे. वे कहते हैं, "मैंने आधी रात को ग्राहकों के पीछे भागना बंद कर दिया और सीमाएं तय करना शुरू कर दीं. मेरी उत्पादकता बढ़ गई."
9-9-6 पद्धति- जिसे मिहिर की तरह सभी लोग अपने हिसाब से बताते हैं, कोई कठोर सिद्धांत नहीं है, बल्कि स्थायी उत्पादकता चाहने वाले सिंगल प्रोफेशनलों और स्टार्ट-अप कर्मचारियों के लिए एक संतुलित जीवन है. इसमें स्थिरता (सुबह 9 बजे से शुरुआत), फोकस के साथ काम (लंच सहित 9 घंटे) और रोजाना की अधिकतम सीमा (शाम 6 बजे काम खत्म) शामिल है. आइडिया यह है कि गंभीर कार्य करते हुए भी सेहत, शौक और सामाजिक जीवन के लिए गुंजाइश रखी जाए.
भारत में 9-9-6 का यह नया तरीका रिमोट वर्क या वर्क फ्रॉम होम करने वालों के बीच, खासकर बेंगलुरु, पुणे और हैदराबाद जैसे शहरों में धीरे-धीरे लोकप्रिय हो रहा है. कई तकनीकी दिग्गजों ने भी इस पर ध्यान दिया है. लोकप्रिय यूट्यूबर और प्रोडक्टिविटी कोच अंकुर वारिकू ने हाल में अपने वीडियो "घर से काम करते हुए सीमाएं तय करना" में इस बारे में चर्चा की है. लिंक्डइन पर भी बिना ओर-छोर की डिजिटल दुनिया में भी इसकी की तारीफ में पोस्टों की भरमार है.
हालांकि आलोचकों का कहना है कि यह चलन हर नौकरी या इंसान के लिए उपयुक्त नहीं होगा, खासकर अधिक दबाव वाली कॉर्पोरेट व्यवस्था में. लेकिन फ्रीलांसरों, कोडर्स, डिजाइनरों और सोलोप्रीन्योर्स (अकेले उद्यमी) के लिए यह ऐसा आधार मुहैया कराता है जो इस खाके को अपना सकते हैं. मिहिर के जीवन में तो यह बदलावकारी साबित हुआ है. "पहले, काम ही मेरा पूरा दिन होता था. अब, यह बस इसका एक हिस्सा भर है."
आज जबकि भारत की युवा तकनीकी वर्कफोर्स दबाव, स्क्रीन की थकान और जीवनशैली से जुड़ी परेशानियों से हांफ रही है तो 9-9-6 की दिनचर्या एक शांत और उम्मीदों भरे बदलाव की राह दिखा रही है - जहां सेहत, रिश्ते और रचनात्मक सोच भी हो सकती है और महत्त्वाकांक्षा भी.