रॉयल्टी का रहस्य : किसी लेखक को लाखों, किसी को एक रुपया नहीं

हाल में साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल को 6 महीने की 30 लाख रुपए रॉयल्टी मिली. यह आंकड़ा 70 लाख तक जाने का अनुमान है. हिंदी की इस उपलब्धि पर लेखक बिरादरी खुश हैं पर हैरान-परेशान भी

हिंदी युग्म प्रकाशन की तरफ से एक कार्यक्रम में विनोद कुमार शुक्ल को रॉयल्टी चेक सौंपा गया
हिंदी युग्म प्रकाशन से मिले रॉयल्टी चेक के साथ विनोद कुमार शुक्ल (बाएं से दूसरे)

मैं दो दिन की ज़िदगी जी सकता हूं
एक दिन मैं तुम्हारे पास रहूंगा
दूसरे दिन तुम मेरे पास रहना

विनोद कुमार शुक्ल को पढ़ने वाला पहले दिन उनका लिखा अपने पास रखता है और दूसरे दिन से उनके पास ही रह जाता है. इन दिनों वे हिंदी में सबसे ज़्यादा पढ़े जाने वाले लेखकों में हैं. बीते दिनों रायपुर के दीन दयाल उपाध्याय सभागार में हिंद युग्म प्रकाशन की ओर से उन्हें 30 लाख रुपए का रॉयल्टी चेक सौंपा गया. 

बताया गया कि पिछले 6 माह में उनके उपन्यास दीवार में एक खिड़की रहती थी  की 86,000 से अधिक प्रतियों की बिक्री हुई है. हिंदी की साहित्यिक दुनिया में ऐसे अवसरों और आंकड़ों की कल्पना तो होती है पर साकार कम ही होते हैं. ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित विनोद कुमार शुक्ल के हिस्से आई इस उपलब्धि ने हिंदी के साहित्यिक आकाश में जैसे कितने ही रंग भर दिए. 

हिंदी जगत में इसे एक ओर उत्सव की तरह मनाया गया तो वहीं इसने एक नई बहस को जन्म दिया कि 1996 में प्रकाशित इस किताब की बिक्री अचानक इतनी कैसे होने लगी? क्या हिंदी के बड़े और पुराने प्रकाशक, हिंदी के बाजार को भेद नहीं पा रहे या यह हिंद युग्म की कोई रणनीति है? 

अभी तो बस शुरुआत है!

लगभग एक दशक पुराने हिन्द युग्म प्रकाशन के संस्थापक शैलेश भारतवासी के अनुसार दीवार में एक खिड़की रहती थी  के अधिकार जब उनके पास आए तब मार्केटिंग के स्तर पर कुछ ही प्रयासों से वह दिसंबर 2024 तक एमेज़ॉन रैंकिंग में शीर्ष 30 में बनी रही. लेकिन विनोद कुमार शुक्ल को ज्ञानपीठ पुरस्कार दिए जाने की घोषणा के बाद इसकी बिक्री में ज़बरदस्त उछाल आया. तबसे यह लगातार बेस्टसेलर सूची में नंबर एक पर बनी हुई है. 

उपन्यास के कथानक और विनोद कुमार शुक्ल की लेखनी के जादू को इसका श्रेय देते हुए शैलेश कहते हैं, ''अभी सामान्य दिनों में रोज़ 500 प्रतियां बिकती हैं, जबकि कुछ महीनों में यह आंकड़ा 2,000 तक भी पहुंचा है. मेरा अनुमान है कि दिसंबर से मार्च तक पुस्तक मेलों के मौसम में यह आंकड़ा 2 लाख प्रतियों तक पहुंच सकता है. इससे शुक्ल जी की रॉयल्टी 60-70 लाख रुपए तक पहुंचने की संभावना है.''

यह पूछने पर कि सर्वाधिक किताबें किस राज्य में और किस माध्यम से ख़रीदी जाती हैं, शैलेश एमेज़ॉन का डेटा बताते हैं, ''सर्वाधिक बिक्री दिल्ली-एनसीआर में हुई है. हालांकि यह केवल ऑनलाइन आंकड़ा है. ऑफ़लाइन पुस्तकें सेलर के माध्यम से भी बेची जाती हैं और सेलर बल्क में लेकर उन्हें कहां बेच रहा है, इसका हिसाब वही दे सकता है.'' 

शैलेश के अनुसार दीवार में एक खिड़की रहती थी  के एमेज़ॉन लैंडिंग पेज को 1 जनवरी से 23 सितंबर 2025 तक 10 लाख से अधिक बार देखा गया है, जिसमें से 7 लाख से अधिक यूनिक विजिटर हैं. शैलेश मानते हैं कि विनोद कुमार शुक्ल की अन्य किताबें, ख़ासकर कविता संग्रह, इतनी नहीं बिकतीं. फिर भी सालाना 5-6 हज़ार प्रतियां निकल जाती हैं. 

जो बोल रहे हैं पर चुप हैं

लेखकों की शिकायत रही है कि प्रकाशक रॉयल्टी के मुद्दे पर साफ़ बात नहीं करते. अगर वे आंकड़े सार्वजनिक करें तो तस्वीर साफ़ हो सकती है. हालांकि विनोद कुमार शुक्ल के पुराने और हिंदी के दो बड़े प्रकाशकों का कुछ और मानना है. राजकमल प्रकाशन समूह के अध्यक्ष अशोक माहेश्वरी ने सर्वाधिक रॉयल्टी और बिक्री के आंकड़ों पर कुछ भी सीधे कहने से इनकार कर दिया. उन्होंने जवाब में हिंद युग्म की तारीफ़ करते हुए हिंदी की इस उपलब्धि को सेलिब्रेट करने की बात कही. हालांकि नाम न छापने की शर्त पर राजकमल में कार्यरत एक शख्स ने बताया कि विनोद जी की 6 माह की रॉयल्टी और राजकमल की ओर से दी जाने वाली सर्वाधिक रॉयल्टी के बीच का अंतर काफ़ी ज़्यादा है.

वहीं वाणी प्रकाशन समूह के अध्यक्ष अरुण माहेश्वरी ने बिक्री के आंकड़ों को बिल्कुल विश्वसनीय बताते हुए अभी के समय को इस पुस्तक का समय कहा. उन्होंने बताया कि वाणी की सर्वाधिक बिक्री वाली पुस्तकों और लेखकों में धर्मवीर भारती का गुनाहों का देवता, नरेंद्र कोहली, कुमार विश्वास, उदय प्रकाश आदि शामिल हैं. हालांकि प्रतियों और रॉयल्टी के आंकड़े बताने पर उन्होंने कहा, ''हम रॉयल्टी को प्रदर्शन की चीज नहीं मानते, हमारे प्रकाशन से अनेक वर्षों से अनेक लेखकों को सम्मानित रॉयल्टी दी जाती रही है.'' 

प्रदर्शन का यह सवाल जब शैलेश से पूछा गया तो उन्होंने खुद भी इसे अच्छा नहीं माना, ''जानता हूं यह सही नहीं है लेकिन हिंदी समाज को यह भरोसा दिलाना ज़रूरी था कि हिंदी में किताबें बिक रही हैं, बिकती हैं.'' 

पहली बार नहीं है ऐसा

मराठी, बांग्ला, तमिल भाषाओं में लाख प्रतियों की बिक्री कई बार देखी गई लेकिन हिंदी में इस तरह की स्थिति क्या पहली बार है? अनबाउंड स्क्रिप्ट प्रकाशन के संस्थापक अलिंद माहेश्वरी कहते हैं कि शुक्ल जी की रचनात्मक आयु लगभग पचास बरस होगी. बड़े लेखक की प्रतियां बिकने पर आश्चर्य नहीं होना चाहिए. वे कहते हैं, ''पहले भी कई किताबों के संस्करण लाखों प्रतियों के होते थे, तब प्रचार-प्रसार भी इतना तेज़ नहीं था. गुलशन नंदा के ही उपन्यास झील के उस पार  का पहला संस्करण 5 लाख प्रतियों का था.'' 

उन्होंने बताया कि उनके प्रकाशन से छपी प्रोफ़ेसर की डायरी  प्री-ऑर्डर के दस दिनों के भीतर 20,000 प्रतियां ऑर्डर हुईं और अब तक 50,000 से अधिक बिक चुकी है. वे मार्च महीने तक इसके लेखक डॉ. लक्ष्मण यादव को 12,50,000 रुपए की रॉयल्टी दे चुके हैं. इसी तरह कर दिखाओ कुछ ऐसा  और राष्ट्रनिर्माण में आदिवासी  जैसी नई किताबों की भी 10 से 12 हज़ार प्रतियां बिकी हैं. 

वहीं प्रभात प्रकाशन के निदेशक पीयूष कुमार दावा करते हैं कि उनके यहां प्रति मिनट सात पुस्तकों की सेल होती है. बीते दो वर्षों में उनके यहां से अक्षत गुप्ता की पुस्तक द हिडन हिंदू  के तीन खंडों की कुल 2,50,000 से अधिक प्रतियों की बिक्री हुई, जिसके लिए लेखक को 75 लाख रु रॉयल्टी का भुगतान किया जा चुका है. वे कहते हैं, ''हमारे यहां से पूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम, रस्किन बॉण्ड, सुधामूर्ति, जैसे लेखकों की भी भारी संख्या में पुस्तकें बिकती हैं.''  वे इस समय को हिंदी प्रकाशन का गोल्डन टाइम बताते हैं.

लेखकों की उम्मीद और सवाल

विनोद कुमार शुक्ल को मिली रॉयल्टी पर कई लेखक खुश हैं, कई हैरान और कई अपनी किताबों के लिए परेशान. लाखों की रॉयल्टी पाने वाले लेखकों के बीच कुछ ऐसे भी हैं जो साल भर रॉयल्टी के इंतज़ार के बाद खाली हाथ रह जाते हैं.

वरिष्ठ लेखिका ममता कालिया से जब बात हुई तो उन्होंने बताया कि हिंदी के एक बड़े प्रकाशक से उनकी और रवींद्र कालिया की बीस से अधिक किताबें प्रकाशित हैं. जिस रोज़ विनोद कुमार शुक्ल को रॉयल्टी मिली, उस शाम उनकी और उनके प्रकाशक की मुलाकात हुई. जब ममता कालिया ने उनसे अपनी रॉयल्टी पूछी तो बताया गया कि इस बार उनकी रॉयल्टी ही नहीं बनी. वे कहती हैं, ''यह कैसे संभव है कि एक किताब भी न बिकी हो. मैं ठगा हुआ महसूस कर रही हूं.'' 

इसके उलट वरिष्ठ लेखक उदय प्रकाश का अनुभव कुछ बेहतर है. वे कहते हैं कि बाज़ार में आप जो बेचना चाहें बेच सकते हैं. हालांकि उन्होंने कहा कि प्रकाशक ने उन्हें कभी नहीं बताया गया कि उनकी कितनी प्रतियां बिकीं या संस्करण निकले, लेकिन उन्हें हमेशा सम्मानजनक रॉयल्टी प्रतिमाह मिलती है.

रॉयल्टी के रहस्य पर कोलकाता में रह रहीं कथाकार अलका सरावगी आश्चर्यचकित हैं. फोन पर उनकी हैरतभरी आवाज़ आती है, ''हमें जो रॉयल्टी मिलती है, उसे देखकर लगता है कि हिंदी में पाठक ही नहीं हैं लेकिन पिछले दिनों जो हुआ, वह दिखाता है कि पाठक न केवल पढ़ते हैं बल्कि खूब पढ़ते हैं.'' उन्हें हिंदी के प्रकाशकों से उम्मीद है कि वे इस अभूतपूर्व घटना से कुछ सीखेंगे.

हिंद युग्म के पास अभी अन्य बड़े प्रकाशकों के मुकाबले कम लेखक और किताबें हैं. उन्होंने पिछले बरस कुल 3,75,000 प्रतियां बेचीं. इनमें 80 फीसद पुस्तकें केवल चार-पांच लेखकों की ही रहीं. इनके अलावा अशोक पांडे की लपूझन्ना  की 10,000 से अधिक और जौन एलिया की 33,000 से अधिक प्रतियों को पाठकों का प्यार मिला है. शैलेश के अनुसार नीलोत्पल मृणाल, दिव्य प्रकाश दुबे, मानव कौल सहित कई लेखकों को वे 20 से 25 लाख रु रॉयल्टी देते हैं.

कई लेखक मानते हैं कि इन आंकड़ों से कथित बड़े प्रकाशक केवल यह कहकर पल्ला नहीं झाड़ सकते कि चार से पांच लेखकों की किताबों के अलावा बाकी लेखक क्यों नहीं बिक पा रहे? सवाल है कि उनके यहां से क्यों इतना भी नहीं बिक रहे? जो काम हिंद युग्म, अनबाउंड स्क्रिप्ट या प्रभात प्रकाशन आदि कर पा रहे हैं, बाकी दिग्गज प्रकाशकों से सीमित मात्रा में भी वह क्यों नहीं हो पा रहा, वह भी तब जब उनके पास बड़े से बड़ा नाम मौजूद है.

इस पूरी बहस के बीच साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल ने संदेश के ज़रिए कुछ वाक्य भेजे - ''मैं जोर देकर कहना चाहता हूं कि पूरे भारत के पाठकों के सहारे ही आज मैं यहां खड़ा हूं. और, 'हिन्द युग्म ' के कारण इस मुकाम पहुंच तक पाया हूं. ऐसा पहली बार लगा कि एक सहृदय और प्रकाशकीय ईमानदारी से भरे प्रकाशक के हाथों से मेरी किताबें पाठकों तक पहुंच रही हैं. किताबें पहले भी पढ़ी जाती थीं, अभी भी पढ़ी जाती हैं. अब उनका पढ़ना दिख रहा है.'' इन वाक्यों को, वाक्यों के शब्दों, अल्पविरामों को ठहरकर पढ़ने पर लेखक-पाठक-प्रकाशक के संबंधों के बारे में बहुत कुछ पढ़ा जा सकता है. 

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