2023 की वे 5 फिल्में जो ‘बॉक्स ऑफिस’ की रेस से बाहर रहीं, लेकिन जिनसे भारतीय सिनेमा समृद्ध हुआ
दर्शक और बॉक्स ऑफिस की कमाई के मामले में तंगी झेलते हिंदी सिनेमा के लिए 2023 का साल कमाई-धमाई का रहा. लेकिन शोर और हिंसा से भरी कथित 'मास एंटरटेनर' फिल्मों के साथ कुछ ऐसी फिल्में भी दिखीं जिन्होंने सिनेमाई पर्दे और दर्शक के अनुभव को रौशन किया

2023 बीतने को है. बीतते बरस के साथ शुक्रिया और शिकायतों का दिन चल रहा है. सिनेमा के लिहाज से भी ये दो पहलू बने बैठे हैं. शिकायतें कि सिनेमा के नाम पर खालिस मार-धाड़, हिंसा और महिला विरोधी किरदारों को सिनेमाई पर्दे पर थोपा गया.
लेकिन इस बीच शुक्रिया भी किया जा सकता है क्योंकि कुछ ऐसी फिल्में भी आईं जिन्होंने सिनेमा में जीवन के परत टटोले और संघर्ष को दिखाया. तो चलिए ऐसी ही पांच फिल्मों की ट्रिविया बता देते हैं जिन्होंने दर्शकों के अनुभव को गहरा किया.
थ्री ऑफ अस
अविनाश अरुण बतौर निर्देशक 'थ्री ऑफ अस' लेकर आए और छाए. जिस वक्त तथाकथित मास एंटरटेनर बिग बजट वाली शोर से भरी फिल्में रिलीज हो रही थीं उसी वक्त एक शांत और ठहरी हुई फिल्म थ्री ऑफ अस आई. ये शैलजा (शेफाली), दिपांकर (स्वानंद किरकिरे) और प्रदीप (जयदीप अहलावत) की उधेड़बुन में उलझी हुई कहानी है. डिमेंशिया से जूझती शैलजा अपने पति दीपांकर के साथ अपने बचपन वाले घर कोंकण घूमने जाती है. यहां उसे बचपन का खास दोस्त प्रदीप मिलता है, जो बैंक कर्मचारी बन चुका है. अपने जिंदगी के दूसरे पड़ाव में मिलकर शैलजा और प्रदीप पहले पड़ाव को याद करते हैं, साथ रोते हैं और मन का बोझ कम करते हैं. इस फिल्म को अब नेटफ्लिक्स पर भी देखा जा सकता है.
पोखर के दुनु पार
मिथिला की माटी से सिनेमा का जो बिगुल हाल के वर्षों में बजा है उसकी एक सुंदर और मन को शांत करने वाली धुन है 'पोखर के दुनु पार'. दरभंगा से आने वाले पार्थ सौरभ ने प्रियंका (तनया खान झा) और सुमित (अभिनव झा) की प्रेम कहानी और उनकी सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों को कोविड-19 महामारी के दौर में तलाशने की कोशिश की है. यह फिल्म रिलीज तो 2022 में हुई थी लेकिन लोग इस फिल्म तक 2023 की दूसरी छमाही में पहुंचे. ओटीटी प्लेटफॉर्म 'Mubi' पर ये फिल्म देखी जा सकती है.
मस्त में रहने का
डायरेक्टर विजय मौर्या ने इंसान के अकेलेपन और उसकी इमोशनल जरूरतों को तलाशते हुए मस्त में रहने का बुना है. 'भिड़ु' वाली छवि और वैसी ही फिल्मों में लगभग टाइपकास्ट हो चुके जैकी श्रॉफ ने 'अपने टाइप' को किनारे धर के इस फिल्म में बढ़िया काम किया है. ये फिल्म किसी लूडो के खेल में एक साथ चल रहीं चार गोटियों की तरह है. विधुर कामत (जैकी श्रॉफ), प्रकाश कौर हांडा (नीना गुप्ता), शहर का एक चोर (अभिषेक चौहान) और सड़क पर भीख मांगती एक लड़की (मोनिका पंवार) भागती-दौड़ती मुंबईया जिंदगी में अपने अकेलेपन से जूझ रहे हैं. फिल्म प्राइम वीडियो पर देखी जा सकती है.
जोरम
आदिवासी जीवन के सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक संघर्ष को मानवीय ढंग से परोसती हुई फिल्म जोरम देवाशीष मखीजा की नई गढंत है. झारखंड के एक गांव में दसरु (मनोज बाजपेयी का किरदार) रहता है जिसकी पत्नी वानो (तनिष्ठा चटर्जी) है और 2-3 महीने का बच्चा है. दसरु कभी माओवादी था. बाद में मुंबई में अपनी पत्नी के साथ मजदूरी करने लगता है. पत्नी अपनी गोद में बच्चे को बांधे रहती है. सब कुछ ठीक चल रहा होता है तभी एक दिन उसकी हत्या हो जाती है. क्यों और कैसे? इसके बाद दसरु अपनी बच्ची जोरम को बचाने के लिए कैसे संघर्ष करता है, यही इस फिल्म में दिखता है. सिनेमाघरों में रिलीज जोरम फिलहाल किसी ओटीटी प्लेटफॉर्म पर नहीं है.
अफवाह
डायरेक्टर सुधीर मिश्रा ने फेक न्यूज़ के विध्वंसक दौर में अफवाह की त्रासदी वाली दुनिया को सिनेमा की शक्ल दी. ऐड वर्ल्ड का एक बड़ा नाम रहाब अहमद (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) राजस्थान में अपने गांव लौटता है. निवी (भूमि पेडणेकर) के पिता नेता हैं, जिन्होंने किसी दूसरी पार्टी से गठबंधन किया और बदले में बेटी दे दी. निवी का पति एक युवा नेता विक्रम सिंह (सुमित व्यास) है. विक्रम राजनीति में अपने पांव पसारने के लिए दंगे फैलाने से भी परहेज नहीं करता है. उसका एक वफादार है चंदन (शारीब हाश्मी) जो उसके इशारे पर दंगे करवाता है. निवी को ये सब पसंद नहीं, वो भागने लगती है. भागते के दौरान उसका साथी बन जाता है रहाब. अब युवा नेता की पत्नी भाग गई, इस फजीहत से खुद को बचाने के लिए फैलाई जाती है अफवाह. इसके बाद क्या होता है, यही पूरी फिल्म है. नेटफ्लिक्स पर इसे देख सकते हैं.