हान कांग : संगीत की दुनिया से निकल साहित्य का नोबेल जीतने वाली पहली एशियाई महिला
कोरियाई भाषा की लेखिका हान कांग को 2024 का साहित्य का नोबेल दिए जाने की घोषणा हुई है

कोरियन भाषा की लेखिका हान कांग को साहित्य का नोबेल पुरस्कार दिए जाने की घोषणा हुई है. इस घोषणा के बाद से ही दो अच्छी बातें हुईं. एक, दुनिया के सबसे बेहतरीन लेखकों में शुमार हान कांग का नाम साहित्यिक दुनिया से निकलकर आम पाठकों के बीच पहुंचा और दूसरी बात ये कि जिस कोरियन सिनेमा के हमेशा ‘ज़मीन से जुड़े होने’ की बात कही सुनी जाती रही उस सिनेमा की ज़मीन तलाशने का काम सिनेमा प्रेमियों के बीच अब शुरू हुआ.
अब कहा जा रहा है कि जिस सामाजिक ज़मीन से हान बरसों से दुनिया भर में वाहवाही बटोरने वाली किताबें उपजाती रही हैं, उससे उपजा सिनेमा कुछ ही बरसों में ‘विश्व सिनेमा’ की आंख का तारा बनना ही था. बहरहाल, उम्र का पचासवां दशक बिता रहीं हान कांग के उपन्यास ‘द वेजेटेरियन’ को साल 2016 में प्रतिष्ठित मैन बुकर अवार्ड पहले ही मिल चुका है. हान कांग साहित्य का नोबेल पाने वालीं पहली दक्षिण कोरियाई लेखक हैं और एशिया की पहली महिला भी.
नोबेल पुरस्कार देने वाली रॉयल स्वीडिश एकेडमी ने उनके नाम की घोषणा करते हुए कहा, “ये सम्मान हान के पैनेपन से भरे काव्यात्मक गद्य के लिए है, जिसमें अतीत के ट्रॉमा से मुठभेड़ भी है और मानव जीवन की कोमलता भी हमारे सामने ज़ाहिर होती है.”
‘हान’ दक्षिण कोरियाई भाषा का एक ऐसा शब्द है जिसे इस भाषा का प्रतिनिधि शब्द भी कह सकते हैं. हान इस भाषा का एक ऐसा भाव है जिसे दक्षिण कोरिया के लोग अपनी पहचान से नत्थी करते हैं. एक ऐसा शब्द जिसके मानी खोजने के लिए आपको एक पूरी की पूरी यात्रा मुकम्मल करनी होगी. दक्षिण कोरियाई सामाजिक अवचेतन की यात्रा. जिसमें आपको बतौर हमसफ़र कभी दुःख मिलेगा, कभी क्रोध, कभी पछतावा तो कभी अनंत वेदना. और ज्यादातर एकाकीपन. जो हान कांग के साहित्य में बहुत काव्यात्मक तरीके से बरता गया है.
मज़े की बात ये रही कि जिस दिन हान कांग को नोबेल पुरस्कार मिलने की घोषणा हुई, मतलब 9 अक्टूबर, वो दिन दक्षिण कोरिया के लिए भाषा के लिहाज से साल का सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है. 9 अक्टूबर को दक्षिण कोरिया ‘हानगुल डे’ मनाता है. असल में कोरियाई भाषा की लिपि का नाम है हानगुल. इस दिन दक्षिण कोरिया ही नहीं बल्कि दुनिया भर के हर उस स्कूल और यूनिवर्सिटी में उल्लास के साथ मनाया जाता है जहां कोरियाई भाषा पढ़ाई जाती है. हानगुल डे के दिन हान कांग को नोबेल दिए जाने की घोषणा अभूतपूर्व संयोग है.
कौन हैं हान कांग और साहित्य पर क्या असर है उनका
दक्षिण कोरिया के ग्वांगजू शहर में 1970 में जन्मीं हान ने जिंदगी का सबसे ज्यादा हिस्सा अपने देश की राजधानी सोल में बिताया है. महज नौ बरस की थीं हान जब उनका परिवार सोल में आकर बस गया था. यहां स्थित योन्सी यूनिवर्सिटी में कोरियन साहित्य पढ़ने से पहले हान का मन संगीत में रमा हुआ था. चूंकि उनका परिवार पहले से ही साहित्य रचने के लिए जाना जाता रहा है तो हान ने अपने शुरूआती वर्षों में कला को संगीत के माध्यम से साधने का मन बनाया था. हान के पिता हांग-सिउंग-वुन एक प्रतिष्ठित उपन्यासकार हैं. प्रतिष्ठित, लेकिन लेखकीय खटकर्मों से बिल्कुल दूर सादगी पसंद जिंदगी बिताते हुए उन्होंने हान को हमेशा ‘अपने मन की’ करने को प्रोत्साहित किया.
नोबेल मिलने पर हान की प्रतिक्रिया तो महत्वपूर्ण है ही, लेकिन सियोल के एक छोटे से रेडियो स्टेशन से हुई बातचीत में हान के पिता ने जो प्रतिक्रिया दी, उससे हमें ये जानने समझने में आसानी होती है कि कैसे हान कांग दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार तक अनचाहे ही पहुंच गईं.
हान के 85 वर्षीय पिता कहते हैं, “इस ख़बर ने मुझे सच्चे मायनों में अवाक कर दिया. नोबेल कमिटी कई बार ऐसा कर चुकी है कि पुरस्कार ऐसे लेखक को मिला जिसके बारे में कोई भी नहीं सोच रहा हो. शायद इसीलिए मुझे उम्मीद तो थी कि बिटिया हान को कभी न कभी उसके काम के लिए चुना जाएगा लेकिन मुझे अपनी ही इस उम्मीद पर कभी कोई भरोसा नहीं रहा.”
हालांकि इस भरोसे की ज़मीन हान के पिता की इस बात में देखी जा सकती है जहां वो कहते हैं कि “हान का एक-एक काम मास्टरपीस है. उसके लिखे में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे खारिज किया जा सके.”
कैसे शुरू हुआ हान का सफ़र
बतौर लेखिका हान का करियर साल 1993 में शुरू हुआ. जब लिट्रेचर एन्ड सोसाइटी पत्रिका में उनकी पांच कविताएं छपीं. इसके दो बरस बाद साल 1995 में उनकी छोटी कहानियों की पहली किताब आई लव ऑफ़ यिउसू. इस किताब से हान का गद्यात्मक सफर शुरू होता है. रेड एंकर कहानी के लिए उन्हें एक साहित्यिक प्रतियोगिता में अवॉर्ड भी मिला था. लेकिन, उनके जिस काम से उन्हें ब्रेकथ्रू मिला वो था साल 2007 में छपा उनका उपन्यास दी वेजेटेरियन. 2016 में इस किताब को बुकर पुरस्कार से भी नवाज़ा गया था. इसके अलावा उन्होंने ह्यूमन एक्ट्स, द वाइट बुक जैसे उपन्यास भी लिखे हैं. उनकी सबसे हालिया किताब तीन बरस पहले 2021 में आई वी डू नॉट पार्ट.
हान कांग अपने लिखे में ख़ुद से मुठभेड़ करती पाई जाती हैं. 2014 में आई उनकी किताब ह्यूमन एक्ट का ये अंश देखिए,
“मैं हर दिन लड़ रही हूं, अकेले. मैं उस नरक के साथ जंग में हूं. जिससे मैं बच गई हूं. मैं अपनी खुद की मानवता के लिए ये लड़ाई लड़ रही हूं. मुझे रोज इस ख्याल से मुठभेड़ करनी होती है कि बचने का एकमात्र तरीका मृत्यु ही है."
2016 में आई उनकी किताब द वाइट बुक को दुःख का दस्तावेज कहा जाता है. इस किताब में भी हमेशा की तरह उनकी काव्यात्मक शैली हावी रही है. ये उपन्यास उस व्यक्ति को समर्पित एक शोकगीत है जो उपन्यास के मुख्य किरदार की बड़ी बहन हो सकती थी, लेकिन जन्म के कुछ घंटों बाद ही उसकी मृत्यु हो गई. सफ़ेद रंग की चीजों पर लिखे गए छोटे-छोटे नोट्स के साथ ये किताब साहित्य की दुनिया में अपने लिए बड़ी जगह बनाने में कामयाब रही. कहानी का नैरेटर ये मानता है कि अगर उसकी बहन को जीने का मौका मिल पाता, तो वो खुद पैदा नहीं होना चाहती. मृत बहन के लिए लिखी इस किताब के आखिरी शब्द थे, “उन सभी सफेद चीजों के भीतर, मैं आपकी छोड़ी गई अंतिम सांस लूंगा”
कल्पना का दस्तावेज है हान कांग का लेखन
कोरियाई भाषा में हान शब्द और इसके भाव से जुड़ी एक कहावत मशहूर है कि, “अगर कोई औरत अपने दिल में हान को संजो ले तो मई और जून की गर्मी में भी शीतलहर गिर सकती है”. महज़ एक शब्द और उसके पीछे बुनी गई संवेदना की इतनी महीन चादर हटे तो क्या होगा? एक साहित्य घटेगा, जिससे समाज की मियाद बढ़ेगी.
हान कांग ने हमेशा अपने कहन को किसी स्त्री के गिर्द रखा है. इसकी वजह भी हान के लिखने में ही मिलती है. सहमति और असहमति के बीच झूलते मौन का अंत तक टिके रहना, बिना किसी प्रतिशोध की चाहना या कुछ साबित किए जाने के जुनून से परे. यही टीस हान कांग के लेखन को ना सिर्फ उम्मीदों से इतर वितान देती है, बल्कि एक दस्तावेज भी बनाती है. कल्पना का दस्तावेज.