'बैड्स ऑफ बॉलीवुड' ऑडियंस को पसंद तो आई लेकिन एक जगह चूक गए आर्यन खान!

'बैड्स ऑफ बॉलीवुड' के लिए आर्यन खान ने जो फॉर्मूला अपनाया, उसकी सक्सेस रेट हमेशा ही अच्छी रही है

शाहरुख खान के साथ आर्यन

यहां बात आर्यन खान की डायरेक्टोरियल डेब्यू करवाने वाली वेब सीरीज ‘बैड्स ऑफ बॉलीवुड’ की होने वाली है, लेकिन शुरुआत एक ज़रूरी और मौजूं किस्से से. फिल्मी दुनिया के अफ़साने सुनाते हुए बंबई के अपने दिनों पर सआदत हसन मंटो ने कभी एक क़िस्सा लिखा था. यह उन्हीं दिनों का क़िस्सा है, जब मंटो बंबई में महीने की तन्ख्वाह पर फिल्म स्टूडियो के लिए कहानियां लिखा करते थे.

सुपरस्टार अशोक कुमार और देविका रानी की सोहबत में रहने वाले मंटो ने लिखा कि, बंबई के शुरूआती दिनों में वे एक झुग्गीनुमा इलाके की एक चाल में रहते थे. उसके हर माले (फ्लोर) पर करीब डेढ़ दर्जन कमरे थे और सिर्फ एक गुसलखाना (वॉशरूम). मंटो चाल के कोने की जिस छोटी-सी कोठरी में रहते थे उसमें दो दरवाज़े थे. एक आने-जाने के लिए सामने का दरवाज़ा था, और एक दाहिनी दीवार का हमेशा बंद रहने वाला दरवाज़ा.

ये जो दीवार के साथ लगा दरवाज़ा था, ये असल में मंटो की कोठरी और उस गुसलखाने के बीच की दीवार का दरवाज़ा था जो औरतों के नहाने के लिए था. मंटो लिखते हैं कि इस दरवाज़े में एक सुराख था जो ज़ाहिर तौर पर मंटो से पहले रहने वाले किसी किराएदार ने बनाया था. मंटो के अपने शब्दों में इस सुराख से उन्होंने महीनों तक जो नज़ारे देखे वो उनकी ज़िंदगी के सबसे हैरान करने वाले नज़ारे थे. इसी दरवाज़े और सुराख पर मंटो ने बाद में एक कहानी भी लिखी जिसका नाम है ‘कोट पतलून’. इसमें लीड कैरेक्टर नाज़िम एक फिल्म राइटर है और गुसलखाने के दरवाज़े में बने सुराख से सामने की कोठरी में रहती अपनी पड़ोसन को देखता है.

यह पढ़कर मंटो के बारे में आप कोई राय बना लें (जो पहले से ही कम बनी हुई नहीं होगी), आपको इस बात पर गौर करना चाहिए कि सुराख के पार देखते हुए मंटो किन बातों पर हैरान हुए होंगे? क्या नहाती हुई लड़कियों औरतों के जिस्म देखकर? क्योंकि सआदत हसन मंटो ने अपनी लिखाई का बड़ा हिस्सा जिन गलियों और ठिकानों के नाम किया वहां सबसे आम नज़ारे औरतों के खुले जिस्म ही हुआ करते थे. इसलिए मंटो नहाती औरतों के शरीर की बात नहीं कर रहे थे, वे उस एहसास की बात कर रहे थे जो ‘ताका-झांकी’ से मिलता है.

बिना किसी की नज़र में आए, किसी को तब देखना, जब वो खुद को बेहद अकेला मान रहा हो...अपराध, उत्कंठा और अथाह मनोरंजन से सना हुआ वह भभकता एहसास जिसके बारे में मंटो बात कर रहे थे. उस दीवार के पार देख पाना, जिस दुनिया में आपकी ताउम्र आमद नहीं हो सकती. 1960 में इसी पर एक फिल्म आई थी Peeping Tom जो बाद में कल्ट फिल्म बनी. ऐसा कल्ट कि फिर चोरीछिपे किसी को देखने के लिए Peeping Tom उपमा ही इस्तेमाल होने लगी.

बाएं, सआदत हसन मंटो कुछ लिखते हुए अपने ख़याल में डूबे...और दाएं, मंटो पर बनी फिल्म में मंटो के किरदार में अभिनेता नवाज़

यह सब जानकर हम-आप क्या करें!

अगर अब तक आर्यन खान या ‘बैड्स ऑफ बॉलीवुड’ के बारे में कुछ भी ना पढ़ते हुए भी आप इस सवाल तक पहुंच आए हैं, तो समझिए आपने जरूरी चीज समझी है. दरअसल ‘सीक्रेट’ तमाशबीनों की नज़र चुराने का सबसे परखा हुआ और कामयाब एलिमेंट है. 'रिज़र्वायर डॉग्स' से लेकर 'वंस अपॉन अ टाइम इन हॉलीवुड' तक एक से बढ़कर एक सिनेमा गढ़ चुके दिग्गज डायरेक्टर क्वेंटिन टैरंटिनो ने कभी कहा था कि सिनेमा में एंट्री लेने के दो सबसे श्योर शॉट पॉइंट हैं ‘थ्रिलर’ और ‘हॉरर’. इन दोनों रास्तों में फेल्योर की बेसलाइन ही इतनी ऊपर है कि बात हिट और फ्लॉप के खांचे से बाहर हो जाती है.

दीवार के पार झांक सकने के रोमांच की ताकत ही थी कि, शाहरुख खान ने भी इसी एलिमेंट का सहारा लेना ठीक समझा. बरसों से तमाम जानकारों और सिनेमा के मौसम विज्ञानियों की भविष्यवाणियों को धता बताते हुए आर्यन खान ने ओटीटी की एक वेब सीरीज से बतौर डायरेक्टर हमारी आपकी स्क्रीन पर दस्तक दी. सिनेमा इंडस्ट्री के भीतर चल रहे गुणा-गणित की इनसाइड स्टोरी ने दर्शकों को बांधे रखा. माया नगरी की माया ने आर्यन खान का रास्ता आसान किया.

सिनेमा इंडस्ट्री में शाहरुख को नई चीजों के लिए खुले दिल का सुपरस्टार माना जाता है. प्रयोग करने में शाहरुख ने शायद ही कभी गुरेज किया हो. नतीजे भुगते और कीमत भी चुकाई लेकिन शाहरुख और उनका प्रोडक्शन हाउस रेड चिली एंटरटेनमेंट अपने मन की करते रहे. कामयाबियां मिलीं तो ऐसी कि सारे रिकॉर्ड ध्वस्त हो गए.

आर्यन खान के मामले में ‘सेफ़ प्ले’ कर गए शाहरुख?

शाहरुख के स्टारडम की बुलंदी पूरी दुनिया जानती समझती है. और जब बात बेटे को लॉन्च करने की हो तो सिनेमा इंडस्ट्री का शायद ही कोई रिसोर्स होगा जो इस प्रोजेक्ट में हिस्सा बनने से इनकार करेगा. ‘एहसानों के लेन-देन सिस्टम’ पर चलती इस इंडस्ट्री में शाहरुख का बहुतों से बहुत हिसाब होना ही था. तो आर्यन को सिनेमाघरों में एक लकदक झालर झुमके वाली फिल्म के साथ ना उतारकर शाहरुख ने ओटीटी का रस्ता क्यों अपनाया?

दुनिया के सबसे श्योर शॉट इमोशन के साथ कई एपिसोड्स की वेब सीरीज आपको बहुत से खतरों से बचाती है. सबसे बड़ा और सबसे असरदार स्क्रीन दानव, जिसने भस्मासुर की तरह जाने कितनों को बनाया बिगाड़ा, वो है बॉक्स ऑफिस. चाहे जितने जतन कर लिए जाएं लेकिन ‘सूनर और लेटर’ बॉक्स ऑफिस के सीधे आंकड़ों को खतरा बनने से नहीं रोका जा सकता था. इसलिए एक ऐसे मैदान को चुनना जिसमें बॉक्स ऑफिस नाम की आंधी ना चलती हो, सोचा समझा सुरक्षित रास्ता था. इससे अगर निपट भी लें तो नाम के ही सही लेकिन ‘क्रीटीक्स’ को साधना बड़ी चुनौती थी. 

ओटीटी पर वेब सीरीज किसी बहुत स्पष्ट मैंडेट से बचाने का माद्दा रखती है. जिसे अपनाकर शाहरुख खान ने दुनिया को बताया कि कई बार कैल्कुलेटेड रिस्क के साथ भी बेहतर काम किया जा सकता है.

ये आर्यन ही थे जिनके लिए तीनों 'खानों' (शाहरुख, सलमान और आमिर) ने एक प्रोजेक्ट में साथ काम किया है.

आर्यन ने लिए हैं सारे रिस्क!

सेफ़ रास्ते पर चलते हुए भी आर्यन ने जितने रिस्क लिए और जिस कसावट के साथ ‘बैड्स ऑफ बॉलीवुड’ को स्क्रीन पर परोसा, उसकी तारीफ ही हुई. नेपो किड्स से लेकर इनसाइड पॉलिटिक्स तक आर्यन ने भरपूर खतरे उठाए हैं और कमोबेश यह साबित किया है कि रास्ता कोई भी होता वे बहुत संभलकर चलने से गुरेज रखते. और शायद यही वजह रही कि ‘बैड्स ऑफ बॉलीवुड’ की कामयाबी का आलम यह रहा कि शुरुआत में इस सीरीज को लोगों ने आर्यन खान के डायरेक्शन में बनी होने पर यकीन ही नहीं किया.

आर्यन खान के लिए इससे बड़ा सक्सेस मीटर शायद ही कोई हो कि लोग उनके काम को उनका मानने से ही इनकार कर दें. लेकिन इनकार करने वालों ने ही आहिस्ता-आहिस्ता यह बात मानी कि इससे पहले यह सवाल कब किसी डायरेक्टर से पूछा गया कि जिस काम का दावा वह कर रहा है वो असल में उसका है भी या नहीं. सोशल मीडिया पर भी लोगों ने स्टेप बाय स्टेप इस काम की तारीफ की. बॉबी देओल जिन्हें Gen-Z अब ‘लॉर्ड बॉबी’ कहकर बुलाने लगी है, से इतना सधा हुआ काम लेना और मनोज पाहवा, रजत बेदी, मोना सिंह सरीखे पके कलाकारों से उनका वन ऑफ दी बेस्ट काम निकाल लेना इस सीरीज की कामयाबी है.

लेकिन, जो एक बात इस सीरीज और आर्यन की स्टाइल ऑफ मेकिंग पर सवाल खड़े करती है, वह है एक सीन. इसमें उन्होंने कुछ सेकेंड के लिए ‘समीर वानखेड़े’ जैसा दिखने वाले एक किरदार का मज़ाक उड़ाया है. यह सबसे आसान काम था और आर्यन अपने पिता की तरह बड़ी लकीर खींचते हुए इससे बच सकते थे. और इसका नुक्सान आर्यन खान को समीर वानखेड़े की तरफ से लीगल नोटिस झेलकर उठाना पड़ा. जब खान परिवार को एक कामयाब प्रोजेक्ट और लॉन्च को सेलिब्रेट करना था तब वह ‘अनचाहे’ झमेलों से निबट रहे हैं. बकौल शाहरुख, “अनुभव का कोई विकल्प नहीं होता”...और खुद को साबित कर देने की खुशी के बीच शायद यही अनुभव अगले मोड़ पर उनका इंतज़ार कर रहा है.

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