वो 7 मौके जो बताते हैं कि राजनीति ही नहीं, पीएम मोदी की सुर-ताल की समझ भी आला दर्जे की है
जर्मन सिंगर कैसेंड्रा के भजन पर पीएम मोदी ने टेबल बजाकर ताल दी थी लेकिन ये पहला मौका नहीं था जब प्रधानमंत्री ने कहीं ताल छेड़ी हो. उनकी जुगलबंदी की कहानियां महाराष्ट्र से मंगोलिया तक में घटी हैं

फरवरी की 27 तारीख को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन मिनट का एक वीडियो ट्वीट किया. साथ में अंग्रेज़ी में जो कैप्शन लिखा, उसका हिंदी तजुर्मा है, “कैसेंड्रा माई स्पिटमैन का भारत के प्रति प्रेम अनुकरणीय है... उनके भविष्य के प्रयासों के लिए मेरी शुभकामनाएं.”
ट्वीट किए गए वीडियो की शुरुआत में जर्मन सिंगर कैसेंड्रा प्रधानमंत्री मोदी को 'अच्युतम केशवम्...' भजन गाकर सुना रही हैं. साथ में उनकी मां भी दिखती हैं. इस दौरान भजन की धुन के साथ पीएम मोदी अपने आगे की टेबल पर रखे कांच पर ताल देते नज़र आते हैं.
इस वीडियो की ख़ास बात ये है कि कैसेंड्रा का भजन और प्रधानमंत्री की दी हुई ताल, दोनों लय में सुनाई देते हैं. इस लयकारी पर कैसेंड्रा का हाव-भाव भी बदलता दिखता है. दरअसल प्रधानमंत्री तमिलनाडु के दौरे पर थे. पल्लडम में उनकी मुलाकात कैसेंड्रा से हुई. कैसेंड्रा भी भारत के दौरे पर आई हैं. पीएम मोदी के साथ साज़-बाज की बातों के साथ कैसेंड्रा की भारत भ्रमण के अनुभव पर भी बात हुई.
ये वीडियो जारी हुआ और हर तरफ पसर गया. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लोग इस जुगलबंदी की वाहवाही करते नहीं चूके. लेकिन यह पहला मौका नहीं था जब प्रधानमंत्री ने कहीं ताल छेड़ी हो. उनकी जुगलबंदी की कहानियां महाराष्ट्र से मंगोलिया तक में घटी हैं.
बीते बरस जनवरी में प्रधानमंत्री मोदी कर्नाटक के कलबुर्गी ज़िले में थे. उन्होंने यहां एक जनसभा को संबोधित किया. लेकिन उससे पहले मंच पर ही एक ओर रखे ढोल पर हाथ आजमाया और रस्मी तरीके से नहीं बल्कि सधे हुए हाथों से.
दो साल पहले की बात है. दिसंबर, 2022 में महाराष्ट्र के नागपुर दौरे पर भी प्रधानमंत्री का ये अंदाज़ देखने को मिला था. यहां उनके स्वागत में स्थानीय कलाकार ढोल बजा रहे थे. इतने में पीएम उनके बीच पहुंचकर एक कलाकार के साथ खुद ढोल बजाने लगते हैं. इस मौके का अपना सियासी संदेश भी था. दरअसल कुछ ही महीने पहले जून, 2022 में ही महाविकास अघाड़ी की सरकार गिरी. एकनाथ शिंदे ने शिवसेना को दो फाड़ कर दिया था. शिंदे गुट ने बीजेपी से हाथ मिलाकर सरकार बना ली थी.
महाराष्ट्र के इस दौरे से कुछ ही महीने पहले यानी अप्रैल, 2022 में केंद्रीय मंत्री सर्वानंद सोनोवाल ने अपने घर पर रोंगली बिहू कार्यक्रम का आयोजन किया था. कार्यक्रम में पीएम मोदी भी पहुंचे थे. यहां सोनोवाल ने पीएम को असम का ख़ास ढोलक भेंट किया और वहीं उन्होंने एक बार फिर अपनी ताल की समझ दिखाई.
2022 में ही जनवरी में प्रधानमंत्री मोदी मणिपुर पहुंचे थे. यहां भी उन्होंने क्षेत्रीय वाद्य यंत्रों पर हाथ आजमाया. अन्य कलाकारों के साथ उन्हीं की ताल पर पीएम ने भी साज़ साध लिया था.
17 मई, 2015 को मंगोलिया में मिनी नद्दम त्योहार मनाया जा रहा था. मंगोलिया ने अपने इस त्योहार में मुख्य अतिथि के तौर पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आमंत्रित किया था. प्रधानमंत्री पहुंचे भी. पीएम मोदी के यूट्यूब चैनल पर इस कार्यक्रम का पूरा वीडियो मौजूद है. इसमें 1 घंटे, 6 मिनट के बाद वे एक कलाकार के पास पहुंचते है जो मंगोलिया का वाद्य यंत्र योचिन बजा रहा होता है. पीएम कुछ देर उसे देखने के बाद खुद योचिन बजाने लगते हैं. ये ढोल तो नहीं था, अलग ही तरह का वाद्य यंत्र था. लेकिन बजाने का तरीका कुछ-कुछ ढोल की थाप जैसा ही था. सो, यहां भी पीएम मोदी की थाप लय में ही रही.
आज के वक़्त में सोशल मीडिया बग़ैर मीम के अधूरा है. मीम बड़े अभिनेताओं से लेकर नेताओं तक पर बनते हैं. प्रधानमंत्री मोदी पर ख़ूब मीम बनते हैं. और इस मीम जगत में प्रधानमंत्री की जापान दौरे की एक तस्वीर ख़ूब इस्तेमाल होती है. प्रधानमंत्री बनने के बाद वह सितंबर, 2014 में जापान पहुंचे थे. यहां एक आर्टिस्ट ड्रम बजा रहा था. पहले पीएम उसे ग़ौर से देखते हैं और फिर खुद स्टिक लेकर ड्रमर के साथ जुगलबंदी करने लगते हैं और वो भी एकदम दुरुस्त ताल में.
ये ह्यूमन साइकोलॉजी का ही हिस्सा है कि इंसान जब कोई गीत-संगीत सुनता है तो उसके साथ लयबद्ध हो जाता है. कई बार तो तबले या ढोलक की थाप सुनकर कोई भी व्यक्ति अपने हाथों से टेबल पर थाप देने लगते हैं. ज़ाहिर है कि टेबल पर हाथ पीटा तो जाता है लेकिन उससे निकलने वाली आवाज़ ठीक-ठीक ताल में हो तो ये ख़ास बन जाती है. प्रधानमंत्री की ये तस्वीरें और वीडियो उनकी उसी ख़ासियत के बारे में बताते हैं.
अमेरिका के एक राष्ट्रपति हुए फ्रैंकलिन डी. रुजवेल्ट. उनका एक कथन (Quote) गाहे-बगाहे सुनने को मिलता रहता है, “राजनीति में कुछ भी यूं ही नहीं होता…” और ये बात भारत की राजनीति में तो और भी पुख़्ता हो जाती है. ये बात लिखते हुए याद आता है कि राजनीति में पब्लिक कम्यूनिकेशन का रोल बहुत अहम होता है. अटल बिहारी वाजपेयी की भाषण कला की चर्चा होती है. लालू प्रसाद यादव के देहाती अंदाज़ की बातें होती हैं. क्योंकि ये वो रास्ता है जिसके जरिए नेता सीधे आम लोगों से संपर्क में आ जाता है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब ढोल या ड्रम पर हाथ आजमाते हैं और ठीक-ठीक ताल ठोकते हैं तो पब्लिक से कनेक्ट बढ़ता है. लोकप्रियता के कई पैमानों पर सबसे ऊपर मौजूद नरेंद्र मोदी की छवि जनता के बीच जिन चीज़ों से बनती है उनमें ये बातें शामिल हैं. किसी इलाके का ख़ास वाद्य यंत्र बजाना हो या फिर वहीं की इलाकाई ज़बान में बातचीत, ये सब निश्चित तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि बहस-मुबाहिसों से इतर पब्लिक के बीच ज़मीनी नेता के तौर पर पेश करती हैं.