महेंद्र कपूर : वो गायक जिसका वादा निभाने के लिए राज कपूर ने जलती सिगरेट से दाग लिया था अपना हाथ, जानें उनसे जुड़े ऐसे ही पांच मजेदार किस्से

महेंद्र कपूर का जन्म 09 जनवरी, 1934 को अमृतसर में हुआ था, जब वे एक माह के थे तभी उनका परिवार मुंबई आकर बस गया

महेंद्र कपूर और राज कपूर/ फोटो : rediff.com
महेंद्र कपूर और राज कपूर

हिंदी सिनेमा के गायकों के संदर्भ में महेंद्र कपूर संभवत: ऐसे नाम हैं, जिनके गाए गीतों को जितनी चर्चा मिली, उतना शायद उनके नाम को नहीं मिली. इस देश में शायद ही कोई ऐसा होगा, जिसने मेरे देश की धरती..., अब के बरस...जैसे देशप्रेम से लबरेज गीतों को नहीं सुना हो. आज भी हमराज फिल्म में उनके गाए नीले गगन के तले..., तुम अगर साथ देने का वादा करो... जैसे गाने लोग गुनगुना लेते हैं. बीआर चोपड़ा के महाभारत का जब जिक्र होता है तो इन्हीं की आवाज में उसका इंट्रोडक्शन गीत दिमाग में गूंजता है. महेंद्र ने अपने 6 दशक लंबे करियर में 25 हजार से भी अधिक गाने गाए.

साल 1957 में मेट्रो मर्फी ऑल इंडिया सिंगिंग कॉम्पिटिशन जीतने के बाद महेंद्र कपूर को फिल्म नवरंग में गाने का मौका मिला. गीत के बोल थे- आधा है चंद्रमा, रात आधी... वी. शांताराम की इस फिल्म में संगीत दे रहे थे- सी रामचंद्र. यह महेंद्र कपूर के फिल्मी गीत के करियर में पहली बड़ी हिट साबित हुई. लेकिन यह सब कुछ धरा का धरा रह जाता, अगर उस दिन ईश्वर (जैसा कि महेंद्र कपूर कहते थे) और आशा भोंसले ने सहायता न की होती. शायद कारवां आगे बढ़ने से पहले ही लुट चुका होता, क्या था ये किस्सा, ये तो जानेंगे ही. साथ ही इस कालजयी गायक की जिंदगी के कुछ और दिलचस्प किस्से भी, तो चलिए शुरू करते हैं.

जब महेंद्र कपूर 13 साल की उम्र में पहुंच गए रफी के घर

साल 1947 की बात है. एक फिल्म आई- जुगनू. इसमें एक गीत था- यहां बदला वफा का बेवफाई के सिवा क्या है. महेंद्र तब 13 साल के थे. उनको संगीत से लगाव था, और अपने स्कूल में गाते भी थे. इस गाने ने उनको अंदर तक प्रभावित किया. वे बेचैन हो गए कि इस गाने में पुरुष आवाज किसकी है? तब रिकॉर्ड पर सिंगर का नाम नहीं आता था. पता चला कि इसे मोहम्मद रफी ने नूरजहां के साथ गाया है. महेंद्र अब रफी साहब के घर का पता ढूंढ़ने लगे. थोड़ी बहुत मशक्कत के बाद इसका भी हल निकल आया. पता चला कि रफी साहब पास में ही भिंडी बाजार इलाके में रहते हैं. फिर क्या था, महेंद्र पहुंच गए उनके घर.

दरवाजे पर दस्तक हुई तो लुंगी और बनियान में एक सज्जन ने दरवाजा खोला. पूछा, क्या बात है? 'रफी साहब से मिलना है.' - महेंद्र ने कहा. 'मैं ही हूं मो. रफी, आओ अंदर आओ.' इसके बाद महेंद्र ने गायन में अपनी दिलचस्पी बताई. रफी साहब ने उन्हें अगले दिन पिता और भाई के साथ आने को कहा. अगले दिन महेंद्र अपने पिता और भाई के साथ रफी साहब के यहां गए. रफी साहब ने महेंद्र से उनके प्राइवेट एलबम से एक गाना सुनाने के लिए कहा. महेंद्र ने गाना सुनाया. इससे प्रभावित होकर रफी साहब ने उन्हें अपना शागिर्द बना लिया, और रिकॉर्डिंग में साथ ले जाने लगे.

मेट्रो मर्फी ऑल इंडिया सिंगिंग कॉम्पिटिशन जीतने में रफी ने की मदद

साल 1957 में मेट्रो मर्फी ऑल इंडिया सिंगिंग कॉम्पिटिशन का आयोजन हुआ था. यह नौसिखिए लोगों का कॉम्पिटिशन था, जिसमें जीतने वाले को फिल्मों में एक पूरा गाना या गीत की एक लाइन गाने का मौका मिलता. इस कॉम्पिटिशन में पांच जजों का पैनल था, जिनमें अनिल विश्वास, मदन मोहन, नौशाद, सी. रामचंद्र और वसंत देसाई जैसे संगीतकार थे. महेंद्र कपूर ने हर चरण में जीत हासिल की और फाइनल भी अपने नाम किया. लेकिन इस जीत में श्रेय किसी और का भी था.

इस पूरी प्रतियोगिता के दौरान मोहम्मद रफी ने महेंद्र कपूर को न सिर्फ गाइड किया, बल्कि उन्हें संगीत से जुड़ी बारीकियां भी सिखाई.  सिंगिंग कॉम्पीटिशन में महेंद्र ने जो गाना गाया, वो भी रफी साहब का ही लिखा था. इस गाने का नाम था- इलाही कोई तमन्ना नहीं. यह एक गैर-फिल्मी गीत था. जब भी महेंद्र को फोन पर कुछ समझ नहीं आता, रफी साहब उनके घर पहुंच जाते और उन्हें सिखाते. जाते वक्त रफी साहब के लिए लस्सी और स्वादिष्ट व्यंजन तैयार मिलते.

आधा है चंद्रमा, रात आधी... पहला ही हिट गाना बन जाता आखिरी

मेट्रो मर्फी कॉम्पिटिशन जीतने के बाद महेंद्र कपूर ने नवरंग फिल्म के लिए गाना गाया. आधा है चंद्रमा, रात आधी गाने की रिहर्सल के वक्त वे आशा जी के साथ गा रहे थे. तभी सी. रामचंद्र (फिल्म के संगीतकार) कट, कट बोलते आए. आकर उन्होंने आशा जी से मराठी में कहा, 'मुझे लगता है कि ये गाना नहीं कर सकेंगे आज..क्योंकि महेंद्र नर्वस हो गया है. इससे गाया नहीं जाता है. इसकी आवाज नहीं पहुंच रही.' आशा जी ने कहा कि नहीं, यहां तो ठीक गा रहा है. आप यहां से सुनिए.

फिर रामचंद्र जी ने पूरी ऑर्केस्ट्रा टीम के साथ वहीं गाना सुना और कहा- ये तो ठीक गा रहा है. फिर वहां क्यों नहीं आ रही आवाज? तब दरअसल, हुआ ये था कि माइक्रोफोन से जुड़ा जो केबल था, उसमें फॉल्ट आ गया था और प्लग निकल गया था. महेंद्र कपूर ने इस पर एक इंटरव्यू में बताया था कि, "अगर वो (सी. रामचंद्र) उस वक्त नहीं सुनते मुझे वहां, तो कैंसल कर देते रिकॉर्ड. फिर मेरा करिअर खत्म हो जाता. भगवान ने मेरी मदद की."

जब राजकपूर ने वादे के लिए सिगरेट से हाथ जला लिया

महेंद्र कपूर के बेटे रोहन के मुताबिक, राज कपूर और महेंद्र कपूर दोनों रूस गए हुए थे. वहां राज साहब की लोकप्रियता का तो क्या ही कहने! राज कपूर ने वहां लाखों लोगों के बीच मुकेश के कई गाने गाए, भीड़ का खुशी का ठिकाना नहीं था. इस बीच महेंद्र कपूर हारमोनियम पर राज कपूर का साथ दे रहे थे. अब गाने की बारी महेंद्र कपूर की थी. उन्होंने रूसी भाषा में अनुवाद कर गाना गाया. इस पर आलम यह हो गया कि लाखों लोगों ने खड़े होकर महेंद्र कपूर को स्टैंडिंग ओवेशन दिया. 

यह देखकर राज कपूर बड़े चकित हुए. खुश होकर उन्होंने कहा, 'सिर्फ एक कपूर ही दूसरे कपूर को मात दे सकता है.' इसके बाद जब वे दोनों वापस लौट रहे थे तो राज साहब ने कहा कि आप तो जानते ही हैं कि मेरी आवाज मुकेश हैं. लेकिन जब मेरी फिल्मों में सेकंड लीड रोल के लिए गाना गवाना होगा तो मैं आपसे गवा लूंगा. महेंद्र ने इस पर कहा- 'छोड़िए साहब, आप कहां बड़े आदमी, भारत जाते ही भूल जाएंगे.' 

राज कपूर उस समय सिगरेट फूंक रहे थे. उन्होंने फौरन सिगरेट की ठूंठ से अपना हाथ दाग लिया और निशान दिखाते हुए बोले- 'जब भी मुझे यह निशान दिखेगा, मुझे अपना वादा याद आएगा.' भारत आने के बाद राज कपूर ने अपना वादा पूरा किया. उन्होंने संगम फिल्म में राजेंद्र कुमार के किरदार पर फिल्माए गाने हर दिल जो प्यार करेगा के लिए महेंद्र कपूर से गाना गवाया. 

जब रफी के नाम पर खुद दिया ऑटोग्राफ

यह मजेदार वाक्या महेंद्र कपूर ने एक इंटरव्यू में सुनाया था. हुआ दरअसल ये था कि उस दिन महात्मा गांधी की बरसी थी. रफी साहब ने फोन करके कहा कि ऑल इंडिया रेडियो में प्रोग्राम है, चलो साथ में. दोनों गए. प्रोग्राम खत्म होने के बाद जब वे नीचे उतर रहे थें तो देखा कि कुछ लड़के-लड़कियां खड़े हैं. उन्हें ऑटोग्राफ चाहिए था. रफी साहब ने महेंद्र से पूछा- ये क्या कह रहे हैं. उस समय महेंद्र भी स्कूल में पढ़ते थे, और उन्हें भी नहीं पता था कि ऑटोग्राफ क्या होता है.

महेंद्र कपूर ने उनसे पूछा- आपलोगों को क्या चाहिए? 'हमें उनका हस्ताक्षर चाहिए'- लड़कों ने कहा. महेंद्र ने रफी से पंजाबी में कहा- त्वाडा साइन चांदेंन. रफी साहब ने कहा- 'साइन चांदेंन! तू ही लिख दे.' फिर महेंद्र कपूर ने सबको मोहम्मद रफी, मो. रफी लिख कर दे दिया. बेचारे बच्चे वो साइन लेकर चले गए. महेंद्र बताते हैं, "वे (रफी) इतने सीधे थे, उनको कुछ पता नहीं था कि मुझे लिखना चाहिए या किसको लिखना चाहिए."

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