लार : महज 20 मिनट का लाजवाब सिनेमा
मुख्य तौर पर एक मां-बेटे की कहानी कहने वाली 'लार' को जियो सिनेमा पर देखा जा सकता है और इसके लिए सब्सक्रिप्शन की भी जरूरत नहीं है

मां न चाहते हुए भी बेटे पर गुस्सा हो जाती है. मां-बेटे में खींचतान होने लगती है. बेटा अपनी पूरी ताकत से मां के कंधे पर दांत से काट लेता है. मां चीखने लगती है. और फिर थोड़ी ही देर बाद मां अपने बेटे को मनाने के लिए उसे गुदगुदाने लगती है. बेटा हंसे जा रहा है और मां भी. स्क्रीन पर ये दोनों जब हंस रहे होते हैं तब बतौर दर्शक रो देने की फीलिंग आती है.
जियो सिनेमा पर हाल ही में आए एक शॉर्ट ड्रामा 'लार' का ये सीन है. लार मुख्य तौर पर एक मां-बेटे की कहानी है जिसमें दो और कहानियां गुथी हुई हैं. एक बेटा (राज) है जो शारीरिक और मानसिक तौर पर 'आम' नहीं है. उसकी कंडीशन तो अलग हैं लेकिन ज़रूरतें आम इंसानों जैसी ही हैं. उसकी मां (छाया) है जो बेटे की इस स्थिति से परेशान तो है लेकिन वो अपने बेटे को बोझ नहीं समझती बल्कि उसकी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए हर कोशिश करती है.
राज की शादी हुई थी कीर्ति से. लेकिन राज की एक आदत है कि वो बहुत ज़ोर से दांत काटता है. इतने ज़ोर से कि बदन पर पड़ा जख्म और निशान कई दिनों तक ना छूटे. राज की इसी आदत और उसके सामान्य ना होने की वजह से कीर्ति उसे छोड़कर चली जाती है. राज उसकी ज़रूरत अपनी मां छाया को बताता है. रो-रोकर उसे लाने के लिए कहता है.
छाया जिस घर में रहती है, उसमें कई फ्लैट हैं. वहां काम करने के लिए मनीषा आती है. मनीषा की अपनी एक कहानी है. मनीषा की इस कहानी में एंट्री ही होती है एक लड़ाई के साथ. जहां वो अपनी आबरू बचाने के लिए जूझती है (ये संघर्ष शुरू हुआ उसके पति की मौत के साथ) और घर के गार्ड को हड़का रही होती है. कुछ ही देर बाद वो एक दूसरे किराएदार से अपने मेहनताने के लिए भिड़ती है.
छाया को मनीषा में अपने बेटे की ज़रूरत पूरी करने वाली महिला दिखती है. छाया मनीषा को उसी वक्त अपने घर बुलाती है. पानी देती है. फिर किचन में गिलास रखते वक्त उसे अपनी थोड़ी-सी संपत्ति के बारे में बताती है. छाया ऑफर देती है कि एक फ्लैट वो मनीषा को दे देगी बस वो उसके बेटे से शादी कर ले. मनीषा पहले हंसती है और कहती है कि "उस पागल से शादी कर लूं?" जवाब में छाया भारी-भरकम बात कह जाती है- "कौन मर्द पागल नहीं होता."
क्या मनीषा शादी के लिए मान जाती है? ये नहीं बताना ठीक होगा. शादी करने या नहीं करने का फैसला और उसके बाद घटने वाली चीज़ें कई परत समेटे हुए है. जिसे देखकर ही समझा जाना बेहतर होगा.
कलाकारी
बतौर डायरेक्टर रोमिल मोदी ने 20 मिनट के डायरेक्शन में खुद को साबित किया है. कुछ भी कम या ज़्यादा नहीं लगता. सब कुछ मीटर में है. सबसे बड़ी कामयाबी ये है कि फिल्म के हर किरदार की कहानी एक साथ चलती है और अनकहे ढंग से समझ भी आती है. स्क्रीन राइटर फहीम इरशाद की कलम से उतनी ही कहानी निकली है जितने में मैसेज ट्रांसफॉर्म हो जाए.
छाया के किरदार में छाया कदम नेचुरल लगती हैं. राज के रोल में सौरभ नैय्यर अपने थिएटर की कला उकेरते हुए दिखते हैं. संपत मंडल जो मनीषा बनी हैं, उनकी हंसी और उनके मन का संशय नपा-तुला है. कीर्ति का किरदार जिससे फिल्म खुलता है, उसे निभाया है प्रियंका वर्मा ने. कीर्ति अपने पहले ही सीन में जब अपने कंधे पर दांत के जख्म दिखाती है तब उसके चेहरे का भाव उस दर्द को बयां कर रहा होता है.
जियो सिनेमा पर 'लार' देखी जा सकती है. जिसके लिए सब्सक्रिप्शन की भी ज़रूरत नहीं है. जियो सिनेमा फिल्म फेस्ट के दौरान इसे रिलीज किया गया है. इसलिए सभी के लिए इसे स्ट्रीम किया जा रहा है. वैसे भी जब कंटेंट ऐसा हो तो फिर दूसरी चीज़ें खास मायने नहीं रखती हैं.
यहां देख सकते हैं पूरी फिल्म: https://www.jiocinema.com/movies/laar/3832624