देशों की सीमा से परे दुनिया की बात करने वाले जॉन लेनन की हत्या क्यों हुई थी?

इंग्लैंड के लिवरपूल में 1940 में पैदा हुए जॉन लेनन ने नाविक न बनकर म्यूजिक को करियर बनाने का तब सोचा जब उसने एल्विस प्रेस्ली की रिकॉर्डिंग्स सुनी. म्यूजिक पर काम करते-करते जब जॉन 16 साल का हुआ तो उसने 1956 में 'द क्वारीमेन' नाम का एक ग्रुप बनाया जो आगे चलकर दुनियाभर में 'द बीटल्स' के नाम से मशहूर हुआ

एक इवेंट के दौरान जॉन लेनन
एक इवेंट के दौरान जॉन लेनन

पिता की तरह ही नाविक बनने का ख्वाब देने वाला एक लड़का बड़ा होकर बहुत बड़ा सिंगर बनता है. उसके बैंड को लोग पूरी दुनिया में ढूंढ-ढूंढकर सुनते हैं. एक आर्टिस्ट होने के सारे गुण धारण करने वाला ये सिंगर एक वक्त इतना बड़ा हो जाता है कि अमेरिकी प्रेजिडेंट उसे देश से निकालने की कोशिश करता है. इधर ये सिंगर युद्ध को ठुकराकर शांति को एक 'चांस' देने की बात कहता है. तभी एक दिन घर के बाहर निकलते ही एक सिरफिरा उसकी हत्या कर देता है. 

जॉन लेनन. तस्वीर - रॉक एंड रोल हॉल ऑफ फेम

ये किसी फिल्म की कहानी नहीं, सच है. उस सिंगर का नाम था - जॉन लेनन. वही जॉन लेनन जिसके बैंड 'द बीटल्स' को आज भी लोग सीने से लगाकर सुनते हैं और बताते हैं कि किस तरह इस बैंड ने एक वक्त पर दुनियाभर के बिलबोर्ड चार्ट्स को अपने अधीन कर लिया था. लेकिन इतने बड़े सिंगर की हत्या आखिर हुई क्यों और कैसा था उसका जीवन? 

इंडिया में जॉन लेनन. तस्वीर - गोल्डमाइन मैगजीन

इंग्लैंड के लिवरपूल में 1940 में पैदा हुए जॉन लेनन ने नाविक न बनकर म्यूजिक को करियर बनाने का तब सोचा जब उसने एल्विस प्रेस्ली की रिकॉर्डिंग्स सुनी. म्यूजिक पर काम करते-करते जब जॉन 16 साल का हुआ तो उसने 1956 में 'द क्वारीमेन' नाम का एक ग्रुप बनाया जो आगे चलकर दुनियाभर में 'द बीटल्स' के नाम से मशहूर हुआ. इस बैंड में जॉन के अलावा पॉल मकार्टनी (जो आगे चलकर बैंड लीडर भी बना), जॉर्ज हैरिसन और रिंगो स्टार भी शामिल थे. रॉक और पॉप म्यूजिक बनाने वाला जॉन लेनन अपने म्यूजिक में लगातार नए प्रयोग करता और एक वक्त पर तो लोग सिर्फ उसके इनोवेशन को देखने-समझने के लिए उसका गाना सुनने लगे थे.

महर्षि मुकेश योगी के ऋषिकेश स्थित आश्रम में जॉन लेनन. तस्वीर - रोलिंग स्टोन

1965 में बीटल्स बैंड के जॉर्ज हैरिसन कुछ इंडियन म्यूजिशियन के सम्पर्क में आए और उन्होंने उनसे सितार बजाने के साथ ही हिन्दू धर्म के बारे में जाना समझा. उनकी रूचि इसमें बढ़ी तो उन्होंने महर्षि महेश योगी के बारे में जाना जो 'ट्रांसेंडेंटल मेडिटेशन' पर सेमिनार देने वेल्स गए थे. जॉर्ज ने इसके बारे में जॉन को बताया और दोनों की इच्छा उस सेमिनार में जाने की हुई. मगर अपने मैनेजर की मौत की वजह से जॉन वो सेमिनार पूरा नहीं सुन पाए. इसलिए उन्होंने महेश योगी के ऋषिकेश स्थित आश्रम में जाकर रहने का सोचा. 

1968 की फरवरी में जॉन लेनन अपने पूरे बैंड और पहली पत्नी के साथ ऋषिकेश आश्रम में आए और करीब 2-3 महीने यहां रहे. इस दौरान उन्होंने करीब 48 गाने लिखे और कंपोज किए. उनके आश्रम से जाने की बात पर दो बातें निकलकर आती हैं. एक धड़ा कहता है कि आश्रम में रहने के दौरान जॉन ने जितने भी गाने बनाए, उसके प्रॉफिट में महेश योगी हिस्सा चाहते थे तो वहीं दूसरे धड़े का कहना है कि पूरा बैंड आश्रम में ड्रग्स का सेवन करता था जो वहां के सिद्धांत के खिलाफ था. 

अपनी पत्नी योको ओनो के साथ जॉन लेनन. तस्वीर - एपी फोटोज

ऋषिकेश में रहने के दौरान जॉन लेनन एक गाना भारत पर भी बनाया जिसका नाम था - 'इंडिया, इंडिया!' इंडिया से लौटते ही जॉन लेनन का अपनी पत्नी सिंथिया से तलाक हो गया और उन्होंने एक जापानी आर्टिस्ट योको ओनो से शादी कर ली. इसके कुछ ही समय बाद जॉन लेनन 'द बीटल्स' बैंड की कमान अपने साथी पॉल को सौंपकर अलग हो गए. इसके लिए लोगों ने योको ओनो को जमकर भला बुरा कहा और उन्हें ही जॉन के बीटल्स से बाहर होने की वजह माना. 

एक प्रदर्शन के दौरान जॉन लेनन. तस्वीर - रोलिंग स्टोन

द्वितीय विश्वयुद्ध के समय पैदा होने वाले जॉन लेनन ने युद्ध की विभीषिका झेली थी. उनकी पॉलिटिक्स और गानों पर भी इसका खूब प्रभाव था. 'इमैजिन', 'वर्किंग क्लास हीरो', और 'गिव पीस अ चांस' जैसे उनके गाने उनकी राजनीतिक समझ को अच्छे से दर्शाते हैं. इसके अलावा वियतनाम युद्ध के दौरान भी जॉन और उनकी पत्नी योको ने युद्ध विरोधी प्रदर्शनों में जमकर हिस्सा लिया. इसी से नाराज होकर तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन को अमेरिका से वापस इंग्लैंड डिपोर्ट भी करना चाहते थे. 

जॉन लेनन के मौत के बाद अगले दिन का अखबार. तस्वीर - द गार्जियन

8 दिसंबर, 1980 को शाम 5 बजे जैसे ही जॉन और योको अपने न्यूयॉर्क स्थित अपार्टमेंट से बाहर निकले, मार्क डेविड चैपमैन नाम के एक व्यक्ति ने जॉन से उनके एल्बम डबल फैंटसी की कॉपी पर ऑटोग्राफ लिया. उसी रात अपने अपार्टमेंट लौटते वक्त जॉन लेनन पर किसी ने 4 गोलियां चलाईं जिसके बाद अस्पताल ले जाते वक्त उनकी मौत हो गई. गोली चलाने वाला व्यक्ति कोई और नहीं, वही मार्क डेविड चैपमैन था. मार्क ने बाद में बताया कि वो बीटल्स बैंड का बहुत बड़ा फैन था. उसने कहा, "मुझे ऐसा लगने लगा था कि जॉन के पास काफी पैसा आ गया है. उसकी लाइफस्टाइल काफी अच्छी हो गई है. मेरे अंदर एक जलन की भावना आ गई थी. मैंने उसकी लाइफस्टाइल को अपने जीने के तरीके से कम्पेयर किया और मुझे बहुत गुस्सा आया. मैंने उसकी हत्या कर दी और इसका सिर्फ एक ही कारण था कि वो बहुत मशहूर हो गया था."

जॉन लेनन ने फैंस ने उनकी मौत को पर्सनल लॉस बताया. एक जानदार म्यूजिकल लिगेसी के अलावा जॉन अपने पीछे 7 ग्रैमी अवार्ड्स छोड़कर गए थे.  

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