जैसिंथा कल्याण : धान के खेतों से क्रिकेट के मैदान तक, देश की पहली महिला पिच क्यूरेटर की कहानी
जैसिंथा को बेगलूरू के एम. चिन्नास्वामी स्टेडियम में होने वाले वीमेंस प्रीमियर लीग के मैचों के लिए पिच बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है

कहते हैं, कहानियां चुपचाप बनती हैं. आज से करीब 30 साल पहले (1994 में) जब जैसिंथा कल्याण बतौर रिसेप्शनिस्ट कर्नाटक स्टेट क्रिकेट एसोसिएशन (केएससीए) से जुड़ीं तो उनकी उम्र महज 16 साल थी. वे अभी-अभी हाईस्कूल से पास होकर निकली थीं.
इससे पहले कि जैसिंथा अपने कल्याण के बारे में कुछ सोचतीं कि रिसेप्शनिस्ट की नौकरी ने उनके भाग्य का दरवाजा खटखटाया. वे 'ना' न कर सकीं. लेकिन उस समय उन्हें क्या पता था कि तकदीर ने उनके लिए कुछ बड़ा सोच रखा है.
23 फरवरी को जैसिंथा देश की पहली महिला पिच क्यूरेटर बन गई हैं. उन्हें बेंगलूरू के एम. चिन्नास्वामी स्टेडियम में होने वाले वीमेंस प्रीमियर लीग (डब्ल्यूपीएल) के शुरुआती 11 मैचों में पिच बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है. हालांकि यहां तक पहुंचने से पहले जैसिंथा ने बीते 30 सालों के दौरान केएससीए के साथ अलग-अलग भूमिकाएं निभाई हैं. पहले रिसेप्शनिस्ट, फिर अकाउंटिंग, टिकटिंग विभाग और अब प्रशासनिक स्तर की भूमिका. यहां दिलचस्प बात यह है कि उन्हें क्रिकेट में केवल चौके और छक्के समझ में आते हैं.
मीडिया से बातचीत में वे कहती हैं, "मैं क्रिकेटर नहीं हूं, कभी-कभार खेल देख लिया करती हूं. मुझे सिवाय चौके और छक्कों के कभी कुछ समझ नहीं आया." तो फिर जैसिंथा पिच क्यूरेटर कैसे बनीं? उनकी इसमें दिलचस्पी कैसे पैदा हुई? यह जानने से पहले थोड़ा उनके बैकग्राउंड के बारे में जान लेते हैं. उनके गांव का नाम है- हारोबेले, जो बेंगलूरू से 80 किमी दूर कनकपुरा में स्थित है. उनके पिता एक किसान थे. बचपन में धान की खेती करते वक्त वे भी अपने पिता के कामों में हाथ बंटाया करती थीं.
जब उन्हें रिसेप्शनिस्ट की जॉब मिली, यह उनके लिए राहत की बात थी, क्योंकि इससे वे अपने कॉलेज की फीस भर सकती थीं और साथ में गांव में घरवालों को पैसे भी भेज सकती थीं. आने वाले सालों में केएससीए के लिए उनकी भूमिकाएं बदलती गईं, लेकिन कारवां लगातार आगे बढ़ रहा. यह साल 2014 की बात है जब तत्कालीन केएससीए सचिव और पूर्व भारतीय टेस्ट खिलाड़ी बृजेश पटेल ने उन्हें ग्राउंड्समैन के प्रबंधन की कुछ जिम्मेदारी सौंपी. इस काम में ढलने में उन्हें 6 महीने लग गए. लेकिन उनकी काम में रुचि को देखते हुए पटेल ने चीफ क्यूरेटर प्रशांत राव को उन्हें पिच बनाने की तमाम बारीकियां सिखाने को कहा.
एक इंटरव्यू में उस समय को याद करते हुए जैसिंथा बताती हैं, "मैं कॉलेज के छात्रों के बीच जैसे एलकेजी के छात्र की तरह थी. मुझे कुछ भी पता नहीं था. लेकिन मेरी सीखने में रुचि थी. बृजेश सर के कहने के बाद, पीएस विश्वनाथ सर और के श्रीराम सर (क्यूरेटर) दोनों के संरक्षण में सीखने लगी. उन्होंने पिच बनाने संबंधी घास, मिट्टी, पानी का रख-रखाव, नमी.. सब कुछ सिखाया. पांच साल की ट्रेनिंग और उनके साथ काम करने के बाद केएससीए ने 2018 में बीसीसीआई क्यूरेटर परीक्षा के लिए मेरा नाम भेजा, जिसे मैंने पास कर लिया."
साल 2018 से ही क्यूरेटर की परीक्षा पास करने के बाद वे केएससीए में पिच क्यूरेटिंग में श्रीराम की सहायता करती आ रही हैं. लेकिन इस साल 2023-24 का रणजी सीजन उनके लिए एक बड़ा मौका लेकर आया. उन्हें तटस्थ क्यूरेटर के तौर पर पॉंडिचेरी, गोवा और केरल इन तीन पिचों की देखरेख की जिम्मेदारी सौंपी गई. इसके बाद उन्हें डब्ल्यूपीएल के लिए बुलावा आ गया. जैसिंथा कहती हैं, "यह खुशी देने वाला लम्हा है, लेकिन मैं थोड़ा घबराई हुई भी हूं. हालांकि मेरे पास एक बेहतरीन सपोर्ट सिस्टम है जिसमें मेहनती ग्राउंड स्टाफ शामिल हैं."
जैसिंथा की इस यात्रा में उनका परिवार हमेशा उनके साथ रहा है. उनके पति कल्याण कुमार और बेटे शरत कल्याण दोनों इंफोसिस में कार्यरत हैं. वे कहती हैं, "मेरे पति केएससीए में मेरे समर्पण के बारे में जानते थे, लेकिन उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि मैं भारत की पहली महिला क्यूरेटर बनूंगी. अब वे बहुत खुश हैं. मेरे बेटे शरत को मेरी उपलब्धियों पर बहुत गर्व है. जब कोई मेरे बारे में जानना चाहता है, तो वह बस गूगल पर मेरा नाम डालता है और उन लेखों को उनसे साझा कर देता है जो मेरी इस यात्रा का बखान करते हैं."