मांसपेशियों में लगातार होने वाला दर्द क्या आर्थराइटिस का लक्षण है?

आर्थराइटिस और 'मांसपेशियों की थकान' की बीच अंतर कर पाना अमूमन काफी मुश्किल होता है और इसकी वजह से इलाज में होने वाली देरी जोड़ों को हमेशा के लिए बड़ा नुकसान पहुंचा सकती है

सांकेतिक तस्वीर

जोड़ों में दर्द एक आम शिकायत है, और कई बार इस पर कोई खास ध्यान भी नहीं देते. मरीज अक्सर घुटनों, कूल्हों या कंधों में अकड़न, दर्द या कमजोरी को “बढ़ती उम्र” या “सिर्फ मांसपेशियों की थकान” मान लेते हैं. इस पर सोचा भी नहीं जाता कि ये दिक्कतें आर्थराइटिस का शुरुआती संकेत हो सकती हैं.

आर्थराइटिस और जोड़ों के दर्द/कमजोर मांसपेशियों के बीच अंतर को ठीक से न समझ पाना डायग्नोसिस और इलाज में देरी का कारण बनता है, जिससे बीमारी और बढ़ जाती है और जोड़ों को नुकसान पहुंचता है. पुणे के मणिपाल हॉस्पिटल में हेड ऑफ डिपार्टमेंट, एडल्ट जॉइंट रिप्लेसमेंट एंड रिकंस्ट्रक्शन एंड रोबोटिक आर्थ्रोप्लास्टी (हिप ऐंड नी) डॉ. सिनुकुमार भास्करन यहां बता रहे हैं कि दोनों के बीच अंतर कैसे किया जा सकता है.
 
आर्थराइटिस क्या है?

आर्थराइटिस किसी एक तरह की खास दिक्कत नहीं बल्कि कई बीमारियों का मिला-जुला रूप है जो जोड़ों में दिक्कत और सूजन का कारण बनती है. ऑस्टियोआर्थराइटिस इसमें सबसे आम है जिसमें हड्डियों के किनारों को सहारा देने वाले कार्टिलेज धीरे-धीरे खराब होने लगता है. दूसरी तरफ, उम्र बढ़ने या खास पोषक तत्वों की कमी के साथ कम एक्सरसाइज करने से मांसपेशियों में कमजोरी आती है. हालांकि, दोनों में लक्षण एक जैसे ही हो सकते हैं, जैसे बेचैनी और चलने-फिरने में दिक्कत. लेकिन असल कारण और इलाज के तरीके काफी अलग होते हैं.

आर्थराइटिस में सूजन, सुबह उठते समय अकड़न और जोड़ों में दर्द होता है, और दर्द आमतौर पर हिलने-डुलने से बढ़ जाता है. समस्या बढ़ने पर जोड़ों का आकार बदलना या खराब होना मुमकिन है. मांसपेशियों का दर्द ज्यादा हिस्से तक फैला होता है, और आराम करने से ठीक भी हो जाता है. सूजन या आकार में बदलाव के लक्षण बहुत कम दिखते हैं. दोनों में फर्क करना जरूरी है क्योंकि इलाज न होने पर आर्थराइटिस से जोड़ों को इस कदर नुकसान पहुंच सकता है जो बाद में ठीक नहीं हो पाएगा.
 
कैसे पता करें?

कार्टिलेज और आसपास की हड्डी की हालत का पता लगाने के लिए डॉक्टर अमूमन क्लिनिकल जांच और एक्स-रे या MRI स्कैन जैसे इमेजिंग टेस्ट का तरीका अपनाते हैं. रूमोटाइड आर्थराइटिस (rheumatoid arthritis) जैसी सूजन बढ़ा देने वाली बीमारी का पता लगाने के लिए ब्लड टेस्ट किया जाता है. इलाज का तरीका यह पता लगाने के बाद तय किया जाता है कि बीमारी किस स्टेज में है.
 
इलाज के तरीके

वजन घटाने, मांसपेशियों को मजबूत करने वाली एक्सरसाइज और फिजियोथेरेपी को शुरुआती चरण में इस बीमारी पर काबू पाने के लिहाज से काफी अहम माना जाता है, क्योंकि इनसे चलने-फिरने में राहत मिलती है और दर्द भी कम होता है. इनसे न केवल आर्थराइटिस का खतरा घटता हैं बल्कि प्रभावित जोड़ों के आस-पास की मांसपेशियों को मजबूत बनाने में भी मदद मिलती है.

ऐसे पारंपरिक तरीकों से इलाज के बावजूद अगर मरीजो को परेशानी महसूस होती है तो प्रभावित जोड़ को लुब्रिकेट करने और सक्रियता बढ़ाने के लिए हाइलुरॉनिक एसिड (hyaluronic acid) या platelet-rich plasma (PRP) जैसे इंट्रा-आर्टिकुलर इंजेक्शन का इस्तेमाल किया जाता है. अगर मरीजों की हड्डी और कार्टिलेज काफी खराब हो चुके होते हैं और आर्थराइटिस की बीमारी गंभीर चरण में पहुंच जाती है तो सर्जरी ही बेहतर विकल्प है जिससे एक लंबे समय तक आराम मिलता है.

आर्थ्रोस्कोपी (arthroscopy) एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें न्यूनतम चीरफाड़ के साथ कमजोर ऊतकों को हटाकर सतहों को चिकना बना दिया जाता है. एडवांस्ड स्टेज में बीमारी के मामलों में जोड़ को पूरी तरह या आंशिक रूप से बदलने के लिए सर्जरी जरूरी होती है. इम्प्लांट टेक्नोलॉजी और computer-assisted alignment तरीकों की वजह से अब सर्जरी के बाद ठीक होने में ज्यादा समय भी नहीं लगता. यही नहीं, घुटने और कूल्हे का रिप्लेसमेंट अब पहले के मुकाबले ज्यादा सुरक्षित और सटीक होता है.

बहरहाल, इस बीमारी का सही तरीके से मुकाबला करने के लिए सबसे पहले तो पता लगाना जरूरी है कि दर्द की वजह आर्थराइटिस है या फिर कमजोर मांसपेशियां. लगातार लक्षणों को नजरअंदाज करने और इलाज में देरी से जोड़ों को हमेशा के लिए गंभीर नुकसान पहुंचने का खतरा रहता है.

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