लॉर्ड्स टेस्ट : भारतीय टीम असल में कहां चूकी?

इंग्लैंड के खिलाफ हार असल में 22 रन कम बनने के कारण नहीं हुई बल्कि टीम इंडिया को 63 अतिरिक्त रन देना भारी पड़ गया

रविंद्र जाडेजा ने मैच बचाने की भरपूर कोशिश की लेकिन तब तक देर हो चुकी थी

स्कोर बोर्ड देखें तो भारत लॉर्ड्स टेस्ट में 22 रनों से हारा, जो हर लिहाज से एक मामूली अंतर ही है. लेकिन टीम इंडिया के बनाए कुल रनों और गंवाए गए विकेटों के बीच इस अंतर पर थोड़ा गौर करें तो कुछ और ही सच्चाई सामने आती है- और, वो यह कि भारत ने मैच में 63 अतिरिक्त रन दिए. यह कोई मामूली बात नहीं बल्कि एक गंभीर किस्म की चूक है. अनुशासन की यही कमी इस कड़े मुकाबले में घातक साबित हुई.

तुलनात्मक रूप से इंग्लैंड ने सिर्फ 30 अतिरिक्त रन दिए. दूसरी पारी में बॉलिंग के दौरान जब माहौल बदला और मैच का रुख पलटने लगा तो भारत ने जो 192 रन का टीम स्कोर दिया, उसमें 32 अतिरिक्त रन शामिल थे. यह कुल स्कोर का 16.67 फीसद था. इनमें 25 रन बाई के तौर पर जुड़े जो स्कोर बोर्ड में जो रूट के बनाए 40 रन और बेन स्टोक्स के 33 रन के बाद तीसरा सबसे बड़ा योगदान था. ये आंकड़े टीम इंडिया में समन्वय, तत्परता और जवाबदेही की सामूहिक चूक को उजागर करते हैं.

लक्ष्य हासिल करने में फिसड्डी

लॉर्ड्स में दूसरी पारी में 193 रन बनाने का लक्ष्य सामान्य परिस्थितियों में कोई बहुत मुश्किल काम नहीं था, और इसे आसानी से हासिल किया जा सकता था. लेकिन भारत ऐसी रणनीति के साथ मैदान में उतरा मानो उसे रनों के किसी पहाड़ का पीछा करना है. खिलाड़ी पूरी तरह दबाव में नजर आए. उनके शॉट में किसी भी तरह की आक्रामकता के बजाय पहले ही हार मानने जैसा भाव साफ दिख रहा था. जोफ्रा आर्चर और स्टोक्स ने अपनी कलात्मक और तूफानी बल्लेबाजी के साथ गेंदों को स्विंग और बाउंस कराया. दोनों के खाते में तीन-तीन विकेट आए.

रवींद्र जडेजा जरूर क्रीज पर कुछ जमते दिखे और विकेट लगातार गिरने की परवाह न करते हुए उन्होंने गेंदबाजों की थोड़ी धुनाई की कोशिश भी की. लेकिन बहुत देर हो चुकी थी. के.एल. राहुल के बनाए 39 रन ही एकमात्र शानदार पारी रही लेकिन तब तक मैच हाथ से ही निकल चुका था. यही मैच को बचाने की एकमात्र कोशिश भी थी. ऐसा लग रहा था कि भारत बस बेबस होकर मैच हाथ से फिसलते देखता रहा.

पंत के आउट होने से बिखरी पारी

नाटक में अचानक बदलने वाले मूड की तरह क्रिकेट में बाजी कब पलट जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता. इसका पता थोड़ी देर बाद ही चलता है.

भारत में ऐसे अदृश्य बदलाव का पल पहली पारी में तीसरे दिन लंच से ठीक पहले आया, जब ऋषभ पंत 74 रन के स्कोर पर एकदम शानदार ढंग से बल्लेबाजी कर रहे थे. भारत का स्कोर 4 विकेट पर 248 रन था, और इंग्लैंड कमज़ोर स्थिति में नजर आ रहा था. और तभी, अचानक सब कुछ गड़बड़ाने लगा.

पंत रन बनाने दौड़े, राहुल हिचकिचाए और स्टंप धराशायी. यह सिर्फ एक विकेट का नुकसान नहीं था बल्कि मनोबल टूटने जैसा था. पंत इस पूरी सीरीज में भारत के सबसे प्रभावशाली बल्लेबाज रहे थे, उस सुबह उनकी पारी तार्किक ढंग से जोखिम उठाने की जैसी थी. रन-आउट का कोई तुक नहीं था, इससे कोई फायदा नहीं होने वाला था, यह बस बेसब्री का नतीजा था.

भारत ने अपने बचे छह विकेटों के लिए सिर्फ 139 रन जोड़े और 387 रन पर टीम ऑलआउट हो गई. स्कोर इंग्लैंड के पहली पारी के बराबर ही था. जबकि 40 से 60 रनों की बढ़त होनी चाहिए थी. इसके बजाय, बराबरी वाले स्कोर के साथ मैदान में आने पर मानसिक रूप से बैकफुट पर होना स्वाभाविक ही था.

भारी पड़ गया एक कैच छोड़ना

इंग्लैंड की पहली पारी में एक समय ऐसा भी था, जब भारत का पलड़ा भारी था. आसमान में थोड़ा धुंधलका छाया था, मोहम्मद सिराज ने गेंद को पूरी ताकत के साथ पांच रन बनाकर क्रीज पर मौजूद जेमी स्मिथ की तरफ फेंका. बल्ले के बाहरी किनारे से टकराते हुए गेंद ने उछाल लिया और दूसरी स्लिप में कुछ ऊंचाई पर पहुंच गई, जहां राहुल खड़े थे. लेकिन गेंद उनके हाथों से टकराने के बाद बाहर गिर गई. इसके साथ ही एक अच्छा मौका हाथ से निकल गया. सिराज ने अपना माथा पीट लिया, और शायद भारत ने भी.

स्मिथ ने 56 गेंदों में 51 रन बनाए, और यह पारी इंग्लैंड को खेल में वापस लाने में अहम साबित हुई. इसने विकेट ढहना रोका, लय बदली और मेजबान टीम के मनोबल को फिर से बढ़ा दिया. जब मार्जिन कम होता है तो चूक की गुंजाइश भी बढ़ जाती है.

हीरो से जीरो बने आकाशदीप

पिछले टेस्ट में आकाश दीप अप्रत्याशित ढंग से नायक बनकर उभरे थे- गेंद को स्विंग और सीम कराने के अपने कौशल को दिखाते हुए उन्होंने पूरे जोश के साथ शीर्ष क्रम को ध्वस्त किया था. सीम और सटीक गेंदबाजी के अनुकूल लॉर्ड्स के मैदान में उनके लिए अपनी गति बनाए रखने का पूरा मौका था.

लेकिन उनका प्रदर्शन अपेक्षा अनुरूप नहीं रहा- दो पारियों में 122 रन देकर एक विकेट लिया. बात सिर्फ यह नहीं है कि वह विकेट लेने से चूके बल्कि दबाव बनाने में भी नाकाम रहे. उनकी लाइन लेंथ एकदम भटक गई, और इंग्लैंड के बल्लेबाज़ों- खासकर मध्य क्रम ने उन्हें जमकर धुना. रन बनाने से रोकने में उनकी नाकामी ने इंग्लैंड को हर महत्वपूर्ण विकेट के बाद अपनी लय बदलने का मौका दिया.

इसके विपरीत, जसप्रीत बुमराह का प्रदर्शन उनके सर्वश्रेष्ठ मैचों में से एक था. सात विकेट चटकाए, और बहुत ही सटीक अंदाज में बल्लेबाजों को मैदान से चलता किया. लेकिन जंग की तरह गेंदबाजी में भी पूरी तरह घेरेबंदी जरूरी होती है. बुमराह ने जहां आक्रामक खेल का प्रदर्शन कर रहे थे, वहीं आकाशदीप बल्लेबाजों को घेरने में नाकाम साबित हुए.

नाइटवॉचमैन की रणनीति उल्टी पड़ी

दूसरी पारी में भारत की रणनीति और भी नाकाम साबित हुई. आकाशदीप को बतौर नाइटवॉचमैन भेजने के पीछे उम्मीद यह थी कि वे अपने मध्यक्रम को इंग्लैंड के तेज गेंदबाजों के आखिरी दौर के आक्रमण से बचा लेंगे. लेकिन आकाशदीप जल्दी आउट हो गए, जिससे टीम कमजोर स्थिति में आ गई.

सीरीज में पहले काफी उम्मीदें जगाने वाले यशस्वी जायसवाल ने 13 और 0 रन बनाए, और स्ट्रोक-प्ले के कारण आउट हो गए. करुण नायर को एक और मौका मिला लेकिन वे भी नाकाम ही साबित हुए. भारत के शीर्ष तीन बल्लेबाज ज्यादा रन नहीं बना पाए और मध्यक्रम भी अपेक्षित प्रदर्शन नहीं कर सका. जैसे-जैसे विकेट गिरे वैसे-वैसे टीम पर दबाव हावी होता गया.

आखिरी दौर आते-आते भारत लक्ष्य से 40 रन दूर रह गया था. जडेजा ने कुछ जानदार शॉट लगाए. दर्शक दिल थामकर इंतजार करने लगे कि शायद कुछ अप्रत्याशित हो सकता है.

लेकिन दबाव बढ़ा और एक झटके में विकेट गिरने लगे. उस समय एक ही बात दिमाग में गूंजी कि असामान्य रूप से अतिरिक्त रन देने का तो यही नतीजा होना था. एक टेस्ट मैच में 63 अतिरिक्त रन और एक पारी में 25 बाई रन, यह सिर्फ आंकड़े के लिहाज से ही अजीब बात नहीं है बल्कि बुनियादी स्तर पर चूक होने का संकेत भी है. इससे पता चलता है कि टीम ने सिर्फ बल्ले या गेंद से ही बल्कि बुनियादी बातों पर ध्यान न देने की वजह से भी मैदान पर मात खाई.

यूं ही नहीं मिली हार

ज्यादातर खेलों के उलट टेस्ट मैच का नतीजा कई जटिलताएं समेटे होता है. कोई अच्छा खेलकर भी हार सकता है. कोई सत्रों में दबदबा बनाकर भी असफल साबित हो सकता है. लेकिन अगर कोई टीम अतिरिक्त 63 रन देकर 22 रनों से हारती है, पांच रन पर एक बल्लेबाज का कैच छोड़ देती है और जो बाद में 51 रन बनाता है, और अपने उप-कप्तान को रन आउट होने देती है, तो इसे सामान्य हार नहीं माना जा सकता. इस पर गहन मंथन होना चाहिए.

लॉर्ड्स में हार सिर्फ इसलिए नहीं हुई कि इंग्लैंड के खिलाड़ी हम पर भारी पड़े. बल्कि यह निर्णायक क्षमता के अभाव और गंभीर चूकों का नतीजा थी. और, फिर ऐसा स्कोरकार्ड तो यही कहता है कि मात खाने से बहुत आसानी से बचा जा सकता था.

Read more!