'शुगरकेन मैन ऑफ इंडिया' डॉ. बक्शी राम यादव गन्ने की खेती का विरोध गलत क्यों मानते हैं?
जाने-माने कृषि वैज्ञानिक और 'शुगरकेन मैन ऑफ इंडिया' के रूप में पहचाने जाने वाले डॉ. बक्शी राम यादव ने प्लांट ब्रीडिंग, गन्ने की उन्नत किस्मों और अपनी जिंदगी के बारे में इंडिया टुडे हिंदी के साथ कई दिलचस्प बातें साझा कीं

वो 50 के दशक के कुछ आखिरी साल थे. दिल्ली के ग्रामीण क्षेत्र पंडवला खुर्द में एक किसान परिवार के यहां बच्चे जन्म तो ले रहे थे, लेकिन कोई 6 महीने तो कोई साल भर सांस लेने के बाद शिशु अवस्था में ही दम तोड़ दे रहा थे. 1 जुलाई, 1959 को जब डॉ. बक्शी राम यादव पैदा हुए, तो गांव के पंडित से उन्हें बचाने के लिए उपाय पूछा गया.
पंडित ने सलाह दी कि इसे घर से बाहर भेजना होगा. ढाई साल के बक्शी को उनके बुआ के घर भेजा गया, जहां उन्होंने मैट्रिक तक की पढ़ाई वहीं रहकर की. बक्शी उस अकाल मौत के चक्र से साफ बचकर निकल चुके थे, और अब किस्मत उनके लिए ऐसी पिच तैयार कर रही थी कि जहां से वे देश भर में प्रसिद्धि हासिल करने वाले थे.
मेडिकल साइंस से कन्नी काटने के बाद डॉ. बक्शी राम यादव कृषि विज्ञान से जुड़े. उन्होंने प्लांट ब्रीडिंग को विषय के तौर पर अपनाया, और क्या खूब अपनाया. एमएससी में चन्ने पर थीसिस लिखने वाले और बाद में गेहूं की किस्म पर काम करने वाले बक्शी राम यादव को शुगरकेन डिपार्टमेंट में काम सौंपा गया. यह वो डिपार्टमेंट था जिसके बारे में डॉ. यादव को कुछ भी पता नहीं था.
लेकिन उन्होंने इसे चुनौती के रूप में लिया और गन्ने की एक ऐसी किस्म विकसित कर डाली, जो अगले पांच-सात सालों में देश भर के 50 फीसद इलाकों पर उगने वाला था. इस किस्म का नाम है - CO 0238. खराब पैदावार के चलते बंद होती चीनी मिलें अब एक बार फिर धुआं निकालने लगी थीं, किसान गन्ने की इस किस्म को शुक्रिया कह रहे थे जिसके चलते उनके पास फिर से कुछ नकद बचने लगी थी.
सरकार ने भी डॉ. बक्शी राम यादव के इस योगदान को माना, और 2023 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया. आज देश भर में लोग डॉ. बक्शी राम यादव को 'शुगरकेन मैन ऑफ इंडिया' के नाम से जान रहे हैं.
डॉ. यादव ने इंडिया टुडे (डिजिटल) के सब-एडिटर सिकन्दर से बतौर कृषि वैज्ञानिक अपनी जिंदगी और खेती-बाड़ी से जुड़े कई मुद्दों पर बात की, साथ ही यह भी बताया कि वे देश में गन्ने की खेती को लेकर होने वाले विरोध पर क्या सोचते हैं. बातचीत के संपादित अंश:
● आप एक जाने-माने एग्रीकल्चरल साइंटिस्ट हैं. लेकिन एक ऐसा भी समय था जब आपके भाई-बहनों की बेहद अल्पायु में होती मौतों को देखते हुए गांव के एक पंडित ने सलाह दी कि इसे बुआ या बहन के पास भेज दो. तब आप ढाई साल के थे, लेकिन अब एक वैज्ञानिक के तौर पर क्या आप इसे अंधविश्वास के रूप में देखते हैं?
नहीं, इसे अंधविश्वास नहीं कह सकते. गांव के पंडित ने वह सब ज्योतिष के आधार पर कहा था, और मेरे खयाल से उनकी भविष्यवाणी सही भी थी. मैं ज्योतिष को भी साइंस मानता हूं.
● आपने M.Sc में चने पर थीसिस लिखी. चने से जुड़ी कोई दिलचस्प बात बताएं जो आम लोगों को कम मालूम है?
चने को चिकपी भी बोलते हैं. मालूम है ऐसा क्यों? क्योंकि चने का जो शेप होता है, वो चिकन (मुर्गे/मुर्गी) के हार्ट जैसा होता है.
● एक एग्रो साइंटिस्ट और एक ISRO या स्पेस साइंटिस्ट के रुतबे को इस देश में किस प्रकार देखा जाता है?
तुलना करने के लिए ये बहुत एक्सट्रीम फील्ड हो जाएगा. दोनों फील्ड की अपनी कार्यप्रणाली है, जो एक-दूसरे से बहुत अलग है. तुलना करने से बढ़िया है कि सब अपने फील्ड में बढ़िया काम करें.
लेकिन एक बात कहना चाहूंगा कि ये सब मीडिया का खेल है. जैसे फिल्म की हीरो-हीरोइन के मुकाबले इसरो के साइंटिस्ट को कौन पूछता है! किसको कैसे दिखाना है, कितना दिखाना है ये तो मीडिया का ही खेल है. लोग अगर अपने फील्ड के अंदर अच्छा कर रहे हैं तो उनकी रिक्गनिशन (पहचान) होनी चाहिए.
● CO-0238, गन्ने की एक किस्म जिसे आपने विकसित किया, और जो देश भर के 50 फीसद इलाकों में उपजता है, एक कृषि वैज्ञानिक के रूप में आपको कैसा महसूस होता है?
मैं अपने काम से संतुष्ट हूं. मैंने अपनी जिंदगी के भीतर जो भी एफर्ट किए, उसके नतीजे मुझे हासिल हुए. मैं ईश्वर का शुक्रगुजार हूं कि उन्होंने मेरी मेहनत का फल मुझे दिया.
● आपने ब्रीडिंग के लिए गन्ने को ही क्यों चुना? खासकर आपने इसकी 24 किस्में विकसित की हैं.
मेरा सबजेक्ट क्रॉप (फसल) नहीं है, बल्कि प्लांट ब्रीडिंग है. और यह हर क्रॉप पर लागू होता है. हरियाणा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में दो साल मैंने गेहूं पर काम किया, और इसकी एक वेरायटी W416 विकसित करने में कंट्रीब्यूटर के तौर पर मेरा नाम है. इसके बाद मैं ICAR में आया, जहां मेरी पोस्टिंग कोयंबटूर में शुगरकेन डिपार्टमेंट में हुई.
मुझे तब शुगरकेन के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. लेकिन कोयंबटूर में एक लाइब्रेरी (1912 में स्थापित) थी, वहां मैंने 6 महीनों के भीतर गन्ने पर उपलब्ध जितने भी रिसर्च जर्नल, कंटेंट, किताबें और रिपोर्ट्स मौजूद थीं, सब पढ़ डाली. वहां से बेस मजबूत हुआ, और आगे मैंने प्लांट ब्रीडिंग के जरिए गन्ने की उन्नत किस्म विकसित की.
● सामान्य तौर पर दो तरह के गन्ने दिखते हैं: एक पतला और एक मोटा. क्या अंतर होता है इनमें?
पतला गन्ना हार्ड होता है, जबकि मोटा गन्ना सॉफ्ट होता है. आप जिस मोटे गन्ने की बात कर रहे हैं वो CO-0238 ही है जो उत्तरी भारत में खूब पैदा होता है. लोगों ने किताबों में लिख दिया कि नॉर्थ इंडिया में पतला गन्ना ही चलेगा. मैंने जब इसकी एनालिसिस की, तो पाया कि जब तक गन्ने की थिकनेस (मोटाई) नहीं बढ़ेगी, फाइबर का परसेंटेज कम नहीं होगा.
● इसे थोड़ा और विस्तार से समझाइए?
गन्ने में मुख्य रूप से तीन चीजें होती हैं. एक - फाइबर, जिसे खोई भी कहते हैं. दूसरा - पानी, और तीसरा चीनी. अगर खोई ज्यादा है तो जूस कम होगा. जूस कम होगा तो शुगर रिकवरी भी कम होगी. जैसे ही गन्ने में थिकनेस बढ़ती है, फाइबर (खोई) कम हो जाता है. क्योंकि छिलके में फाइबर ज्यादा होता है, अंदर कम होता है.
पतले गन्ने में फाइबर का वॉल्यूम बहुत हाई हो जाता है, और इसलिए शुगर रिकवरी कम होती है. जिसमें जूस ज्यादा होता है, वहां फाइबर कम होता है जैसे मोटे गन्ने में, क्योंकि इसमें छिलका पतला होता है.
● CO-0238 में भी अब रोग लगने के मामले सामने आने लगे हैं, क्या इस पर आगे रिसर्च चल रहा है?
हां, रिसर्च तो कभी बंद नहीं होती. 2010 से लेकर 2023 तक गन्ने की 54 किस्में रिलीज हुई हैं. लेकिन इन 54 किस्मों में से कोई भी CO-0238 जितना पैदावार नहीं दे रहा है. यह एक बड़ा इशू है. कह सकते हैं अभी भी हमारी रिसर्च बेहतरी तलाश रही है.
● कई राज्यों में गन्ना पॉलिटिकल इशू भी है. कहा जाता है कि यह सबसे ज्यादा पानी सोखता है. महाराष्ट्र जैसे पानी की मार से त्रस्त राज्यों में तो यह राजनीति का मुद्दा बन ही जाता है?
यह एक मिसकम्पैरिजन है. गन्ने की फसल 12 महीनों में तैयार होती है. गेहूं, धान जैसी फसलें तीन या चार या पांच महीनों में तैयार हो जाती हैं. 12 महीने वाली फसलों की तुलना 12 महीने वाली फसलों के साथ करना चाहिए. जैसे केला, एक साल में तैयार होता है. केले की फसल में तो शुगरकेन से भी ज्यादा पानी की जरूरत होती है. और गेहूं और धान तो 12 महीनों में करीब दो बार उगाए जा सकते हैं, दोनों बार वाटर रिक्वायरमेंट जोड़ दें तो ये भी गन्ने से ज्यादा हो जाएगी.