शारदा सिन्हा : छठ गीतों से इतर भी है 'बिहार कोकिला' का सुर साम्राज्य!
पांच नवंबर की देर रात शारदा सिन्हा गुजर गईं. संयोग से यह मौका छठ पर्व का है और लोग उन्हें उनके छठ के गीतों के लिए याद कर रहे हैं. मगर 50 साल के गायन के करियर में शारदा सिन्हा ने सिर्फ छठ या विवाह के गीत नहीं गाये. उन्होंने गजलें भी गाईं, प्रेम और विरह के गीत भी गाये और उनमें विद्रोह के गीत भी थे

पांच नवंबर की देर रात शारदा सिन्हा के निधन की आधिकारिक सूचना मिली. रात देर तक नींद नहीं आई. सुबह से ही उनके गीत ढूंढ़-ढूंढ़कर सुनता रहा. इसी तलाश में एक अलबम मिला 'किसी की याद'. यह अलबम 1985 में रिलीज हुआ था और यह न छठ गीतों का अलबम था, न विवाह गीतों का और न ही भक्ति गीतों का, जिनके लिए शारदा सिन्हा सबसे अधिक चर्चित हैं.
यह अलबम ग़ज़लों का था. और इन ग़ज़लों में शारदा सिन्हा अलग ही अंदाज में गाती नजर आ रही थीं. इस अलबम में उन्होंने नये ग़ज़लकारों को तो गाया ही, फिराक गोरखपुरी और गोपाल सिंह नेपाली जैसे स्थापित ग़ज़लकारों को भी गाया. मगर इस अलबम की सबसे खास ग़ज़ल है, 'तेरी दुनिया ऐ खुदा, जीने के काबिल नहीं, मांगू तो तुझसे क्या मांगू, तू देने के काबिल नहीं'. जिसे अपने जमाने के अजीज शायर अहमद फराज ने लिखा था.
इस ग़ज़ल को सुनकर मैं हैरत में पड़ गया. जिस शारदा सिन्हा की सबसे बड़ी पहचान ईश्वर की आराधना के गीतों से है, कभी उन्होंने अपने लिए एक ऐसी ग़ज़ल को चुना था, जिसके बोल थे, मांगू तो तुझसे क्या मांगूं, तू देने के काबिल नहीं. और उस ग़ज़ल को शारदा सिन्हा ने ऐसी रवानगी से गाया कि लगता नहीं था कि गाने वाला लोकगीतों का पारंपरिक गायक है.
हालांकि जो लोग शारदा सिन्हा को करीब से जानते रहे हैं, उन्हें इस बात को लेकर हैरत नहीं होता. शारदा सिन्हा के गीतों पर लगातार शोधपरक काम करने वाले निराला बिदेसिया कहते हैं, "उनका पढ़ा-लिखा होना इस बात के लिए गारंटी बन गया कि उन्होंने हमेशा अपने लिए अलग-अलग तरह के अच्छे गीत चुने. फिर वे गीतकार महेंदर मिसिर हो या अल्पगात ब्रजकिशोर दुबे या फिर हृदय नारायण झा."
यह बात भी बहुत कम लोग जानते हैं कि लोकगीतों के लिए जानी जाने वाली शारदा सिन्हा ने बचपन में शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली थी. और उन्हें उस पंचगछिया घराने के संगीतकारों ने संगीत सिखाया, जहां मांगैन खवास जैसे महान शास्त्रीय गायक हुए. जहां देश भर के बेहतरीन शास्त्रीय गायक जुटा करते थे, जिनमें बेगम अख्तर भी थीं और पंडित ओंकारनाथ ठाकुर भी. और यह भी कि जब शारदा सिन्हा पहली बार एचएमवी में रिकार्डिंग के लिए गईं तो संयोग से उस वक्त स्टूडियों में बेगम अख्तर मौजूद थीं, जिन्होंने कहा था, तुम्हारी आवाज काफी अच्छी है, थोड़ा अभ्यास करती रहो, बहुत आगे जाओगी.
शारदा सिन्हा के मन में यह बात बैठी रही और तभी उन्होंने ग़ज़लों का एक अलबम भी गाया जिसकी कई ग़ज़लें बेहतरीन हैं. मगर शायद लोकगायिका का ठप्पा पहले ही उनके नाम पर लग चुका था, इसलिए उनकी ये ग़ज़लें बहुत कम चर्चित हुईं. जबकि इनमें से कई ग़ज़लें काफी अच्छी हैं. खासकर किसी की याद में खुद को भुलाये बैठे हैं, कितना रंगीन नजारा है और करके गुलशन पे नजर.
ऐसा ही एक गुमनाम सा अलबम है पिरितिया जो 1987 में आया. इस अलबम में शारदा सिन्हा ने अलग-अलग तरह के कई गीत गाये, प्रेम के, प्रकृति के. एक बड़ा दिलचस्प गीत है, सैयां तोहार खातिर भइनी बदनाम... इस अलबम का सबसे अनूठा गीत जो है वह है विद्रोह का. एक मजदूर महिला के भूस्वामी से विद्रोह का. गीत के बोल हैं, हमसे न होई बोनिहरवा हो मालिक, हमसे न होई... (मालिक हमसे अब आपकी मजदूरी न हो पायेगी.)
इस गीत में एक पंक्ति तो बिल्कुल अनापेक्षित है, अपना लड़िकवा के इस्कुल भेजाइबा, हमरा लड़िकवा के भैंसिया चराइबा... (अपने लड़के को स्कूल भेजोगे और मेरे बेटे से भैंस चरवाओ, ऐसा होगा नहीं.) शारदा सिन्हा के प्रचलित गीतों में ऐसे स्वर बिल्कुल नहीं के बराबर मिलते हैं. निराला बिदेसिया कहते हैं, "ऐसे तीन-चार गीत हैं. मगर उनकी चर्चा नहीं के बराबर हुई." क्या इसका मतलब यह है कि शारदा सिन्हा ने ऐसे गीत भी गाने चाहे, मगर लोगों ने पसंद नहीं किया और वे फिर वापस अपनी सरस लोकगीतों की दुनिया में लौट आईं, यह बड़ा सवाल है.
अपने करियर की शुरुआत में शारदा सिन्हा ने हर तरह के गीत गाने की कोशिश की. अच्छे गीत चुने. उनमें से कुछ काफी पॉपुलर भी हुए. जैसे,पनिया के जहाज से पलटनियां बनी अइहो पिया, लेले अइहो हो, पिया सेनुरा बंगाल से. परदेसी पिया से फरमाइश करती गांव में छूट गयी स्त्री. एक गीत में स्त्री कहती है, पटना से बैदा बुलाई द, नजरा गइली गुईयां...(ऐ सहेली पटना से वैद्य बुला दो, न जाने किसकी नजर लग गई है.)
बलमुआ कैसे तेजब हो, छोटी ननदो...वाले गीत में नायिका कहती है पिता के घर से लाये गहने तो छोड़े जा सकते हैं, मगर प्रिय को कैसे छोड़ा जाये. ऐसे ही कई गीत थे जो नौकरी और मजदूरी के लिए पलायन कर गये पुरुषों की याद में गांव-घर में अकेली रह गई स्त्री की भावनाओं को स्वर देते थें. वे अस्सी-नब्बे के दशक में काफी पॉपुलर हुईं.
बचपन में सुने ये गीत आज भी जेहन से नहीं उतरते. यह वह जमाना था जब बालेसर जैसे गायक मोटका मुंगरवा गीत गा रहे थे. तब शारदा सिन्हा ने अकेली स्त्री के प्रेम, दुख और विछोह को स्वर दिया. संभवतः इन्हीं गीतों को विस्तार मिला हिंदी फिल्मों के लिए गाये उनके तीन चर्चित गीतों में. जिनमें दो उन्होंने राजश्री प्रोडक्शन के लिए गाया, पहला मैने प्यार किया का, कहे तोसे सजनी, सुन मोरे सैयां, पग-पग लिये जाऊं, तोहरी बलैयां. दूसरा हम आपके हैं कौन में बाबुल गीत तो विवाह गीत था. मगर गैंग्स ऑफ वासेपुर में तार बिजली से पतले हमारे पिया तो विशुद्ध स्त्री भावों की अभिव्यक्ति है.
इनमें कहे तोसे सजनी शारदा जी को खास तौर पर काफी प्रिय था. इसी साल 22 सितंबर को उनके पति ब्रजकिशोर सिन्हा गुजर गये तो उन्होंने सात अक्तूबर को उनकी याद में फेसबुक पर लिखा था, "Miss you so much Sinha Sahab! मैं जग की कोई रीत न जानू, मांग का तोहे सेनुर मानू, तू ही चूड़ियां मोरी, तू ही कलइयां. पग-पग लिए जाऊं..." (आप ही चल दिए मेरी बलइयां ले कर, क्यूं सिन्हा साहब ?)
उन्होंने एक और पोस्ट में अपने पति को 'कोयल बिनु बगिया ना सोभे राजा' गीत के जरिये याद किया. वे जीवन भर दो पुरुषों को अपने कैरियर के लिए क्रेडिट देती रहीं, एक पिता जिन्होंने बचपन में समाज से लड़कर उन्हें गीत गाने की शिक्षा दिलाई, दूसरे सिन्हा साब, पति, जो अपनी मां से लड़कर उन्हें संगीत के कैरियर में आगे बढ़ाते रहे.
मगर उनके गीतों को सुनते हुए यह ख्याल बार-बार आता रहा कि कभी ग़ज़ल, प्रेम, विरह, प्रकृति और विद्रोह तक के गीत गाने वाली शारदा सिन्हा की पहचान छठ गीत गाने वाली गायिका तक ही क्यों सीमित हो गई. निराला कहते हैं, "यह सब बीसवीं सदी में हुआ, खासकर पिछले दस-पंद्रह सालों में. उनका पहला छठ गीत 'जगदंबा घर में दियरा' तो एक विस्फोट की तरह आया था. जो भोजपुरी की अपसंस्कृति के बीच में प्रकाश की तरह था. मगर पिछली सदी में उनकी पहचान प्रेम और विरह के गीतों के लिए ही रही."
एक साक्षात्कार में शारदा जी ने कहा कि छठ के बारे में उन्हें विस्तृत जानकारी अपने ससुराल के घर आने के बाद मिली. उनका जन्म सुपौल जिले में हुआ था, जहां उस जमाने में छठ पर्व काफी प्रचलित नहीं था. ससुराल बेगूसराय में था. उनकी सास जो उनके सार्वजनिक गायन के खिलाफ थीं, ने छठ के गीतों के उनके गायन को थोड़ा प्रोत्साहित किया. इसमें कोई शक नहीं कि छठ के मौके के लिए गाये गये उनके गीत काफी चर्चित हुए. जैसे, केलवा के पात पर उग हे सुरुज देव, सकल जगतारिणी हे छठी मैया, हो दीनानाथ और उग ह सुरुजदेव.
हाल ही में निर्देशक नितिन चंद्रा ने उनके अपने छठ के अलबम के लिए एक बहुत प्यारा गीत गवाया, पहली पहिल हम कईनी छठी मइया, बरत तोहार. वह भी काफी पॉपुलर हुआ. छठ बिहार का सबसे बड़ा पर्व हो गया है और इसकी पॉपुलरिटी लगातार बढ़ती जा रही है. इस पर्व की कल्पना शारदा सिन्हा के गीतों के बगैर की ही नहीं जा सकती. तभी गीतकार राजशेखर लिखते हैं, "छठ माने शारदा सिन्हा का गाना."
इस बात से कतई इनकार नहीं किया जा सकता है कि छठ के गीत का मतलब ही शारदा सिन्हा का गाना हो गया है. भले ही छठ पर अनुराधा पौडवाल से लेकर पवन सिंह और दूसरे भोजपुरी गायकों के गीत खूब बजते हों. मगर उन गीतों में वह पवित्र भाव नहीं जो शारदा सिन्हा के गीतों में है. मगर दिलचस्प है कि छठ के गीत गाते हुए शारदा सिन्हा ने अपने इलाके के लोकपर्व सामा चकेवा के मौके पर गाये जाने वाले गीत सामा खेले चलली, भौजी संग सहेली को नहीं भूला.
छठ के ठीक बाद यह पर्व प्रवासी पक्षियों के स्वागत में मनाया जाता है. यह गीत भी अब छठ गीतों के साथ एकीकार हो गया है और दीपावाली के बाद जैसे ही शारदा सिन्हा के छठ गीत बजते हैं, लगने लगता है कि मौसम बदल रहा है. दुनिया अलग तरह की हो रही है. वैसे भी अपनी कई किस्म की अराजकताओं को लेकर चर्चित बिहार छठ के चार दिनों में अलग ही हो जाता है. और इस अलग से होने के एहसास में शारदा सिन्हा के गीतों की बड़ी भूमिका है. इस साल भी जब वे अस्पताल में जीवन और मृत्यु से जूझ रही थीं, तो उनके पुत्र अंशुमान ने उनका नया छठ गीत जारी किया. दुखवा मिटाईं छठी मैया.
छठ के अलावा शारदा सिन्हा को लोग विवाह के मौके पर गाये जाने वाले गीतों के लिए भी याद करते हैं. हर शादी में अलग-अलग रस्मों के वक्त उनके गीत बजते हैं. बारात को गाली देने के लिए भी लोग शारदा सिन्हा को ही याद करते हैं, उनका गीत रामजी से पूछे जनकपुर के नारी, बताब बबुआ लोगवा देत काहे गारी बजाते हैं.
उनके शिव को लेकर गाये गीत भी काफी लोकप्रिय हुए. खास कर कांवर यात्रा के दौरान लोग उनके गीत 'बाबा नेने चलियौ हमरो अपन नगरी' खूब सुनते हैं. उन्होंने विद्यापति के मधुर गीतों को भी गाया है.
मगर शारदा सिन्हा की असली पहचान इतनी ही नहीं. लोगों ने उनके छठ गीत, विवाह गीत और धार्मिक गीत ज्यादा पसंद किये. मगर उन्होंन खुद को कहीं सीमित नहीं किया. आखिर के वर्षों में जरूर बाजार के दबाव में रही होंगी. मगर जब मौका मिला हर तरह के गीत गाये और वे गीत भी काफी अच्छे थे. उन्हें भी सुनें.
खासकर यह गीत जिसमें वे चांद से बात करते हुए कहती हैं, बताव चांद केकरा से कहां मिले जाला. इस गीत में नायिका आगे कहती हैं, चांद हमरो के अपना संघतिया बना ल. ऐ चांद तुम मुझे ही अपना साथी संगतिया बना लो. अद्भुत शारदा. आखिरी नमन.